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राजस्थान के जयपुर में पांच अक्तूबर की देर रात एक बड़ा हादसा हुआ. राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सवाई मानसिंह के ट्रॉमा सेंटर के आईसीयू में आग लगने से वहां भर्ती आठ मरीज़ों की मौत हो गई.
हादसे के बाद सरकार ने आदेश जारी करते हुए ट्रॉमा सेंटर के इंचार्ज डॉ. अनुराग धाकड़ को पद से हटा दिया.
छह सदस्यों की एक जांच कमेटी गठित की गई है जो सात दिनों में सरकार को हादसे की रिपोर्ट सौंपेगी. वहीं, राज्य में विपक्षी पार्टी कांग्रेस सरकार से इस घटना की विस्तृत न्यायिक जांच की मांग कर रही है.
बीबीसी ने राज्य के चिकित्सा और स्वास्थ्य मंत्री से बात करने की कोशिश की लेकिन उनकी ओर से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
सवाई मानसिंह अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में गंभीर स्थिति वाले मरीज़ों को भर्ती किया जाता है.
इसके न्यूरोसर्जरी आईसीयू वॉर्ड में शॉर्ट सर्किट से लगी आग ने कई घर तबाह कर दिए. हादसे के दौरान न्यूरोसर्जरी आईसीयू-वन में 11 मरीज़ भर्ती थे जिनमें से आठ की मौत हो गई है.
ट्रॉमा सेंटर में कुल 284 बेड हैं. अस्पताल में चार आईसीयू हैं और इनमें 46 बेड हैं. वहीं, छह सामान्य वॉर्ड में लगभग 250 मरीज़ भर्ती रहते हैं.
रविवार की रात क्या हुआ था?
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आग लगने के बाद मरीज़ों के परिजन जैसे-तैसे उन्हें लेकर अस्पताल से नीचे आए. हर ओर अफ़रा-तफ़री और मरीज़ों की चीख सुनाई दे रही थी.
कुछ परिजनों ने खुद वाहनों की व्यवस्था की और मरीज़ों को दूसरे अस्पताल ले गए. जबकि, प्रशासन ने बड़ी संख्या में सड़क पर मौजूद मरीज़ों को शिफ्ट करने के लिए रात एक बजे एम्बुलेंस की व्यवस्था की.
घटना की रात ट्रॉमा सेंटर से कुछ ही दूरी पर सूचना केंद्र के पास स्ट्रेचर पर एक शव रखा हुआ था. जब हमने उनके परिजन से बात की तो उनका कहना था कि सवाई माधोपुर के बौंली से सड़क हादसे में घायल युवक रेफ़र होकर यहां ट्रॉमा सेंटर आया था. रोते हुए युवक के परिजनों ने बीबीसी से दावा किया कि आग और धुएं से दम घुटने के कारण युवक ने दम तोड़ दिया.
सरकार ने इस हादसे की जांच के लिए छह सदस्यों की कमेटी का गठन किया है जो विस्तृत रिपोर्ट भेजेगी. फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी की टीम ने भी मौके से साक्ष्य जुटाए हैं.
हादसे में मृत 22 साल के सीकर निवासी पिंटू के रिश्तेदार धौला गुर्जर ने आरोप लगाया, “हम अपने मरीज़ों को बड़ी मुश्किल से नीचे लेकर आए. स्टाफ भाग गया था और अफ़रा-तफ़री मच गई थी. डेढ़ घंटे बाद बचाव का काम शुरू हुआ. वहां धुएं से सारा शरीर काला पड़ गया था.
क्या कहते हैं परिजन?
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मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा के गृह ज़िले भरतपुर की रुक्मिणी कौर की भी इस हादसे में मौत हो गई है. उनको दो दिन बाद अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी.
हादसे के बाद अस्पताल में धरने पर बैठे उनके बेटे शेरू सिंह ने दावा किया था कि उनकी मां का शव कई घंटों बाद भी उन्हें नहीं दिखाया गया.
वह बताते हैं कि अंदर आग बहुत थी, धुआं ही धुआं नज़र आ रहा था. उन्होंने बताया कि आईसीयू के हालात देखकर वहां मौजूद डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ और गार्ड तक भाग गए थे.
हम बहुत मुश्किल से कांच तोड़ कर अंदर गए थे. आग से 52 साल की रुक्मिणी कौर बहुत जल गई थीं और उनका शरीर धुएं से काला पड़ गया था.
उप मुख्यमंत्री डॉ. प्रेम चंद बैरवा, गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेढ़म ने ट्रॉमा सेंटर में धरने पर बैठे शेरू से बातचीत कर उनकी मांगों पर मौखिक सहमति दी थी. इसके कुछ देर बाद उन्होंने अपना धरना समाप्त कर दिया था.
इसी आईसीयू में सीकर के 22 साल के पिंटू भी भर्ती थे.
उनकी भी इस हादसे में मौत हो गई. उनके रिश्तेदार धौला राम गुर्जर कहते हैं, “हम क़रीब 11 बजे खाना खाने नीचे आए थे. तभी आईसीयू से मेरे भांजे का फोन आया कि यहां आग लग गई है.”
“हम दौड़ते हुए ऊपर गए तो देखा धुआं ही धुआं है. चीख-पुकार मच रही थी. हम कुछ समझ नहीं पाए, वहां से सारा स्टाफ़ भाग गया था. हमारा मरीज़ पहचान में नहीं आ रहा था.”
धौला राम गुर्जर कहते हैं कि वहां कई मरीज़ और अटेंडेंट धुएं के कारण बेहोश हो गए थे. हम लोग ही अपने परिजनों को बड़ी मुश्किलों से बाहर निकाल कर लाए.
वह कहते हैं कि मरीज़ों ने कुछ देर पहले ही स्टाफ़ को बताया था कि धुआं निकल रहा है लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. धौला राम का आरोप है कि यह हादसा प्रशासन की लापरवाही से हुआ है.
एक पत्र और उस पर विपक्ष का सवाल
हादसे के दूसरे दिन मंगलवार को मीडिया में आए पत्र को लेकर भी विवाद हो रहा है. ये पत्र ट्रॉमा सेंटर के इंचार्ज रहे डॉ. अनुराग धाकड़ का लिखा हुआ है.
डॉ. अनुराग धाकड़ ने दीवारों और पैनल में करंट आने और बिजली व्यवस्थाओं की खामियों को लेकर ‘विद्युत एवं अभियांत्रिकी शाखा’ को पत्र लिखे थे.
उन्होंने पत्र लिख कर कहा था कि ट्रॉमा सेंटर के ऑपरेशन थिएटर में बिजली के बोर्ड और दीवारों में करंट आ रहा है, जिस कारण रोगियों के ऑपरेशन में परेशानी आ रही है.
एक पत्र में लिखा है, “ट्रॉमा सेंटर एक आपातकालीन इकाई है जिसमें गंभीर एवं अति गंभीर मरीज़ों की शल्य चिकित्सा होती है. उक्त समस्या हेतु इस कार्यालय के पत्र क्रमांक 391 दिनांक तीन सितंबर के द्वारा भी आपको अवगत कराया गया था लेकिन समाधान नहीं हुआ है.”
बीबीसी ने डॉ. धाकड़ से कई बार इस पर बात करने की कोशिश की लेकिन ख़बर लिखे जाने तक उसका जवाब नहीं आया है.
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने इस घटना को हादसा नहीं हत्या बताया है.
उन्होंने कहा, “मैंने कल कहा था कि एसएमएस ट्रॉमा सेंटर में हुई घटना हादसा नहीं हत्या है. आज सामने आए ट्रॉमा सेंटर के इंचार्ज के पत्र स्पष्ट करते हैं कि लगातार करंट आने समेत सभी ख़ामियों की शिकायत करने के बावजूद कोई कदम नहीं उठाया गया.”
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हादसे के बाद अस्पताल पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस हादसे की न्यायिक जांच की मांग की है.
उन्होंने मीडिया से बातचीत में बीजेपी की राज्य सरकार को घेरते हुए कहा, “मैंने कहा कि आप ये लीपापोती वाली जांच करवा रहे हो. पांच सात लोगों की कमेटी बना दी, वो रिपोर्ट दे देंगे और बात ख़त्म हो जाएगी. मैंने कहा है कि आप न्यायिक जांच करवाओ जिससे कि स्कूल या अस्पताल जिसकी भी शिकायत आ रही है, उसकी भी रिपोर्ट साथ ही तैयार हो.”
राज्य सरकार की ओर से मुआवज़े की घोषणा की गई है. सभी मृतकों के परिजनों को दस-दस लाख रुपए दिए जाएंगे.
सरकार ने छह सदस्यों की एक जांच कमेटी गठित की है जो सात दिनों में सरकार को हादसे की रिपोर्ट सौंपेगी.
राज्य के चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर से भी बीबीसी ने कई बार बात करने की कोशिश की लेकिन अभी तक उनकी प्रतिक्रिया नहीं आई है.
हालांकि हादसे के बाद एक्स पर पोस्ट के ज़रिए खींवसर ने कहा था कि राज्य सरकार पीड़ित परिवारों के साथ खड़ी है और (उनको) हर संभव सहायता प्रदान की जाएगी.
उच्च स्तरीय समिति के बारे में खींवसर ने लिखा, “यह समिति आग लगने के कारणों, अग्निशमन व्यवस्था, मरीजों की सुरक्षा और भविष्य में ऐसी घटनाओं की रोकथाम के उपायों की समग्र समीक्षा करेगी. राज्य सरकार ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि जिम्मेदार व्यक्तियों पर सख्त से सख्त कार्यवाही सुनिश्चित की जाएगी.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.