रायपुर के गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों ने एक ऑटोमेटेड सिस्टम बनाया है जो सैटेलाइट की मदद से व्हेल की पहचान और उनके प्रवास को ट्रैक कर सकता है। यह सिस्टम रिमोट सेंसिंग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग का उपयोग करता है। जहाजों और व्हेल के टकराव को रोकने के लिए यह साफ्टवेयर पिछले पांच साल के डेटा का विश्लेषण करता है।
दुर्गा प्रसाद बंजारा, जेएनएन, रायपुर। राजधानी रायपुर के गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज (जीईसी) के छात्रों ने एक ऐसी शानदार तकनीक विकसित की है, जो दुनिया भर में समुद्री निगरानी का तरीका बदल देगी। इन छात्रों ने एक ऐसा ऑटोमेटेड सिस्टम बनाया है, जो सैटेलाइट की मदद से महासागर में घूम रही व्हेल की पहचान, उनकी गतिविधियों और प्रवास (माइग्रेशन) के पैटर्न को ट्रैक कर सकता है।
इस सिस्टम में रिमोट सेंसिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है। यह सिस्टम लाइव तस्वीरों को देखकर न सिर्फ व्हेल की पहचान करता है, बल्कि समय के साथ खुद से सीखता और बेहतर होता जाता है।
आजकल समुद्री जहाजों के रास्ते अक्सर व्हेल की मौजूदगी वाले इलाकों से होकर गुजरते हैं, जिससे जहाजों और इन विशालकाय जीवों के बीच टकराव का खतरा बना रहता है। जीईसी की टीम ने इसी समस्या का समाधान निकालने के लिए यह सिस्टम तैयार किया है।
पिछले पांच साल से ज्यादा के सैटेलाइट डेटा और हाई-रेजोल्यूशन तस्वीरों का विश्लेषण करके यह साफ्टवेयर बनाया गया है। यह साफ्टवेयर बता सकता है कि किस जगह पर कौन सी व्हेल है, उसकी उम्र क्या है और वह किस दिशा में जा रही है।
इस प्रोजेक्ट के सुपरवाइजर डॉ. आरएच तलवेकर के अनुसार हमने एक ऐसा साफ्टवेयर डेवलप किया है, जो महासागरों की सतह से ली गई इमेज को पढ़कर व्हेल की पहचान करता है, उसकी प्रजाति, संख्या और स्वास्थ्य संबंधी संकेत भी देता है। यह सिस्टम पर्यावरणीय परिस्थितियों, जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के प्रभाव को भी मैप करता है।
8000 अमेरिकी डॉलर की मिली ग्रांट
इस प्रोजेक्ट को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहना मिली है। इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रानिक्स इंजीनियर्स (आइईईई) ने इस प्रोजेक्ट को चौथे स्टूडेंट ग्रैंड चैलेंज में चुना है और टीम को 8,000 अमेरिकी डॉलर की ग्रांट दी है। अब यह टीम आठ अगस्त को आस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन में होने वाले सेशन में अपनी रिसर्च को प्रजेंट करेगी।
चार देशों के प्रोजेक्ट में रायपुर अव्वल
यह प्रोजेक्ट दुनिया के चार देशों चीन, कोलंबिया, इंडोनेशिया और भारत में आंध्रप्रदेश और रायपुर के इंजीनियरिंग कालेज के पांच टाप प्रोजेक्ट में शामिल था। इसमें रायपुर के प्रोजेक्ट को सबसे प्रभावशाली माना गया।
डेढ़ वर्ष की रिसर्च से तैयार हुआ प्रोजेक्ट
सीएसई विभाग के प्रमुख डॉ. आरएच तलवेकर बताते हैं कि यह प्रोजेक्ट डेढ़ साल की कड़ी रिसर्च का नतीजा है। छात्रों ने हर महीने कार्य की समीक्षा, परीक्षण और प्रेजेंटेशन किया।
इमेज प्रोसेसिंग से लेकर मशीन लर्निंग तक कई तकनीकों को एकीकृत किया गया। यह तकनीक आने वाले समय में समुद्री जहाजों को व्हेल से टकराने से बचाने, प्रजाति संरक्षण, समुद्री इकोसिस्टम की निगरानी और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करने में उपयोगी हो सकती है। साथ ही इससे मछली पकड़ने वाले जहाजों को व्हेल की मौजूदगी वाले क्षेत्रों से दूर रखकर समुद्री जीवन की रक्षा भी की जा सकेगी।
रिसर्च टीम के सदस्य
टीम में पार्थेश खंडेलवाल, रोहन चंद्राकार, देव साहू, अंजली राय, अनम खान, शार्दुल विनय खानांग, मेघा पंडित, ऋषभ बंछोर, ऊर्जा पारख और श्रेयांशी तलवेकर शामिल हैं। अक्टूबर में इस प्रोजेक्ट का अंतिम सबमिशन किया जाएगा।