म्यांमार के आंतरिक हालात पिछले दो हफ्तों में और ज्यादा बिगड़ गए हैं। रखाइन प्रांत में जुंटा सैन्य सरकार के पैर काफी हद तक उखड़ चुके हैं और विद्रोही अराकान आर्मी की पकड़ लगातार मजबूत होने की खबर है। इस अस्थिरता का असर बांग्लादेश एवं म्यांमार सीमा पर दिख रहा है क्योंकि बचे-खुचे रोहिंग्याई मु्सलमानों की तरफ से नया पलायन शुरू होने का खतरा है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। म्यांमार के आंतरिक हालात पिछले दो हफ्तों में और ज्यादा बिगड़ गए हैं। रखाइन प्रांत में जुंटा सैन्य सरकार के पैर काफी हद तक उखड़ चुके हैं और विद्रोही अराकान आर्मी की पकड़ लगातार मजबूत होने की खबर है। इस अस्थिरता का असर बांग्लादेश एवं म्यांमार सीमा पर दिख रहा है क्योंकि बचे-खुचे रोहिंग्याई मु्सलमानों की तरफ से नया पलायन शुरू होने का खतरा है। भारत पूरी स्थिति पर नजर बनाए हुए है।
भारत में दाखिल होने का बढ़ा खतरा
सूचना है कि पर्दे के पीछे म्यांमार के दोनों विद्रोही संगठनों के साथ ही जुंटा सरकार के साथ भी विमर्श का चैनल खुला रखा गया है। लेकिन हालात जिस तरह से तेजी से बदल रहे हैं उससे भारत के समक्ष दूसरी कई तरह की चुनौतियां आने का खतरा है। इसमें से एक रोहिंग्याई शरणार्थियों के कुछ दलों के भारतीय सीमा की तरफ कूच करने का खतरा ज्यादा बड़ा है।
म्यांमार की स्थिति पर भारत की निगाहें
भारत के लिए दूसरा बड़ा खतरा यह है कि म्यांमार की अस्थिरता का फायदा उठाकर कुछ भारत विरोधी तत्व इसकी सीमा से सटे मिजोरम एवं मणिपुर राज्य में सक्रिय होने की कोशिश कर सकते हैं। म्यांमार की स्थिति के बारे में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल का कहना है, ‘वहां की गतिविधियों पर हम लगातार नजर बनाकर रखे हुए हैं।
भारत ने वार्ता पर दिया जोर
म्यांमार के लिए हमारा पक्ष यह है कि वहां पर जितने पक्ष हैं, उन सभी के बीच वार्ता होनी चाहिए, उनके बीच सकारात्मक विमर्श होना चाहिए ताकि शीघ्रता से वहां शांति लौटे और लोकतंत्र की भी बहाली शीघ्रता से हो। वहां की स्थिति का समाधान म्यांमार केंद्रित व म्यांमारी नागरिकों की तरफ से ही तैयार होना चाहिए। म्यांमार के साथ हमारी लंबी सीमा की स्थिति हमारे लिए खास तौर पर चिंता का कारण है।’
कूटनीतिक चैनल भी सक्रिय
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का यह बयान बहुत ही सधा हुआ है, लेकिन अंदरूनी तौर पर मंत्रालय ने म्यांमार की स्थिति को बेहद गंभीरता से लेते हुए दूसरे कूटनीतिक चैनलों को भी सक्रिय कर दिया है। भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने सरकार को म्यांमार की स्थिति को लेकर सतर्क करने का काम काफी पहले शुरू कर दिया था।
पूर्वोतर में खतरनाक हथियार के पहुंचने का भी जोखिम
मजबूत हो रही विद्रोहियों की पकड़
पिछले हफ्ते (19 एवं 20 दिसंबर) म्यांमार की स्थिति पर इसके पड़ोसी देशों की बैंकाक में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई है। इसमें विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने हिस्सा लिया। सूत्रों के मुताबिक भारत समेत अन्य सभी देश इस बात पर सहमत हैं कि म्यांमार सरकार को विद्रोही संगठनों के साथ बातचीत करनी चाहिए।मौजूदा सैन्य सरकार के विदेश मंत्री ने इस बैठक में अगले वर्ष चुनाव कराने का वादा भी किया, लेकिन जिस तरह देश के एक बड़े हिस्से पर विद्रोही संगठनों का कब्जा हो चुका है, उसे देखते हुए इस वादे पर भरोसा करना मुश्किल है।
ताजा जानकारी के मुताबिक रखाईन प्रांत के 70 में से करीब 45 शहरों पर विद्रोही सैनिकों का कब्जा हो चुका है। सैन्य सरकार की तरफ से चीन की मदद से हर तरह की कार्रवाई करने के बावजूद विद्रोहियों का दबदबा लगातार बढ़ रहा है।
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