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प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने एक कथित पत्र में दावा किया है कि वह सरकार से शांति वार्ता के लिए अस्थायी तौर पर अपना सशस्त्र संघर्ष रोकने को तैयार है.
हालांकि पत्र में यह शर्त रखी गई है कि सरकार एक महीने के ‘युद्धविराम’ का एलान करे.
छत्तीसगढ़ सरकार ने कहा है कि इस बयान की प्रामाणिकता की जांच की जा रही है.
राज्य के उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि पत्र की सत्यता जांचने के बाद अगर यह सही पाया गया, तो वरिष्ठ नेता इस पर निर्णय करेंगे.
माओवादियों की यह कथित अपील मंगलवार को सोशल मीडिया पर सामने आई थी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री विजय शर्मा ने कहा है कि इस कथित बयान की जांच करानी होगी, लेकिन नक्सलवाद के ख़िलाफ़ ऑपरेशन जारी रहेंगे. यदि नक्सली बंदूक त्यागकर मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं तो उनका स्वागत है.
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार सरेंडर करने वाले नक्सलियों के लिए पुनर्वास समेत कई योजनाएँ चला रही है. ऐसे में नक्सली बंदूक त्यागकर सामने आएंगे तो सरकार उनके साथ शांति वार्ता के लिए पहल करेगी.
बस्तर के इंस्पेक्टर जनरल सुंदरराज पी. ने बीबीसी संवाददाता विष्णुकांत तिवारी से कहा, “सीपीआई (माओवादी) केंद्रीय समिति के नाम से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति, जिसमें हथियार डालने और शांति वार्ता की संभावना का उल्लेख किया गया है, हमारे संज्ञान में आई है.”
“इस विज्ञप्ति की प्रामाणिकता की जांच की जा रही है और इसकी विषय-वस्तु का सावधानीपूर्वक परीक्षण किया जा रहा है. हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि सीपीआई (माओवादी) के साथ किसी भी प्रकार की बातचीत या संवाद के बारे में सरकार समुचित विचार और मूल्यांकन के बाद निर्णय करेगी.”
पत्र में क्या है?
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माओवादियों ने अपने पत्र में लिखा है कि हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने के लिए किए जा रहे अनुरोधों के मद्देनज़र उन्होंने हथियार डालने का निर्णय लिया है.
पत्र में लिखा है, “हथियारबंद संघर्ष को अस्थायी रूप से विराम देने का निर्णय लिया गया है. इस विषय में हम केंद्रीय गृहमंत्री या उनके नियुक्त व्यक्तियों से वार्ता के लिए तैयार हैं. प्राथमिक रूप से हम वीडियो कॉल के ज़रिए भी सरकार के साथ विचारों के आदान-प्रदान के लिए तैयार हैं.”
माओवादियों ने लिखा है कि वे मार्च 2025 से ही सरकार के साथ शांति वार्ता के लिए ईमानदारी से प्रयास कर रहे हैं.
क्या माओवादियों पर दबाव बढ़ गया है?
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माओवादियों का ये कथित बयान उनकी पार्टी के महासचिव बसवराजू के सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे जाने के चार महीने बाद आया है.
विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों का अभियान तेज होने के बाद माओवादी कमजोर पड़ते जा रहे हैं और अब बचाव की रणनीति अपना रहे हैं. इस सप्ताह सीपीआई (माओवादी) केंद्रीय कमेटी की सुजाता ने आत्मसमर्पण कर दिया था.
पिछले कुछ दिनों के भीतर ही सीपीआई माओवादी की सेंट्रल कमेटी के एक सदस्य मोडेम बालकृष्णा के मारे जाने और सेंट्रल कमेटी की ही दूसरी सदस्य सुजाता के आत्मसमर्पण के बाद माना जा रहा है कि माओवादी संगठन अपने सबसे मुश्किल दौर से गुज़र रहा है.
सरकारी दस्तावेज़ों पर भरोसा करें तो कभी 42 सदस्यों वाली सीपीआई (माओवादी) की सेंट्रल कमेटी में, अब केवल 13 सदस्य बचे हैं.
पिछले दिनों गृहमंत्री विजय शर्मा ने भी कहा था, “सेंट्रल कमेटी की सदस्य सुजाता के आत्मसमर्पण के बाद, छत्तीसगढ़ में सक्रिय माओवादियों की सेंट्रल कमेटी में अब कुछ ही सदस्य बचे हैं. कुल मिला कर इनका शीर्ष नेतृत्व समापन की ओर है.”
केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2026 तक देश से माओवादियों को पूरी तरह से खत्म करने की समय सीमा तय कर रखी है.
यही कारण है कि पिछले 20 महीनों से छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों ने माओवादियों के ख़िलाफ़ सघन अभियान चलाया हुआ है.
अमित शाह ने दी थी माओवाद को ख़त्म करने की डेडलाइन
मई 2025 में छत्तीसगढ़ के बस्तर में सुरक्षाबलों ने 27 माओवादियों को मारने का दावा किया था. पुलिस का दावा था कि बस्तर संभाग के नारायणपुर, बीजापुर और दंतेवाड़ा ज़िलों की सीमा पर चल रही मुठभेड़ में ये माओवादी मारे गए.
उस समय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक्स पर पोस्ट किया था. इसमें लिखा था, “नक्सलवाद को ख़त्म करने की लड़ाई में एक ऐतिहासिक उपलब्धि. आज, छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में एक ऑपरेशन में हमारे सुरक्षा बलों ने 27 खूंखार माओवादियों को मारा है, जिनमें सीपीआई-माओवादी के महासचिव, शीर्ष नेता और नक्सल आंदोलन की रीढ़ नंबाला केशव राव उर्फ़ बसवराजू भी शामिल हैं.”
शाह ने लिखा था, “नक्सलवाद के ख़िलाफ़ भारत की लड़ाई के तीन दशकों में ऐसा पहली बार है कि हमारे बलों ने एक महासचिव स्तर के नेता को मारा है. मैं इस बड़ी सफलता के लिए हमारे बहादुर सुरक्षा बलों और एजेंसियों की सराहना करता हूँ.”
इसके अलावा, अमित शाह ने बताया था कि ऑपरेशन ‘ब्लैक फॉरेस्ट’ के पूरा होने के बाद, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र में 54 नक्सलियों को गिरफ़्तार किया गया है और 84 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है.
2024 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 31 मार्च 2026 तक माओवादियों को ख़त्म करने का दावा किया था, जिसके बाद से ही माओवाद विरोधी ऑपरेशन में अप्रत्याशित तेज़ी आई है.
उस समय तक सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2025 में मारे गए माओवादियों की संख्या 180 से ज़्यादा हो गई थी.
आंकड़े क्या कहते हैं?
आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में साल 2020 से 2023 के चार सालों में 141 माओवादी मारे गए थे.
बीजेपी की सरकार बनने के बाद दिसंबर 2023 में राज्य के गृह मंत्री विजय शर्मा ने माओवादियों के साथ शांति वार्ता की पेशकश की.
वे अपने अधिकांश सार्वजनिक संबोधनों में शांति वार्ता की बात दुहराते रहे, लेकिन दूसरी तरफ़ राज्य में सुरक्षाबलों ने माओवादियों के ख़िलाफ़ अपना ऑपरेशन भी धीरे-धीरे तेज़ कर दिया.
छ्त्तीसगढ़ में बीजेपी की सत्ता आने के बाद दिसंबर 2024 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रायपुर में छत्तीसगढ़ पुलिस को माओवाद के ख़िलाफ़ उनकी सफलता की सराहना करते हुए बताया था, “साल 2024 में 287 नक्सली मारे गए, एक हज़ार गिरफ़्तार हुए और 837 ने आत्मसमर्पण किया”.
इसके अलावा बस्तर के इलाक़े में सुरक्षाबलों के 28 कैंप भी खोले गए.
साल 2025 में भी छत्तीसगढ़ का बस्तर माओवाद विरोधी अभियानों की रफ़्तार का गवाह बना रहा है.
इस दौरान राज्य में अलग-अलग जन संगठनों के लोगों की भारी संख्या में गिरफ़्तारी भी हुई.
निर्दोष आदिवासियों की प्रताड़ना की ख़बरें भी सामने आईं और कई मुठभेड़ों पर सवाल भी उठे. लेकिन इससे सरकारी कार्रवाई पर कोई फ़र्क नहीं पड़ा.
हाल के सालों में फ़ेक एनकाउंटर का एक चर्चित मामला साल 2022 में आया.
तब छत्तीसगढ़ के नारायणपुर ज़िले में जनवरी 2022 में सुरक्षाबलों ने 26 वर्षीय मनुराम नुरेती को माओवादी बताकर मार दिया था. घटना के एक हफ्ते बाद छत्तीसगढ़ पुलिस ने यह माना था कि मनुराम वास्तव में ‘माओवादी नहीं थे ‘.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित