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भारत सरकार ने हाल ही में यह निर्देश दिया था कि मार्च 2026 से हर नए स्मार्टफ़ोन में संचार साथी ऐप प्री-इंस्टॉल होगा. साथ ही पुराने फ़ोनों में इसे सॉफ़्टवेयर अपडेट के ज़रिए भेजा जाएगा.
विपक्ष ने संचार साथी ऐप को असंवैधानिक और नागरिकों की निगरानी का टूल बताया, जिसके बाद इस पर बहस शुरू हो गई.
हालांकि, केंद्र सरकार ने संचार साथी ऐप को ज़रूरी तौर पर प्री-इंस्टॉल करने के अपने फ़ैसले को वापस ले लिया है. संचार मंत्रालय ने प्रेस रिलीज़ जारी कर इसकी जानकारी दी है.
लेकिन क्या आपके मोबाइल फ़ोन में ऐसे ऐप हो सकते हैं जो वाक़ई आप पर निगरानी रखकर आपका पर्सनल डेटा चुरा रहे हों? ऐसे में ख़ुद को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है.
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इन सवालों का जवाब तलाशने के लिए बीबीसी हिंदी ने कुछ साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट्स से बात की.
ऐप हमारा डेटा कैसे लेते हैं?
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साइबर एक्सपर्ट और सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता कहते हैं, “ऐप्स प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरीक़े से हमारा डेटा लेते हैं. इनमें से प्रमुखता हमारी लोकेशन, कॉन्टेक्ट लिस्ट, कैमरा, कॅाल लॅाग्स, फ़ोटोज़, हेल्थ डेटा, मैसेज, माइक्रोफ़ोन मुख्य तौर पर शामिल हैं.”
विराग गुप्ता बताते हैं, “डिजिटल अर्थव्यवस्था में डेटा की जानकारी और शेयरिंग के आधार पर ग्राहक ही प्रोडक्ट बन गया है. इसलिए यह डेटा शेयरिंग करना कंपनियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और कमर्शियल तौर पर लाभकारी होता हैं.”
ऐप इंस्टॉल करते वक़्त किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील डॉ. पवन दुग्गल कहते हैं, “किसी भी ऐप को डाउनलोड करने से पहले आपको उसकी टर्म्स एंड कंडीशंस के साथ-साथ प्राइवेसी पॉलिसी को भी ध्यान से पढ़ना चाहिए. यह देखना ज़रूरी है कि जो भी ऐप इंस्टॉल कर रहे हैं, वह आपके डेटा को किस तरह स्टोर कर इस्तेमाल करेगा. जब आप पूरी तरह संतुष्ट हो जाएं, तभी डाउनलोड करिए.”
डॉक्टर पवन दुग्गल बताते हैं कि किसी भी ऐप को इंस्टॉल करने से पहले उसके बारे में जानने का एक अच्छा तरीक़ा होता है कस्टमर रिव्यू पढ़ना, कहीं भी ख़तरे की घंटी नज़र आते ही उस ऐप से दूरी बना लेनी चाहिए.
इसी पर विराग गुप्ता कहते हैं, “गूगल और एप्पल के प्ले-स्टोर पर अधिकृत तौर पर मान्यता प्राप्त ऐप्स को ही डाउनलोड करना चाहिए. लेकिन कई सारे ऐप लोगों को पहले से फ़ोन में प्री-इंस्टाल्ड मिलते हैं, जिन्हें हटाना मुश्किल होता है.”
ऐसा माना जाता है कि ऐप्स आपको फ़्री वर्ल्ड क्लास सर्विस देते है. इस पर डॉक्टर दुग्गल मानते हैं, “दुनिया में कुछ भी फ़्री नहीं मिलता है. ऐप आपके डेटा को इकट्ठा कर मॉनिटाइज़ करता हैं. ऐप परमिशन लेकर आपका डेटा लेते हैं. किसी भी ऐप को डाउनलोड करते वक्त अंधाधुंध परमिशन देने से सारा डेटा ऐप्स के पास चला जाता हैं.”
दोनों एक्सपर्ट्स एकमत होकर कहते हैं कि ऐप इंस्टॉल के दौरान परमिशन देते वक़्त सावधान होने की ज़रूरत है, उतनी ही परमिशन दें जितनी आपके मक़सद को पूरा करने के लिए ज़रूरी हो.
डेटा का आख़िर होता क्या है?
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डॉक्टर पवन दुग्गल बताते हैं, “एक बार आपका डेटा इक्ट्ठा होने के बाद आपकी प्रोफ़ाइल बन जाती है. आपको किन चीज़ों का शौक है, क्या आपको खाने-पीने, पहनने में पसंद हैं. सब कुछ प्रोफ़ाइल से समझ लिया जाता है.”
विराग गुप्ता कहते हैं, “कंपनियां इस डेटा को शेयर करने के साथ अन्य कंपनियों को डेटा बेचती हैं. इस डेटा के आधार पर विज्ञापन और मार्केटिंग कंपनियों के कारोबार में सटीकता के साथ बढ़ोतरी भी होती है.”
डॉक्टर पवन दुग्गल इसी पर कहते हैं कि इसी आधार पर आपको विभिन्न तरह की कस्टमाइज़्ड सर्विस दी जाती हैं.
यह डेटा इकॉनमी का दौर है, जिसमें डेटा ही करेंसी है. अगर आप सावधान नहीं हुए, तो आपको टारगेट भी किया जा सकता है.
डॉक्टर दुग्गल उदाहरण देते हैं कि आपका फ़ोन आपकी सारी बातें सुनता है. “अगर मैं कहूं कि मुझे मुंबई जाना है, तो मुझे मुंबई संबंधी ऑफ़र आने लग जाएंगे. यह कस्टमाइज़्ड डेटा एडवरटाइज़िंग हैं, जिसमें डेटा ही रॉ मैटेरियल है. इसमें कंपनिया इच्छुक होती हैं, जिसके बदले आपको कस्टमाइज़ सर्विस दी जाती है और उसके बदले आपका डेटा लिया जाता है. ऐसे में आप ही उनके प्रोडक्ट बन जाते हैं.”
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कैसे पता लगाएं कि आपका डेटा चोरी हो रहा है?
आपके फ़ोन में डेटा चोरी तो नहीं हो रहा. इस बात का पता लगाने के लिए डॉक्टर दुग्गल बताते हैं कि इसका आंकलन आपको ख़ुद करना होगा.
वह कहते हैं कि आप ऐप की परमिशन में जाएं, और ख़ुद से पूछिए कि इसे डाउनलोड करने के पीछे उद्देश्य क्या है, और उस उद्देश्य को मद्देनज़र रखते हुए आप ऐप की परमिशन को रिव्यू करें, और पूछिए कि क्या उस ऐप की परमिशन उसके मुख्य उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए ज़रूरी है. अगर हाँ, तो उन परमिशन को बरक़रार रखिए और अगर नहीं, तो उन परमिशन को हटा दीजिए.
सुप्रीम कोर्ट में वकील विराग गुप्ता डेटा शेयरिंग के क़ानूनी पहलू पर ज़ोर देते हुए कहते हैं “अभी हाल ही में भारत के राष्ट्रीय कंपनी क़ानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने फ़ेसबुक और व्हाट्सअप कंपनियों के बीच डेटा शेयरिंग को अप्रत्यक्ष मंज़ूरी देते हुए जुर्माने को बरकरार रखा है. इस तरह के डेटा शेयरिंग के लिए ग्राहकों के साथ छलपूर्ण तरीक़े से मंज़ूरी ली जाती है जिसकी क़ानूनी तौर पर बहुत मान्यता नहीं है.”
भारत में पुट्टूस्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों के फ़ैसले के बाद डेटा की सुरक्षा प्राइवेसी के तहत जीवन का मौलिक अधिकार है.
संविधान के अनुच्छेद-141 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों को क़ानून की तरह मान्यता मिलती है. फ़ैसले के अनुसार कई राउण्ड की चर्चा के बाद संसद ने 2023 में डेटा सुरक्षा क़ानून पारित किया, लेकिन अभी तक उसे लागू नहीं किया गया है.
इन 5 बातों का रखें ध्यान
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डॉक्टर दुग्गल के मुताबिक़ डेटा की सुरक्षा के लिए इन बातों का ख़याल रखना ज़रूरी है-
- साइबर सुरक्षा को जीवनशैली के रूप में अपनाएं. यह मत सोचिए कि आपकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सरकार या कंपनियों की है.
- अपने डेटा को शेयर करने में कंजूसी बरतें. डेटा को ज़रूरत के हिसाब से ही शेयर करें.
- अपने डेटा का बैकअप लेकर रखें. बैकअप होने से डेटा के उड़ने के बाद भी रिस्टोर कर पाएंगे
- अच्छा एन्टीवायरस प्रोग्राम डालकर रखें.
- एक अच्छा फ़ायरवॉल रखें जो एक सुरक्षा कवच की तरह काम करता है. फ़ायरवॉल आपके डिवाइस पर होने वाले हमलों को रोकता है और 24*7 सक्रिय रहता है.
डॉक्टर दुग्गल आख़िर में कहते हैं कि ग्राहकों को सदैव सतर्क और सचेत रहना चाहिए, अगर आपको अपनी साइबर सुरक्षा को सशक्त करना है, तो सावधानी बरतना ज़रूरी है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.