हरियाणा और जम्मू कश्मीर के चुनाव के बाद सभी की निगाहें महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव पर टिकीं हैं.
महाराष्ट्र का चुनाव इसलिए खास है क्योंकि ये राजनीतिक महत्व रखने वाला देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है.
फिलहाल, महाराष्ट्र में चुनाव की सरगर्मियां जोरों पर है. हरियाणा में हार के बाद एक ओर जहां कांग्रेस अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद जता रही है, तो वहीं दूसरी तरफ़ बीजेपी भी जोश से भरी नज़र आ रही है.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी और उसके गठबंधन को लगे झटके के बाद विपक्ष के हौसले ऊपर दिख रहे थे.
लेकिन हरियाणा चुनाव में भाजपा को अकेले दम पर बहुमत मिलने के बाद भाजपा फिर से पूरे जोश में दिख रही है.
फिलहाल महाराष्ट्र में क्या हालात हैं और चुनावी बयार कैसी चल रही है? महाराष्ट्र में लोकसभा जैसे ही हालात हैं या ‘महायुति’ ने वापसी की है?
क्या कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के सीट शेयर समझौते से कोई संकेत मिल रहे हैं?
अगर एनडीए की सरकार बनने की स्थिति हुई तो क्या भाजपा अब अपना मुख्यमंत्री बनाने का संकेत दे रही है?
बीबीसी हिन्दी के ख़ास साप्ताहिक कार्यक्रम ‘द लेंस’ में कलेक्टिव न्यूज़रुम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़्म मुकेश शर्मा ने महाराष्ट्र चुनाव से जुड़े इन्हीं सवालों पर चर्चा की.
इस चर्चा में लोकनीति सीएसडीएस के सह-निदेशक संजय कुमार, एनसीपी शरद पवार गुट की प्रवक्ता डॉ. सीमा मलिक, भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता राजीव पांडेय और कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य आरिफ़ नसीम खान शामिल हुए.
पिछले विधानसभा चुनाव में क्या थी स्थिति?
महाराष्ट्र विधानसभा में कुल 288 सीटें हैं. जीत का आंकड़ा छूने के लिए किसी भी दल को 145 सीटों की ज़रूरत पड़ती है.
2019 में हुए विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर नज़र रखें तो बीजेपी को 105, शिवसेना को 56, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिलीं थीं.
जिसके बाद शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने साथ मिलकर सरकार बना ली थी, हालांकि यह गठबंधन की सरकार ज़्यादा दिन तक नहीं चल सकी.
साल 2022 के जून में शिवसेना के आपसी विवाद के कारण एकनाथ शिंदे, शिवसेना के एक गुट के साथ अलग हो गए.
वहीं अजित पवार भी एनसीपी के एक गुट को अपने साथ ले आए और दोनों ने बीजेपी के साथ मिलकर नई सरकार बना ली.
लोकसभा चुनाव और हरियाणा के नतीजों का कैसा असर?
लोकसभा में महाविकास अघाड़ी के अच्छे प्रदर्शन के बाद अभी हालात कैसे हैं?
इस सवाल पर लोकनीति सीएसडीएस के सह-निदेशक संजय कुमार कहते हैं, “अगर ग्राउंड रिपोर्ट देखें तो ज़मीनी स्तर पर ऐसा कुछ दिखाई नहीं पड़ता है कि लोकसभा और अब में कोई फ़र्क है, लगभग स्थिति वैसी ही बनी हुई है जैसा लोकसभा के समय थी.”
हाल ही में हरियाणा में बीजेपी की जीत के बाद कैडर में एक जोश आया है, उस जोश और हौसले का इस चुनाव के आख़िर में कुछ फ़र्क पड़ेगा या नहीं?
इस पर संजय कहते हैं, “हौसला तो बुलंद हुआ है और कार्यकर्ता भी उत्साहित हैं, लेकिन अगर हरियाणा का चुनाव बीजेपी हार गई होती तो इस वक़्त माहौल कुछ और ही होता.”
वे कहते हैं, “उस वक़्त ऐसा नैरेटिव बन गया था कि बीजेपी हरियाणा का चुनाव हार रही है, अब सवाल ये है कि क्या इसका फ़र्क बीजेपी के वोट पर पड़ेगा या नहीं, हालांकि मनोबल पर तो पड़ेगा ही.”
संजय कहते हैं, “चाहे वो सीटों की बात हो या वोट प्रतिशत. इसका एक कारण भी है, अगर सीटों के बंटवारे की बात करें तो महाराष्ट्र महाविकास अघाड़ी के तीनों दल लगभग एक बराबर सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन बीजेपी लगभग 150 सीटों पर चुनाव लड़ेगी जिससे संभावना है कि वो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी. लेकिन उसमें हरियाणा की जीत का असर होगा या नहीं ये आकलन करना मुश्किल है.”
हाल ही में महाविकास अघाड़ी की तरफ़ से बताया गया था कि 270 सीटों पर गठबंधन के बीच 85-85-85 के फॉर्मूले पर सहमति बनी है.
इस फॉर्मूले के तहत कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद चंद्र गुट) के बीच 85-85 सीटों का बंटवारा होगा.
लेकिन मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा? ये सवाल बना हुआ है.
इस पर डॉ. सीमा मलिक (एनसीपी शरद पवार गुट की प्रवक्ता ) कहती हैं, “मुख्यमंत्री का चेहरा हमने अभी घोषित नहीं किया है, लेकिन समय के साथ वो भी सामने आ जाएगा.”
वे कहती हैं, “मुझे नहीं लगता कि अभी मुख्यमंत्री का चेहरा ज़रूरी है. जो जरूरी है वो हैं महाराष्ट्र के मुख्य मुद्दे, जैसे महंगाई, बेरोज़गारी, किसानों की आत्महत्या और महिलाओं के साथ हुई घटनाएं.”
2019 के लोकसभा चुनाव के मुक़ाबले 2024 के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में एनडीए गठबंधन की सीटें कम हुईं, जिससे उनको झटका लगा. लेकिन अब जब बीजेपी हरियाणा का चुनाव अपने दम पर जीत चुकी है तो इसका असर कार्यकर्ताओं पर भी पड़ा होगा.
बीजेपी के पक्ष को रखते हुए पार्टी प्रवक्ता राजीव पांडेय कहते हैं, “महाराष्ट्र का चुनाव और देश के चुनाव में बहुत बड़ा अंतर आ गया है, कांग्रेस पार्टी ने एक नैरेटिव चलाया जिसमें संविधान और आरक्षण को बड़ा मुद्दा बनाया. जिसके कारण हमें महाराष्ट्र में क़रीब 2 लाख वोट कम मिले”
वो आगे कहते हैं, “5 साल देवेंद्र जी के नेतृत्व में सरकार चली और 2.5 साल एकनाथ शिंदे, देवेंद्र जी और अजित पवार जी के नेतृत्व में सरकार चली. अगर बीजेपी के 5 साल के प्रदर्शन को देखें तो जब चुनाव 2019 में हुआ था तब भाजपा का स्ट्राइक रेट 70 प्रतिशत था और जो हमारे साथ पार्टी थी, उनका स्ट्राइक रेट 40-42 के आसपास था.”
राजीव कहते हैं, ”उस वक़्त उद्धव ठाकरे ने सीएम बनने के लिए जनादेश का अपमान करते हुए जिन लोगों को हराकर आए थे वो उनके साथ गए और सीएम बन गए. आज परिस्थिति देखिए क्या है?”
उन्होंने कहा, ”हमारे साथ (उद्धव) जब थे तब 124 सीट पर चुनाव लड़े थे. लेकिन आज वो 85 सीट के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उद्धव जी एक ख़ास वोट बैंक के सहारे टीके हुए हैं, महाराष्ट्र में एक भी अभी पैन महाराष्ट्र पार्टी नहीं है हमारे खिलाफ़”
अलग-अलग पार्टियों के गठबंधन को देखते हुए वोट ट्रांसफर कैसे होगा?
क्या विचारधारा के आधार पर एनसीपी (अजित पवार गुट) और बीजेपी एक ही जैसे धरातल पर खड़ी हैं?
इस सवाल पर राजीव कहते हैं, “हमने टीडीपी से गठबंधन किया था, क्या हम अपनी विचारधारा से एक इंच भी भटके, हम अपनी विचारधारा से भटकने वाले लोग नहीं हैं, हम जो बात कहते हैं वो करते हैं”
वहीं, दूसरी तरफ़ महाविकास अघाड़ी में शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और कांग्रेस के बीच वोट ट्रांसफर कैसे होगा?
इस पर कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य आरिफ़ नसीम ख़ान कहते हैं कि इस सिलसिले में गठबंधन ने लोकसभा चुनाव में ही प्रयोग करके देख लिया है.
वो कहते हैं, ”ये एक्सपेरिमेंट 3 महीने पहले लोकसभा चुनाव में हो चुका है. महाराष्ट्र की जनता महाविकास अघाड़ी के समर्थन में अपना फैसला सुना चुकी है.”
उद्धव ठाकरे को सीएम चेहरे के रूप में अभी तक घोषित क्यों नहीं किया गया? इसके पीछे क्या वजह है?
इस पर आरिफ़ कहते हैं कि ऐसा गठबंधन के बीच लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का पालन करने की वजह से है और ये तीनों दलों का फ़ैसला है.
वो कहते हैं, ”कांग्रेस ने कभी चुनाव से पहले इसकी घोषणा नहीं की. हम तीनों दलों का ये सामूहिक फ़ैसला है कि पहले हम विकास के मुद्दों पर चुनाव लड़ेंगे और हम जनता के आशीर्वाद से जीतेंगे, फिर लोकतांत्रिक तरीके से हम लोग तय करेंगे कि राज्य का मुख्यमंत्री कौन होगा.”
उन्होंने कहा, ”हमारे यहां मुख्यमंत्री पद की लड़ाई ही नहीं है, हमारी लड़ाई उनसे है, जो 40 टके कमीशन की सरकार है जो महाराष्ट्र में चल रही है.”
गठबंधन की चुनौतियां और छोटी पार्टियां
महाराष्ट्र चुनाव में गठबंधन की राजनीति भी एक चुनौती की तरह है, जहां हर पार्टी को अपनी भूमिका साबित करनी होगी.
इस संदर्भ में संजय कहते हैं, “दोनों तरफ़ 3-3 पार्टियां हैं, ऐसे में सारी गठबंधन की पार्टियों को अच्छा प्रदर्शन करना पड़ेगा क्योंकि पहले टीम को जिताना है. लेकिन उनको एक डर ये सता रहा है कि अगर उनके साथ वाली पार्टी ने उनसे बहुत अच्छा प्रदर्शन कर दिया तो उनका पत्ता साफ़ हो जाएगा.”
छोटे दलों का इस चुनाव में कितना असर होगा?
इस पर संजय कुमार कहते हैं, “भारत का एक आम मतदाता ये तय कर लेता है कि हमें वोट बर्बाद नहीं करना है.”
वे कहते हैं, “अगर हरियाणा की बात करें तो वहां छोटी-छोटी पार्टियों की भूमिका होती थी लेकिन इस बार के चुनाव में ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला.”
उन्होंने कहा, “वैसे ही अगर महाराष्ट्र में भी ये दिखने लगेगा कि ये चुनाव दो गठबंधनों के बीच में है तो ऐसे में छोटी पार्टियां चुनाव के नतीजों को बहुत ज़्यादा प्रभावित नहीं कर पाएंगी.”
महाराष्ट्र में भी दिखेगा योजनाओं का असर?
महाराष्ट्र चुनाव में सरकार की विभिन्न योजनाओं का असर देखने को मिल सकता है.
लोकनीति-सीएसडीएस के सह-निदेशक संजय कुमार कहते हैं, “जब भी कोई पार्टी योजना लेकर आती है तो उस योजना का जिनको लाभ मिलता है, उनका वोट सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में झुका हुआ देखने को मिलता है. लाड़ली बहना योजना के लाभार्थियों का वोट थोड़ा-बहुत महायुति के पक्ष में झुका हुआ दिखाई पड़ता है.”
हालांकि, सीमा मलिक इस पर अलग दृष्टिकोण रखती हैं.
वो कहती हैं, “सबने देखा है कि प्रधानमंत्री ने 70 हजार करोड़ के घोटाले की बात कही और अगले ही दिन उनको (अजीत पवार) अपनी पार्टी में शामिल कर लिया.”
वह कहती हैं, “ये सब चीजें जनता ने देखी और लोकसभा चुनाव में इसका जवाब दिया. जिस तरह का माहौल उन्होंने बना रखा है, मुझे नहीं लगता कि लाड़ली बहना योजना देने से सब धुल जाएगा.”
लोकसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मुद्दा सुर्ख़ियों में रहा. प्रदर्शनों में भी तेजी आई और ऐसा माना जाता रहा है कि लोकसभा चुनाव में भी इसका असर रहा.
ऐसे में विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे का कितना असर पड़ेगा? इस सवाल के जवाब में संजय कुमार कहते हैं कि इस चुनाव में ये मुद्दा उतना महत्व नहीं रखेगा.
संजय कहते हैं “वो लोकसभा का चुनाव था और संविधान में कोई परिवर्तन कर सकता है तो वो केंद्र सरकार कर सकती है ना की राज्य सरकार”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित