कभी बेहद ताकतवर रही म्यांमार की सेना अब भीतर से चरमराने लगी है. बीबीसी को पता चला है म्यांमार की सेना में ऐसे जासूस भरे पड़े हैं जो लोकतंत्र समर्थक विद्रोहियों के लिए काम कर रहे हैं.
बीबीसी वर्ल्ड सर्विस की पड़ताल के मुताबिक़ फिलहाल म्यांमार के चौथाई फ़ीसदी इलाके़ से भी कम इलाके़ पर सेना का नियंत्रण रह गया है.
म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि (स्वतंत्र विशेषज्ञ जिसे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के मुद्दे पर सलाह देने के लिए बुलाता है) के मुताबिक़ सैन्य शासन का अभी भी देश के ज़्यादातर शहरों पर कब्ज़ा है और वो ‘बेहद ख़तरनाक’ बना हुआ है.
लेकिन पिछले एक साल के दौरान सेना के हाथ से देश का बड़ा हिस्सा निकल गया है.
विद्रोहियों के लिए जासूसी करने वाले सैनिकों को ‘वॉटरमेलन्स’ यानी ‘तरबूज़’ कहा जाता है. बाहर से हरा और अंदर से लाल यानी बाग़ी.
बाहर से तो ये सैनिक सेना के वफ़ादार बने हुए हैं लेकिन अंदर ही अंदर वो लोकतंंत्र समर्थक विद्रोहियों के लिए काम करते हैं. विद्रोही जिनका प्रतीकात्मक रंग लाल है.
म्यांमार के केंद्रीय इलाक़े में रहने वाले एक मेजर ने कहा कि सेना जिस तरह की क्रूरता कर रही थी उसने सैनिकों को पाला बदलने के लिए उकसाया.
चॉ (असली नाम नहीं) ने कहा, ”मैंने आम नागरिकों की लाशें देखीं, उनके शरीर पर उत्पीड़न के निशान थे. मेरे आंखों से आंसू बह निकले. वे अपने ही लोगों के प्रति इतने क्रूर कैसे हो सकते हैं? हमारा काम है नागरिकों की सुरक्षा करना, लेकिन हम लोगों को मार रहे हैं. अब ये सेना, सेना नहीं रह गई है. ये अब ऐसी ताक़त बन गई है जो लोगों को आतंकित कर रही है.”
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि म्यांमार में फरवरी 2021 में सेना ने तख्तापलट कर, सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, इसके बाद से अब तक 20 हज़ार लोगों को हिरासत में लिया गया है और हज़ारों लोगों की हत्या कर दी गई है.
सेना की इस क्रूरता की वजह से देश में विद्रोह फूट पड़ा है.
पहले तो चॉ ने सेना से नाता तोड़ने के बारे में सोचा. लेकिन उन्होंने पत्नी से बात करने के बाद फै़सला किया कि जासूस बनकर वो “क्रांति के लिए सबसे अच्छे तरीके से काम कर सकते” हैं.
उन्हें जब भी लगता है कि स्थिति सुरक्षित है, वो सेना के भीतर की जानकारी पीपुल्स डिफेंस फ़ोर्सेज (पीडीएफ़) को लीक कर देते हैं. पीडीएफ़ नागरिक मिलिशिया समूहों का एक नेटवर्क है. विद्रोही इस तरह की ख़ुफ़िया सूचनाओं का इस्तेमाल सेना पर घात लगाकर हमले करने या उसके हमले से बचने के लिए करते हैं.
चॉ उन्हें वेतन का कुछ हिस्सा भी भेजते हैं ताकि वो हथियार खरीद सकें.
चॉ जैसे जासूसों की मदद से ही विद्रोहियों ने म्यांमार में वो हासिल कर लिया, जिसके बारे में पहले कभी सोचा भी नहीं गया था.
इस साल मध्य नवंबर में बीबीसी ने म्यांमार के 14 हज़ार से अधिक गांवों में शक्ति संतुलन का आकलन किया था.
इसके मुताबिक़ सेना का अब देश के 21 फ़ीसदी इलाके़ में ही नियंत्रण रह गया है और ये सब सेना और प्रतिरोध समूहों के बीच संघर्ष के बाद लगभग चार साल के अंदर ही हो गया है.
बीबीसी की पड़ताल से पता चलता है कि जातीय सेना और प्रतिरोध करने वाले समूहों का देश के 42 फ़ीसदी भूभाग पर कब्ज़ा हो चुका है.
बाकी बचे इलाक़ों में ज़्यादातर जगहों पर सेना और उनके बीच वर्चस्व के लिए संघर्ष चल रहा है.
जातीय सेनाएं और नागरिक मिलिशिया समूहों ने आपसी तालमेल के ज़रिये जो कार्रवाई की है उसने सेना को पीछे धकेल दिया है.
देश के बड़े इलाके़ में सेना के नियंत्रण खो देने के बाद कमांडर-इन-चीफ़ मिन ऑन्ग हल्यांग ने माना था कि उनकी सेना दबाव में है. ये दुर्लभ था, शायद ही पहले कभी उन्होंने ये बात मानी होगी.
‘वॉटरमेलन’ कहे जाने वाले जासूसों से सेना के बारे में जो ख़ुफिया जानकारियां मिल रही हैं उनसे विद्रोहियों को मदद मिल रही है.
दो साल पहले प्रतिरोधी ताकतों ने जासूसों के बड़े होते नेटवर्क को संभालने के लिए ख़ास यूनिटें बनाईं थीं. इस यूनिट का मकसद और ज्यादा जासूसों की भर्ती करना भी था.
विन ऑन्ग (असली नाम नहीं) जैसे एजेंट ‘वॉटरमेलन्स’ की ओर से लीक की गई सूचनाओं का इकट्ठा कर उनकी जांच करते हैं और जहां संभव हो उन्हें संबंधित इलाक़ों के मिलिशिया के नेताओं तक पहुंचा देते हैं.
वो पूर्व ख़ुफिया अधिकारी हैं जिन्होंने तख्तापलट के बाद विद्रोहियों से हाथ मिला लिया है. वो कहते हैं अब वो हर सप्ताह नए ‘वॉटरमेलन्स’ की भर्ती कर रहे हैं. सोशल मीडिया इन्हें भर्ती करने का सबसे प्रमुख ज़रिया है.
उन्होंने कहा कि इन जासूसों में हर तरह के लोग शामिल हैं. इनमें निचली रैंक पर काम करने वाले सैनिकों से लेकर ऊंची रैंक वाले अफसर तक शामिल हैं.
उनका दावा है सैन्य सरकार में भी ‘वॉटरमेलन्स’ मौजूद हैं, और ”इनकी मौज़ूदगी मंत्रालय से लेकर गावों में मुखिया के पदों” तक है.
इन जासूसों को भर्ती करने के दौरान बहुत कड़ी जांच की जाती है. यह पक्का किया जाता है कि कहीं वो डबल एजेंट तो नहीं हैं.
जासूस बनने के लिए प्रेरित होने की भी कई वजहें हैं. चॉ का कहना है उन्हें सैन्य शासन के ख़िलाफ़ गुस्से ने जासूस बनाया तो नौसेना में कॉरपोरल मोई (असली नाम नहीं) का कहना है कि उनका नया परिवार है और वो इसके लिए जिंदा रहना चाहते हैं.
उनकी पत्नी मां बनने वाली हैं. उनकी पत्नी ने उन्हें इसके लिए प्रेरित किया. उन्हें पक्के तौर पर लगने लगा है कि सेना हार रही है और वो युद्ध में मारे जाएंगे.
इसके बाद उन्होंने ‘वॉटरमेलन’ की यूनिट को हथियारों और सेना के मूवमेंट के बारे सूचनाएं लीक करना शुरू कर दिया.
लोकतंत्र समर्थक विद्रोही नेता दाइवा कहते हैं कि इस तरह की ख़ुफिया सूचनाएं बेहद अहम हो जाती है.
उनके प्रतिरोधी यूनिट का अंतिम लक्ष्य यांगून (पूर्व में रंगून) पर कब्ज़ा करना है. ये म्यांमार का सबसे बड़ा शहर है. उनका घर पहले यहीं हुआ करता था.
लेकिन विद्रोही इस शहर से अभी काफी दूर हैं.
शहरी इलाक़ों के ज़्यादातर हिस्सों पर अभी भी सेना का नियंत्रण है. इसी शहर में अहम इन्फ्रास्ट्रक्चर हैं और यही देश के राजस्व का स्रोत भी है.
दाइवा कहते हैं, ”यांगून पर हमला करना इतना आसान नहीं है, दुश्मन इसे जल्दी नहीं छोड़ेंगे.”
दाइवा सीधे सैनिकों के साथ शहर में प्रवेश नहीं कर सकते. लिहाज़ा जंगल में अपने ठिकाने से ‘वॉटरमेलन्स’ की ख़ुफ़िया जानकारियों का इस्तेमाल करते हुए भूमिगत इकाइयों को लक्ष्य बनाकर हमला करने का निर्देश देते हैं.
अगस्त में हमने उन्हें ऐसा ही एक निर्देश देते देखा. हमें इसके बारे में विस्तार से नहीं बताया गया लेकिन ये कहा गया है कि ये निर्देश एक कर्नल पर जानलेवा हमला करने के लिए दिया गया था.
उन्होंने निर्देश देते हुए कहा, ”हम ये काम दुश्मन के सुरक्षा मापदंडों के तहत करेंगे. सतर्कता बरतें, दुश्मन हर दिशा में हार रहा है.” उन्होंने निर्देश देते हुए कहा कि इसका मतलब ये था कि उन्हें (विद्रोहियों को) घुसपैठियों और जासूसों के प्रति सजग रहना चाहिए.
दाइवा कहते हैं कि जासूसों की ओर से मुहैया कराई जानकारियां ही उनकी यूनिट की ओर से किए गए कई बड़े हमलों का आधार बनी थीं.
दाइवा ने कहा, ”हमने शून्य से शुरुआत की थी और अब हमारी कामयाबी देखिए.”
लेकिन ‘वॉटरमेलन्स’ को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है. नौसेना के कॉरपोरल से जासूस बने मोई का अनुभव बताता है कि इन्हें दोनों से डर लगा रहता है.
वो यांगून से रख़ाइन तक तैनात रहे हैं. रख़ाइन वो सीमाई इलाक़ा है, जहां सेना प्रतिरोध कर रहे विद्रोहियों के साथ मिल कर लड़ रहे जातीय समूह के ख़िलाफ़ मोर्चा ले रही है. उन्हें ये डर लगा रहता है कि उनकी ख़ुफ़िया जानकारी का इस्तेमाल उन्हीं के ख़िलाफ़ हमले में हो सकता है.
इस साल मार्च में लंगर डाले हुए उनके जहाज पर मिसाइल से हमला किया गया. इसके बाद इस पर ओपन फायरिंग हुई.
उन्होंने बताया, ”हमला इतना भयावह था कि भागने की जगह तक नहीं थी. हमारी स्थिति पिंजड़ें में बंद चूहों की तरह हो गई थी. विद्रोहियों के इस हमले में सेना के उनके सात साथी मारे गए.”
विन वॉन्ग कहते हैं, ”अंदर छिपे जासूसों को सुरक्षा देने की हमारी क्षमता काफी सीमित है. हम सार्वजनिक तौर पर ये नहीं बता सकते हैं कि ये ‘वॉटरमेलन्स’ हैं. हम अपने लड़ाकों को सेना के किसी खास काफ़िले पर हमले से नहीं रोक सकते.”
वो कहते हैं कि ये बात ‘वॉटरमेलन्स’ को बताई जाती है (हालांकि वो ग़लती नहीं करते हैं) . जब एक बार उन्हें ये बात बताई जा रही थी उनमें से कुछ का जवाब था, ”जब ऐसा हो तो हिचकिचाओ मत, सीधे गोली चलाओ.”
लेकिन कई ऐसे मौके़ आते हैं जब जासूस और अधिक ख़तरा नहीं मोल ले सकते.
जब मोई को एक दूसरे ख़तरनाक़ मोर्चे पर भेजा जा रहा था तो उन्होंने वाटरमेलन यूनिट से आग्रह किया कि उन्हें विद्रोहियों के नियंत्रण वाले इलाक़े में पहुंचा दिया जाए.
वे गोपनीय मठों और सुरक्षित घरों का इस्तेमाल करते हुए ऐसा करते हैं.
वो रात को घुप्प अंधेरे में निकले. अगली सुबह जब वो अपनी ड्यूटी पर नहीं पहुंचे तो सैनिक उनके घर पहुंचे. उन्होंने उनकी पत्नी चो से पूछताछ की लेकिन उन्होंने चुप्पी साधे रखी.
कई दिनों तक चलते हुए मोई दाइवा के एक अड्डे पर पहुंचे. दाइवा ने वीडियो कॉल पर उनका शुक्रिया अदा किया और पूछा कि अब वो आगे क्या करना चाहते हैं. मोई ने उनसे मोर्चे से अलग तैनाती की मांग की क्योंकि उनकी शादी-शुदा जिंदगी अभी शुरू ही हुई थी. उन्होंने कहा कि वो मिलिट्री ट्रेनिंग के दौरान हासिल जानकारियों को साझा करना पसंद करेंगे.
कुछ सप्ताह बाद वो थाईलैंड चले गए. चो और उनके बच्चे भी इस उम्मीद में अपने घर से भाग निकले और आख़िरकार वे मिलेंगे और फिर से नई ज़िंदगी शुरू करेंगे.
सेना आक्रामक तरीक़े से अपने खोए हुए इलाक़े को फिर से पाने की कोशिश कर रही है और भारी बमबारी कर रही है.
चीन और रूस निर्मित लड़ाकू विमानों के साथ ऐसा लगता है कि आसमान में उनका दबदबा है.
सेना जानती है कि विरोधियों के गठबंधन में एकजुटता कम ही है. वो उनके बीच के मतभेदों का फ़ायदा उठाने की कोशिश कर रही है.
संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि टॉम एंड्र्यूज़ कहते हैं, “जैसे-जैसे सैन्य शासन नियंत्रण खो रहा है, उनकी क्रूरता और बढ़ रही है. यह और बुरा हो रहा है. इलाक़ों पर उनकी पकड़ ढीली पड़ने के साथ ही मौतें, क्रूरता और यातनाएं भी बढ़ रही हैं.”
सेना भी अपने बीच के वाटरमेलन जासूसों को साफ़ करने के लिए अभियान चला रही है. चॉ कहते हैं, “जब मैंने इसके बारे में सुना तो मैं थोड़ी देर के लिए रुक गया.”
वो कहते हैं कि उनकी ओर कोई अनावश्यक ध्यान न दे इसलिए वो खुद को सेना के कट्टर समर्थक के तौर पर दिखाते हैं.
लेकिन चॉ डरे हुए हैं और नहीं जानते कि आख़िर कब तक वो इस तरह छिपे रह पाएंगे. विद्रोहियों के साथ जा मिलना विकल्प नहीं है क्योंकि उन्हें इस बात की चिंता सताती है कि इसके लिए बूढ़े मां-बाप को छोड़ना पड़ेगा.
इसलिए फिलहाल वो सेना में ही जासूस के तौर पर काम करेंगे, इस उम्मीद में कि क्रांति एक दिन अपना मुकाम हासिल कर लेगी.
विन ऑन्ग कहते हैं इस देश में जिस दिन क्रांति अपना मुक़ाम हासिल कर लेगी उस दिन चॉ और मोई जैसे लोग भुलाए नहीं जाएंगे.
वो कहते हैं, ”हम उस दिन उनका पूरा सम्मान करेंगे और कहेंगे कि अपनी नई ज़िंदगी में आप जो करना चाहते हैं कर सकते हैं.”
इस रिपोर्ट के लिए बीबीसी ने सेना से इंटरव्यू की इज़ाज़त मांगी थी, लेकिन सेना से कोई जवाब नहीं मिला.
डेटा के बारे में जानकारी:
सेना का अपने इलाकों पर कितना नियंत्रण रह गया है इसके आकलन के लिए बीबीसी ने जिन रिसर्चरों को काम सौंपा था उन्होंने 12 फरवरी 2024 से लेकर 13 नवंबर 2024 तक 14 हज़ार ग्राम समूहों में से हरेक के कई सूत्रों से सवाल पूछे थे.
हर एक मामले में रिसर्च टीम ने कम से कम एक ऐसे सूत्र से बात की जिसका सेना या विपक्ष से कोई संबंध नहीं था. जैसे- अकादमिक लोग, चैरिटी में काम करने वाले लोग, पत्रकार और स्थानीय नागरिक.
जब सूत्रों ने किसी ग्रामीण समूह के लिए ऐसी जानकारी दी जो परस्पर विरोधी थी, तो उन सूत्रों को प्राथमिकता दी गई जिनका किसी पक्ष से संबंध नहीं था. इसके बाद मीडिया में आई रिपोर्टों से इसकी जांच की गई.
सूत्रों से मिले जवाबों के आधार पर नियंत्रण की स्थिति को तीन संभावित श्रेणियों में बांटा गया.
– सेना : सेना क्षेत्र में मौजूद और सक्रिय है. यहां ये स्थानीय प्रशासन चला रही है या फिर कुछ सार्वजनिक सेवा मुहैया करा रही है. ये सेवाएं सामान्य ढंग से काम कर रही हैं.
– संघर्ष : सेना क्षेत्र में मौजूद है लेकिन इसका प्रभावी नियंत्रण सीमित है. इसमें वे इलाके़ हो सकते हैं जहां सामान्य प्रशासन और सार्वजनिक सेवाएं पूरी तरह काम नहीं कर रही हैं. या फिर जहां सेना प्रशासन को क्षेत्रीय जातीय और शस्त्र बलों के साथ साझा करती है. इसके तहत ऐसे इलाके़ भी आते हैं जहां विरोधी ताकतें प्रवेश कर सकती हैं और बाहर निकल सकती हैं. जहां विरोधी समूहों के बीच आपसी संघर्ष भी होते रहते हैं.
– प्रतिरोधी समूह और जातीय सेनाएं : सेना काफी हद तक गै़र मौजूद है और इसने तीन महीने से अधिक समय से जमीन पर ऑपरेशनों को अंजाम नहीं दिया है. प्रतिरोधी सेनाओं, जातीय सेना या नागरिक प्रशासन की ओर से नागरिक सेवाएं दी जा रही होंगी जिनका संभवत: विद्रोहियों का सशस्त्र मिलिशिया समर्थन कर रहा होगा.
देश के कुछ हिस्सों को जंगल का दर्जा दे दिया गया है और उन्हें ग्राम समूहों में मैप नहीं किया गया है. ये प्रशासन के अलग ढांचे हैं जिनका संबंध संसाधनों के दोहन और संरक्षण से है.
बीबीसी ने म्यांमार के उन इलाक़ों पर फोकस करने का विकल्प अपनाया जहां प्रशासन की कोई स्पष्ट व्यवस्था दिखती है.
अतिरिक्त रिपोर्टिंग: बैकी डेल, मुस्कीन लिडार, ला ला विन, फ़िल लीक, कैलम थॉमसन, पिलर टॉमस, शार्लोट एटवुड और केल्विन ब्राउन
मेथडोलॉजी में सहयोग: प्रोफ़ेसल ली जोन्स, क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी, लंदन
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित