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भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी राजीव कृष्ण को उत्तर प्रदेश का नया कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) नियुक्त किया गया है.
31 मई को तत्कालीन कार्यवाहक डीजीपी प्रशांत कुमार रिटायर हुए और इसके बाद राजीव कृष्ण को यह ज़िम्मेदारी दी गई है.
पद ग्रहण करने के एक दिन बाद राजीव कृष्ण ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण और कानून व्यवस्था उनके लिए अहम काम है.
सोमवार को प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उन्होंने कहा , ”हम अपराध और अपराधियों के ख़िलाफ़ एक अडिग रुख़ बनाए रखेंगे, संगठित अपराध के ख़िलाफ़ निर्णायक कार्रवाई सुनिश्चित करेंगे. यह नीति हमारी क़ानून प्रवर्तन रणनीति की आधारशिला होगी, जिसका उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाना है.”
यूपी के कार्यवाहक डीजीपी राजीव कृष्ण 1991 बैच के आईपीएस हैं.
राजीव कृष्ण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विश्वास पात्र अफसरों मे गिने जाते हैं. संभवत: यही वजह है कि 11 सीनियर आईपीएस अफ़सरों को पीछे छोड़ते हुए वह डीजीपी बने हैं.
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11 अफसरों को किया सुपरसीड
उत्तर प्रदेश की राजनीति और नौकरशाही पर नज़र रखने वाले लोगों का मानना है कि राजीव कृष्ण हालिया सिपाही भर्ती को सुचारू रूप से संपन्न कराने के कारण योगी आदित्यनाथ के ख़ास अफसर बन गए हैं.
प्रदेश में सिपाही की 60, 233 पदों पर हाल ही में भर्ती हुई है. दरअसल, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले फ़रवरी, 2024 में सिपाही भर्ती परीक्षा का पेपर लीक होने के बाद योगी सरकार की किरकिरी हुई थी.
इसके बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने तत्कालीन भर्ती बोर्ड की अध्यक्ष रेणुका मिश्रा को हटा दिया और राजीव कृष्ण को भर्ती बोर्ड की ज़िम्मेदारी सौंपी थी.
हालांकि, यूपी कैडर के कई अफ़सर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर होने के कारण भी रेस से बाहर हो गए.
बीएसएफ़ के वर्तमान महानिदेशक और यूपी कैडर के आईपीएस अधिकारी दलजीत सिंह चौधरी की इस वक़्त पाकिस्तान से तनाव के कारण राज्य में वापसी मुश्किल थी.
1989 बैच के सीनियर आईपीएस आदित्य मिश्रा रिटायर इस महीने यानी जून में रिटायर हो जाएंगे और आशीष गुप्ता ने ऐच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ले लिया है.
मौजूदा सरकार में शफ़ी अहसान रिज़वी भी केंद्रीय प्रतिनियु्क्ति पर हैं. पुलिस भर्ती बोर्ड की पूर्व अध्यक्ष 1990 बैच की रेणुका मिश्रा प्रतीक्षारत हैं. वो मार्च 2024 से किसी पद पर नहीं हैं. सिपाही भर्ती परीक्षा में पर्चा लीक होने के कारण उनको डीजीपी ऑफ़िस से अटैच किया गया था और वो अभी भी यहीं हैं.
इसके अलावा संदीप सालुंके, बीके मौर्य, तिलोत्तमा वर्मा, एमके बशाल और पीयूष आनंद भी डीजीपी की दौड़ में शामिल थे. ये सभी 1989 से 1991 बैच के आईपीएस ऑफ़िसर हैं.
31 मई को रिटायर हुए प्रशांत कुमार ने भी कई ऑफ़िसरों को सुपरसीड किया था. जिसमें एस एन साबत, पीवी रामाशास्त्री जैसे आईपीएस अधिकारी थे.
जहां तक अफ़सरों को सुपरसीड करने की बात है, वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलाहंस का कहना है, ”ये पहले की सरकारों में भी होता रहा है.”
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डीजीपी की नियुक्ति पर सियासत
उत्तर प्रदेश के नए कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति होने के बाद राज्य में सियासत भी तेज़ हो गई है.
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तंज़ कसते हुए कहा है, ”दिल्ली और लखनऊ की लड़ाई में प्रदेश की जनता पिस रही है.”
उन्होंने एक्स पर लिखा, ”दिल्ली-लखनऊ की लड़ाई का ख़ामियाज़ा उत्तर प्रदेश की जनता और बदहाल क़ानून-व्यवस्था क्यों झेले? जब ‘डबल इंजन’ मिलकर एक अधिकारी नहीं चुन सकते तो भला देश-प्रदेश क्या चलाएंगे.”
अखिलेश यादव ने कार्यवाहक डीजीपी को लेकर भी सवाल खड़ा किया है. राजीव कृष्ण भी कार्यवाहक हैं, इससे पहले प्रशांत कुमार भी कार्यवाहक ही थे.
प्रशांत कुमार से पहले डीएस चौहान, आरके विश्वकर्मा और विजय कुमार कार्यवाहक डीजीपी भी के पद पर थे.
यूपी में अस्थायी डीजीपी की फ़ेहरिस्त लंबी होती जा रही है. 13 मई 2022 को तत्कालीन डीजी इंटेलिजेंस देवेंद्र सिंह (डीएस) चौहान को नियुक्त किया गया था.
उनके 31 मार्च 2023 को रिटायर होने के बाद आरके विश्वकर्मा सिर्फ़ दो महीने के लिए उस पद पर रहे.
आरके विश्वकर्मा के तुरंत बाद विजय कुमार इस पद पर नियुक्त हुए, फिर 31 जनवरी 2024 से 31 मई 2025 तक प्रशांत कुमार कार्यवाहक डीजीपी बने रहे.
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलाहंस का कहना है कि जब राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच सामंजस्य की कमी हो तो इस तरह के निर्णय होते हैं.
सिद्धार्थ कलाहंस कहते हैं कि, ”अगर यूपीएससी के ज़रिए नियुक्ति होती है तो उसमें वरिष्ठता के आधार पर नाम भेजना होता है, इसमें राज्य की सरकार अपने चहेते अफसर को नियुक्त नहीं कर पाती है.”
बीएसपी की अध्यक्ष मायावती ने भी नए डीजीपी को लेकर कहा है कि उनके सामने कई चुनौतियां है.
मायावती ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा, “देश के विभिन्न राज्यों में से ख़ासकर यूपी में सामंती व आपराधिक तत्वों का वर्चस्व होने से जातिवादी एवं साम्प्रदायिक द्वेष, हिंसा, अन्याय-अत्याचार तथा लोगों को उजाड़ने आदि की कार्रवाइयों से यह साबित है कि यहाँ कानून का राज सही से नहीं चल रहा है”
“ऐसे माहौल में यूपी पुलिस के नए प्रमुख के सामने राज्य में अपराध नियंत्रण व कानून का राज स्थापित करके सर्वसमाज के लोगों को उचित राहत पहुँचाने का बड़ा चैलेंज है, राज्य सरकार व सत्ताधारी दल के लोगों को भी यूपी में कानून का राज स्थापित करने में हर प्रकार का सहयोग व सक्रियता जरूरी है.”
जब राजीव कृष्ण से इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि किसी राजनीतिक व्यक्ति के बयान पर वो कोई टिप्पणी नहीं करेंगे.
डीजीपी ने कहा कानून और व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश करने वाले किसी भी व्यक्ति के प्रति बिल्कुल भी सहनशीलता नहीं बरती जाएगी.
हालांकि, अलीगढ़ में पिछले हफ़्ते ही चार लोगों को गोमांस ले जाने के शक में भीड़ ने पीटा था. जबकि उनके पास भैंस का मांस ले जाने के वैध दस्तावेज़ थे. बाद में लैब टेस्ट में भी मांस भैस का मांस निकला.
इस बर्बर मारपीट के बारे में जब बीबीसी ने सवाल किया तो डीजीपी ने कहा, “जो भी क़ानून हाथ में लेने की कोशिश करेगा उसके ख़िलाफ सख़्त कार्रवाई की जाएगी.”
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अफ़सरों का परिवार
नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, नए कार्यवाहक डीजीपी का परिवार सिविल सेवाओं से जुड़ा है.
राजीव कृष्ण की पत्नी मीनाक्षी सिंह भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में हैं और वह लखनऊ में इनकम टैक्स विभाग में कार्यरत हैं.
राजीव कृष्ण के साले राजेश्वर सिंह ईडी में अधिकारी रहे हैं और वर्तमान में लखनऊ के सरोजनी नगर से बीजेपी विधायक हैं.
राजेश्वर सिंह की पत्नी और राजीव कृष्ण की सरहज (साले की पत्नी) नोएडा की पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह हैं.
राजीव कृष्ण अपने लंबे करियर में कई ज़िलों के कप्तान रह चुके हैं.
उनकी तैनाती फ़िरोज़ाबाद, इटावा, मथुरा, फ़तेहगढ़, बुलंदशहर, गौतम बुद्ध नगर, आगरा, लखनऊ और बरेली में जैसे ज़िलों में रही है.
इसके अलावा उन्हें स्पेशल टास्क फ़ोर्स (एसटीएस) में भी काम करने का अनुभव है.
प्रशांत कुमार को नहीं मिला सेवा विस्तार
प्रशांत कुमार को आख़िरी वक़्त पर सेवा विस्तार नहीं मिला है. इस वजह से राज्य सरकार को नया कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त करना पड़ा.
रिटायर होने के बाद प्रशांत कुमार ने पुलिस महकमे के लोगों का धन्यवाद किया है.
एक्स पर प्रशांत कुमार ने लिखा , ”वर्दी में पहले दिन से लेकर इस मौके़ तक, मैं हर दिन लोगों की सेवा करने, न्याय को बनाए रखने और अपनी पुलिस के साथ खड़ा रहा हूँ .”
उन्होंने कहा, ”वर्दी अस्थायी है लेकिन ड्यूटी हमेशा के लिए है.”
हालांकि, अखिलेश यादव ने प्रशांत कुमार के बारे में कहा, ”आज जाते-जाते वो ज़रूर सोच रहे होंगे कि उन्हें क्या मिला, जो हर गलत को सही साबित करते रहे.”
उन्होंने कहा, ”यदि व्यक्ति की जगह संविधान और विधान के प्रति निष्ठावान रहते तो कम-से-कम अपनी निगाह में तो सम्मान पाते.”
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यूपी सरकार ने बनाई थी गाइडलाइन
नवंबर, 2024 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में नए पुलिस महानिदेशक के चयन की नई प्रक्रिया के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई थी.
इसके तहत डीजीपी के चयन के लिए छह सदस्यीय समिति के गठन का प्रस्ताव था. ये समिति हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में नए डीजीपी का चयन करने के लिए प्रस्तावित थी.
इस समिति में राज्य के मुख्य सचिव, संघ लोक सेवा आयोग का एक सदस्य, राज्य सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष या उनकी तरफ से नामित अधिकारी, राज्य के अपर मुख्य सचिव या प्रमुख सचिव और राज्य के पूर्व डीजीपी सदस्य के तौर पर शामिल होंगे.
हालांकि, अभी तक राज्य सरकार की तरफ़ से कमेटी का गठन किया गया है या नहीं, इसको लेकर असमंजस की स्थिति है.
इसको लेकर पूर्व अधिकारियों की राय अलग-अलग थी.
प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन ने बीबीसी से उस वक़्त कहा , “पहले की प्रक्रिया ज़्यादा फ़ेयर थी. नई प्रकिया पूरी तरह से सरकार के अधीन होगी. समिति में मौजूद यूपीएससी के सिर्फ़ एक सदस्य की राय की ज़्यादा अहमियत नहीं होगी. सरकार मनमाने ढंग से नियुक्ति भी करेगी और हटाएगी भी.”
प्रशासन का लंबा अनुभव रखने वाले आलोक रंजन के मुताबिक़, “जूनियर अधिकारियों के प्रमोट होने से उन सीनियर अफ़सरों का मनोबल गिरेगा, जिन्होंने 30 से 35 साल सेवा में दिए हैं.”
उन्होंने कहा था कि सरकार में मुख्य सचिव और डीजीपी के दो पद ऐसे हैं, जिन्हें राजनीतिक प्रभाव से दूर रखा जाना चाहिए.
राज्य के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने कहा था कि ये गाइडलाइन प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की मंशा के ख़िलाफ़ है.
हालांकि, पूर्व डीजीपी और बीजेपी नेता बृज लाल का कहना था कि डीजीपी की स्थायी नियुक्ति के लिए बनाई गई नियमावली सही है और इस निर्णय के आने वाले समय में अच्छे नतीजे दिखाई देंगे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित