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ये कहानी उत्तर प्रदेश में आज़मगढ़ के उन लोगों की है, जो रूस में सुरक्षा गार्ड और कुक का काम करने के लिए गए थे.
लेकिन उन्हें यूक्रेन के ख़िलाफ़ जंग लड़ने भेज दिया गया. आज़मगढ़ से रूस गए लोगों में से तीन की मौत हो चुकी है, जबकि आठ लोग लापता हैं.
भारतीय विदेश मंत्रालय की मानें, तो रूस में कुल 16 भारतीय लापता हैं.
फ़रवरी 2022 में रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई शुरू हुई थी.
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यूक्रेन के ख़िलाफ़ जंग में रूस की ओर से विदेशी सैनिकों के लड़ने के आरोप लगते रहते हैं.
बाद में भारत के विदेश मंत्रालय ने भी माना कि 126 भारतीय रूस की सेना की ओर से लड़ रहे थे जिनमें से 96 वापस लौट चुके हैं.
विदेश मंत्रालय ने ये भी माना है कि रूस की सेना के साथ काम कर रहे 12 भारतीयों की मौत हो चुकी है.
इनमें उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ के तीन लोग हैं.
गीता देवी का दर्द
आज़मगढ़ के बनकटा बाज़ार गोसाईं की गीता देवी के पति और चचेरे भाई की रूस में यूक्रेन के साथ जंग में मौत हो चुकी है. उनके सगे भाई के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई है.
ये लोग छोटे-मोटे काम करने के लिए रूस गए थे. गीता के पति कन्हैया यादव का शव पिछले साल 23 दिसंबर को उनके गाँव पहुँचा.
गीता देवी रोते हुए कहती हैं कि छह महीने तक उनको पता भी नहीं था कि उनके पति की मौत हो गई है. इससे पहले उनके चचेरे भाई का शव भी आया था.
कन्हैया यादव के पुत्र अजय का कहना है कि उनके पिता के खाते में रूस सरकार ने 30 लाख रुपये डाले थे. उनका आरोप है कि दलालों ने वो पैसे दस्तख़त कराकर निकाल लिए हैं.
अजय कहते हैं, “हमें अभी तक कोई आर्थिक मदद नहीं मिली है.”
अजय ने बताया कि दिल्ली से रूस उनके पिता 17 जनवरी, 2024 को पहुँचे थे.
इसके बाद उनको सुमित नाम के व्यक्ति ने वहाँ पर रिसीव किया, वहाँ उनसे रूसी भाषा में बॉन्ड पर हस्ताक्षर कराए गए. उन्हें बताया गया कि जिस काम के लिए उन्हें लाया गया है, ये उसके काग़ज़ात हैं.
हालाँकि 15 दिन की ट्रेनिंग के बाद उनको रूसी सेना में भर्ती कर दिया गया था.
अजय यादव ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि 25 अप्रैल 2024 को उनके पिता और मामा विनोद यादव का फ़ोन आया कि रूसी सेना के जवान उनको जंग में ले जा रहे हैं.
7 मई 2024 को अजय के पिता को एक रॉकेट हमले में चोट लग गई. अजय बताते हैं कि शुरुआत में उन्हें किसी तरह की सहायता नहीं मिल सकी, बाद में किसी तरह उनका इलाज शुरू हुआ.
अजय आगे बताते हैं, “हम लोगों की उनसे आठ मई से बात होने लगी थी. 19 मई को बताया गया कि उनके मुँह में इंफ़ेक्शन हो गया है. उनको दूसरे अस्पताल में शिफ़्ट कर रहे हैं. लेकिन 25 मई के बाद कोई फ़ोन नहीं आया.”
अजय ने बताया कि कई बार उन्होंने संपर्क की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं आया.
वो बताते हैं, “अचानक 22 दिसंबर, 2024 को आज़मगढ़ के ज़िलाधिकारी ने बताया कि पिताजी का शव आ रहा है, तुरंत वाराणसी हवाई अड्डे पर पहुँचें. 23 दिसंबर को घरवालों को उनका शव सौंप दिया गया. लेकिन परिवार को कोई आर्थिक मदद नहीं मिली.”
अजय ने बताया कि वो एजेंट के ऑफ़िस गए थे लेकिन ऑफ़िस बंद था. सुमित नाम का जो एजेंट उन्हें ले गया था, अब उसका फ़ोन भी बंद आ रहा है.
लापता हुए लोगों के परिवारों की व्यथा
आज़मगढ़ में गुलामी पुरा मोहल्ले में अपने घर में बैठी नसरीन बानो भी दुखी हैं. पति की मौत हो चुकी है और अब बेटा अज़हरुद्दीन भी लापता है.
नसरीन का कहना है कि उनका बेटा सिर्फ़ 20 साल का था. जाते समय बोल कर गया था कि सिर्फ़ एक साल के लिए जा रहा है. अब एक साल भी पूरा हो रहा है, लेकिन उसका कोई पता नहीं है.
अज़हरूद्दीन आज़मगढ़ में इलेक्ट्रिशियन का काम करता था. नसरीन बानो ने कहा, “हम सरकार से अपील करते हैं कि वहाँ की सरकार पर दबाव डाले और मेरे बेटे को घर वापस लाए.”
माँ का दर्द अज़हरुद्दीन की बहन ज़ेबा से नहीं देखा जाता.
ज़ेबा ने बताया कि 28 अप्रैल, 2024 से उनका अपने भाई से संपर्क नहीं हो पाया है, जबकि पहले वीडियो कॉल पर बात हो जाती थी.
ज़ेबा रोते हुए कहती हैं, “जब मेरे पिता को पता चला तो उनको हार्ट अटैक आ गया. इलाज के बावजूद उनको बचाया नहीं जा सका. मुझे मेरा भाई वापस चाहिए.”
आज़मगढ़ में कई परिवारों का यही हाल है. जिनके अपने कमाने के लिए रूस गए, लेकिन अब उनका कोई पता नहीं है.
ज़ेबा की तरह पवन की कहानी भी है. पवन के भाई दीपक भी रूस गए थे. पवन कहते हैं कि घरवालों को नहीं पता कि उनके भाई लापता हैं. दीपक की तलाश में वो कई बार दिल्ली भी गए लेकिन कोई कामयाबी नहीं मिल पाई.
पवन ने बताया कि मार्च में वो पुलिस के पास भी गए थे, लेकिन उनकी शिकायत नहीं ली गई. दिसंबर में उनके पास पुलिस का फ़ोन आया था कि आकर शिकायत पत्र दे सकते हैं.
पवन और नसरीन की भी उम्मीदें बढ़ गईं हैं. दोनों को लगता है कि उनके अपनों की वतन वापसी होगी. वो एक बार फिर एक दूसरे से मिल सकेंगे.
रूस से वापस आए राकेश यादव
मेहनगर, आज़मगढ़ ज़िला मुख्यालय से ज़्यादा दूर नहीं है. यहाँ अधिकतर छोटे किसान हैं जिनकी आजीविका सिर्फ़ मज़दूरी से चलती है.
हमें यहाँ राकेश यादव मिले. राकेश यादव उन चंद ख़ुशक़िस्मत लोगों में से हैं, जो रूस गए, जंग भी लड़ी और लौट भी आए.
राकेश यादव ने बताया कि वो जंग लड़ने नहीं गए थे. मोटी तनख़्वाह का लालच और कुक और सुरक्षा गार्ड की नौकरी का झांसा देकर उन्हें रूस ले जाया गया था.
हालाँकि वहाँ पहुँचने के बाद झूठे वादों की परतें खुल गईं और धोखे का जाल सामने आ गया.
राकेश यादव का आरोप है कि रूस पहुँचने के बाद धोखे से दस्तख़त कराए गए दस्तावेज़ों के बहाने उन्हें फ़ौजी ट्रेनिंग लिए जाने पर मजबूर किया गया.
उन्हें सिर्फ़ 15 दिन की ट्रेनिंग देकर जंग के लिए भेज दिया गया. लड़ने से इनकार करने पर मारपीट की गई.
राकेश यादव ने बताया कि जनवरी 2024 में वो एजेंट के माध्यम से दिल्ली पहुँचे.
वहाँ पहुँचने के बाद वो कुछ दिन दिल्ली में रहकर छह घंटे की उड़ान के बाद सेंट पीटर्सबर्ग पहुँचे.
वहाँ शुरुआत में अच्छा सुलूक किया गया. बाद में उनको कहीं ले जाया गया. इससे पहले उनसे रूसी भाषा के किसी दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करा लिया गया था.
वहाँ से फिर ट्रेनिंग के लिए कहीं ले जाया गया. ट्रेनिंग में जब पूछा जाता कि क्यों ट्रेनिंग दी जा रही है, तो बताया गया कि ये बचाव के लिए है.
राकेश को पंद्रह दिनों की ट्रेनिंग के बाद उनको रूसी सेना की एक टुकड़ी के साथ भेज दिया गया.
राकेश के मुताबिक़ यूक्रेन के सुदोही इलाक़े में वो लोग रात में गश्त कर रहे थे. तभी यूक्रेन के ड्रोन ने उनका पीछा किया. ड्रोन पर बम बंधा हुआ था, जो उनके पास ही गिरा.
वो ज़ख़्मी हो गए. इस धमाके के बाद वो पूरी रात बंकर में पड़े रहे, लेकिन कोई मेडिकल सहायता नहीं मिली. पास में घायल रूसी सैनिक की मृत्यु हो चुकी थी.
इस हादसे के बाद उनको अस्पताल ले जाया गया. कई महीने इलाज के बाद जब वो ठीक हो गए, तो उनको दोबारा फ़्रंट पर ले जाया जा रहा था.
राकेश ने इसके लिए मना किया, तो उनके साथ मारपीट की गई. उन्होंने एजेंट से संपर्क किया, तो उसने बताया कि अब उनको फ्रंट पर नहीं ले जाया जाएगा.
कुछ देर बाद उनको मॉस्को ले जाया गया और वहाँ कुछ दिन रखने के बाद उनको भारत भेज दिया गया.
राकेश ने अपना रूसी बैंक अकाउंट भी दिखाया, जिसमें 35 लाख रुपये से अधिक आए थे. लेकिन उनका आरोप है कि एजेंट ने परिवारवालों को सिर्फ़ 40 हज़ार रुपये ही दिए. बाक़ी पैसे एजेंट्स ने निकाल लिए.
विदेश मंत्रालय का क्या कहना है
इस मामले में विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्द्धन सिंह ने संसद में बताया था कि रूसी सेना में भर्ती किए गए भारतीय नागरिकों के मामले को सरकार लगातार रूसी पक्ष से उच्चतम स्तर पर उठा रही है.
इस सिलसिले में सरकार ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी बातचीत की है.
सरकार की ओर से जानकारी दी गई है कि अप्रैल 2024 के बाद किसी भी भारतीय को रूसी सेना में शामिल नहीं किया जा रहा है. लेकिन लापता हुए लोग जनवरी-फरवरी 2024 में रूस गए थे.
सरकार की तरफ़ से संसद में बताया गया कि रूसी सेना में अब भी 18 भारतीय नागरिक हैं, जिनमें 16 के लापता होने की सूचना रूस ने दी है जबकि दो अभी भी रूसी सेना में काम कर रहे हैं.
इनमें सबसे ज़्यादा नौ लोग उत्तर प्रदेश के हैं. पंजाब और जम्मू-कश्मीर के दो-दो लोग हैं.
विदेश राज्यमंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने कहा था कि भारत सरकार लापता व्यक्तियों का पता लगाने और उनकी सुरक्षा, भलाई और शीघ्र छुट्टी सुनिश्चित करने के साथ-साथ छुट्टी दे दिए गए व्यक्तियों या किसी भी शव के अवशेष को भारत वापस लाने के लिए संबंधित रूसी अधिकारियों के साथ सीधे और नियमित संपर्क में है.
14 जनवरी को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था कि भारत ने रूस से मांग की है कि वो सभी भारतीय नागरिकों को सेना से अलग कर दे.
पुलिस का टिप्पणी से इनकार
आज़मगढ़ के पीड़ित परिवार वालों ने बताया कि अपने घरवालों के रूस में फँस जाने का पता चलने पर उन्होंने पुलिस से संपर्क किया था.
स्थानीय पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का प्रयास भी किया, लेकिन पुलिस ने कहा कि ये विदेश मंत्रालय का मामला है, इसलिए वहाँ संपर्क करें.
जब परिजनों ने विदेश मंत्रालय में संपर्क किया, तो उन्हें बताया गया कि ये लोग मिसिंग हैं.
इन आरोपों पर आज़मगढ़ के एसपी हेमराज मीणा का कहना है कि ऐसी शिकायत संज्ञान में नहीं आई है.
उन्होंने कहा कि ये एक संवेदनशील मसला है इसलिए इस पर वह कोई टिप्पणी नहीं कर सकते.
स्थानीय पत्रकार राजीव कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि यहाँ के लोगों का बाहर जाने का सिलसिला नया नहीं है.
वो बताते हैं, “पहले लोग खाड़ी के देशों में ज़्यादा जाते थे क्योंकि बेरोज़गारी ज़्यादा है, इसलिए जैसे ही मौक़ा मिलता है, लोग बाहर चले जाते हैं. हालांकि काम की तलाश में रूस जाने का मामला नया है.”
ट्रैवल एजेंसी का स्पष्टीकरण
पीड़ित परिवार वालों ने जिस ट्रिफोली हॉलीडेज़ पर रूस भेजने का आरोप लगाया है, बीबीसी ने उस दफ़्तर से भी संपर्क किया.
दिल्ली के भीकाजी कामा स्थित उनके कार्यालय से फ़ोन पर बातचीत की गई, तो वहाँ से बताया गया कि वो लोग सिर्फ़ टूरिस्ट का काम करते हैं.
ऑफ़िस में फ़ोन करने पर सुमित नाम के व्यक्ति ने फोन उठाया. उनसे बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि वो ऑफ़िस में सीनियर पद पर हैं.
जब पूछा गया कि क्या उनके ऑफ़िस ने आज़मगढ़ के कन्हैया यादव, राकेश यादव और 11 अन्य लोगों को रूस भेजा है, तो सुमित ने इससे इनकार कर दिया.
उन्होंने कहा कि उनकी कंपनी सिर्फ़ टूरिस्टों को ही विदेश भेजती है और वो लोग लेबर सप्लाई के काम में नहीं हैं.
परिवार वालों का कहना है कि सुमित दिल्ली में, सुल्तान और दुष्यंत मॉस्को में लोगों से मिले थे.
जब हमने इस मामले में सुमित, दुष्यंत और सुल्तान जैसे एजेंट्स के नाम के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश की, तो टूरिस्ट ऑफ़िस ने इन नाम के लोगों के अपने यहाँ कार्यरत होने से इनकार कर दिया.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित