- Author, दिव्या आर्य
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
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वे चमत्कार करने का दावा करती हैं. उनके भक्त उन्हें देवी माँ मानते हैं. राधे माँ के नाम से मशहूर सुखविंदर कौर, उन कुछ महिलाओं में से एक हैं जो भारत में फैलते बाबाओं के संसार में जगह बना पाई हैं. भक्ति, भय, अंधविश्वास और रहस्य की इस दुनिया तक पहुँच हासिल करना मुश्किल है. बीबीसी राधे माँ की इसी दुनिया में दाख़िल हुआ और इसकी परत दर परत खोली.
लूई वित्ताँ और गूच्ची जैसी महँगी ग्लोबल ब्रैंड के पर्स हाथ में लिए, सोने और हीरे से जड़े ज़ेवर और फ़ैशनबेल लिबास पहने महिलाएँ इकट्ठा हो रही हैं.
ये राधे माँ की भक्त हैं. दिल्ली में करीब आधी रात को शुरू होने वाले उनके दर्शन के लिए आई हैं.
खुद को ‘चमत्कारी माता’ बुलाने वालीं राधे माँ को संतों जैसा सादा जीवन पसंद नहीं. न उनकी वेषभूषा साधारण है, न वे लंबे प्रवचन देती हैं. न ही सुबह के वक़्त भक्तों से मिलती हैं.
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बीबीसी से जब उनकी मुलाकात हुई तो बिना लाग लपेट बोलीं, “यही सच है कि चमत्कार को नमस्कार है. वैसे बंदा एक रुपया भी नहीं चढ़ाता. उनके साथ मिरेकल होते हैं. उनके काम होते हैं तो वे चढ़ाते हैं.”
इन ‘चमत्कारों’ की कई कहानियाँ हैं. उनके भक्त दावा करते हैं कि उनके आशीर्वाद से जिनके बच्चे नहीं हो रहे, उन्हें बच्चे हो जाते हैं. जिन्हें सिर्फ बेटियाँ पैदा हो रही हों, उन्हें बेटा हो जाता है. जिनका व्यापार डूब रहा हो, उन्हें मुनाफ़ा होने लगता है. बीमार लोग स्वस्थ हो जाते हैं.
‘भगवान रूपी’ होने और चमत्कार करने का दावा सिर्फ राधे माँ के ही नहीं हैं. भारत में ऐसे कई स्वघोषित बाबा हैं. इनकी तादाद दिनोंदिन बढ़ ही रही है.
कुछ पर भ्रष्टाचार से यौन हिंसा तक कई आरोप भी लगे हैं. राधे माँ पर भी ‘काला जादू’ करने और एक परिवार को दहेज़ लेने के लिए उकसाने के आरोप लगे. हालाँकि, पुलिस तहक़ीक़ात के बाद सभी अदालत में ख़ारिज हो गए.
इसके बाद भी हज़ारों लोग इन बाबाओं और देवियों को देखने के लिए आते हैं. साल 2024 में हाथरस में ऐसे ही एक बाबा के सत्संग में मची भगदड़ में एक सौ बीस से ज़्यादा लोगों की जान चली गई.
अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक, प्रोफ़ेसर श्याम मानव से हमारी मुलाक़ात नागपुर में हुई. वह कहते हैं, “ज़्यादातर भारतीय परिवारों में ये सामान्य संस्कार है कि जीवन का उद्देश्य ही भगवान की प्राप्ति है. इसके लिए अगर ध्यान, प्रार्थना, भजन-कीर्तन किया जाए तो सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं. सिद्धियाँ प्राप्त करनेवाले बाबा या देवी को लोग भगवान का रूप मानने लगते हैं जो चमत्कार कर सकते हैं.”
कौन हैं राधे माँ के भक्त?
आम धारणा है कि ग़रीब या जो लोग पढ़-लिख नहीं सकते, वे ऐसी सोच से ज़्यादा प्रभावित होते हैं लेकिन राधे माँ के कई भक्त धनी और पढ़े-लिखे परिवारों से आते हैं.
मेरी मुलाक़ात ऑक्सफ़र्ड यूनीवर्सिटी के सैद बिज़नेस स्कूल से पढ़ाई करने वाले एक एजुकेशन कंसलटेंसी चलाने वाले पुष्पिंदर भाटिया से हुई. वे भी उस रात उन महिलाओं के साथ दर्शन के लिए क़तार में थे.
उन्होंने मुझे कहा कि ‘दैवीय शक्तियों के मानव रूप’ की भक्ति करने के बारे में उन्होंने कभी नहीं सोचा था.
पुष्पिंदर ने बताया, “शुरुआत में मन में सवाल थे, ‘क्या भगवान मानव रूप में आते हैं? क्या ये सच है? क्या वे ऐसे आशीर्वाद देती हैं कि आपकी ज़िंदगी बदल जाए? ये तथाकथित चमत्कार कैसे होते हैं?”
पुष्पिंदर भाटिया राधे माँ के संपर्क में उस वक़्त आए जब उनका परिवार एक बड़ी दुखद घटना से जूझ रहा था. कई लोग कहेंगे कि इस वजह से वे कमज़ोर रहे होंगे या उनको बहलाया जा सकता होगा. लेकिन वे बताते हैं कि उस वक्त राधे माँ की बातों से उन्हें लगा कि वे सचमुच उनकी परवाह करती हैं.
उन्होंने कहा, “मुझे लगता है, पहले ही दर्शन में उनके आभामंडल ने मुझे आकर्षित किया. मेरे ख़्याल से जब आप उनके मनुष्य रूप से आगे बढ़कर उन्हें देखते हैं, तब फ़ौरन जुड़ाव महसूस करते हैं.”
भक्तों के लिए राधे माँ के दर्शन पाना बहुमूल्य है. हमें दिल्ली में आधी रात को एक निजी घर में हुए ऐसे ही एक दर्शन में मौजूद रहने का मौक़ा हासिल किया.
वहाँ जुटे सैकड़ों भक्तों में एक बड़े व्यापारी और एक वरिष्ठ पुलिस अफ़सर भी थे. ये अपने परिवार के साथ दूसरे शहर से हवाई यात्रा कर ख़ास उनके दर्शन के लिए आए थे.
मैं वहाँ पत्रकार की हैसियत से सब देखने-समझने गई थी. मुझसे कहा गया कि पहले दर्शन करने होंगे. फिर एक लंबी क़तार के आगे खड़ा कर दिया गया. इसके बाद बताया गया कि कैसे प्रार्थना करनी होगी. चेतावनी दी गई कि अगर प्रार्थना नहीं की तो मेरे परिवार पर कितनी विपदा आ सकती है.
राधे माँ के पसंदीदा लाल और सुनहरे रंगों से सजे उस कमरे में सब कुछ मानो उनकी आँखों के इशारे पर हो रहा था.
एक पल में ख़ुश. एक पल में नाराज़… और वह ग़ुस्सा न जाने कैसे उनकी भक्त में चला गया. पूरा कमरा शांत हो गया. उस भक्त का सर और शरीर तेज़ी से हिलने लगा. वे ज़मीन पर लोटने लगीं.
भक्तों ने राधे माँ से ग़ुस्सा छोड़ माफ़ करने को कहा. कुछ ही मिनट बाद, बॉलीवुड का गाना बजाया गया. राधे माँ नाचने लगीं. रात की रौनक लौट आई.
भक्तों की लाइन फिर चलने लगी.
पंजाब से मुंबई का सफ़र कैसे तय किया
राधे माँ पंजाब के गुरुदासपुर ज़िले के एक छोटे से गाँव दोरांग्ला के मध्यम-वर्गीय परिवार में पैदा हुईं. उनके माँ-बाप ने उनका नाम सुखविंदर कौर रखा.
सुखविंदर कौर की बहन रजिंदर कौर ने मुझे बताया, “जैसे बच्चे बोल देते हैं, मैं पायलट बनूँगा, मैं डॉक्टर बनूँगा, देवी माँ जी बोलते थे: मैं कौन हूँ? तो पिता जी उन्हें एक सौ पैंतीस साल के एक गुरु जी के पास ले गए. उन्होंने बोला कि ये बच्ची एकदम भगवती का स्वरूप है.”
बीस साल की उम्र में सुखविंदर कौर की शादी मोहन सिंह से हुई. इसके बाद वे मुकेरियाँ शहर में रहने लगीं. उनके पति विदेश कमाने के लिए चले गए.
राधे माँ के मुताबिक, “इस बीच मैंने साधना की. मुझे देवी माँ के दर्शन हुए. इसके बाद मेरी प्रसिद्धि हो गई.”
अब रजिंदर कौर मुकेरियाँ में ही राधे माँ के नाम पर बने एक मंदिर की देखरेख कर रही हैं. ये मंदिर राधे माँ के पति मोहन सिंह ने बनवाया है.
रजिंदर कौर के मुताबिक, “हम उन्हें ‘डैडी’ बुलाते हैं. वे हमारी माँ हैं तो वे हमारे पिता हुए.”
जब राधे माँ के पति विदेश में, तब वे अपने दोनों बेटों को अपनी बहन के पास छोड़कर ख़ुद भक्तों के घरों में रहने लगीं. ज़्यादातर भक्त व्यापारी परिवारों से थे.
एक शहर से दूसरे शहर होते हुए वे मुंबई पहँचीं. यहाँ वे एक दशक से ज़्यादा एक व्यापारी परिवार के साथ रहीं. इसके बाद अपने बेटों के साथ रहने लगीं.
जिन लोगों के घर में राधे माँ रहीं, वे उनके सबसे मुखर भक्त हैं. वे दावा करते हैं कि उनके घर में देवी माँ के ‘चरण पड़ने’ की वजह से ही उनके घर समृद्धि आई.
देवी की सांसारिक दुनिया
राधे माँ की दुनिया अजीब है. इसमें दिव्यता के साथ-साथ सांसारिक चीज़ों और रिश्ते-नातों का तानाबाना है.
वे अपने व्यापारी बेटों की बनाई बड़ी हवेली में रहती हैं. बेटों की शादियाँ भी उन बड़े व्यवसायी परिवारों में हुई हैं जो राधे माँ के सबसे क़रीबी भक्त हैं.
बाकि परिवार से अलग, राधे माँ हवेली की एक अलग मंज़िल पर रहती हैं. वहाँ से वह तभी बाहर निकलती हैं जब दर्शन देने हों या किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए हवाई जहाज़ से दूसरे शहर जाना हो.
राधे माँ के सभी सार्वजनिक कार्यक्रम उनकी बड़ी बहू मेघा सिंह संभालती हैं. मेघा के मुताबिक, “वे हमारे साथ नहीं रहतीं. हम धन्य हैं कि हम उनकी कृपा से उनकी शरण में रह रहे हैं.”
राधे माँ के नाम पर आने वाले दान का हिसाब-किताब उनके परिवार के लोग और क़रीबी भक्त रखते हैं.
मेघा कहती हैं, “राधे माँ के दिशा-निर्देश पर उनके भक्तों ने एक सोसाइटी बनाई है. ज़रूरतमंद आवेदन देते हैं. आवेदक की पूरी जाँच कर उनकी मदद की जाती है. राधे माँ ख़ुद सब सांसारिक चीज़ों से परे हैं.”
हालाँकि राधे माँ को तड़क-भड़क वाले कपड़े और ज़ेवर पसंद हैं.
बीबीसी से बातचीत में राधे माँ ने कहा, “किसी भी शादीशुदा महिला की तरह मुझे अच्छे कपड़े और लाल लिपस्टिक लगाना अच्छा लगता है. पर मुझे मेकअप नहीं पसंद.” हालाँकि, हमने उनके साथ जितना वक़्त बिताया, उस दौरान वे मेकअप में ही थीं.
मेघा कहती हैं, “आप हमेशा अपने भगवान की मूर्ति के लिए सबसे सुंदर वेशभूषा लाते हैं. तो जीती-जागती देवी के लिए क्यों नहीं? हम ख़ुशकिस्मत हैं कि वे हैं और हम उनकी सेवा कर पा रहे हैं.”
साल 2020 में राधे माँ अपने वही लाल लिबास और हाथ में त्रिशूल के साथ रियलिटी टीवी शो बिग बॉस के सेट पर आईं और बिग बॉस के घर को अपना आशीर्वाद दिया.
उनकी आज की छवि, उनके पुराने रूप से एकदम अलग है. जब मैं पंजाब गई और उनके भक्तों से मिलीं तो उनमें से कई ने मुझे पुरानी तस्वीरें दिखाईं.
चमत्कार के दावे और उनका ‘सच’
मुकेरियाँ में रहने वालीं संतोष कुमारी ने अपने घर के मंदिर में भगवान शिव और पार्वती की तस्वीरों के साथ ही राधे माँ की तस्वीरें रखी हैं.
उन्होंने मुझे बताया कि दिल का दौरा पड़ने के बाद जब उनके पति अस्पताल में थे तब वह राधे माँ से आशीर्वाद लेने गईं. उसके बाद उनके पति की तबीयत जल्दी ठीक हो गई. इससे उनकी श्रद्धा हो गई.
संतोष कुमारी ने कहा, “मैं आज सुहागन हूँ तो वह देवी माँ की देन है. उनके मुँह से ख़ून आया था. उन्होंने उससे मेरी माँग भरी. टीका लगाया और कहा, जा… कुछ नहीं होगा. तेरा पति ठीक हो जाएगा.”
मुझे हैरानी हुई पर कई भक्तों ने राधे माँ की दैवीय शक्तियों की वजह से उनके मुँह से ख़ून आने का दावा किया, जो उनके मुताबिक उनकी ख़ास शक्तियों की वजह से हुआ.
श्री राधे माँ चैरिटेबल सोसायटी हर महीने संतोष कुमारी समेत क़रीब पाँच सौ महिलाओं को एक से दो हज़ार रुपए पेंशन देती है. इनमें से ज़्यादातर विधवा या एकल महिलाएँ हैं.
पेंशन पाने वाली इन भक्तों ने चमत्कार की कई कहानियाँ बताईं लेकिन उनमें भय का ज़िक्र भी था.
सुरजीत कौर ने कहा, “हम उनके बारे में कुछ नहीं बोल सकते. मेरा नुक़सान हो जाएगा. मैं जोत ना जलाऊँ तो मेरा नुक़सान हो जाता है. मैं बीमार पड़ जाती हूँ.”
राधे माँ की कृपा बनी रहे इसके लिए सुरजीत रोज़ उनकी तस्वीर के आगे दिया जलाती हैं.
प्रोफ़ेसर मानव के मुताबिक ऐसा इसलिए है कि भक्तों को डर होता है कि कहीं देवी माँ को उनकी भक्ति कमज़ोर न लगने लगे.
उन्होंने कहा, “लॉ ऑफ प्रोबेबिलिटी के कारण जो भविष्यवाणी सच होती है, उसका क्रेडिट बाबाओं को मिलता है. लेकिन जो सच नहीं होती है, उसका डिसक्रेडिट बाबा तक नहीं जाता है. भक्त ख़ुद पर दोष देने लगते हैं कि हमारी भक्ति में कमी रह गई या फिर मेरा नसीब ही ऐसा है. बाबा का हाथ सर से चला जाएगा. बाबा के प्रिय लोगों में से मैं बाहर हो जाऊँगा/ हो जाऊँगी, ये भी डर होता है.”
राधे माँ के सार्वजनिक कार्यक्रमों में उनके चमत्कार के दावों को बेबुनियाद बताने वाले भी कई थे.
दिल्ली के एक कार्यक्रम में मिली एक महिला ने इन दावों को “मनगढ़ंत कहानियाँ” बताया. दूसरे ने कहा कि उन्होंने कोई चमत्कार अपनी आँखों से नहीं देखा. मेकअप करने और महँगे कपड़े पहनने से व्यक्ति भगवान नहीं बन जाता.
ये फिर भी राधे माँ के कार्यक्रम में आए थे. उन्होंने कहा कि रियलिटी टीवी शो में देखने के बाद असल ज़िंदगी में राधे माँ को देखने की उत्सुकता थी.
भक्ति और भय
इस पड़ताल के दौरान मुझे कुछ ऐसे लोग भी मिले जो पहले राधे माँ के भक्त थे पर जिन्होंने बताया कि उनके मामले में राधे माँ के ‘चमत्कार’ या ‘आशीर्वाद’ काम नहीं आए. इसके उलट उन्हें नुक़सान हुआ. हालाँकि, उनमें से कोई भी अपनी पहचान ज़ाहिर करने को तैयार नहीं थे.
इस सबने राधे माँ के उन भक्तों के बारे में मेरी जिज्ञासा और बढ़ाई जिन्हें उनकी दैवीय शक्तियों पर विश्वास है और जो उनकी सेवा करने को तैयार हैं.
एक शाम तो मैं दंग रह गई. राधे माँ ने अपने कमरे में ज़मीन पर बैठे अपने सबसे क़रीबी भक्तों को जानवरों की आवाज़ निकालने को कहा और वे मान गए.
राधे माँ ने उन्हें कुत्तों और बंदरों की तरह बर्ताव करने को कहा. उन्होंने भौंकने, चिल्लाने की आवाज़ें निकालीं और खुजली करने का अभिनय किया.
मैंने ऐसा कभी नहीं देखा था.
राधे माँ की बहू मेघा सिंह भी उस कमरे में थीं. मैंने उनसे भक्तों के इस बर्ताव की वजह पूछी.
वे बिल्कुल हैरान नहीं हुईं.
उन्होंने बताया कि पिछले तीन दशक से दर्शन देने के अलावा राधे माँ अपने कमरे ही बंद रहती हैं.
मेघा ने कहा, “तो उनके पास मनोरंजन का ये एकमात्र ज़रिया है. हम ये सब एक्शंस कर या चुटकुले सुना कर, कोशिश करते हैं कि वे हँसें, मुस्कुराएँ.”
इस जवाब ने मुझे उस चेतावनी की याद दिलाई जो मुझे बार-बार दी गई थी- भक्तों को पूरी श्रद्धा रखनी ज़रूरी है.
जैसे, जब मैंने पुष्पिंदर सिंह से पूछा कि राधे माँ अपने भक्तों से क्या माँगती हैं?
उन्होंने कहा, “कुछ नहीं. वह बस कहती हैं, ‘जब मेरे पास आओ तो दिल और दिमाग़ खोलकर आओ’. मैंने देखा भी है कि लोग, चाहे नए हों या पुराने, जब वे इस सोच के साथ आते हैं, वे उनके लिए चमत्कार करती हैं. अगर आप उनकी परीक्षा लेने जाएँगे तो आप उस संगत का हिस्सा नहीं रहेंगे.”
इन सबका मतलब था कि भक्ति पूरा समर्पण माँगती है. ‘भगवान की प्राप्ति’ के लिए सब तर्क त्यागना होता है.
प्रोफ़ेसर मानव के मुताबिक बिना कोई सवाल पूछे पूर्ण श्रद्धा रखना ही लोगों को ‘अंधविश्वासी’ बना देता है.
उन्होंने कहा, “हमें कहा जाता है कि उसी को ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है जो अपने गुरु पर अडिग श्रद्धा रखता है. जो भी शंका करेगा, जाँचने की कोशिश करेगा, वह अपनी श्रद्धा गँवा बैठेगा.”
अंधविश्वास कहें या भक्ति, राधे माँ को यक़ीन है कि उनके भक्त उनके साथ रहेंगे. जिन्हें उनके चमत्कारों पर यकीन नहीं, या उन्हें ढोंगी मानते हैं, राधे माँ को उनकी फ़िक्र नहीं.
राधे माँ मुस्कुराते हुए कहती हैं, “आई डोंट केयर… क्योंकि ऊपरवाला मेरे साथ है, सब देख रहा है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित