राजस्थान में गंगापुर सिटी के बामनवास क्षेत्र के गुर्जर बहुल छोटी लाख गांव में हत्या के एक मामले में गिरफ़्तार तीन अभियुक्तों के परिवारों को पंचायत ने गांव से निकालने का फ़रमान सुनाया है.
परिवारों का आरोप है कि महिलाओं से बलात्कार की धमकी, उनको निर्वस्त्र करने और घर जलाने की धमकियों के बाद पंचायत के फ़ैसले के तहत उन्हें गांव से बाहर कर दिया गया.
दावा है कि उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई और पंचायत ने गाँव में राशन-पानी नहीं देने का आदेश जारी कर दिया है. एक महीने से ये परिवार जगह-जगह शरण लेने को मजबूर है.
राष्ट्रीय महिला आयोग ने इन परिवारों की शिकायत पर गंगापुर सिटी पुलिस अधीक्षक से 29 अक्तूबर तक रिपोर्ट देने का निर्देश जारी किया है. जबकि, जिला कलेक्टर गौरव सैनी ने कहा कि तहसीलदार गांव में गए थे और “बहिष्कार जैसी कोई बात सामने नहीं आई है.”
क्या है पूरा मामला?
18 अगस्त को रिवाली ग्राम पंचायत के छोटी लाख गांव में भरोसी लाल गुर्जर के बेटे बरन सिंह का शव खेत में मिला था. पुलिस ने हत्या के आरोप में तीन युवकों को गिरफ़्तार किया, जो अब जेल में हैं.
इसके बाद गुर्जर समाज के पंच पटेलों की पंचायत बुलाई गई, जिसमें अभियुक्तों के परिवारों का हुक्का-पानी बंद करने और उनसे किसी भी तरह का संबंध रखने पर पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाने का फ़रमान जारी किया गया.
तीनों परिवारों का दावा है कि पंचायत के आदेश पर उन्हें गांव से बाहर निकाल दिया गया और किसी दुकान से राशन नहीं लेने दिया गया.
एक बुजुर्ग ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि ‘पंचायत का फ़ैसला ग़लत है, लेकिन खुलकर विरोध करने का साहस किसी में नहीं है.’
गांव के लोग क्या कह रहे हैं?
रिवाली ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच कजोड़मल गुर्जर क़रीब अस्सी साल के हैं.
वो कैमरे पर बात करने के लिए तो तैयार नहीं हुए, लेकिन कहा, ”यह पंचायत का फ़ैसला था और सभी ने मिलकर लिया है. समाज की पंचायत के फ़ैसले पर मैं कुछ नहीं कह सकता हूं.”
छोटी लाख गांव में अंदर एक पक्का मकान बना हुआ है. दो-तीन कमरों के मकान पर ताला लटका हुआ है. ये मकान सुखराम गुर्जर का है. गांव में हुई हत्या मामले में उनका भी एक बेटा अभियुक्त है.
सुखराम के घर से आगे बढ़ते हुए गांव के अंदर उनके भतीजे पायलट गुर्जर का मकान है, जिसमें वह परिवार के साथ रहते हैं.
उनका परिवार भी पंचायत के फ़ैसले से उदास हैं. पायलट गुर्जर कहते हैं, “गांव में पंचायत हुई और ज़बरदस्ती उनको बाहर निकाल दिया. गांव के पंच पटेलों ने बोला कि हमने जो न्याय किया है वही चलेगा.”
पायलट कहते हैं, “उनके रास्ते बंद कर दिए थे, वो लोग पीने के पानी तक के लिए तरस गए थे. पंचायत के फ़ैसले के साथ पूरा गांव एक साथ खड़ा था.”
पायलट गुर्जर के घर से कुछ ही दूरी पर शेर सिंह रहते हैं. उनके ताऊ रायसिंह को भी परिवार के साथ गांव से निकाल दिया गया है.
“जानकारी नहीं कैसे निकले”
राय सिंह का दो कमरों का कच्चा मकान है, जिस पर ताले लटके हुए हैं.
राय सिंह के भतीजे शेर सिंह घटना पर बात करने से पहले तो इनकार करते हैं. लेकिन थोड़ी देरी की बातचीत के बाद ही कहते हैं, “पंचायत में हुए फ़ैसले के बाद उनको इतना तंग किया कि वह गांव से निकल गए.”
शेर सिंह ने बताया, “जो दोषी हैं तो उनको क़ानून से सज़ा मिलनी चाहिए. लेकिन, निर्दोषों को तो मामले से दूर रखना चाहिए न. उनका आना-जाना सब बंद कर दिया गया था. पीने को पानी तक नहीं मिला तो मजबूरी में वो लोग चले गए.”
रिवाली पंचायत के सरपंच देशराज रैगर बीबीसी से कहते हैं, “वो लोग निकल गए हैं, लेकिन मुझे जानकारी नहीं कि क्यों और कैसे निकले हैं.”
पंचायत के फरमान को लेकर कहते हैं, “ मैं पंचायत मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूर रहता हूँ, वहां क्या हुआ मुझे जानकारी नहीं हैं.”
वहीं, मृतक बरन सिंह के पिता भरोसीलाल कहते हैं, “मेरा बेटा पढ़ाई करता था. तीनों ने फोन कर बुलाया था और हत्या कर दी. बरन सिंह की पत्नी गर्भवती हैं और पहले बच्चे को जन्म देंगी.”
वो कहते हैं, “किसी ने तीनों परिवारों को नहीं धमकाया है और ना ही कोई पंचायत हुई है.”
गांव में ज़मीन का एक बड़ा भाग भरोसी लाल और उनके रिश्तेदारों का है. वह आख़िर में यह ज़रूर कहते हैं, “मैं दोनों परिवारों को अपनी ज़मीन से नहीं आने-जाने दूंगा, चाहे कुछ हो जाए.”
तीनों परिवार अब किस हाल में हैं?
सुखराम, राय सिंह और हरि सिंह के परिवारों ने 20 सितंबर की रात गांव छोड़ दिया है. इन तीनों का कहना है कि वो अपने परिवारों के साथ बीस सितंबर की रात गांव से निकल कर कई किलोमीटर तक पैदल चले.
सुखराम गुडला गांव के पास वन विभाग की भूमि पर अस्थायी झोपड़ी में रह रहे हैं. उनके परिवार में बुजुर्ग मां, पत्नी, पुत्रवधु और तीन बच्चे हैं.
राय सिंह और हरि सिंह अपने परिवारों के साथ जयपुर चले गए और रिंग रोड के पास सड़क किनारे शरण ली. दोनों परिवारों में तीन महिलाओं और पांच बच्चों समेत 12 सदस्य हैं.
इन्हें सड़क किनारे रहते देख बाद में एक व्यक्ति मुकेश शर्मा ने इन परिवारों को जयपुर के कपूरवाला गांव में अस्थायी ठिकाना उपलब्ध कराया.
मुकेश शर्मा कहते हैं, “मैं ड्यूटी पर आते-जाते कई दिनों तक इन परिवारों को रिंग रोड के नीचे सड़क किनारे देखता था.”
आगे कहते हैं, “मासूम से बच्चों और महिलाओं के साथ कुछ अनहोनी न हो जाए, यही सोच कर मैंने इनको अपने खाली पड़े प्लॉट पर रख लिया. इनके पास कुछ नहीं था, इसलिए इनके राशन की व्यवस्था भी मैंने की है.”
परिवार के क्या हैं आरोप?
क़रीब सत्तर साल के सुखराम की आंखों में आंसू हैं. कभी अपने नातियों को देखते हैं, तो कभी बुजुर्ग मां को देखने पर फूट-फूट कर रोने लगते हैं.
और एक ही सवाल पूछते हैं, ”हमारा क्या दोष है, जो पंचायत ने हमारे साथ ऐसा किया.”
कहते हैं, “गांव में पांच बार पंचायत हुई थी, लेकिन हमें नहीं बुलाया. हमारी बात नहीं सुनी किसी ने भी. गांव वालों ने निकाल दिया हमें, ज़मीन-खेती बाड़ी, घर सब छोड़ कर निकाल दिया.”
उन्होंने बताया कि पुलिस और प्रशासन को कई बार शिकायत दी और उनके सामने हाथ जोड़े लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.
सुखराम ने कहा, “हमने बोल दिया जिसने हत्या की उसको पकड़ लिया. लेकिन हमें क्या पता, मेरे परिवार को क्यों नष्ट कर दिया है.”
जयपुर शहर से क़रीब तीस किलोमीटर दूर अब कपूरवाला में रह रहीं राय सिंह की पत्नी केशु कहती हैं, “हमको बहुत परेशान कर दिया. पानी नहीं दिया पीने के लिए, बारिश के भरे पानी को लेकर आते थे.”
हरि सिंह की की पत्नी कमोदी कहती हैं, “मेरे पति घर से बाहर गांव सड़क पर निकले तो उनको धक्का दिया और खूब गालियां दी. पंचायत के फ़ैसले के बाद कई दिन तक बहुत कुछ सहा. बच्चों के भूखे मरने की नौबत आ गई थी. हम भी इंसान हैं, हमें भी दुख होता है.”
राय सिंह गुर्जर अपने परिवार की पीड़ा देख भावुक हो जाते हैं. आंसू साफ़ करते हुए कहते हैं, “पंचायत ने हमसे कुछ भी नहीं पूछा और हमें पहले जात बाहर कर दिया.”
वो कहते हैं, “चिड़िया का घोंसला उजड़ जाए तो वो कहां रहेगी. वैसा ही हमारे साथ हो रहा है. हमारा भी वही घोंसला है, हमें वापस जाना है.”
पुलिस-प्रशासन का क्या कहना है?
एक महीने से ज़्यादा बीतने के बावजूद ये परिवार अब तक गांव लौटने से डर रहे हैं.
इस मामले में जिला कलेक्टर गौरव सैनी ने कहा कि परिवारों ने पुलिस से संपर्क किया था, और पुलिस ने ग्रामीणों को पाबंद किया है. कलेक्टर ने यह भी कहा कि यदि कोई समस्या है तो प्रशासन मदद करेगा.
कलेक्टर गौरव सैनी कहते हैं, “तहसीलदार और पुलिस गांव में भी गए थे. बहिष्कार जैसी कोई बात हमारे सामने नहीं आई है.”
एसपी ममता गुप्ता का कहना है कि ग्रामीणों को समझाया गया है कि हत्या के मामले में पुलिस ने कार्रवाई कर दी है और अगर परिवारों को सुरक्षा चाहिए, तो उन्हें दी जाएगी.
तीनों परिवारों के गांव से निकल जाने के बाद प्रशासन के आदेश पर तहसीलदार बनवारी लाल शर्मा छोटी लाख गांव में मौके पर गए थे.
वो कहते हैं, “हम तीनों पीड़ितों के घर गए थे और ग्रामीणों से भी जानकारी ली थी, तीनों के घरों पर ताले लगे हुए थे. इन लोगों से मारपीट या अत्याचार का कोई प्रकरण संज्ञान में नहीं आया है.”
गांव में पंचायत के फ़रमान पर गांव निकाला दिया गया. इस सवाल पर तहसीलदार बनवारी लाल शर्मा कहते हैं, “हमने जांच की लेकिन ग्रामीण स्पष्ट बताने को तैयार नहीं हैं कि आखिर मौके पर क्या हुआ.”
उन्होंने कहा, “पंचायत के सबूत मिलते हैं तो हम ऐसे लोगों पर कार्रवाई करेंगे.”
नाम नहीं छापने की शर्त पर बामनवास थाने के एक पुलिसकर्मी ने बीबीसी से कहा, “यह गुर्जर समाज का मामला है और समाज के ही लोगों ने मिलकर यह फ़ैसला लिया था.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित