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लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं.
7 अगस्त को उन्होंने वोटर लिस्ट में गड़बड़ी को लेकर एक घंटे से ज्यादा का प्रेजेंटेशन दिया.
उन्होंने दावा किया कि लोकसभा चुनावों के साथ-साथ महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनावों में ‘वोटर लिस्ट में बड़े पैमाने पर धांधली’ की गई.
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को ‘गुमराह’ करने वाला बताया है.
आयोग का कहना है कि अगर राहुल गांधी वोट चोरी के अपने दावे को सही मानते हैं तो उन्हें शपथ पत्र पर हस्ताक्षर कर देना चाहिए और अगर वे ऐसा नहीं कर सकते तो उन्हें देश से माफी मांगनी चाहिए.
इससे पहले बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग पर सवाल उठाए थे.
उन्होंने दावा किया था कि बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के बाद सामने आई पहली ड्राफ्ट लिस्ट में उनका नाम नहीं है.
तेजस्वी का आरोप था कि मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया में जानबूझकर धांधली की जा रही है.
ऐसे में कई ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब आसान भाषा में बीबीसी ने तैयार किए हैं.
EPIC क्या है?
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EPIC का पूरा नाम ‘इलेक्टर्स फोटो आइडेंटी कार्ड’ है. आम बोलचाल की भाषा में इसे ही वोटर कार्ड कहते हैं.
इसे चुनाव आयोग जारी करता है. इसमें व्यक्ति का नाम, फोटो, लिंग, जन्म की तारीख़, आयु, पता और एक यूनिक EPIC नंबर होता है.
क्या दो EPIC नंबर हो सकते हैं?
कानूनी रूप से एक व्यक्ति के पास सिर्फ एक EPIC नंबर ही हो सकता है.
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के मुताबिक एक व्यक्ति का नाम सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र की मतदाता सूची में ही हो सकता है.
अक्सर व्यक्ति दूसरे शहर में शिफ्ट होने पर नया वोटर कार्ड बनवा लेता है.
कई बार ऐसा करते समय वह अपना पुराना EPIC नंबर कैंसिल नहीं करवाता. इस स्थिति में एक व्यक्ति के नाम पर दो EPIC नंबर जारी हो जाते हैं.
मतदाता सूची में अपना नाम कैसे चेक करें?
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चुनाव आयोग की नेशनल वोटर्स सर्विस पोर्टल पर जाकर कोई भी व्यक्ति अपना नाम मतदाता सूची में चेक कर सकता है.
ऐसा करने के लिए वेबसाइट पर तीन विकल्प दिए गए हैं. व्यक्ति अपने विवरण, EPIC नंबर या रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर से मतदाता सूची में अपना नाम देख सकता है.
इससे मतदाता अपने विधानसभा क्षेत्र से लेकर पोलिंग स्टेशन तक का पता कर सकता है. इस पोर्टल की मदद से कोई व्यक्ति यह भी पता कर सकता है कि कहीं उसके नाम से दो EPIC नंबर यानी दो वोटर कार्ड तो नहीं बने हैं.
एक से ज्यादा EPIC नंबर पाए जाने पर व्यक्ति को फॉर्म-7 भरकर अपने पुराने वोटर आईडी को डिलीट करवाना होता है.
इसके अलावा व्यक्ति बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) या जिला निर्वाचन कार्यालय में जाकर छपी हुई मतदाता सूची में भी अपना नाम चेक कर सकता है.
मतदाता सूची में नाम ना होने पर क्या करें?
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मतदाता सूची में अपना नाम शामिल करने के लिए व्यक्ति को चुनाव आयोग का फॉर्म-6 भरना पड़ता है.
पहली बार वोट बनवाने के लिए भी इसी फॉर्म को भरना पड़ता है. इस फॉर्म में व्यक्ति को अपना नाम, उम्र, जन्म की तारीख़, लिंग, पता, परिवार में पहले से रजिस्टर्ड वोटरों का विवरण और पासपोर्ट साइज फोटो की जरूरत होती है.
इस फॉर्म को वोटर हेल्पलाइन एप पर ऑनलाइन भर सकते हैं या फिर बीएलओ या जिला निर्वाचन कार्यालय में जमा कर सकते हैं.
क्या मतदाता सूची आपको मिल सकती है?
मतदाता सेवा पोर्टल पर जाकर कोई भी व्यक्ति मतदाता सूची को डाउनलोड कर सकता है, लेकिन यह सूची पीडीएफ में मिलती है. इसका डिजिटल डेटा प्राप्त नहीं होता.
अगर किसी व्यक्ति को अपना नाम मतदाता सूची में चेक करना है, तो उसे अपने विधानसभा क्षेत्र के साथ-साथ अपने पोलिंग स्टेशन का नंबर भी पता होना चाहिए, क्योंकि पोर्टल पर मतदाता सूची पोलिंग स्टेशन के हिसाब से आप डाउनलोड कर सकते हैं.
व्यक्ति को अपना नाम देखने के लिए पूरी पीडीएफ को एक-एक कर देखना होगा. अगर इसका डिजिटल डेटा मिल पाता, तो व्यक्ति सर्च की मदद से सिंगल क्लिक कर अपना नाम आसानी से देख सकता था.
डिजिटल मतदाता सूची क्यों नहीं मिलती?
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कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चुनाव आयोग से मांग की है कि वो मतदाता सूची का डिजिटल डेटा दे.
ऐसी ही मांग कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी 2019 में चुनाव आयोग से की थी. उन्होंने चुनाव आयोग से मशीन-रीडेबल फॉर्मेट में पूरी मतदाता सूची की मांग की थी, ताकि पार्टी मतदाता सूची का डिजिटल विश्लेषण कर पाए.
चुनाव आयोग का उस समय भी यही कहना था कि मशीन रीडेबल मतदाता सूची से मतदाताओं की निजता खतरे में पड़ सकती है.
कमलनाथ ने चुनाव आयोग के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था.
कोर्ट का मानना था कि चुनाव आयोग की नीति गोपनीयता और डेटा सुरक्षा के लिहाज़ से सही है.
वहीं एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स(एडीआर) के सह- संस्थापक जगदीप छोकर का कहना है, “जब पीडीएफ के रूप में मतदाता सूची देते वक्त मतदाताओं की निजता का उल्लंघन नहीं होता तो उसी सूची को डिजिटल फॉर्म में देने से उल्लंघन कैसे हो जाएगा? ये बात मुझे समझ नहीं आती.”
वे कहते हैं, इसमें प्राइवेसी की बात ही नहीं है. चुनाव आयोग बस देना नहीं चाहता.”
दूसरे देशों में क्या डिजिटल मतदाता सूची मिलती है?
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कनाडा चुनाव अधिनियम के अनुसार वहां का चुनाव आयोग सांसदों, रजिस्टर्ड राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को डिजिटल फॉर्म में मतदाता सूची उपलब्ध कराता है.
इस सूची में मतदाताओं के नाम, पते, और उनकी विशिष्ट पहचान संख्या शामिल होती है.
इसी तरह अमेरिका में कई राज्य मतदाता सूची को इलेक्ट्रॉनिक रूप से उपलब्ध कराते हैं.
ज्यादातर राज्यों में यह एक सार्वजनिक दस्तावेज है, जिसे पत्रकार, शोधकर्ता और राजनीतिक दल इस्तेमाल करते हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित