SC ने सवाल करते हुए पूछा है कि यदि भारतीय वायुसेना में (IAF) में एक महिला राफेल लड़ाकू विमान उड़ा सकती है तो सेना की जज एडवोकेट जनरल (JAG) ब्रांच के जेंडर-न्यूट्रल पदों पर कम हमला अधिकारी क्यों हैं? जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। बता दें दोनों महिला अधिकारियों ने पुरुषों और महिलाओं के लिए असमानुपातिक रिक्तियों को चुनौती दी थी।
पीटीआई, नई दिल्ली। आज के समय में महिलाएं हर क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रही हैं। इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से एक सवाल किया है, जो काफी ज्यादा सुर्खियों में आ गया है।
दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय ने सवाल करते हुए पूछा है कि यदि भारतीय वायुसेना में (IAF) में एक महिला राफेल लड़ाकू विमान उड़ा सकती है, तो सेना की जज एडवोकेट जनरल (JAG) ब्रांच के जेंडर-न्यूट्रल पदों पर कम हमला अधिकारी क्यों हैं?
क्या है मामला?

बेंच ने एक अखबार के लेख का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि एक महिला पायलट राफेल लड़ाकू विमान उड़ाएगी और कहा कि ऐसी स्थिति में उसे युद्ध बंदी के रूप में भी लिया जा सकता है।जस्टिस दत्ता ने केंद्र और सेना की ओर से पेश एडशिनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से पूछा, “अगर इंडियन एयरफोर्स में किसी महिला के लिए राफेल लड़ाकू विमान उड़ाना जायजा है, तो सेना के लिए जेएजी में ज्यादा महिलाओं को अनुमति देना इतना मुश्किल क्यों है?”

ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि सेना में जेएजी ब्रांच सहित महिला अधिकारियों की भर्ती और नियुक्ति इसकी परिचालन तैयारियों को ध्यान में रखते हुए एक प्रगतिशील प्रक्रिया है।

जस्टिस मनमोहन ने कहा कि अगर 10 महिलाओं योग्यता के आधार पर जेएजी के लिए योग्य हैं, तो क्या उन सभी को जेएजी ब्रांच के अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाएगा।देश के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश, अमरावती की झुग्गी से CJI तक का सफर… जानिए कौन हैं जस्टिस बीआर गवई
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