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बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर का धनौर गांव. बागमती नदी के किनारे बसे इस गांव में मल्लाहों की बड़ी आबादी है. गांव में घुसते ही बदहाल साइकिलों पर ज़िंदा मछलियों के बड़े बड़े बर्तन लादे मल्लाह दिखते हैं.
इन मल्लाहों में बिहार की राजनीति में ‘सन ऑफ़ मल्लाह’ के नाम से मशहूर मुकेश सहनी का क्रेज़ दिखता है.
इनमें से एक नौजवान सुरेश सहनी ने मुझसे साल 2025 की शुरुआत में कहा था, “हमारे मरते तालाबों का, नदियों का मुद्दा मुकेश सहनी उठाएं, चाहें ना उठाएं लेकिन हमें अपनी जाति का नेता चाहिए. मुकेश सहनी हमारा नेता है. उसको सब दबाते हैं लेकिन वो सबसे लड़कर एक दिन सरकार बनाएगा.”
संतोष सहनी जैसे नौजवानों की इस उम्मीद को बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों ने ढेर कर दिया है.
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मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी ने 13 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे लेकिन पार्टी का कोई उम्मीदवार सफल नहीं हुआ. पार्टी को इन सीटों पर कुल 7,79,019 वोट मिले हैं.
वहीं बीते चुनाव में पार्टी ने एनडीए गठबंधन के साथ रहते हुए 11 उम्मीदवार उतारे थे जिसमें से 4 जीते थे, जो बाद में बीजेपी में शामिल हो गए.
ऐसे में ये सवाल अहम है कि मुकेश सहनी, जिन्हें महागठबंधन ने उप-मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था, वो बिहार की राजनीति में कितने प्रासंगिक हैं? क्या मुकेश सहनी को राजनीति में ज़्यादा तवज्जो मिलती है या वो ख़ुद इसके लिए माहौल खड़ा करते हैं?
60 सीट-डिप्टी सीएम की डिमांड, चुनावी हासिल शून्य
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चुनाव नतीजों के बाद मुकेश सहनी ने अपनी हार स्वीकार करते हुए कहा, “सरकार को काम के आधार पर चुना जाता है लेकिन बिहार में सरकार इस बार 10 हज़ार रुपये के आधार पर चुनी गई है. हमारी माताओं-बहनों को बताया गया कि उन्हें दो लाख रुपये दिए गए जिसके कारण एनडीए को वोट मिले. लेकिन हमारे साथ सभी धर्म और जाति के वोट हैं.”
मुकेश सहनी ने अपनी हार स्वीकार कर ली, लेकिन उनका ‘अप्रत्याशित’ रवैया राजनीतिक विश्लेषकों और ख़ुद भी वो जिस गठबंधन का हिस्सा रहते हैं, उनके लिए उत्सुकता का विषय रहता है.
महागठबंधन और एनडीए के भीतर चुनाव से पहले ये कयास लगाए जा रहे थे कि आख़िर मुकेश सहनी किस तरफ़ रहेंगे?
विधानसभा चुनाव के पहले चरण की सीटों के नॉमिनेशन ख़त्म होने की तारीख़ के एक दिन पहले तक यानी 16 अक्तूबर तक जो पार्टी महागठबंधन के भीतर सबसे ज़्यादा रूठी रही, वो वीआईपी थी. पटना के होटल मौर्य में मुकेश सहनी की प्रेस कांफ्रेंस तीन बार निरस्त की गई थी और राहुल गांधी के हस्तक्षेप के बाद महागठबंधन के भीतर थोड़ा बहुत तालमेल बन पाया था.
दरअसल मुकेश सहनी की तीन मांगें थीं. पहला वीआईपी के लिए 60 सीट, दूसरा डिप्टी सीएम का पद और तीसरा गौड़ाबौराम विधानसभा सीट.
मुकेश सहनी ने बीबीसी से बातचीत में कहा था कि उन्होंने ख़ुद के लिए 6 सीट चिह्नित कर रखी हैं जिसमें से वो किसी एक सीट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं.
आरजेडी ने गौड़ाबौराम सीट से अफ़ज़ल अली को उम्मीदवार बनाया था. लेकिन मुकेश सहनी की ज़िद के चलते अफ़ज़ल अली को पार्टी ने अनाधिकृत उम्मीदवार घोषित करते हुए ये सीट वीआईपी को दी.
उम्मीद थी कि मुकेश सहनी ख़ुद इस सीट से उम्मीदवार होंगे लेकिन उन्होंने अपने भाई संतोष सहनी को उम्मीदवार बनाया. और बाद में वोटिंग से पहले उन्होंने संतोष सहनी को लड़ाई से हटाकर अपना समर्थन अफ़ज़ल अली को दे दिया.
क्या अपना वोट ट्रांसफ़र करा पाते हैं?
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वरिष्ठ पत्रकार अरुण श्रीवास्तव बीबीसी से कहते हैं, “मुकेश सहनी का पॉलिटिकल व्यवहार बहुत अप्रत्याशित और अपरिपक्व है. ऐसा लगता है कि वो इसे मोल-भाव के तौर पर देखते हैं. लेकिन इस तरह के व्यवहार से गठबंधन में कार्यकर्ता कंफ़्यूज़ होते हैं और इसका साफ़ असर परफ़ॉरमेंस पर पड़ता है. जिसका सबसे क्लासिक उदाहरण गौड़ाबौराम है.”
वीआईपी का दावा है कि उसके पास निषाद समाज के 9.64 फ़ीसदी वोट हैं.
मुकेश सहनी महागठबंधन की रैलियों में अपने संबोधन में ये लगातार कहते थे, “मल्लाह के बेटे को डिप्टी सीएम बनाना है तो महागठबंधन को सभी निषाद समाज के लोग वोट दें.”
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वीआईपी जिस 9.64 फ़ीसदी वोट का दावा कर रही है वो उसे अपने सहयोगी दलों को ट्रांसफ़र करा पाती है?
पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता देव ज्योति बीबीसी से कहते हैं, “निषादों में 22 उपजातियां हैं और ये सब हमारे साथ हैं. हमारे नेता अति पिछड़ों के सबसे बड़े नेता हैं. हम लोग अपना वोट महागठबंधन के अन्य सहयोगियों को ट्रांसफ़र करा पाने में सफल रहे हैं लेकिन दिक़्क़त की बात यही है कि इस बार चुनाव में मुद्दा नहीं मुद्रा चली है.”
मुकेश सहनी ख़ुद निषादों की एक उपजाति मल्लाह से ताल्लुक रखते हैं और बिहार में हुई जातीय जनगणना में उनकी आबादी 2.62 फ़ीसदी है. मुकेश सहनी की राजनीति को क़रीब से देखने वाले जानकारों के मुताबिक़ उनके पास अपनी जाति यानी मल्लाहों का ही वोट है.
मुकेश सहनी की पार्टी के परफ़ॉरमेंस और वोट ट्रांसफ़र करा पाने के मसले पर कांग्रेस प्रवक्ता असित नाथ तिवारी बीबीसी को सधी प्रतिक्रिया देते हैं. वो कहते हैं, “ये हमारे गठबंधन की सामूहिक हार है और कहीं ना कहीं कई जगह पर वोट ट्रांसफ़र करा पाने में गठबंधन दल सफल नहीं हुआ. हालांकि इसकी समीक्षा बाकी है.”
डिप्टी सीएम के पद को लेकर मुस्लिम वोट छिटका?
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वरिष्ठ पत्रकार फ़ैज़ान अहमद भी कहते हैं, “मुकेश सहनी अपना वोट ट्रांसफ़र नहीं करा पाए हैं. उनकी अपनी जाति यानी मल्लाह की आबादी भी कुछ विधानसभा क्षेत्रों में है. वीआईपी जैसे छोटे छोटे दल इलेक्शन के वक़्त ऐसी मांगें रखते हैं जो प्रैक्टिकल नहीं होती. ये डिमांड ऑप्टिक्स ख़ासतौर पर आजकल प्रचलित सोशल मीडिया के ऑप्टिक्स में इन छोटे दलों को बहुत बड़ा करके पेश करती है लेकिन नतीजे आने के बाद ये छोटे दल ज़मीन पर गिरते हैं.”
जानकार कहते हैं कि इसी ‘लार्जर दैन रियलिटी’ इमेज के चलते मुकेश सहनी, बिहार की राजनीति में इतने प्रभावशाली दिखते हैं. साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भी वीआईपी ने तीन सीट पर लड़ा था लेकिन पार्टी को इन तीनों सीट पर शिकस्त का सामना करना पड़ा था. इस चुनाव में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के साथ मुकेश सहनी हैलिकॉप्टर पर सवार दिखते और रैलियों को संबोधित करते थे.
लेकिन चुनावी राजनीति में बहुत अच्छा परफ़ॉरमेंस नहीं करने के बावजूद विधानसभा चुनावों में उन्हें महागठबंधन ने अपना डिप्टी सीएम घोषित किया. जानकार मानते हैं कि इसके चलते मुस्लिम वोटर महागठबंधन से छिटका.
फ़ैज़ान अहमद कहते हैं, “इसका कांउटर हुआ सोसाइटी में. ये सवाल सोशल मीडिया सहित कई बैठकों में उठे कि 2.6 फ़ीसदी वाले को आप डिप्टी सीएम घोषित कर देते हैं और जो आपके कोर वोटर हैं यानी मुस्लिम जो आबादी में 17 फ़ीसदी हैं, उनको कोई पद क्यों नहीं दिया जाता. तेजस्वी के ओवैसी को एक्सट्रीमिस्ट कहे जाने पर भी मुस्लिम वोट उनसे छिटका क्योंकि ओवैसी ने बहुत पावरफुल तरीक़े से उसको कांउटर किया.”
मुकेश सहनी: 2014 से अब तक
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मुकेश सहनी ने साल 2018 में विकासशील इंसान पार्टी का गठन किया था.
साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उनके जिरात टोला (सुपौल बाज़ार) स्थित घर पर मैं गई थी.
वहां मुकेश सहनी के दो घर हैं. एक बिना प्लास्टर वाला घर जिसमें उनके पिता जीतन सहनी रहते थे और ठीक उसके सामने एक आलीशान घर जिसमें मुकेश सहनी ने अपनी माताजी का समाधि स्थल भी बना रखा है.
मुकेश सहनी का जन्म 1981 में बिहार के दरभंगा के सुपौल बाज़ार (गांव) में बेहद सामान्य घर में हुआ था. उनके पिता जीतन सहनी ने मुझे बताया था, “मुझे स्कूल के मास्टर ने शिकायत की थी कि वो स्कूल नहीं आया है और क्रिकेट खेल रहा है. उसके बाद जब वो घर आया तो मैंने बैट तोड़ दिया और उस पर हाथ उठाया. जिसके बाद वो चला गया. बाद में हम लोगों को मालूम चला कि उसने बंबई में काम शुरू कर दिया और कंपनी बना ली.”
वहां उन्होंने फ़िल्म सेट बनाने के काम में दक्षता हासिल की और निर्देशक संजय लीला भंसाली की फ़िल्मों का सेट डिज़ाइन किया.
साल 2014 में उन्होंने बिहार में दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर सहित कई ज़िलों में यात्राएं कीं और निषाद समाज अधिकार सम्मेलन आयोजित किए.
इसी साल लोकसभा चुनाव के वक़्त मुकेश सहनी ने ‘निषाद विकास संघ’ का गठन किया. इस चुनाव में अमित शाह के साथ मुकेश सहनी का चुनावी रैलियों में दिखना आम बात थी.
2019 से चुनाव लड़ना शुरू किया, सिर्फ़ एक में मिली सफलता
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बाद में मुकेश सहनी ने 2018 में विकासशील इंसान पार्टी बनाई. पार्टी ने पहली बार चुनाव लड़ा साल 2019 में.
साल 2019 में पार्टी ने महागठबंधन के साथ तीन सीट पर चुनाव लड़ा लेकिन नतीजा सिफ़र रहा. लेकिन साल 2020 में ऐन विधानसभा चुनावों के वक्त मुकेश सहनी ने पाला बदला और एनडीए का दामन थाम लिया.
वीआईपी ने 11 सीटों पर चुनाव लड़ा और 4 जीते. इसके बाद मुकेश सहनी कुछ दिनों तक बिहार सरकार में मंत्री भी रहे.
साल 2024 में पार्टी ने लोकसभा में तीन सीटों पर फिर से किस्मत आज़माई लेकिन यहां भी हासिल शून्य रहा. साल 2025 के विधानसभा चुनावों में भी पार्टी का यही हाल हुआ.
इस हार के बाद पार्टी की रणनीति क्या होगी? इस सवाल पर मुकेश सहनी ने पत्रकारों से कहा, “हम महागठबंधन और राहुल गांधी के साथ रहेंगे. राहुल गांधी के नेतृत्व में हमारी लड़ाई चलती रहेगी.”
मुकेश सहनी के इन दावों के बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि चुनावी बिसात पर लगातार ‘फ़ेल’ होने वाली वीआईपी का भविष्य क्या होगा?
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.