महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान सोशल मीडिया पर एक वाक्य धूम मचा रहा था. वो था कि ‘जहाँ बूढ़ा आदमी चल रहा है, वहाँ अच्छा हो रहा है…’ कम से कम शरद पवार से प्यार करने वाले हर व्यक्ति को इस लाइन का मतलब पता था.
शरद पवार के गुट के उम्मीदवार यह सोच रहे थे कि वो अपने प्रमुख नेता के ‘जादू’ से विधानसभा पहुँच जाएंगे. यही कारण था कि जहां एनसीपी (एसपी) के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे, वहां शरद पवार की रैलियों की ख़ूब मांग थी.
84 वर्षीय शरद पवार ने भी इस मांग के मद्देनज़र राज्य भर में 69 सार्वजनिक बैठकें कीं. वो समय-समय पर प्रेस कॉन्फ्रेंस के ज़रिए अपना राजनीतिक रुख़ बताते रहे. और उन्होंने लोगों को अपने पक्ष में करने का प्रयास भी किया.
लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी शरद पवार को 86 में से सिर्फ 10 सीटें ही मिलीं. तो क्या शरद पवार का ‘करिश्मा’ ख़त्म हो गया? यह जानने के लिए हमने पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषकों से बात की.
क्यों उठ रहे हैं सवाल?
कुछ महीने पहले बारामती लोकसभा से जीत हासिल करने वाले शरद पवार को बारामती विधानसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिल पाई.
इसलिए एक बार फिर से शरद पवार के राजनीतिक प्रभाव पर सवाल खड़े हो गए हैं.
सबसे बड़ा सवाल यही पूछा जा रहा है कि क्या शरद पवार एक बार फिर राजनीति में खड़े हो पाएंगे?
साथ ही ये भी कि शरद पवार और उनकी पार्टी का भविष्य क्या होगा?
और सबसे अहम बात यह कि क्या महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार का ‘करिश्मा’ ख़त्म हो गया है?
वापसी का मौका?
शरद पवार के राजनीतिक सफर में उन्हें कई बार मुश्किल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है.
लेकिन, पिछले चार दशकों में शरद पवार ने अपने राजनीतिक अनुभव और हुनर का इस्तेमाल करके हर बार राजनीति में वापसी की है.
लोकसभा चुनाव से पहले उनके भतीजे अजित पवार ने पार्टी समेत ज़्यादातर वरिष्ठ नेताओं पर मुकदमा दायर कर दिया था. मगर, शरद पवार ने नई पार्टी और नए चुनाव चिह्न के साथ लोकसभा चुनाव जीता.
हालांकि, विधानसभा चुनाव में वे इस सफलता को दोहरा नहीं सके. विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद क्या पवार एक बार फिर कमबैक कर पाएंगे?
शरद पवार के भविष्य के बारे में बात करते हुए वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक डॉ. सुहास पलशीकर ने बीबीसी मराठी से कहा, ”2014 के बाद से लगातार यह सवाल पूछा जा रहा है कि एनसीपी का भविष्य क्या होगा? इसका कारण यह है कि इस पार्टी और इसके नेताओं को अक्सर बीजेपी के साथ जाने का लालच दिया जाता रहा है. मगर, हम देख सकते हैं कि उन्होंने बीजेपी के बजाय कांग्रेस के साथ जाने का फैसला किया.”
डॉक्टर सुहास पलशीकर कहते हैं, “हालांकि, यह सच है कि शरद पवार ने पहले भी ऐसी कठिन परिस्थितियों को पार किया है, लेकिन ऐसे कठिन समय से बाहर निकलने के लिए एक अवसर की आवश्यकता होती है.”
”और फिलहाल यह कहना संभव नहीं है कि शरद पवार को आज के दौर में वह अवसर कहां मिलेगा. यह उनके लिए एक बड़ी चुनौती साबित होने वाला है.”
शरद पवार के जीवन में आए राजनीतिक संकट को याद करते हुए डॉक्टर पलशीकर कहते हैं, ”शरद पवार साल 1985 के आसपास पहली बार ऐसे राजनीतिक संकट से उबरे थे.”
”उस समय महाराष्ट्र की राजनीति में एक खालीपन था. जनता दल और जनता पार्टी के पतन के दौर में वो खुद राजनीति में फिर से उभरने में सफल हुए थे.”
“उसके बाद दूसरा चरण 1999 में था, जब शरद पवार का कांग्रेस के साथ टकराव हुआ था. उस टकराव के बाद भी, शरद पवार ने तुरंत कांग्रेस के साथ सुलह कर ली और महाराष्ट्र की राजनीति में केंद्रीय स्थान बनाए रखा.”
”इस पड़ाव पर शरद पवार को जितने वोट मिल रहे हैं, वो कम हो चुके हैं. इस बार शरद पवार को 10 से 11 फीसदी वोट मिले हैं. और उनकी सीटें भी बहुत कम हैं.”
डॉक्टर पलशीकर ने कहा, “अगर चुनौती यह है कि इस स्थिति में पार्टी को फिर से कैसे स्थापित किया जाए, तो मेरा मानना है कि यह अकेले शरद पवार के बजाए पार्टी में उनके सहयोगी नेताओं की दृढ़ता पर ज़्यादा निर्भर करेगा.”
”दूसरा यह कि शरद पवार के लिए चमत्कार कर देने वाली भाषा के इस्तेमाल को अलग रखा जाना चाहिए. अब यह देखना ज़रूरी होगा कि शरद पवार ने ये चमत्कार अकेले किए हैं या फिर दूसरों को साथ लाकर कोई चमत्कार किया है.”
भविष्यवाणी करना मुश्किल
क्या होगा शरद पवार का भविष्य? अब ऐसा सवाल पूछा जा रहा है.
क्योंकि, विधानसभा चुनाव में शरद पवार की पार्टी की हार और राज्य की पूरी राजनीतिक स्थिति को देखते हुए शरद पवार को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.
शरद पवार के भविष्य के बारे में बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार कुमार केतकर ने बीबीसी मराठी को दिए एक इंटरव्यू में कहा, “एक समय महाराष्ट्र में विचारधारा, नेता और पार्टी की नीतियां महत्वपूर्ण हुआ करती थीं. इस साल के चुनाव में इनमें से किसी पर भी चर्चा नहीं हुई.”
“शरद पवार को लेकर भविष्यवाणी करना मुश्किल है क्योंकि वो लंबी दूरी के धावक हैं. शरद पवार ने पिछले कुछ वर्षों में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. और शरद पवार कभी भी उन उतार-चढ़ाव से दबाव में नहीं आए हैं, बल्कि उन्होंने वापसी की है.”
“शरद पवार कई बार लोगों के बीच जा चुके हैं और संघर्ष कर चुके हैं. इसलिए, यह कहना असंभव है कि शरद पवार अब क्या करेंगे.”
अजित पवार के बारे में कुमार केतकर ने कहा, ”जब शरद पवार ने 1999 में कांग्रेस छोड़ी, तो उन्होंने एक अलग पार्टी बनाई. लेकिन, अजित पवार ने अपनी पार्टी नहीं बनाई.”
“उन्होंने तो दावा किया कि वो वास्तविक एनसीपी है. उन्होंने अपना चुनाव चिह्न भी नहीं बदला. इसका राजनीतिक फायदा उनको चुनाव में मिला, जो देखा जा सकता है.”
शरद पवार और उद्धव ठाकरे के बारे में बात करते हुए लोकसत्ता के संपादक गिरीश कुबेर ने कहा, ”पिछले दो वर्षों में शिवसेना और एनसीपी में हुई टूट को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि शरद पवार की पार्टी एक त्रासदी बन गई है और उद्धव ठाकरे की पार्टी एक मज़ाक बन गई है.”
“क्योंकि, 84 साल की उम्र में 100 से ज्यादा सभाएं करने वाले नेता, जिन्होंने इस चुनाव में पूरी जान लगा दी थी, उनकी पार्टी को इस चुनाव में कोई खास सफलता नहीं मिल पाई है.”
“बल्कि, उनकी पार्टी की ताकत कम हो गई है. ऐसा लगता है कि अब शरद पवार को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए राजनीति करना होगी.”
सियासी करिश्में का अंत?
करीब पांच दशक के लंबे करियर के बाद शरद पवार ने पिछले कुछ साल में संन्यास के कई संकेत दिए हैं.
विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी शरद पवार ने ऐसा बयान दिया था कि वह अब चुनावी राजनीति में शामिल नहीं होंगे.
लेकिन, शरद पवार की राजनीति को जानने वाले कई लोगों ने भविष्यवाणी की कि भले ही शरद पवार चुनाव नहीं लड़ें, लेकिन वे राजनीति नहीं छोड़ सकते.
अब विधानसभा चुनाव में हार के बाद क्या वाकई उनकी राजनीति खत्म हो गई है? ऐसा सवाल पूछा जा रहा है.
इस बारे में बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राही भिडे ने कहा, ”मैंने 1985 से शरद पवार की राजनीति को बहुत क़रीब से देखा है. इसलिए, मैं मजबूती से कह सकती हूं कि शरद पवार हार मानने वाले नहीं हैं.”
“राजनीतिक जीवन के इस दौर में इतनी बड़ी हार स्वीकार करना उनके लिए अच्छा नहीं है.”
“जो लोग अभी शरद पवार के साथ हैं, उनमें से कुछ अगले पांच साल के बारे में सोच सकते हैं और इसके चलते शरद पवार का साथ छोड़ सकते हैं.”
राही भिडे का कहना है कि जैसे-जैसे शरद पवार बड़े होते गए, उनके साथियों की राजनीतिक शिकायतें बढ़ती गईं, वह अपने भतीजे को भी नहीं संभाल पाए.
राहील भिडे, “अब समय आ गया है कि शरद पवार खुद अजित पवार के ख़िलाफ़ अपने ही परिवार के एक सदस्य को खड़ा करें. सुप्रिया सुले और रोहित पवार जैसे नेता इस पार्टी को भविष्य में कितना संभाल पाएंगे?”
इस बारे में बात करते हुए टाइम्स ऑफ इंडिया की पत्रकार अलका धुपकर ने बीबीसी न्यूज से कहा, ”मैं कभी नहीं कहूंगी कि शरद पवार खत्म हो गए हैं, क्योंकि, राजनीति में कुछ भी हो सकता है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.