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अमेरिका के सेंट्रल कमांड के प्रमुख जनरल माइकल कुरिला ने कहा है कि पाकिस्तान आंतकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में अमेरिका का अभूतपूर्व सहयोगी रहा है.
जनरल कुरिला ने ये भी कहा है कि अमेरिका और पाकिस्तान के संबंध को भारत से जोड़कर नहीं देखना चाहिए.
जनरल कुरिला ने ये बात मंगलवार को यूएस हाउस आर्म्ड सर्विसेज कमिटी की बैठक से पहले एक टेस्टमोनी में कही है.
उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के संबंधों के बीच तनाव की क़ीमत अमेरिका को पाकिस्तान के साथ संबंधों से नहीं चुकानी चाहिए.
माइकल कुरिला का ये बयान ऐसे वक़्त में आया है, जब मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि आने वाले कुछ दिनों में पाकिस्तान सेना प्रमुख आसिम मुनीर अमेरिका की यात्रा करने वाले हैं.
बीते महीने भारत और पाकिस्तान के संबंधों के बीच तनाव चरम पर पहुँच गया था.
डोनाल्ड ट्रंप ने कई बार दोहराया है कि ट्रेड रोकने की धमकी की वजह से दोनों देश संघर्ष विराम के लिए राजी हुए.
पाकिस्तान ने कई मौक़ों पर संघर्ष विराम के लिए अमेरिका का शुक्रिया अदा किया है. लेकिन भारत संघर्ष विराम में अमेरिका की भूमिका से इनकार करता रहा है.
माइकल कुरिला ने जो कुछ कहा
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मंगलवार को माइकल कुरिला ने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता है कि हम सिर्फ़ भारत के साथ संबंध रखें और पाकिस्तान के साथ नहीं.
उन्होंने कहा, “हमें भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ रिश्ते रखने होंगे. मैं ये नहीं मानता हूं कि ये कोई बाइनरी स्विच है कि हम भारत के साथ संबंध रखें और पाकिस्तान के साथ नहीं.”
कुरिला ने कहा है कि हमें संबंधों के सकारात्मक पहलू देखने चाहिए. कुरिला ने दावा किया कि पाकिस्तान आतंकवाद को रोकने में अहम भूमिका निभा रहा है.
माइकल कुरिला ने इस्लामिक स्टेट ख़ुरासान को अमेरिका के लिए खतरा बताया है. उन्होंने कहा है कि इस्लामिक स्टेट ख़ुरासान को रोकने में पाकिस्तान की भूमिका अहम है.
कुरिला ने कहा, “पाकिस्तान के साथ साझेदारी की वजह से अमेरिका ने इस्लामिक स्टेट ख़ुरासान के दर्जनों लोगों को मारा है.”
कुरिला ने कहा है कि पाकिस्तान से अमेरिका को जो ख़ुफ़िया जानकारी मिली है, उसकी मदद से वो इस्लामिक स्टेट खुरासान के पांच महत्वपूर्ण लोगों को पकड़ने में कामयाब रहे हैं.
कुरिला के बयान की आलोचना
अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका के राजदूत लगे ज़लमय खलीलज़ाद ने माइकल कुरिला के बयान पर असहमति जताई है. उन्होंने कहा है कि कुरिला ने आतंकवाद को रोकने के मामले में पाकिस्तान के सहयोग को बढ़ा चढ़ाकर बताया है.
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “जनरल कुरिला का पाकिस्तान को आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक ‘अभूतपूर्व भागीदार’ कहना थोड़ा ज़्यादा है. पाकिस्तान के सहयोग के उदाहरण हैं. लेकिन वो हमारे आतंकवाद विरोधी अभियानों को सीमित कर रहे हैं. उनके देश में सैकड़ों आईएसआईएस के आतंकवादी सक्रिय हैं.”
“अतीत की तरह पाकिस्तानी सेना दुश्मन और दोस्त दोनों बनी हुई है. याद कीजिए कि हमें ओसामा बिन लादेन को कहां मिले.”
एक्स पर एक और पोस्ट में ज़लमय खलीलज़ाद ने लिखा, “पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर जल्द ही वॉशिंगटन का दौरा करेंगे. इन बैठकों में आतंकवाद, भारत और पाकिस्तान के बीच शांति पर चर्चा की संभावना है.”
उन्होंने कहा, “असीम मुनीर अमेरिका और चीन के संबंधों को बेहतर बनाने में पाकिस्तान की मदद की पेशकश करेंगे. ऐसा राष्ट्रपति निक्सन ने चीन के साथ बातचीत में किया था. वो अपने देश (पाकिस्तान) के खनिजों में अमेरिकी रुचि और निवेश लाने की कोशिश भी करेंगे. अगर वो अच्छा प्रभाव डालना चाहते हैं तो अफ़रीदी को रिहा कर देना चाहिए, जो एक दशक से अधिक समय से जेल में हैं क्योंकि उन्होंने अमेरिका को ओसामा बिन लादेन को खोजने में मदद की थी.”
क्या भारत के लिए झटका है?
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इंडो पैसिफिक एनालिस्ट डेरेक जे ग्रॉसमैन ने कुरिला के बयान को भारत के अमेरिका पर भरोसा नहीं करने की वजह बताया है.
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “यही कारण है कि भारत अमेरिका पर भरोसा नहीं करता. सेंटकॉम कमांडर ने हाल ही में पाकिस्तान को आतंकवाद विरोधी प्रयासों में ‘अभूतपूर्व साझेदार’ बताया.”
भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “जनरल कुरिला ने अमेरिकी कांग्रेस के सामने अपनी गवाही में फील्ड मार्शल मुनीर की पॉजिटिव अप्रोच की सराहना की है. कुरिला ने कहा है कि सेना प्रमुख ने व्यक्तिगत रूप से उन्हें जाफर के पकड़े जाने की सूचना दी थी और उसे अमेरिका को प्रत्यर्पित करने की इच्छा व्यक्त की थी.”
कंवल सिब्बल ने कहा, “प्रत्यर्पण एक क़ानूनी प्रक्रिया है, जिसे सरकारी स्तर पर संभाला जाता है. ये काम पाकिस्तानी सेना प्रमुख के दायरे में नहीं आता है और इससे मालूम चलता है कि कैसे पाकिस्तान अमेरिका को झांसा देता है.”
दक्षिण एशिया मामलों के जानकार माइकल कुगलमैन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “जनरल मुनीर की अमेरिका की होने वाली यात्रा पर अभी बहुत कुछ स्पष्ट नहीं हैं. लेकिन अगर वो आते हैं तो सेंटकॉम का दौरा कर सकते हैं.”
“जनरल मुनीर और जनरल कुरिला दो साल से भी कम समय में तीन बार मिल चुके हैं. कुरिला ने उनकी तारीफ़ की है. आमतौर पर अमेरिका के सैन्य अधिकारियों के पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ संबंध मज़बूत ही होते हैं.”
वहीं सामरिक मामलों के जानकार ब्रह्मा चेलानी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “कारगिल संघर्ष के दौरान राष्ट्रपति क्लिंटन के हस्तक्षेप ने पाकिस्तान को सैन्य और कूटनीतिक संकट से बचाया. इसने जनरल मुशर्रफ को तख्तापलट करने के लिए प्रोत्साहित किया. अब भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ट्रंप के पाकिस्तान को बचाने के कारण पाकिस्तान के सैन्य खर्च में 20 फीसदी की भारी वृद्धि हुई है.”
उन्होंने कहा, “भारत पाकिस्तान तनाव में हर अमेरिकी हस्तक्षेप ने सिविलियन अथॉरिटी की क़ीमत पर पाकिस्तान सेना को मज़बूत किया है. ताजा हस्तक्षेप के बाद व्यापक रूप से अलोकप्रिय जनरल असीम मुनीर ने न केवल अपनी छवि को दोबारा स्थापित किया बल्कि खुद को फील्ड मार्शल के पद पर प्रमोट भी किया है. पाकिस्तान के इतिहास में केवल दूसरी बार ऐसा हुआ है.”
ट्रंप पर एस जयशंकर क्या बोले?
यूरोपीय संघ की नीतियों पर केंद्रित एक समाचार वेबसाइट ‘यूरेक्टिव’ ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर का हाल में इंटरव्यू किया.
इस इंटरव्यू में जयशंकर से यूरोप, चीन और ‘ट्रंप की विश्वसनीयता’ को लेकर सवाल पूछे गए.
वेबसाइट की ओर से पूछा गया, “क्या आप डोनाल्ड ट्रंप पर भरोसा करते हैं?” एस जयशंकर ने पूछा, “इससे क्या मतलब है?”
पत्रकार ने कहा, “क्या वो जो कहते हैं, उस पर डटे रहते हैं? क्या वह ऐसे पार्टनर हैं जिनके साथ भारत अपने रिश्ते और गहरा करना चाहेगा.”
इस पर जयशंकर ने कहा, “कही गई बात को मैं उसी तरह लेता हूं. हर उस रिश्ते को आगे बढ़ाना हमारा लक्ष्य है, जो हमारे हितों के अनुरूप हो और अमेरिका के साथ रिश्ता हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है. यह किसी व्यक्ति एक्स या राष्ट्रपति वाई के बारे में नहीं है.”
दरअसल, ट्रंप ने इसी साल जनवरी से जबसे दोबारा राष्ट्रपति पद संभाला है, तब से उन्होंने टैरिफ़ को लेकर लगातार भारत पर निशाना साधा है और कई बार भारत को वो ‘टैरिफ़ किंग’ कह चुके हैं.
भारतीय आप्रवासियों को अमेरिका से डिपोर्ट करने से लेकर प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान ट्रंप के बयानों पर विवाद हुए हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित