इमेज कैप्शन, मोहन भागवन का कहना है कि संघ में आने के लिए जाति और धर्म से जुड़ी अपनी व्यक्तिगत पहचान छोड़नी होती है
कांग्रेस विधायक और कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खड़गे ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान के बाद संघ पर फिर से सवाल खड़े किए हैं.
बीते दिनों आरएसएस को लेकर उनके एक बयान के बाद काफ़ी हंगामा हुआ था.
प्रियांक खड़गे ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, “देशभर में अपनी व्यापक मौजूदगी और असर के बावजूद भी आरएसएस क्यों अब तक बिना रजिस्ट्रेशन के है? “
उन्होंने आरोप लगाया, “जब भारत में हर धार्मिक और चैरिटेबल संस्था के लिए वित्तीय पारदर्शिता ज़रूरी है तो आरएसएस में ऐसी व्यवस्था नहीं होने को कैसे सही ठहराया जा सकता है?”
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि ‘देश में बहुत कुछ है जो रजिस्टर्ड नहीं है, यहां तक कि हिन्दू धर्म भी रजिस्टर्ड नहीं है.’
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‘हिन्दू धर्म भी नहीं है रजिस्टर्ड’
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इमेज कैप्शन, प्रियांक खड़गे ने संघ को लेकर एक बार फिर से सवाल खड़े किए हैं
मोहन भागवत ने बेंगलुरु में आरएसएस के 100 साल पूरे होने के मौक़े पर एक कार्यक्रम में एक सवाल के जवाब में यह बयान दिया है.
उनसे इस कार्यक्रम में पूछा गया, “आरएसएस एक रजिस्टर्ड संस्था क्यों नहीं है? क्या ऐसा महज़ एक संयोग है, या संघ ने स्वेच्छा से इसे रजिस्टर्ड नहीं कराया है या फिर किसी भी क़ानूनी बाध्यता से बचने के लिए ऐसा किया गया है?”
मोहन भागवत ने इस पर कहा, “असल में हम कोई असंवैधानिक संगठन नहीं हैं, हम संविधान के दायरे में एक संगठन हैं. हमारी वैधता इसी संविधान के अधीन है. इसलिए हमें रजिस्ट्रेशन की कोई ज़रूरत नहीं है. कई चीज़ें हैं जो रजिस्टर्ड नहीं हैं. यहां तक कि हिन्दू धर्म भी रजिस्टर्ड नहीं है.”
उन्होंने कहा, “इस सवाल का कई बार जवाब दिया जा चुका है. संघ की स्थापना साल 1925 में हुई थी. क्या आप उम्मीद करते हैं कि हम ब्रिटिश सरकार के पास अपना रजिस्ट्रेशन कराते, जिनके ख़िलाफ़ उस वक़्त हमारे सरसंघचालक लड़ाई लड़ रहे थे.”
“आज़ादी के बाद जो क़ानून हमारे पास हैं, वो रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य नहीं बनाते हैं. क़ानूनी तौर पर हम बॉडी ऑफ़ इंडिविजुअल्स यानी निजी लोगों की संस्था हैं. हम मान्यता प्राप्त संगठन हैं.”
मोहन भागवत के इस बयान के बाद कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद ने कहा, “यह देश का सबसे बड़ा झूठ है. लोग मोहन भागवत से ऐसी उम्मीद नहीं रखते हैं. जब देश में ब्रिटिश शासन था तब कोई राजनीतिक दल या एनजीओ का रजिस्ट्रेशन नहीं करता था. जब हमने संविधान को अपनाया, उसके बाद हर भारतीय का यह फ़र्ज़ था कि वो संविधान और देश के लिए जवाबदेह हो.”
“वो दुनिया का सबसे बड़ा संगठन होने का दावा करते हैं. उनके सदस्यों की सूची कहाँ है. वो कहते हैं कि गुरु पूर्णिमा या विजयादशमी जैसे मौक़ों पर उन्हें स्वयंसेवकों से चंदा मिलता है. इसका बैंक खाता कहाँ है? उन्हें कहाँ से पैसे मिलते हैं? हम ये सवाल पूछते रहे हैं. अगर कुछ ग़लत हो जाता है, यह किसकी जवाबदेही होगी? “
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इमेज कैप्शन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सौ साल पूरे हो गए हैं
‘संघ संविधान के दायरे में एक संगठन’
बेंगलुरु के कार्यक्रम में संघ प्रमुख से पूछा गया कि संघ को लेकर जो अवधारणा है, उस पर वह ख़ुद सीधे तौर पर बात क्यों नहीं करता है, जिसमें रजिस्ट्रेशन और फ़ंडिंग से जुड़े मामले शामिल हैं.
मोहन भागवत ने इस मुद्दे पर कहा, “इनकम टैक्स विभाग ने हमसे टैक्स भरने के लिए कहा, और इससे जुड़ा एक क़ानूनी मामला भी था. कोर्ट ने कहा कि यह निजी लोगों की संस्था है और हमें जो गुरुदक्षिणा मिलती है वो इनकम टैक्स के दायरे से बाहर है.”
भागवत ने कहा, “हम पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया. इसका मतलब है, सरकार ने हमें मान्यता दी. अगर हमारा अस्तित्व नहीं था तो सरकार ने किस पर प्रतिबंध लगाया. और हर बार कोर्ट ने प्रतिबंध को हटाया और आरएसएस को एक वैध संगठन बनाया.”
मोहन भागवत ने कहा कि आरएसएस के ख़िलाफ़ कई बार बयान दिए गए और संसद में भी आरएसएस की बात की गई, जो इसे मान्यता देने का सबूत है.
मुसलमानों-इसाइयों पर भी भागवत बोले
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इमेज कैप्शन, कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद ने पूछा है कि दुनिया के सबसे बड़े संगठन के सदस्यों की सूची कहाँ है?
संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि आरएसएस में केवल हिन्दुओं को आने की अनुमति है.
उनसे पूछा गया, “क्या मुस्लिमों को संघ में शामिल होने की अनुमति है, संघ अल्पसंख्यकों के बीच भरोसा कैसे बना सकता है? “
मोहन भागवत ने कहा, “संघ में किसी ब्राह्मण के लिए कोई जगह नहीं है, संघ में किसी अन्य जाति को आने की भी अनुमित नहीं है. न मुस्लिम, न ईसाई, न ही शैव और न ही शाक्त किसी को संघ में शामिल होने की अनुमति नहीं है. यहाँ केवल हिन्दुओं को अनुमति है.”
“भागवत ने कहा, यानी अलग-अलग मज़हब के लोग, मुस्लिम, ईसाई कोई भी संघ में आ सकता है लेकिन आपको अपनी अलग पहचान दूर रखनी होगी. आपकी ख़ासियतों का स्वागत है. लेकिन जब आप शाखा में आते हैं तो आप भारत माता के बेटे होते हैं. यानी इस हिन्दू समाज का एक सदस्य हो जाते हैं.”
“मुस्लिम शाखा में आते हैं, क्रिश्चन भी शाखा में आते हैं, जैसे अन्य जातियों के लोग आते हैं. लेकिन हम उनकी गिनती नहीं करते हैं और न ये पूछते हैं कि आप कौन हैं. हम सभी भारत माता के बेटे हैं और संघ इसी आधार पर काम करता है.”
मोहन भागवत से यह भी पूछा गया कि संघ मुसलमानों तक पहुंचने के कार्यक्रम चलाता है, तो क्या उसके पास मुसलमानों के लिए शिक्षा संस्थान शुरू करने का कोई प्लान है?
“असल में हम किसी के लिए कुछ नहीं करते हैं. हर किसी को अपना कर्तव्य करना होता है, हर किसी को अपना उद्धार करना होता है. कोई आपके पास नहीं आएगा. यहां तक कि भगवान भी उसी की मदद करता है, जो अपनी मदद करता है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित