नौवें उदयपुर फ़िल्म फ़ेस्टिवल को प्रोफ़ेसर जीएन साईबाबा और फ़लस्तीन में मारे गए बच्चों को समर्पित करने पर विवाद हो गया.
उदयपुर मेडिकल कॉलेज के ऑडिटोरियम में आयोजित तीन दिवसीय फ़िल्म फ़ेस्टिवल को दूसरे दिन, 16 नवंबर को, हिंदू संगठनों के विरोध के बाद रुकवा दिया गया.
फ़िल्म फ़ेस्टिवल के आयोजकों का दावा है कि ये कार्यक्रम कॉलेज प्रशासन की अनुमति से आयोजित किया जा रहा था, लेकिन आरएसएस और राज्य सरकार के दबाव में कॉलेज प्रशासन ने इसे रुकवा दिया.
आयोजक, कार्यक्रम में शामिल फ़िल्म निर्माता और इसमें शरीक होने वाले लोग इसे रोकने को संविधान और लोकतंत्र के ख़िलाफ़ बता रहे हैं.
आरएसएस का कहना है कि इस मामले से संघ का कोई संबध नहीं है.
वहीं, जो संगठन “हिंदू जागरण मंच’’ इसका विरोध कर रहा था, उसका कहना है कि इस कार्यक्रम की वजह से ज़िले का माहौल ख़राब हो रहा था.
उदयपुर के कलेक्टर का कहना है कि ये फ़ेस्टिवल रबीन्द्रनाथ टैगोर (आरएनटी) मेडिकल कॉलेज में आयोजित किया गया था और इसकी अनुमति कॉलेज प्रशासन से ली गई थी.
उन्होंने कहा, “कॉलेज ने देखा कि विवाद हो रहा है, इसलिए उन्होंने अपने स्तर पर इसे रोकने का निर्णय लिया. ये मेडिकल कॉलेज है, तो उन्होंने अपने स्तर पर फ़ैसला किया होगा. इसमें हमारी कोई भूमिका नहीं है.”
फ़ेस्टिवल को रुकवाने का पूरा मामला क्या है?
उदयपुर फ़िल्म सोसाइटी ने नौवां उदयपुर फ़िल्म फ़ेस्टिवल 15 से 17 नवंबर तक आयोजित किया. फ़ेस्टिवल जीएन साईबाबा और फ़लस्तीन में मारे गए हज़ारों बच्चों को समर्पित किया गया था.
उदयपुर मेडिकल कॉलेज के ऑडिटोरियम में पहले दिन पांच फ़िल्में दिखाई गईं, जिनमें शुरुआत 88 मिनट की फ़िक्शन फ़िल्म “एक जगह पानी” से हुई.
दूसरे दिन, 16 नवंबर को दोपहर 12 बजे से 1:30 बजे तक शबनम विरमानी द्वारा निर्देशित डॉक्युमेंट्री “हद अनहद” दिखाई जा रही थी. इसी दौरान, हिंदू संगठनों से जुड़े कुछ लोगों ने विरोध किया.
इन संगठनों ने मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. विपिन माथुर से मिलकर फ़ेस्टिवल को रद्द कराने की मांग की. इस बीच, आयोजकों, प्रिंसिपल और हिंदू संगठन के लोगों के बीच लगभग डेढ़ घंटे तक बैठक चली.
फ़ेस्टिवल के आयोजकों, रिंकू परिहार और सिनेमा ऑफ़ रेज़िस्टेंस के राष्ट्रीय संयोजक संजय जोशी का आरोप है कि हिंदू संगठनों ने फ़ेस्टिवल को बीच में रुकवा दिया.
संजय जोशी कहते हैं, “हम हर साल होने वाले फ़ेस्टिवल को समर्पित करते हैं. इस बार हमने इसे जीएन साईबाबा और फ़लस्तीन में मारे गए बच्चों को समर्पित किया था.”
उन्होंने आरोप लगाया, “इस वजह से आरएसएस से जुड़े लोगों ने आरएनटी मेडिकल कॉलेज प्रशासन से शिकायत की. दूसरे दिन कॉलेज से फ़ेस्टिवल रुकवाने के बाद हमने नई जगह की तलाश की, लेकिन कोई जगह उपलब्ध नहीं हुई. फ़ेस्टिवल के अंतिम दिन, 17 नवंबर को, हमें एक व्यक्ति के घर पर टेंट लगाकर स्क्रीनिंग करनी पड़ी.”
आरएसएस पर लगे इन आरोपों से जुड़े सवाल पर उदयपुर महानगर कार्यवाहक विष्णु नागदा कहते हैं, “ये बिल्कुल झूठे आरोप हैं. संघ का कोई भी प्रतिनिधि वहां नहीं गया है और इस प्रकरण से संघ का कोई संबंध नहीं है.”
अलग-अलग पक्ष क्या कह रहे हैं?
फ़ेस्टिवल को बीच में रोके जाने को लेकर आयोजकों, स्थानीय प्रशासन और मेडिकल कॉलेज के अलग-अलग दावे हैं.
संजय जोशी का दावा है कि जब उन्हें प्रिंसिपल डॉ. विपिन माथुर ने बुलाया, तब वहां आरएसएस के लोग मौजूद थे और उन्होंने फ़ेस्टिवल बंद करने की मांग की.
संजय जोशी ने कहा कि उन्होंने आरएनटी मेडिकल कॉलेज को भुगतान कर परमिशन ली थी और ये फ़ेस्टिवल चौथी बार इसी ऑडिटोरियम में आयोजित हो रहा था.
संजय जोशी ने आरोप लगाया कि उन्हें ज़िला कलेक्टर से परमिशन लेने को कहा गया, लेकिन कलेक्टर ने खुद को असमर्थ बताते हुए एफआईआर दर्ज कराने या आरएनटी प्रशासन से बात करने को कहा.
संजय जोशी कहते हैं, “हिंदू संगठन के लोगों ने हमसे वीडियो जारी कर माफ़ी मांगने के लिए भी कहा. यह गुंडागर्दी है और डरा कर रोकना चाह रहे हैं.”
रिंकू परिहार कहती हैं, “हम कलेक्टर और आरएनटी में लिखित शिकायत दे चुके हैं. एसपी को भी शिकायत देंगे.”
ज़िला प्रशासन
उदयपुर के ज़िला कलेक्टर अरविंद पोसवाल ने बीबीसी से कहा कि फ़िल्म फ़ेस्टिवल के दौरान कॉलेज के कुछ लोगों ने सवाल उठाया कि फ़लस्तीन को क्यों समर्पित किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, “अगर समर्पित करना है, तो सभी जगहों के मुद्दों को शामिल करो. इसी वजह से विवाद शुरू हुआ.”
कलेक्टर ने बताया कि फ़ेस्टिवल आरएनटी मेडिकल कॉलेज में था और इसकी परमिशन कॉलेज से ली गई थी.
उन्होंने कहा, “कॉलेज ने खुद ही कार्यक्रम बंद करवाया होगा. हमारा इसमें कोई रोल नहीं है. मैंने आयोजकों को कॉलेज से बात करने को कहा.”
मेडिकल कॉलेज प्रशासन
आरएनटी मेडिकल कॉलेज के एडिशनल प्रिंसिपल (फर्स्ट) डॉ विजय गुप्ता ने बीबीसी से कहा, “उदयपुर फ़िल्म फ़ेस्टिवल के आयोजकों ने कॉलेज से ऑडिटोरियम के लिए अनुमति ली थी. हमारे पास कुछ नियम और प्रक्रियाएं होती हैं, जिनके तहत ही परमिशन दी गई थी.”
उन्होंने बताया, “बाद में हमारे पास कुछ शिकायतें आईं, जिनमें फ़ेस्टिवल को लेकर आपत्ति जताई गई. इसके बाद हमने आयोजकों को बुलाकर दोनों पक्षों की बात सुनी.”
डॉ गुप्ता ने कहा, “कॉलेज के प्रिंसिपल और कंट्रोलर डॉ. विनय माथुर ने आयोजकों से कहा कि आप ज़िला कलेक्टर से अनुमति लेकर आएं. अगर वहां से परमिशन मिल जाती है, तो आप फ़ेस्टिवल जारी रख सकते हैं.”
उन्होंने आगे बताया, “ज़िला कलेक्टर से आयोजकों को अनुमति नहीं मिली, जिसके बाद फ़ेस्टिवल को रोक दिया गया.”
विरोध करने वाले क्या तर्क दे रहे हैं?
हिंदू जागरण मंच के चित्तौड़गढ़ प्रांत के संयोजक रविकांत त्रिपाठी ने आरोप लगाया, “फ़िल्म फ़ेस्टिवल का नाम दिया इन्होंने और फिल्म निर्माताओं से निःशुल्क मिलने का प्रलोभन देते हुए युवाओं को बुलाया, जो कि बिल्कुल झूठ था. यह एक वामपंथी कार्यक्रम था.”
उन्होंने कहा, “आयोजकों के साथ हमारी एक घंटे की बहस हुई. मैंने उनसे पूछा कि फ़लस्तीन के बच्चे मरे हैं तो इसराइल के बच्चे नहीं मरे हैं क्या? भारत में नक्सल के शिकार होकर बच्चे नहीं मरे क्या? आयोजक कह रहे थे कि अपने-अपने विचार हैं.”
उन्होंने यह भी सवाल उठाया, “उदयपुर में कन्हैयालाल और देवराज की हत्या हुई थी. कन्हैयालाल और देवराज के ऊपर डॉक्यूमेंट्री क्यों नहीं बनाई गई?”
त्रिपाठी ने कहा, “जीएन साईबाबा यूएपीए में बंद थे, हम उनको कैसे स्वीकार करेंगे.”
कोर्ट ने जीएन साईबाबा को बरी कर दिया था. इस तथ्य पर त्रिपाठी कहते हैं, “वो बीमार थे और व्हीलचेयर पर आ गए थे, इसलिए उन्हें रिहा किया गया था.”
आयोजकों की तरफ़ से गुंडागर्दी के आरोप पर वो कहते हैं, “हमने स्वस्थ चर्चा कर विरोध दर्ज कराया है. अगर किसी ने कुछ गलत किया है तो वह तस्वीर और वीडियो दिखाकर साबित करें. उदयपुर में सभ्य समाज है, उनका विरोध था, तो हम दर्ज कराने गए थे. फ़ेस्टिवल को हमने नहीं रोका है, कॉलेज प्रशासन ने रोका है.”
उदयपुर के लोग इस मामले पर क्या कह रहे हैं?
उदयपुर के सिनेमा प्रेमी 67 साल के शंकर लाल कहते हैं, “मैं उदयपुर फ़ेस्टिवल से शुरू से ही जुड़ा हुआ हूं. बहुत अच्छा रिस्पॉन्स है लोगों का. इन लोगों ने दो बार विवाद किया है.”
“पहले एग्रीकल्चर विश्वविद्यालय में वेमुला को समर्पित करते हुए फ़ेस्टिवल को कैंसिल करवा दिया था. वो वसुंधरा राजे सरकार का समय था और अब भी भाजपा सरकार है.”
उदयपुर के डॉ हेमेंद्र ने डेढ़ दशक तक पत्रकारिता की है और विश्वविद्यालय में शिक्षक रहे हैं.
वो कहते हैं, “इनके विरोध से नुकसान सिर्फ़ सिनेमा को नहीं बल्कि देश और संविधान को भी है. रचनात्मकता को फलने-फूलने देना किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए आदर्श होता है.”
डॉ हेमेंद्र कहते हैं, “फ़ेस्टिवल को इनके दबाव में रोकना जनता के जानने के अधिकार पर एक कुठाराघात है.”
वो कहते हैं, “अगर हम कुछ देश के खिलाफ दिखा रहे थे तो प्रशासन हम पर मुकदमा करे, या फिर जिन लोगों ने हमें डिस्टर्ब किया है उनके खिलाफ मुकदमा करें.”
फ़िल्मकारों ने क्या कहा?
रांची के रहने वाले फ़िल्म निर्माता बीजू, जो उदयपुर फ़ेस्टिवल में शामिल हुए थे.
वो कहते हैं, “हमारा देश संविधान से चलता है. ये लोकतंत्र और संविधान का हनन है. अगर हमें बोलने की आज़ादी नहीं है, तो हम किस लोकतंत्र में जी रहे हैं? हमें उसी आधार पर चलना चाहिए.”
उन्होंने कहा, “अगर आपको आपत्ति है तो फ़ेस्टिवल देखिए, चीज़ों को समझिए और फिर चर्चा कीजिए. कल जो फ़िल्म हमने दिखाई, उसमें ऐसे किरदार थे जिनका बाल विवाह हो गया था, और वो अपनी बात रख रहे थे. ऐसी चीज़ों का आदान-प्रदान होता है, अपनी बात कहने का मौका मिलता है. कलाकार को सेल्फ स्पेस चाहिए.”
बीजू ने आगे कहा, “साहित्य, पेंटिंग, कविता और कई कलाओं का संगम होता है फ़ेस्टिवल में. विचारों का आदान-प्रदान होता है और इससे चीज़ें आगे बढ़ती हैं.”
अहमदाबाद के फ़िल्म निर्माता संजीव शाह, जिन्हें फ़िल्मों के लिए कई अवॉर्ड मिल चुके हैं, ने इस विवाद पर कहा, “जो इतने सारे बच्चे मारे गए हैं, वो किसी भी देश के हों, उन्हें समर्पित करने में किसी को क्या दिक्कत हो सकती है?”
उन्होंने सवाल किया, “ये तो इंसानियत का सवाल है. अगर एक देश के बच्चे मरे तो ठीक है, और दूसरे देश के बच्चे मरे तो गलत है? ये तो चर्चा का विषय ही नहीं है. अब हम बोलें तो करो या मरो जैसी स्थिति बन गई है. जो क्रिएटिव काम करते हैं, उनके लिए ये मुश्किल हो गया है.”
उन्होंने कहा, “सामाजिक मुद्दों पर चर्चा और विचारों का आदान-प्रदान करने के उद्देश्य से ये फ़ेस्टिवल किया जाता है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित