सपा सांसद रामजीलाल सुमन के राणा सांगा पर विवादित बयान के बाद सड़क से संसद तक हंगामा मचा हुआ है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने इस बयान की निंदा की। जिन राणा सांगा को लेकर सियासत गरमाई हुई है क्या आप उन राणा सांगा को जानते हैं जिन्होंने बाबर के खिलाफ के लड़े थे दो युद्ध? अगर नहीं तो यहां पढें राणा सांगा की वीरता उपलब्धियां और संघर्ष की कहानी…
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सपा सांसद रामजीलाल सुमन के राणा सांगा पर विवादित बयान के बाद सड़क से संसद तक हंगामा मचा हुआ है। राणा सांगा पर विवादित बयान को लेकर शुक्रवार को संसद में इस कदर हंगामा हुआ कि कार्यवाही को कुछ देर तक स्थगित करना पड़ा। गौर करने वाली बात यह है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस भी भाजपा के साथ खड़ी नजर आई। दोनों दलों के नेताओं ने रामजीलाल सुमन के विवादित बयान की जमकर निंदा की।
जिन राणा सांगा को लेकर सियासत गरमाई हुई है, क्या आप उन राणा सांगा को जानते हैं, जिन्होंने बाबर के खिलाफ के लड़े थे दो युद्ध? अगर नहीं तो आइए हम आपको बताते हैं…महाराणा प्रताप के दादा राणा सांगा (जिन्हें महाराणा संग्राम सिंह के नाम से भी जाना जाता है), मेवाड़ के एक राजपूत शासक थे। उन्होंने 1509 से 1527 तक शासन किया। वे बाबर के अधीन मुगल साम्राज्य के विस्तार का बहादुरी से विरोध करने के लिए जाने गए। वह मध्यकालीन भारत के अंतिम शासक थे, जिन्होंने कई राजपूत रियासतों को एकजुट किया था।
किंवदंतियों के अनुसार, सांगा ने 100 लड़ाइयां लड़ीं थी, जिसमें केवल एक बार हारे थे। युद्धों में एक हाथ, एक पैर, एक आंख खोने और शरीर पर लगभग 80 घावों के बावजूद विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ाई जारी रखी थी।
सांगा की वीरता देख रणभूमि से भाग गया था इब्राहिम लोदी
साल 1517 में राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी के खिलाफ खतौली की लड़ाई लड़ी थी। पांच घंटे तक लड़ने के बाद राणा सांगा की वीरता और रण कौशल को देख इब्राहिम लोदी युद्ध भूमि छोड़कर भाग गया था। मेवाड़ की सेना ने एक लोदी राजकुमार को बंदी बना लिया और फिरौती के भुगतान पर कुछ दिनों बाद उसे रिहा कर दिया। इसी युद्ध में राणा सांगा का बायां हाथ तलवार से कट गया था और घुटने में तीर लगने के कारण उन्होंने अपना एक पैर खो दिया था।
अपनों ने ही दिया जहर
बाबर के खिलाफ लड़े थे दो युद्ध
मुगल वंश के संस्थापक बाबर के खिलाफ उन्होंने दो निर्णायक लड़ाइयां लड़ीं। 21 फरवरी, 1527 को में बयाना हुई युद्ध में उन्होंने जीत हासिल की। उन्होंने मुगल सेना को खत्म कर बाबर के शिविर पर कब्जा कर लिया था और हथियार, गोला-बारूद, संगीत वाद्ययंत्र और यहां तक कि टेंट भी लूट लिए थे। इनमें से कुछ चीजें उदयपुर के संग्रहालयों में प्रदर्शित हैं।यह भी पढ़ें- राहुल गांधी ने पीएम मोदी को लिखा पत्र, इस टेंडर को रद करने की कर दी मांग; जानिए पूरा मामला
हालांकि, एक महीने बाद 16 मार्च को जब बाबर अपनी तोपें लेकर आया तो राणा खानवा की लड़ाई हार गए। इस युद्ध में उन्होंने बाबर के खिलाफ अन्य राजपूत रियासतों के साथ गठबंधन सेना का नेतृत्व किया था। बहुत बड़ी सेना होने के बावजूद मुगल सेना की बेहतर रणनीति और हथियारों के कारण राणा हार गए थे।हालांकि, राणा सांगा ने अपना प्रतिरोध नहीं छोड़ा और गुरिल्ला युद्ध के जरिये मुगल विस्तार का विरोध करना जारी रखा।
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