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राज्यों के हाईवे को एनएच का दर्जा देना ठंडे बस्ते में, रखरखाव की जिम्मेदारी और फंड जैसी बड़ी समस्या बनी कारण

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Dec 25, 2024


2022-23 की तुलना में 2023-24 में राज्यों के हाईवे को राष्ट्रीय दर्जा देने की रफ्तार बहुत कम हो गई है। इस धीमी रफ्तार के बारे में सड़क परिवहन मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि राज्यों के लिए अपनी सड़कें एनएच के लिए प्रस्तावित करना आसान है लेकिन सवाल उनके रखरखाव का है। रखरखाव की व्यवस्था प्राथमिकता और फंड को लकर काफी अड़चनें आती हैं।

मनीष तिवारी, नई दिल्ली। अपने राजमार्गों को राष्ट्रीय राजमार्ग का दर्जा दिलाने के लिए न तो राज्य उत्सुक हैं और न ही केंद्र सरकार आंख बंदकर उनके प्रस्तावों को स्वीकार करने के लिए तैयार है। इसीलिए पिछले एक साल में कुल बीस राज्यों में एक भी किलोमीटर राज्य राजमार्ग एनएच का दर्जा नहीं पा सका। इनमें आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गोवा, हरियाणा, केरल, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, त्रिपुरा, तेलंगाना शामिल हैं।

रखरखाव की जिम्मेदारी को लेकर खींचतान के कारण हो रहा ऐसा

केवल बिहार, गुजरात, झाऱखंड, बंगाल ऐसे राज्य हैं जहां 100 से अधिक किलोमीटर राज्य राजमार्ग को एनएच का दर्जा दिया गया है। वैसे यह पिछले तीन साल का रुझान है कि राज्यों के राजमार्ग को एनएच का दर्जा देने का रुझान थम सा गया है। ऐसा मुख्य रूप से रखरखाव की जिम्मेदारी को लेकर खींचतान के कारण हो रहा है।सड़क परिवहन मंत्रालय निर्माण और रखरखाव की अपनी परियोजनाओं पर ध्यान दे रहा है। उसने एनएच घोषित करने को लेकर मानक भी कड़े किए हैं। इसमें कनेक्टिविटी, रखरखाव की व्यवस्था, प्राथमिकता और फंड की उपलब्धता प्रमुख हैं। इन्हीं के आधार पर राज्यों के प्रस्तावों पर फैसले लिए जाते हैं। राज्य की सड़कों का विकास और उनका रखरखाव राज्यों का विषय है। इनमें राज्यों के हाईवे भी शामिल हैं।

राज्यों के हाईवे को राष्ट्रीय दर्जा देने की रफ्तार बहुत कम

2022-23 की तुलना में 2023-24 में राज्यों के हाईवे को राष्ट्रीय दर्जा देने की रफ्तार बहुत कम हो गई है। 2022-23 में जहां चार हजार किलोमीटर के राज्य हाईवे एनएच में तब्दील हो गए हैं वहीं इस साल मुश्किल से एक हजार किलोमीटर को यह दर्जा मिला है। इस धीमी रफ्तार के बारे में सड़क परिवहन मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि राज्यों के लिए अपनी सड़कें एनएच के लिए प्रस्तावित करना आसान है, लेकिन सवाल उनके रखरखाव का है।

कई तरह की अड़चनें आती हैं सामने

प्रस्ताव स्वीकार हो जाने के बाद जिम्मेदारी एनएचएआइ की हो जाती है, जबकि ठेके की शर्तों और फंड की उपलब्धता समेत तमाम व्यावहारिक अड़चनें आती हैं, जिनके कारण फैसला लेना आसान नहीं होता। वैसे भी एनएच का नेटवर्क जिस तेजी से बढ़ रहा है, उस लिहाज से राज्यों के हाईवे को एनएच का दर्जा देने की जरूरत भी कम पड़ रही है। नीतिगत स्तर पर ऐसी कोई रोक नहीं है कि राज्यों के हाईवे एनएच नहीं बनाए जाएंगे, लेकिन इसमें पारदर्शिती जरूरी है।

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