जम्मू-कश्मीर में राजौरी ज़िले का बड़हाल गांव एक रहस्यमय बीमारी की वजह से सुर्ख़ियों में है.
राजधानी श्रीनगर से 180 किलोमीटर दूर राजौरी के इस गांव में पिछले डेढ़ महीने के दौरान इस रहस्यमय बीमारी से 17 लोगों की मौत हो चुकी है. इनमें से 12 बच्चे हैं.
लेकिन छह सप्ताह पहले पहला मामला सामने आने के बाद से लेकर अब तक इस बात की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है कि आख़िर इस बीमारी की वजह क्या है?
स्थानीय लोग डरे हुए हैं और मौजूदा स्थिति की तुलना कोविड-19 के दौरान पैदा हुए हालात से कर रहे हैं. हालांकि राजौरी के सरकारी मेडिकल कॉलेज के स्वास्थ्य अधिकारियों ने बुधवार को बीबीसी से कहा कि बीमारी संक्रामक नहीं है और ये महामारी में तब्दील नहीं होगी.
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उनके मुताबिक खाने और पानी के ज़रिये मनुष्य के शरीर में जाने वाले न्यूरोटॉक्सिन्स इस बीमारी की वजह हो सकते हैं.
इस बीच, राजौरी में जिला मजिस्ट्रेट के दफ़्तर ने बड़हाल को कंटेनमेंट ज़ोन घोषित कर दिया है ताकि बीमारी को आगे फैलने से रोका जा सके.
राजौरी के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल एएस भाटिया ने बताया कि अभी भी 10 गांववाले बीमार हैं.
इनमें से छह को राजौरी लोगों को इसी अस्पताल में भर्ती करवाया गया है. इसके अलाल तीन मरीज़ जम्मू और एक को चंडीगढ़ इलाज के लिए भेजा गया था.
स्वास्थ्य अधिकारियों ने बीबीसी से कहा कि बड़हाल गांव में 7 दिसंबर से 19 जनवरी की बीच मौतें हुई हैं.
ये मौतें तीन रिश्तेदार परिवारों में हुई हैं. बीमारी से पीड़ित लोगों में पहले बुख़ार, गले में दर्द, उल्टी और डायरिया जैसे लक्षण पाए गए.
लेकिन इसके बाद मरीज़ अचानक बेहोश होने लगे और कुछ की मौत हो गई.
क्या हैं बीमारी के लक्षण
बड़हाल के लोगों को फिलहाल स्थानीय झरने से पानी लेने से रोक दिया गया है. स्थानीय अधिकारियों ने सोमवार को जांच के लिए पानी के नमूने लिए थे. जांच में उन्होंने पाया कि पानी में कुछ कीटनाशक हो सकते हैं.
बुधवार को जो कंटेनमेंट ऑर्डर जारी किए गए, उनके मुताबिक़ इस बीमारी से प्रभावित तीनों परिवारों के घर सील किए जाएंगे.
ज़िला मैजिस्ट्रेट के आदेश के मुताबिक़ जो लोग इन परिवारों के नज़दीकी संपर्क में आए हैं उन्हें भी राजौरी के सरकारी अस्पताल में शिफ़्ट किया जाएगा.
वहां उनके स्वास्थ्य पर नज़र रखी जाएगी. इस आदेश में कहा गया है कि बड़हाल के लोग सिर्फ प्रशासन की ओर से मुहैया कराया जा रहा खाना और पानी का ही इस्तेमाल करेंगे.
आदेश में कहा गया है बीमारी से संक्रमित परिवार में खाने की सभी चीजें सीज़ कर ली जाएंगीं.
बड़हाल के लोगों को सार्वजनिक और निजी तौर पर आपस में मिलने-जुलने से भी रोक दिया गया है.
क्या न्यूरोटॉक्सिन्स से हो रही है मौतें?
सबसे पहले बीमारी के मामले पिछले साल सात दिसंबर को सामने आए लेकिन वजह को लेकर रहस्य बना हुआ था.
गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज राजौरी के महामारी विशेषज्ञ डॉ. शुजा क़ादरी ने बीबीसी से कहा कि बीमारी के सही स्रोत का अभी तक पता नहीं चला है लेकिन शुरुआती जांच से ये संकेत मिलता है कि प्रभावित लोगों के घरों के खाने की चीजों में मौजूद न्यूरोटॉक्सिन्स इसकी वजह हो सकते हैं.
उन्होंने कहा, ”हो सकता है कि गांव के लोगों ने संक्रमित खाना एक साथ नहीं बल्कि रुक-रुक कर खाया होगा इसलिए मौतें अलग-अलग समूहों में हुई हैं.
उन्होंने कहा कि बीमारी स्थानीय है और ये संक्रामक भी नहीं है. उन्होंने इस बीमारी के पीछे वायरल, बैक्टीरिया, प्रोटोजोल या ज़ूनोटिक संक्रमण की आशंका से इनकार किया है.
गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज राजौरी के प्रिंसिपल डॉ. एएस भाटिया के मुताबिक, कोई भी विषैला पदार्थ या रसायन जो नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है उसे न्यूरोटॉक्सिन्स कहते हैं.
उन्होंने कहा कि ये जानने के बाद कि ये बीमारी वायरल या बैक्टीरिया का संक्रमण नहीं है, स्वास्थ्य अधिकारियों ने राहत की सांस ली है. इसका मतलब ये है कि किसी महामारी की आशंका को ख़ारिज किया जा सकता है.
डॉ. भाटिया ने बताया कि पहली बार सात दिसंबर को पांच मरीज़ उल्टी और डायरिया से जूझ रहे थे. इनमें चार बच्चे थे. इन सभी लोगों को तुरंत राजौरी अस्पताल के इमरजेंसी वॉर्ड में दाखिल कराया गया .
डॉ. भाटिया ने बताया, ”पहले तो हमने सोचा कि ये फूड प्वॉयज़निंग के मामले हैं. लेकिन दो घंटों के भीतर ही मरीज़ों के शरीर में ऐसे लक्षण उभरने लगे जो फूड प्वॉयज़निंग के लक्षणों से मेल नहीं खाते थे.
उन्होंने कहा, ”इन मरीज़ों के मस्तिष्क की सीटी स्कैन करवाई गई. इसमें इन्सेफ्लाइटिस और टॉक्सिस इन्सेफेलोपैथी से जुड़े लक्षण सामने आए. मरीज़ों में दो अलग-अलग शुरुआती लक्षण दिख रहे थे.
डॉ. भाटिया ने बताया, ”कुछ मरीज़ बुखार, बहुत ज्यादा पसीने, घबराहट और दस्त से जूझ रहे थे तो कुछ मरीज़ों का समूह गले में दर्द और सांस की नली में परेशानी की शिकायत कर रहा था. लेकिन बाद में उन सभी मरीज़ों में एक जैसे लक्षण दिखने लगे. वे उनके सेंट्रल नर्वस सिस्टम से जुड़े थे क्योंकि वो अचानक बेहोश हो रहे थे.”
डॉ. भाटिया के अनुसार मरीज़ों के जिस दूसरे समूह को 12 दिसंबर को अस्पताल में भर्ती किया गया था उसमें भी पांच लोग थे. इनमें एक साल का एक बच्चा भी था. लेकिन ये ठीक हो गए थे. ये हमारे लिए उम्मीद की किरण है.
दहशत में लोग
जिन 17 लोगों की मौत हुई है उनमें से 2 पुरुष, एक महिला और 15 साल से कम उम्र के 14 बच्चे हैं.
भले ही महामारी की आशंका ख़ारिज कर दी गई हो. लेकिन इस रहस्यमय बीमारी ने लोगों को सतर्क कर दिया है.
बीमारी में अपनी पत्नी और तीन बच्चों को खोने वाले मोहम्मद रफ़ीक़ ने राजौरी अस्पताल में बीबीसी से कहा कि बड़हाल के लोगों में बीमारी का ख़ौफ फैल चुका है.
बड़हाल के ही रहने वाले मोहम्मद इशाक ने सोमवार को बीबीसी उर्दू से कहा कि ग्रामीण एक दूसरे से मिलने-जुलने से डर रहे हैं.
इशाक ने कहा, ”ऐसा डर तो कोरोना के दौरान भी नहीं दिखा था.”
हालांकि बीबीसी से बात करते हुए डॉ. भाटिया ने कहा कि इस हालात की तुलना कोविड-19 महामारी से नहीं की जा सकती. क्योंकि ये बीमारी फैल नहीं रही है और ना ही ये डॉक्टरों या मेडिकल स्टाफ को हो रही है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इन मौतों की पड़ताल के लिए विशेषज्ञों की एक टीम बनाई है.
18 दिसंबर के आधिकारिक बयान में कहा गया है कि टीम का नेतृत्व केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी कर रहे हैं.
इसमें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, रसायन और उर्वरक, कृषि और जल संसाधन मंत्रालय के विशेषज्ञ शामिल हैं.
इस बयान में कहा गया है, ” हालात को संभालने और इन मौतों की वजहों को समझने के लिए देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों के विशेषज्ञों को जुटाया गया है.”
विशेषज्ञों की ये टीम सोमवार से ही इन मौतों की वजहों की पड़ताल कर रही है.
केंद्र प्रशासित प्रदेश की ओर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर बताया गया है, “जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने भी इन मौतों की वजहों की पड़ताल के लिए एक एसआईटी बनाई है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित