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- Author, सैयद मोज़िज़ इमाम
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, लखनऊ से
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उत्तर प्रदेश के बदायूं ज़िले में तेरहवीं के भोज में रायता खाने के बाद क़रीब 200 लोगों ने एंटी-रेबीज़ का टीका लगवाया है.
दरअसल, ज़िले के उझानी कोतवाली क्षेत्र के पिपरौल गांव में तेरहवीं के भोज में लोगों को रायता परोसा गया था.
ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें बाद में पता चला कि रायता बनाने के लिए जिन भैंसों के दूध का इस्तेमाल किया गया था, उनमें से एक की मौत हो गई. ग्रामीणों का कहना है कि उस भैंस को कुत्ते ने काटा था और उसमें रेबीज़ के लक्षण दिखाई दिए थे.
लखनऊ में मौजूद डॉक्टर बाक़र रज़ा कहते हैं, “संक्रमित जानवर या मवेशी के कच्चे दूध या मांस के इस्तेमाल के बाद तो एंटी-रेबीज़ का इंजेक्शन लगवाना ज़रूरी है.”
बदायूं के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) रामेश्वर मिश्रा का कहना है, ”रेबीज़ हो जाने के बाद इसका इलाज बहुत मुश्किल है. इसलिए एहतियात के तौर पर इसका टीका लगवाना सही है.”
क्या है पूरा मामला?
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ग्रामीणों के मुताबिक़, 23 दिसंबर 2025 को गांव में एक व्यक्ति के तेरहवीं के मौक़े पर भोज का आयोजन किया गया था.
इस भोज में बड़ी संख्या में गांव के लोग शामिल हुए थे, जबकि कई रिश्तेदार और परिचित दूसरे गांवों और क़स्बों से भी पहुंचे थे. इस भोज में खाने के साथ रायता भी परोसा गया था.
ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें भोज के बाद जानकारी मिली कि जिस भैंस के दूध का इस्तेमाल रायता बनाने के लिए किया गया था, उसे कुत्ते ने काटा था, उस भैंस को कुछ समय तक अलग रखा गया था, लेकिन उसके दूध को अन्य भैंसों के दूध के साथ मिला दिया गया.
26 दिसंबर 2025 को उसी भैंस की मौत हो गई और उसमें रेबीज़ के लक्षण भी दिखे थे.
उसके बाद 27 दिसंबर को गांववालों ने अस्पताल जाकर एंटी-रेबीज़ का टीका लगवाना शुरू किया.
उझानी के सरकारी अस्पताल में टीके लेने गए कौशल कुमार बताते हैं, ”जिस भैंस का मट्ठा खाया था, वो 26 दिसंबर को ख़त्म हो गई. इसके बाद पता चला कि भैंस को कुत्ते ने काटा था, इसलिए यहां टीका लगवाने आए हैं.”
गांव के कुछ लोगों ने कहा कि उनमें ये डर घर करने लगा कि कहीं वे सभी एक गंभीर और जानलेवा बीमारी की चपेट में न आ जाएं.
डॉक्टर की सलाह पर एहतियातन लिया फ़ैसला
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भैंस की मौत की जानकारी मिलने के बाद सबसे पहले कुछ लोगों ने उझानी में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से संपर्क किया.
डॉक्टरों से सलाह लेने के बाद लोगों ने एहतियात के तौर पर एंटी-रेबीज़ का टीका लगवाने का फ़ैसला किया.
इसके बाद बड़ी संख्या में ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और निजी अस्पतालों में पहुंचने लगे.
तेरहवीं के भोज में खाना खाने वाले धर्मा ने बताया, ”ये डर है कि कहीं इंफ़ेक्शन ना हो जाए. इसलिए इंजेक्शन लगवाने आए हैं.”
अस्पताल की लाइन में बड़ी संख्या में महिलाएं भी थीं. इन महिलाओं ने भी तेरहवीं का भोज खाया था.
इन्हीं लोगों में शामिल कमलेश कहती हैं, ”हम तेरहवीं में गए थे. उसमें भैंस के दूध से रायता बनाया गया था. वो भैंस ख़त्म हो गई, जिसकी वजह से यहां आए हैं.”
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सीएमओ रामेश्वर मिश्रा ने बताया है कि शनिवार 28 दिसंबर तक ही 166 लोगों ने एंटी-रेबीज़ का टीका लगवाया था.
एंटी-रेबीज़ की वैक्सीन लगवाने वालों की कुल संख्या ढाई सौ के आसपास हो सकती है.
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि रेबीज़ एक गंभीर बीमारी है और किसी भी तरह की शंका होने पर एहतियात बरतना ज़रूरी है.
स्वास्थ्य विभाग की टीम ने 27 दिसंबर को गांव पहुंचकर लोगों को समझाया कि घबराने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन वैक्सीन की सभी डोज़ समय पर लगवाना बेहद ज़रूरी है.
ग्रामीणों को यह भी बताया गया है कि फ़िलहाल किसी में रेबीज़ के लक्षण सामने नहीं आए हैं. स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक़, गांव में स्थिति अब सामान्य है और लोग धीरे-धीरे आश्वस्त हो रहे हैं.
बदायूं के सीएमओ रामेश्वर मिश्रा ने कहा, ”जिन्होंने रायता खाया था, उनको टीका लगवाया जा रहा है. इसको लगाने में कोई नुक़सान नहीं है.”
उन्होंने कहा, ”एहतियात के तौर पर टीका लगाने में कोई हर्ज़ नहीं है क्योंकि रेबीज़ का इलाज ना के बराबर है.”
क्या कहते हैं रेबीज़ से जुड़े आंकड़े
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इस बीच गोरखपुर से भी ऐसी ख़बर आई है, जहां क़रीब 200 लोगों ने एंटी-रेबीज़ का टीका लगवाया है.
रिपोर्ट के मुताबिक़, संबंधित गाय के कच्चे दूध का इस्तेमाल गांव के किसी कार्यक्रम में किया गया था.
स्थानीय लोगों के मुताबिक़, इस दूध का सेवन क़रीब 200 लोगों ने किया था.
गाय को तीन महीने पहले एक आवारा कुत्ते ने काट लिया था और बाद में उसमें असामान्य और आक्रामक व्यवहार दिखाई देने लगा था. डॉक्टरों ने बाद में इन लक्षणों को रेबीज़ से जोड़कर देखा था.
गाय की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग ने दूध पीने वाले सभी लोगों को एंटी-रेबीज़ का टीका लगाने की सलाह दी थी.
उरुवा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के इंचार्ज डॉक्टर एपी सिंह ने बताया कि अब तक 170 से अधिक लोगों को वैक्सीन डोज़ दी गई है.

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इस सवाल पर लखनऊ में मौजूद डॉक्टर बाक़र रज़ा कहते हैं, “संक्रमित जानवर या मवेशी के कच्चे दूध या मांस के इस्तेमाल के बाद तो एंटी-रेबीज़ का इंजेक्शन लगवाना ज़रूरी है. हालांकि उबले हुए दूध में इसकी संभावना कम है. लेकिन एहतियात में लगवा लेना चाहिए, क्योंकि रेबीज़ का इलाज नहीं है.”
बलरामपुर में सरकारी अस्पताल में डॉक्टर गौरी शंकर वर्मा ने कहा, ”उबले हुए दूध में ख़तरा कम रहता है, लेकिन तब भी रिस्क बना रहता है. क्योंकि ये नहीं पता कि दूध को किस तापमान में और कितने देर तक पकाया गया है.”
डॉक्टर गौरी शंकर वर्मा के अनुसार, ”सभी लोगों को एहतियात के तौर पर एंटी-रेबीज़ के टीके की पांच डोज़ दी जाती हैं. पहली डोज़ के तीन दिन बाद दूसरी, सातवें दिन तीसरी, चौदहवें दिन चौथी और अठाइसवें दिन अंतिम डोज़ दी जाती है.”
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि रेबीज़ एक घातक बीमारी है, जिसे समय पर वैक्सीनेशन से पूरी तरह रोका जा सकता है. ऐसे मामलों में जागरूकता और सावधानी ही सबसे बड़ा बचाव है.
इस बीच देशभर में डॉग बाइट के आँकड़े लगातार बढ़ रहे हैं.
साल 2023 में ये संख्या तक़रीबन 30 लाख थी. लेकिन ये आंकड़ा अब और बढ़ गया है.
लोकसभा में 22 जुलाई 2025 को लिखित जवाब में मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल ने बताया, ”साल 2024 में देश भर में कुत्तों के काटने के 37 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए थे. इस दौरान रेबीज़ से संदिग्ध 54 लोगों की मौतों की रिपोर्ट भी सामने आई थी.”
ये आंकड़े राष्ट्रीय रेबीज़ नियंत्रण कार्यक्रम के तहत एकत्र किए गए हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.