उत्तर प्रदेश की आज़मगढ़ पुलिस ने एक संगठित अंतरराष्ट्रीय साइबर ठगी गिरोह का पर्दाफ़ाश किया है. इस गिरोह से जुड़े 11 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. ये अलग-अलग राज्यों से जुड़े हैं. दो अभियुक्त फ़रार हैं.
पुलिस के मुताबिक, ये अब तक 190 करोड़ की ठगी कर चुके हैं. पुलिस ने ठगी से जुड़े 169 बैंक खातों में जमा दो करोड़ रुपये फ्रीज़ भी किए हैं.
आज़मगढ़ के सिटी एएसपी शैलेन्द्र लाल ने बीबीसी हिंदी को बताया कि इन लोगों के बैंक खातों से पता चला है कि इन्होंने अब तक 190 करोड़ रुपये का लेन-देन किया है.
हालाँकि, अभी तक जाँच में डिजिटल अरेस्ट से ठगी की बात सामने नहीं आई है.
कई राज्यों के हैं अभियुक्त और संपर्क अंतरराष्ट्रीय
पुलिस के मुताबिक, गिरफ़्तार 11 अभियुक्त कई राज्यों के रहने वाले हैं. इनमें उत्तर प्रदेश के छह, बिहार के दो, ओडिशा के दो, मध्य प्रदेश का एक अभियुक्त है. देश के अलग-अलग राज्यों में इनके ख़िलाफ़ साइबर ठगी के कुल 71 मामले दर्ज हैं.
आज़मगढ़ के पुलिस अधीक्षक हेमराज मीणा ने मीडिया को बताया कि यह संगठित गैंग ऑनलाइन बेटिंग ऐप के ज़रिए ठगी करते थे. ये इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप, फ़ेसबुक और टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर विज्ञापन देते थे और लोगों को फँसाते थे.
पुलिस अधीक्षक ने कहा कि इस संगठित गिरोह के सदस्य कई व्हाट्सऐप ग्रुप के ज़रिए भारत के अलावा श्रीलंका, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) जैसे देशों में अपने सदस्यों से जुड़े थे. इनके बीच ठगी के पैसे का आदान-प्रदान भी होता था.
इन सब के ख़िलाफ़ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 318(4), 319(2), 336(3), 338, 340(2) और सूचना प्रोद्यौगिकी (संशोधन) अधिनियम की धारा 66सी, 66डी के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है.
कैसे करते थे एक कमरे से ठगी
अभियुक्त सरकार द्वारा प्रतिबंधित ऐप रेड्डी अन्ना, लोटस और महादेव के ज़रिए लोगों को ठगते थे.
मीणा के अनुसार ये लोगों को पैसे को दोगुना और तीन गुना करने का प्रलोभन देते थे.
पुलिस के मुताबिक, ये आरोपी लालच देकर लोगों का गेमिंग-बेटिंग ऐप पर लॉगिन आईडी बनाते थे. इसके बाद गेम के ज़रिए ठगी करते थे. फिर उनका सारा पैसा निकालकर फ़र्ज़ी खातों और फ़र्ज़ी मोबाइलों के ज़रिए ट्रांसफ़र कर लेते थे.
पुलिस के मुताबिक आरोपियों ने एक कमरे में ही पूरी व्यवस्था बना रखी थी, यहाँ अभी कुल 13 लोग काम कर रहे थे जो लोग यहाँ काम करते थे उनको पहले बाक़ायदा ट्रेनिंग दी गई थी.
इनके पास आधुनिक लैपटॉप और मोबाइल फ़ोन थे. एक बार में एक ही फ़ोन नंबर का इस्तेमाल किया जाता था. कमरा कॉल सेंटर के तरीक़े से काम करता था. हालाँकि, यह ऑनलाइन कोचिंग के नाम पर किराए पर लिया गया था.
अभियुक्तों द्वारा विभिन्न व्हाट्सऐप ग्रुप के माध्यम से लोगों से बात की जाती थी. इसके बाद, ये उनको ज़्यादा फ़ायदा का लालच देकर पैसा लगवाते थे.
पुलिस का कहना है कि पैसा लगाने वाले को पहले जिताया जाता था. इसके बाद उनसे और पैसा लगाने के लिए कहा जाता था. उनकी जगह का पता न चल पाए, इसलिए वे जिस फ़ोन नम्बर का इस्तेमाल करते थे, वह अंतरराष्ट्रीय होता था.
लोग लालच में आकर और पैसा लगाते थे. ऐसे लोगों को रियायत भी दी जाती थी, जो और लोगों को अपने साथ जोड़ते थे.
जैसे ही किसी ने ज़्यादा पैसा लगाया, उसके बाद ये लोग उस सिम और मोबाइल दोनों का इस्तेमाल नहीं करते थे. उस आईडी को भी ब्लॉक कर देते थे. रोज़ाना पैसा निकाल कर गिरोह के लोग आपस में बाँट लेते थे.
एएसपी ने बताया कि इसके बाद ये लोग पैसे को अपने गिरोह के लोगों को विदेश तक ट्रांसफ़र कर देते थे.
कैसे हुआ पर्दाफ़ाश
पुलिस अधीक्षक हेमराज मीणा के मुताबिक़ साइबर क्राइम थाना आज़मगढ़ के ऑनलाइन हेल्पलाइन पर शिकायत मिली थी. यह शिकायत एक लड़की ने की थी. इस आधार पर इनके लोकेशन का पता लगाया गया.
उसके बाद पुलिस ने 25 नवंबर को रैदोपुर थाना स्थित एक घर से 11 अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया गया.
पुलिस के मुताबिक़, 169 बैंक खातों में करीब दो करोड़ रुपये फ़्रीज़ किए गए हैं. पैंतीस लाख रुपये का सामान बरामद किया गया है. इनमें तीन लाख 40 हज़ार नक़द, 51 मोबाइल फ़ोन, छह लैपटॉप, 61 एटीएम कार्ड, 56 बैंक पासबुक, 19 सिम कार्ड, सात चेक बुक, तीन आधार कार्ड, एक इंटरनेट राउटर शामिल हैं.
पुलिस के मुताबिक़ गिरफ्तार अभियुक्त युवा हैं. ज्यादातर की उम्र 30 साल से कम है. कई तो 20 साल से भी कम उम्र के हैं.
हेमराज मीणा ने लोगों को सलाह दी है कि जो जल्दी पैसा कमाने का लालच दे रहे हों, उनसे बचें.
भारत में साइबर धोखाधड़ी
‘द हिंदू’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के मुताबिक, भारत में 2020-2024 के बीच तीन हज़ार 207 करोड़ रुपये की ठगी हुई है. इस दौरान पाँच लाख 82 हज़ार केस हुए हैं.
वहीं, नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर साइबर धोखाधड़ी की रोज़ाना तकरीबन छह हज़ार शिकायतें दर्ज हो रही हैं.
डिजिटल अरेस्ट से ठगी
हाल के दिनों में साइबर अपराधियों ने डिजिटल अरेस्ट को भी ठगी का हथियार बना लिया है.
लखनऊ में ही संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआईएमएस) में एसोसिएट प्रोफ़ेसर डा. रुचिका टंडन से दो करोड़ रुपये से ज़्यादा ठग लिए थे. ऐसी ठगी की शिकार वे अकेली नहीं हैं.
डिजिटल अरेस्ट ऑनलाइन धोखाधड़ी का एक नया तरीका है. इसमें कुछ लोग ख़ुद को पुलिस या सरकारी कर्मचारी बताकर लोगों को डराने की कोशिश करते हैं. फिर झूठी गिरफ़्तारी के नाम पर उनसे पैसे ऐंठते हैं.
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अक्तूबर में ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भारतीयों को ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ के नाम पर ऑनलाइन धोखाधड़ी के प्रति आगाह किया था.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित