महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की गहमागहमी चरम पर है. छह प्रमुख पार्टियां चुनावी मैदान में हैं.
इनके अलावा कुछ जगहों पर तीसरे मोर्चे और निर्दलीय उम्मीदवार भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. कुल मिलाकर यह चुनाव सचमुच में उम्मीदवारों के लिए बहुरंगी मुकाबला बन गया है.
लेकिन इस चुनाव में सबसे बड़ी दिलचस्पी बाग़ी उम्मीदवारों को लेकर दिख रही है. बागियों की संख्या बढ़ने से पार्टियों के अधिकृत प्रत्याशियों की धड़कनें बढ़ने लगी हैं.
शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस के दोनों गुटों, दो राष्ट्रीय दल भाजपा और कांग्रेस, दो क्षेत्रीय दल वंचित बहुजन अघाड़ी और मनसे के आधिकारिक उम्मीदवारों को बाग़ी उम्मीदवारों की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.
नामांकन दाख़िल करने के अंतिम दिन तक प्रमुख राजनीतिक दलों की ओर से आधिकारिक उम्मीदवारों की घोषणा नहीं होने से भी कई जगहों पर बग़ावत हुई है.
बाग़ी तेवर अपनाने वालों में मुंबई से बीजेपी के पूर्व सांसद गोपाल शेट्टी जैसे नेता भी शामिल हैं.
बाग़ी उम्मीदवारों के हौसले इसलिए भी बुलंद हैं क्योंकि वे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे बदल सकते हैं या फिर महाविकास अघाड़ी और महायुति को बहुमत हासिल करने से रोक सकते हैं.
यहां यह जानना दिलचस्प है कि राज्य में 1995 के चुनाव में भी ऐसी ही स्थिति देखने को मिली थी, तब 40 से ज़्यादा निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे.
हाल ही में बीबीसी मराठी को दिए इंटरव्यू में एनसीपी (अजित पवार गुट) के नेता छगन भुजबल ने कहा था, ”इस चुनाव में बड़े पैमाने पर बग़ावत होगी. कई जगहों पर बाग़ी खड़े नजर आएंगे. क्योंकि लोग पांच साल तक कोशिश करते हैं और अगर समय पर टिकट नहीं मिला तो वे कहां जाएंगे? कई निर्दलीयों के बड़े अंतर से चुने जाने की संभावना है.”
इसी इंटरव्यू में छगन भुजबल ने 1995 विधानसभा चुनाव की कहानी भी बताई.
उन्होंने कहा,”1995 के चुनाव में शरद पवार और सुधाकर राव नाइक के दो गुट बन गए थे. जहां उनके उम्मीदवार को टिकट नहीं मिला. वहां दोनों ने निर्दलीय उम्मीदवार उतारे. तब 45 निर्दलीय उम्मीदवार चुने गए. हालांकि इस साल उतने निर्दलीय नहीं हैं फिर भी कम से कम 25-30 निर्दलीय चुने जा सकते हैं.”
क्या हुआ था 1995 के विधानसभा चुनाव में
1995 में मुख्य मुक़ाबला कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना गठबंधन के बीच था. उस चुनाव में कुल 3196 निर्दलीय उम्मीदवार शामिल हुए थे. उनमें से 45 निर्दलीय के रूप में चुने गए थे.
इसी वजह से बाग़ी निर्दलीयों की बात करते समय हमेशा 1995 के चुनावों का जिक्र किया जाता है. इनमें से अधिकतर निर्दलीय, कांग्रेस पार्टी के बाग़ी थे.
1995 से पहले 1990 के चुनाव में भी 13 बाग़ी चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे.
वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र साठे बताते हैं कि 1995 के चुनाव में बाग़ियों के जीतने की सबसे ऊंची दर देखी गई थी.
बीबीसी मराठी से बात करते हुए उन्होंने कहा, ”1990 में कांग्रेस की सरकार आई और शरद पवार मुख्यमंत्री बने. उस समय कहा गया कि शरद पवार ने जानबूझकर बाग़ियों को चुना ताकि ये निर्दलीय उनका समर्थन करें. फिर शिवसेना-भाजपा गठबंधन की सरकार पहली बार 1995 में बनी और उसने भी बाग़ियों को बढ़ावा दिया.”
इस चुनाव में 286 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा. 61 सीटें गंवाने के साथ कांग्रेस को केवल 80 सीटें मिलीं. दूसरी तरफ शिवसेना-बीजेपी गठबंधन ने अच्छा प्रदर्शन किया था.
शिवसेना ने 169 में से 73 सीटें जीतीं थी, जबकि बीजेपी ने 116 में से 65 सीटें जीती थीं. दोनों पार्टियों की सीटें बढ़ीं. शिवसेना की 21 और बीजेपी की 23 सीटें बढ़ी थीं. 45 निर्वाचित निर्दलियों में से 14 की मदद से राज्य में पहली बार गैर-कांग्रेस गठबंधन सरकार बनी.
राजेंद्र साठे बताते हैं, ”भ्रष्टाचार के आरोप, दाऊद से संबंधों के आरोप, 1993 के बम विस्फोट और हिंदू-मुस्लिम दंगों की पृष्ठभूमि में शरद पवार के ख़िलाफ़ माहौल बनाया गया था. हिंदुत्व की राजनीति की ताक़त बढ़ गयी थी. इसके चलते बीजेपी और शिवसेना गठबंधन को ज़्यादा सीटें मिलीं. हालांकि उन्हें सरकार बनाने के लिए उन निर्दलियों की मदद लेनी पड़ी जो उस समय सबसे बड़ी संख्या में चुने गए थे.”
2024 में क्या तस्वीर है
फिलहाल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एक तरफ़ महायुति में बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी शामिल हैं, वहीं महाविकास अघाड़ी में कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और एनसीपी (शरद पवार) शामिल हैं.
इसके अलावा ‘परिवर्तन महाशक्ति’ नाम का एक तीसरा गठबंधन भी मैदान में उतर चुका है, जिसमें संभाजीराजे छत्रपति, राजू शेट्टी, बच्चू कडू गठबंधन के प्रमुख नेता हैं.
इसके अलावा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और वंचित बहुजन अघाड़ी ने भी पूरे महाराष्ट्र में अपने उम्मीदवार उतारे हैं. कई जगहों पर एक ही गठबंधन के अलग-अलग दलों ने अपना नामांकन दाख़िल किया है.
ये पार्टियाँ अपने बीच की दरार को पाटने और पार्टी में बाग़ियों को समझने में कितनी सफल होती हैं. इससे महाराष्ट्र की राजनीतिक लड़ाई की तस्वीर स्पष्ट होने की संभावना है.
आवेदन वापस लेने की तारीख यानी 4 नवंबर तक इस तस्वीर के साफ़ होने की उम्मीद की जा रही है.
इस सब की पृष्ठभूमि में अधिकतर निर्वाचन क्षेत्रों में सभी दलों के उम्मीदवारों को बग़ावत का सामना करना पड़ रहा है.
असंतुष्ट बाग़ियों के निर्दलीय के तौर पर चुनाव मैदान में उतरने से कई जगहों पर राजनीतिक गणित पलटने की संभावना है.
इस चुनाव पर बाग़ियों का क्या असर पड़ेगा?
वरिष्ठ पत्रकार राही भिड़े ने बीबीसी मराठी से बात करते हुए कहा, ”मामला सिर्फ़ इतना ही नहीं है कि उम्मीदवार को नामांकित नहीं किया गया था.”
उन्होंने कहा, “जब ‘गुवाहाटी’ जैसा कुछ होता है, तो उसके पीछे कोई न कोई होता है. यहां बीजेपी एकनाथ शिंदे के साथ खड़ी थी. उम्मीदवारी न मिलने पर और जबरन बग़ावत के कारण दो तरह की बग़ावत होती है.हमने पिछले कुछ वर्षों में देखा है कि कैसे भाजपा ने कई लोगों को विद्रोह के लिए मजबूर करने के लिए केंद्रीय शक्ति का इस्तेमाल किया है.”
मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में बनी पिछली सरकार में अपने समर्थक विधायकों को लेकर गुवाहाटी चले गए थे.
वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र साठे ने भी बीबीसी मराठी से बताते हैं, ”कहा जाता है कि निर्दलियों के पास सत्ताधारी दल को नियंत्रण में रखने की ताक़त होती है. अगर सरकार उनके प्रभाव में आ जाती है तो उन्हें ऐसे फ़ैसले लेने पड़ते हैं जो उनके लिए सुविधाजनक हों. इसलिए कभी-कभी ऐसा होता है कि सरकार उनके इशारों पर नाचती है. इस बार ऐसा होता है कि नहीं, यह देखने की बात होगी.”
वहीं राही भिड़े को नहीं लगता कि बागी इस चुनाव में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर पाएंगे.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक नितिन बिरमल को भी नहीं लगता कि बाग़ियों का इस चुनाव पर ज़्यादा असर पड़ेगा. उनका कहना है कि दो गठबंधनों और छह पार्टियों के साथ विद्रोहियों की शक्ति सीमित है.
उन्होंने कहा, “कुछ लोग कहते हैं कि 1995 की तरह इस चुनाव में भी कई बाग़ी चुने जाएंगे लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता.”
किन नेताओं ने की बग़ावत
वैसे महाराष्ट्र की 288 सीटों पर हो रहे इस चुनाव में आधी से ज़्यादा सीटों पर बग़ावत की स्थिति मानी जा सकती है.
महायुति और महाविकास अघाड़ी के लगभग 150 बाग़ी अपनी-अपनी पार्टियों के आधिकारिक उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ चुनाव मैदान में हैं.
चर्चित बाग़ियों की सूची में बीजेपी के गोपाल शेट्टी ने बोरीवली में आधिकारिक उम्मीदवार संजय उपाध्याय के ख़िलाफ़ बग़ावत कर दी है.
छगन भुजबल के भतीजे समीर भुजबल ने नंदगांव में शिवसेना उम्मीदवार सुहास कांडे के ख़िलाफ़ बग़ावती तेवर अपना लिया है.
भाजपा की पूर्व सांसद हिना गावित ने अक्कलकुवा निर्वाचन क्षेत्र में विद्रोह कर दिया है.
जबकि कांग्रेस के कमल व्यवहारे ने पुणे के कसबा निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी उम्मीदवार को विरोध किया है और आबा बागुल ने भी पार्वती में बग़ावती तेवर अपनाया है.
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के ख़िलाफ़ भी बग़ावत हो चुकी है.
उनके कोपरी-पचपखाडी निर्वाचन क्षेत्र में महाविकास अघाड़ी के ठाकरे समूह ने केदार दिघे को उम्मीदवार बनाये जाने पर कांग्रेस के मनोज शिंदे ने बग़ावत कर दी है.
वसंतराव नाइक के पड़पोते ययाति नाइक ने राष्ट्रवादी शरद पवार गुट से टिकट मांगा था. हालांकि, नाइक, जिन्हें पुसाद से नामांकन नहीं मिला, ने करंजा निर्वाचन क्षेत्र से अपना नामांकन दाख़िल किया है.
यह देखना दिलचस्प होगा कि 4 नवंबर को आवेदन वापस लेने के अंतिम दिन ये बाग़ी उम्मीदवार चुनाव मैदान में बने रहेंगे या नहीं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित