
उत्तर प्रदेश के रायबरेली में 1 अक्तूबर को दलित शख़्स हरिओम वाल्मीकि की पीट-पीट कर हत्या का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि राज्य में एक के बाद एक कई घटनाएं सामने आई हैं.
इन घटनाओं ने राज्य की राजनीति को गर्म कर दिया है. समाजवादी पार्टी राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार पर अभियुक्तों को संरक्षण देने का आरोप लगा रही है.
बीते कुछ दिनों में दलित उत्पीड़न की तीन घटनाएं सामने आई हैं. ये घटनाएं लखनऊ, हमीरपुर और बस्ती में हुई हैं.
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मोहम्मद आज़म का कहना है, “इन घटनाओं से सरकार के सामाजिक न्याय के दावे खोखले नज़र आ रहे हैं. यह भी दिखाता है कि ज़मीन पर स्थिति कितनी भयावह है. बिना सरकार के संरक्षण के ऐसा संभव नहीं है. जो लोग ये घटनाएं कर रहे हैं, उन पर ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है.”
बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
हालाँकि सरकार की ओर से कहा गया है कि त्वरित कार्रवाई की जा रही है.
काकोरी के मंदिर में पेशाब चटवाने की घटना
राजधानी लखनऊ के काकोरी थाना क्षेत्र के शीतला माता मंदिर में 65 वर्षीय दलित बुज़ुर्ग रामपाल के साथ कथित तौर पर पेशाब चटवाने का मामला सामने आया.
20 अक्तूबर की रात क़रीब आठ बजे मंदिर परिसर में रामपाल की तबीयत बिगड़ गई थी. रामपाल के मुताबिक़, सांस लेने में दिक्कत के कारण वह मंदिर परिसर में बैठ गए. इस दौरान उनका पेशाब छूट गया.
पीड़ित का कहना है कि कुछ दूर पर ज्वैलरी की दुकान चलाने वाले स्वामीकांत गुप्ता उर्फ पम्मू आ गए.
रामपाल का दावा है, “पम्मू ने कहा कि तुमने मंदिर में पेशाब कर दिया, चाटो इसे. मैंने मना किया तो उसने फिर कहा कि ग़लती से हुआ है. तो भी उन्होंने कहा चाटो. मैंने डर के मारे हाथ से छूकर चाट लिया. उसने पानी डालकर साफ़ कराया और मैं घर आ गया. किसी को कुछ नहीं बताया ताकि बवाल न हो.”

अगले दिन जब परिवार को यह बात पता चली तो उन्होंने थाने में तहरीर दी. पुलिस ने अभियुक्त को गिरफ़्तार कर लिया है.
रामपाल के घर लोगों का लगातार आना-जाना लगा हुआ है. पूरा इलाक़ा सदमे और गुस्से में है. रामपाल कहते हैं, “हमें न्याय चाहिए. इतना अपमान किसी के साथ न हो.”
दूसरी ओर अभियुक्त स्वामीकांत के परिवार वाले इस मामले को “बेकार का विवाद” बता रहे हैं. उनके बड़े भाई रमाकांत का दावा है कि पेशाब चटवाने जैसी कोई बात नहीं हुई.
उनका कहना है, “सिर्फ़ टोका-टाकी हुई थी. कुछ लोग राजनीतिक फ़ायदा उठाने के लिए इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं.”
रमाकांत का यह भी कहना है, “मंदिर में नौटंकी कराने को लेकर कई साल से विवाद चल रहा था, जो कई साल से मंदिर प्रबंधन ने बंद करा दिया है. मेरा परिवार ही मंदिर का प्रबंधन कर रहा है.”
लेकिन घटना का वीडियो और रामपाल का बयान वायरल होने के बाद सियासत तेज़ है.
विपक्षी दलों ने इसे प्रदेश में दलितों की असुरक्षा का प्रतीक बताया है. पुलिस कह रही है कि अभियुक्त को गिरफ़्तार किया गया है.
इस मामले में प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने मीडिया से कहा, “दलित बुज़ुर्ग व्यक्ति को कथित तौर पर पेशाब चाटने के लिए मजबूर करने की घटना की जांच शुरू कर दी गई है.”
पाठक ने कहा, “सरकार ऐसी घटनाओं को लेकर संवेदनशील है और दलितों, ग़रीबों और वंचितों के साथ मज़बूती से खड़ी है. जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाएगी. गहन जांच की जा रही है.”
बस्ती: पेड़ से बांधकर पीटा गया, बहन पर भी हमला
दूसरी घटना बस्ती ज़िले के कलवारी थाना क्षेत्र में 20 अक्तूबर को हुई. यहां एक ब्राह्मण परिवार के लोगों पर दलित युवक श्रीचंद को पेड़ से बांधकर पीटने का आरोप है.
झगड़ा एक मामूली गाली-गलौज से शुरू हुआ था. श्रीचंद ने दावा किया कि घटना के एक दिन पहले रास्ते में शिवशांत नामक व्यक्ति ने उन्हें जातिसूचक गालियां दी थी.
अगले दिन वह अपनी बहन के साथ शिकायत करने शिवशांत के घर गए. आरोपों के मुताबिक़, शिवशांत के परिवार ने दोनों पर हमला कर दिया. श्रीचंद का आरोप है कि उन्हें रस्सी से पेड़ से बांधा गया, उनके कपड़े फाड़े गए और डंडों से पीटा गया.
पुलिस ने मामला दर्ज कर दो लोगों को गिरफ़्तार किया है. लेकिन पीड़ित परिवार का कहना है कि गांव में अब भी उन्हें धमकियां मिल रही हैं.
श्रीचंद की बहन ने कहा, “हमारी गाड़ी तोड़ दी गई है. हमारे साथ भी मारपीट की गई है. हमारे भाई को पेड़ से बांधकर लाठी-डंडे और गन्ने से पीटा गया है. मेरी गाड़ी में पैसे थे वो भी ले लिया.”
पुलिस ने बताया कि इस मामले में एससी-एसटी एक्ट के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया है और दो नामजद अभियुक्तों की गिरफ्तारी हुई है.
हमीरपुर: पुराने विवाद में दलित को जूते चटवाए
हमीरपुर ज़िले के सुमेरपुर थाना क्षेत्र के सिमनौड़ी गांव में भी एक ऐसी ही घटना सामने आई है. आरोप है कि यहाँ पुरानी रंजिश की वजह से कथित तौर पर उच्च जाति के माने जाने वाले लोगों ने उमेश आहरवार नामक युवक को सड़क पर रोककर पीटा और उसे जूते चाटने पर मजबूर किया.
उमेश का आरोप है कि दो महीने पहले गांव के प्राथमिक स्कूल में डॉ. भीमराव आंबेडकर की तस्वीर फाड़े जाने को लेकर ग्रामीणों ने विरोध किया था.
उमेश कहते हैं, “उस समय मैं भी प्रदर्शन में शामिल था. ग्रामीणों का कहना है कि उसी विरोध की वजह से विपक्षी गुट के मन में रंजिश थी. दीपावली से कुछ दिन पहले उन्होंने मुझे रास्ते में पकड़ा और बेरहमी से पीटा. जब मैंने माफ़ी मांगी, तो मुझे जूते चाटने को कहा गया.”
इमेज स्रोत, ANI
एसपी हमीरपुर ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं. तीन अभियुक्तों के ख़िलाफ़ केस दर्ज कर लिया गया है.
स्थानीय पत्रकार अनवर रज़ा के मुताबिक, एसपी के निर्देश के बाद 12 दिन बाद एफ़आईआर दर्ज की गई है. घटना 5 अक्तूबर की है और मुकदमा 17 अक्तूबर को लिखा गया.
हालाँकि अभियुक्त अभय सिंह का कहना है, “ये आरोप बेबुनियाद हैं. जिस दिन की घटना बताई जा रही है, उसके दो दिन पहले पटाखा जलाने को लेकर विवाद हुआ था. पुलिस को इसमें निष्पक्ष जांच करनी चाहिए.”

क्या कह रहे हैं जानकार
क्या दलित उत्पीड़न को लेकर घटनाएं बढ़ रही हैं? ये सवाल समाजशास्त्रियों के सामने रखा गया तो उन्होंने दलितों के पिछड़ेपन और सरकार के रवैये के बारे में बताया.
लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा कहती हैं, “यह केवल क़ानून-व्यवस्था का मसला नहीं है, बल्कि मानसिकता की समस्या है. जब तक समाज में ‘जातिगत श्रेष्ठता’ की भावना ख़त्म नहीं होगी, तब तक ऐसे अपराध रुकेंगे नहीं.”
उन्होंने कहा, “ऐसे तत्व जान चुके हैं कि सरकार उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं करेगी. इसलिए इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं. समाज में पहले जो ‘जातिगत श्रेष्ठता’ की बात करते थे, वे दबे हुए थे, लेकिन पिछले 10-11 सालों में वे खुलकर सामने आए हैं. पहले इस तरह की बात करना शर्मिंदगी का कारण होता था, लेकिन अब इसे महिमामंडित किया जा रहा है.”
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, 2023 में देश में दलितों के ख़िलाफ़ अपराध के 15,000 से ज़्यादा मामले केवल उत्तर प्रदेश से दर्ज हुए थे.

बीएचयू के समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर आर.एन. त्रिपाठी के मुताबिक, “शिक्षा के प्रसार के बावजूद ‘अधिकार प्राप्त करने की मानसिक स्थिति’ आज भी सबल नहीं हुई है. लोग पढ़े-लिखे तो हैं, लेकिन अभिव्यक्ति का अवसर न पाने के कारण मज़बूती से अपना पक्ष नहीं रख पाते. आर्थिक रूप से पिछड़े होने और उचित आवासीय व्यवस्था न होने के कारण दलित महिलाओं के साथ अत्याचार की घटनाएं अधिक होती हैं.”
उन्होंने कहा, “ज़्यादातर दलित श्रमिक का काम करते हैं, जिससे मालिक और नौकर की मानसिकता बन जाती है. अपराध के विरुद्ध प्रतिरोध का भाव नहीं पनपता, जिसके कारण अपराध बढ़ते हैं. ग़रीबी, अभाव और अस्वस्थता आज भी उन्हें समाज की मुख्यधारा से वंचित रखे हुए हैं.”
रूप रेखा वर्मा कहती हैं, “मीडिया कुछ दिनों तक इन मामलों को प्रमुखता से दिखाता है, लेकिन बाद में पीड़ित परिवार न्याय के लिए अकेले संघर्ष करता रहता है. एफ़आईआर दर्ज होने के बाद भी जांच धीमी चलती है और कई मामलों में अभियुक्तों को सज़ा तक पहुँचने में सालों लग जाते हैं.”
एनसीआरबी का आँकड़ा
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक़, अनुसूचित जातियों (एससी) के लोगों के ख़िलाफ़ कुल 57,789 अपराध दर्ज किए गए, जिनमें उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 15,130 मामले दर्ज हुए.
‘भारत में अपराध 2023’ रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुसूचित जातियों के ख़िलाफ़ अपराधों में 2022 की तुलना में 0.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जब ऐसे 57,582 मामले दर्ज किए गए थे.
राजस्थान में 8,449 मामलों के साथ दूसरा स्थान रहा, उसके बाद मध्य प्रदेश (8,232) और बिहार (7,064) का स्थान रहा.
2023 में अनुसूचित जातियों के ख़िलाफ़ अपराध दर 28.7 प्रति लाख जनसंख्या रही. मध्य प्रदेश (72.6), राजस्थान (69.1) और बिहार (42.6) में अपराध दर सबसे अधिक दर्ज की गई.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित