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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस सरकार के मुखिया के तौर पर पहली बार चीन के दौरे पर जा रहे हैं.
यह संयोग ही है कि सत्ता से हटने से पहले अवामी लीग सरकार की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना भी अपने कार्यकाल के आख़िरी दौरे पर चीन ही गई थीं.
अवामी लीग सरकार के ख़िलाफ़ भारत पर निर्भरता और नरम रवैया अपनाने के आरोप भले लगते रहे हों, लेकिन उसके चारों कार्यकाल के दौरान बांग्लादेश ने लगातार चीन से भी नज़दीकी बनाए रखी थी, ख़ासकर प्रमुख आधारभूत परियोजनाओं में चीन की भागीदारी और निवेश महत्वपूर्ण था.
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हालांकि, चीन में बांग्लादेश के पूर्व राजदूत मुंशी फ़ैज़ अहमद की राय में द्विपक्षीय संबंधों को एक नई गति देने की ज़रूरत है.
उनका कहना था कि बांग्लादेश में राजनीतिक बदलाव के कारण दोनों देशों के आपसी संबंधों में कुछ दूरी पैदा हुई है. उसे दूर कर संबंधों में नए सिरे से तेज़ी लाना ज़रूरी है.
मोहम्मद यूनुस के दौरे के तीसरे दिन 28 मार्च को बीजिंग में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनकी मुलाक़ात का कार्यक्रम है.
विश्लेषक क्या कह रहे हैं?
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अंतरराष्ट्रीय संबंध विश्लेषकों का कहना है कि ख़ासतौर पर अंतरिम सरकार के उच्चतम स्तर का पहला द्विपक्षीय दौरा होने की वजह से यह बैठक बेहद महत्वपूर्ण हो गई है.
विश्लेषकों का मानना है कि मुख्य सलाहकार की यात्रा से भू-राजनीति को संतुलित करने में मदद मिल सकती है.
अवामी लीग के सत्ता से बेदख़ल होने के बाद से बांग्लादेश के पड़ोसी भारत के साथ राजनयिक संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं.
दूसरी ओर, अमेरिका के पिछले बाइडन प्रशासन के साथ तो अंतरिम सरकार का मैत्रीपूर्ण संबंध देखने को मिला था. लेकिन इस बारे में मौजूदा ट्रंप प्रशासन की नीति अब भी स्पष्ट नहीं हो सकी है.
विश्लेषकों का कहना है कि एक ओर भारत और चीन के बीच क्षेत्रीय प्रभुत्व के सवाल पर तनातनी चल रही है. दूसरी ओर, वैश्विक स्तर पर चीन और अमेरिका के बीच की खींचतान किसी से छिपी नहीं है. डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट और बढ़ी है.
इन वजहों से इस मुद्दे पर भी चर्चा हो रही है कि मोहम्मद यूनुस की चीन यात्रा से बांग्लादेश के पड़ोसी भारत और अमेरिका के साथ संबंधों पर असर पड़ेगा. लेकिन इन तमाम मुद्दों के बावजूद विश्लेषकों का मानना है कि मुख्य सलाहकार के इस दौरे से बांग्लादेश को आर्थिक और व्यापारिक क्षेत्र में फ़ायदा मिलने की संभावना ही ज़्यादा है.
विदेश मंत्रालय के सलाहकार तौहीद अहमद ने बीते रविवार को पत्रकारों को बताया कि मुख्य सलाहकार के इस दौरे के दौरान चीन के साथ किसी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए जाएंगे. लेकिन कुछ सहमति पत्रों (एमओयू) पर हस्ताक्षर ज़रूर किए जा सकते हैं.
पूर्व राजनयिकों और अंतरराष्ट्रीय संबंध विश्लेषकों का कहना है कि अंतरिम सरकार के ‘कार्यकाल की सीमाबद्धता’ की वजह से किसी बड़े समझौते पर हस्ताक्षर नहीं होना ही स्वाभाविक है.
लेकिन इस सरकार के कार्यकाल के दौरान होने वाले किसी समझौते या उस दिशा में पहल से भविष्य में बांग्लादेश की सत्ता में आने वाली सरकारों के लिए उनको आगे बढ़ाना आसान होगा.
कूटनीतिक प्रभाव
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बांग्लादेश में बीते डेढ़ दशकों के दौरान अवामी लीग की सरकार में विदेश मंत्री रहे नेता अपने पहले आधिकारिक दौरे पर हमेशा दिल्ली ही जाते थे. लेकिन अंतरिम सरकार के विदेश मंत्रालय के सलाहकार तौहीद हुसैन ने अपना पहला आधिकारिक दौरा इस साल जनवरी में चीन का किया था.
चीन ने वर्ष 1975 में बांग्लादेश को मान्यता देकर राजनयिक संबंध कायम किया था. इस साल दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों के 50 साल पूरे होने जा रहे हैं.
ढाका में चीन के राजदूत याओ वेन के मुताबिक़, राजनयिक संबंधों को 50 साल पूरे होने के संदर्भ में प्रोफ़ेसर यूनुस का चीन दौरा मील का पत्थर साबित होगा.
इस बीच, मुख्य सलाहकार के प्रेस सचिव शफ़ीकुल आलम ने मोहम्मद यूनुस के दौरे से बांग्लादेश की अपेक्षाओं का ज़िक्र करते हुए हाल में कहा था कि इस दौरे से दोनों देशों के आपसी संबंधों को एक नई ऊंचाई तक ले जाना संभव होगा.
विश्लेषकों का मानना है कि मुख्य सलाहकार का यह दौरा कूटनीतिक नज़रिए से काफ़ी महत्वपूर्ण है.
यहां इस बात का ज़िक्र प्रासंगिक है कि सत्ता से बेदख़ल होने से क़रीब एक महीना पहले बीते साल आठ जुलाई को तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख़ हसीना बीजिंग के दौरे पर गई थीं. पहले से तय कार्यक्रम के मुताबिक़, उनको 11 जुलाई को स्वदेश लौटना था. लेकिन वो तय समय से एक दिन पहले ही बांग्लादेश लौट आईं. उस दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच कुल 21 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए थे.
उस दौरे से पहले माना जा रहा था कि दोनों देशों के नेताओं के बीच तीस्ता परियोजना, रोहिंग्या समस्या, वाणिज्य, निवेश और आर्थिक संकट के समाधान के लिए चीन से क़र्ज़ मिलने के मुद्दों पर बातचीत होगी.
लेकिन दौरे के बाद दोनों देशों की ओर से जारी संयुक्त बयान में तीस्ता परियोजना का कोई ज़िक्र ही नहीं किया गया था. इसके साथ ही व्यापार, निवेश या बुनियादी ढांचे के विकास के मामले में भी चीन की ओर से कोई ख़ास प्रतिबद्धता देखने को नहीं मिली.
चीन के साथ आपसी संबंधों की बेहतरी में अहम भूमिका निभाने वाले वहां बांग्लादेश के पूर्व राजदूत मुंशी फ़ैज़ अहमद बीबीसी बांग्ला से कहते हैं, “चीन से शुरुआत ज़रूर हुई है. लेकिन बांग्लादेश को भारत और अमेरिका के साथ भी अपने रिश्तों को सुधारना होगा. चूंकि इसकी पहल चीन से हुई है तो ऐसे में उसे खास अहमियत देनी ही होगी. नई सरकार के सत्ता में आने के बाद उसके लिए यह ठोस संदेश देना महत्वपूर्ण है कि हम सबके साथ मिलकर काम कर रहे हैं.”
बांग्लादेश में तीस्ता नदी पर चीन की वित्तीय सहायता से प्रस्तावित एक मेगा परियोजना पर काफी चर्चा होने के बावजूद विश्लेषकों को मोहम्मद यूनुस के दौरे के दौरान इस मुद्दे पर किसी बड़ी घोषणा की उम्मीद नहीं है.
मुंशी फ़ैज़ अहमद कहते हैं, “अंतरिम सरकार की कुछ सीमाएं हैं. किसी सहयोग की दिशा में आगे बढ़ने की स्थिति में दूसरे पक्ष को इस बात का ध्यान रखना होगा.”
ढाका विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग की प्रोफ़ेसर सैयदा रोजाना रशीद के मुताबिक़, राजनीतिक लिहाज़ से इस दौरे का एक (सिंबॉलिक वैल्यू) प्रतीकात्मक महत्व है.
वो बीबीसी बांग्ला से कहती हैं, “अगर अंतरिम सरकार अपनी ज़िम्मेदारियां पूरी करने में कामयाब रहती है तो भविष्य में चुनी हुई सरकार भी उनको आगे ले जा सकती है. यह देश की सीमा के बाहर भी एक मिसाल बन जाएगी.”
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भू-राजनीतिक महत्व
विश्लेषकों की राय में वैश्विक पृष्ठभूमि और दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक समीकरण फ़िलहाल जटिल हैं.
प्रोफ़ेसर रोजाना रशीद का कहना है कि क्षेत्रीय वर्चस्व के लिहाज़ से सीमा विवाद समेत विभिन्न मुद्दों पर भारत और चीन के बीच तनातनी ज़रूर है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में रूस के साथ दोस्ती समेत कई मुद्दों पर उनके बीच आम सहमति है. उनका कहना था, यहां तक कि भारत और चीन कई बार बहुपक्षीय मुद्दों पर एक-दूसरे की मदद करते रहे हैं.
दूसरी ओर, चीन और अमेरिका दक्षिण एशिया में अपना प्रभुत्व बढ़ाने और एक-दूसरे की मौजूदगी की काट तलाशने के लिए लगातार प्रतिद्वंद्विता में जुटे हैं. इसके साथ अब म्यांमार की परिस्थिति भी शामिल हो गई है. दूसरे देशों की तुलना में वहां चीन का प्रभाव ज़्यादा है.
सुरक्षा सलाहकार रिटायर्ड ब्रिगेडियर जनरल मोहम्मद वाजिद सरवर बीबीसी बांग्ला से कहते हैं, “प्रोफ़ेसर यूनुस की निजी वैश्विक छवि और अंतरराष्ट्रीय संबंध चीन दौरे में एक नया आयाम जोड़ेंगे. लेकिन चीन के साथ संबंधों को मज़बूत करने में नए शीत युद्ध की वास्तविकता को भी ध्यान में रखना चाहिए.”
उनका कहना था, “हाल के महीनों में म्यांमार के रखाइन इलाके में परिस्थिति में बड़े पैमाने पर बदलाव आया है. वहां अराकान आर्मी ने ज़्यादातर इलाकों पर क़ब्ज़ा कर लिया है. क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा ख़तरा इसी रखाइन की ओर से आ सकता है.”
मुंशी फ़ैज़ अहमद कहते हैं, “अगर कोई दूसरा देश भी मुख्य सलाहकार को आधिकारिक दौरे का न्योता भेजता तो अंतरिम सरकार उसे स्वीकार कर लेती. चीन ने न्योता दिया है और सरकार ने उसका प्रस्ताव स्वीकार किया है. वो (अंतरिम सरकार) आपसी संबंधों को मज़बूत करने और आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम किसी की ओर झुक रहे हैं.”
प्रोफ़ेसर रोजाना रशीद कहती हैं, “चीनी राजदूत की बातों से साफ़ है कि वो (चीन) सहायता करना चाहता है. बांग्लादेश दूसरों के साथ संतुलन रखते हुए ही अपने हितों को बचाए रखने का प्रयास करेगा. मुझे लगता है कि लागत-लाभ (कोस्ट-बेनिफिट) का विश्लेषण करने पर बेनिफिट यानी लाभ ही ज्यादा होगा.”
अर्थव्यवस्था, निवेश और व्यापार
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प्रोफ़ेसर मोहम्मद यूनुस ने ऐसे समय में बांग्लादेश की बागडोर संभाली है जब देश की अर्थव्यवस्था कई किस्म के दबावों से जूझ रही है. ऐसे में आर्थिक स्थिति को सुधारना ही उनकी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है.
विश्लेषकों का कहना है कि देश की मौजूदा आर्थिक परिस्थिति में चीन जैसे बड़े और स्थिर आर्थिक साझेदार के सकारात्मक समर्थन की ज़रूरत है.
इससे पहले विदेश मंत्रालय के सलाहकार तौहीद हुसैन ने स्थानीय पत्रकारों से कहा था कि चीन के साथ आपसी संबंधों में बांग्लादेश वाणिज्य और निवेश को ही सबसे ज़्यादा अहमियत देगा.
मुख्य सलाहकार के प्रेस सचिव शफ़ीकुल आलम ने बीते 16 मार्च को अपनी ब्रीफ़िंग में कहा था, “बीते साल पांच अगस्त के बाद बांग्लादेश स्थित चीनी कंपनियां बढ़िया कारोबार कर रही हैं. हम चाहते हैं कि यह कंपनियां बांग्लादेश में अपना निवेश और बढ़ाएं.”
उन्होंने उम्मीद जताई थी कि चीन की बड़ी कंपनियां बांग्लादेश में निवेश और अपने कारखानों की स्थापना की प्रक्रिया को तेज़ करेंगी.
तौहीद हुसैन ने अपने चीन दौरे के दौरान बांग्लादेश की विभिन्न परियोजनाओं में चीनी क़र्ज़ को लौटाने की समयसीमा बढ़ाकर 30 साल करने का भी अनुरोध किया था. इसके अलावा उन्होंने क़र्ज़ की ब्याज दर को भी दो-तीन प्रतिशत से घटाकर एक प्रतिशत करने की अपील की थी.
सेंटर फ़ॉर पॉलिसी डायलॉग-सीपीडी के मानद फ़ैलो प्रोफ़ेसर मिस्ताफ़िजुर रहमान का कहना था कि यह माना जा सकता है कि तौहीद हुसैन ने अपने दौरे में जो मुद्दे उठाए थे उन पर सर्वोच्च स्तर होने वाली बैठक में भी चर्चा हो सकती है.
प्रोफ़ेसर रहमान कहते हैं, “इस बात पर भी अंतरिम सरकार की निगाह रहेगी कि साल 2026 में कम विकसित देशों की कैटेगरी से निकलने के बाद चीन में करों के मामले में जो सहूलियत मिलती है उसे क्या और तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है. इसके अलावा इस मुद्दे पर भी बातचीत हो सकती है कि चीन से बड़े पैमाने पर आयात के मामले में डेफ़र्ड पेमेंट यानी देर से भुगतान की सुविधा मिल सकती है या नहीं.”
अगर यह सुविधा मिल गई तो विदेशी मुद्रा के संकट से जूझ रहे बांग्लादेश को कुछ राहत मिल जाएगी. इसकी वजह यह है कि बांग्लादेश की विदेशी मुद्रा का एक बड़ा हिस्सा चीन से होने वाले आयात के भुगतान में ख़र्च होता है.
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मोहम्मद यूनुस के इस दौरे में अगर बांग्लादेश की विभिन्न परियोजनाओं के लिए नया क़र्ज़ मिलता है या कोई समझौता होता है तो उसके सकारात्मक नतीजे सामने आएंगे.
बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार प्रोफ़ेसर यूनुस अपने दौरे के दूसरे दिन बोआओ फ़ोरम फ़ॉर एशिया वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में हिस्सा लेंगे.
वो इस दौरे के बाद 29 मार्च को स्वदेश लौटेंगे. उस समय तक यह बात और साफ़ हो चुकी होगी कि उनके दौरे से बांग्लादेश को क्या हासिल हुआ है और उसकी उम्मीदें किस हद तक पूरी हो सकी हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित