मंगलवार को करेंसी मार्केट में रुपये में अपनी चाल में थोड़ा सुधार किया, लेकिन कांग्रेस ने डॉलर के मुक़ाबले रुपये की कमज़ोरी पर मोदी सरकार को निशाने पर लिया. साथ ही सोशल मीडिया पर भी लोग इस मुद्दे पर चर्चा करते नज़र आए.
सोमवार को रुपया 86.62 के अब तक के सबसे निचले स्तर पर था जहां से कुछ संभलते हुए फ़िलहाल ये 86.50 के स्तर पर है. 6 जनवरी को एक डॉलर की कीमत 85 रुपये 68 पैसे थे, जो सोमवार यानी 13 जनवरी को 86 रुपये 62 पैसे पर पहुँच गई थी.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, “जैसे-जैसे रुपया गिरता जा रहा है, मोदी जी अपने ही खोदे गड्ढे में फंसते जा रहे हैं.”
वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि मोदी सरकार रुपये की लगातार गिरती कीमत को रोकने में असफल है.
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मल्लिकार्जुन खड़गे ने क्या कहा?
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, “नरेंद्र मोदी जी आपकी सरकार रुपये की लगातार गिरती कीमत को रोकने में असफल है. पहली बार रुपया 86.50 के पार पहुंच गया है. इस असफलता की कीमत भारत के लोगों को चुकानी पड़ रही है.”
मल्लिकार्जुन खड़गे ने दावा किया है कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 10 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया है.
उन्होंने कहा, “भारतीय शेयर बाज़ारों से विदेशी पूंजी की भारी निकासी ने नकारात्मकता को बढ़ाया है. रुपये की गिरावट के कारण बाजार में चार दिनों में निवेशकों को 24.69 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.”
“आयात लागत बढ़ने की वजह से तेल की कीमत बढ़ गई है और उसकी कीमत देश के गरीब लोग चुका रहे हैं. इसका असर हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ा है और वह भी कमजोर हुई है. उच्च मुद्रास्फीति की वजह से लोगों का जीवन और ज्यादा मुश्किल हो गया है.”
करेंसी एक्सचेंज वेबसाइट के मुताबिक फिलहाल रुपया एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 86.56 पर है. बीते 90 दिन में रुपया एक बार भी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 84 से नीचे नहीं गया है.
इन 90 दिनों में एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की औसत कीमत 85.96 रही है.
‘अपने ही खोदे गड्ढे में फंसते जा रहे मोदी’
जयराम रमेश ने नरेंद्र मोदी का पुराना वादा याद दिलाते हुए कहा, “जब मोदी जी ने प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभाला था तब वह 64 वर्ष के होने वाले थे और डॉलर के मुक़ाबले रुपया 58.58 पर था. उस समय वह रुपए को मज़बूत करने को लेकर बहुत कुछ बोला करते थे, उन्होंने इसके मूल्य में गिरावट को पूर्व पीएम की उम्र से भी जोड़ दिया था.”
“अब देखिए, मोदी जी इस वर्ष के अंत तक 75 के होने की तैयारी ही कर रहे हैं और रुपया पहले ही डॉलर के मुक़ाबले 86 पार चुका है. जैसे-जैसे रुपया गिरता जा रहा है, मोदी जी अपने ही खोदे गड्ढे में फंसते जा रहे हैं.”
सोशल मीडिया पर भी आई प्रतिक्रियाएं
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर आनंद प्रकाश नाम के यूजर ने लिखा, “रुपया कोई काग़ज़ का टुकड़ा नहीं है बल्कि देश की प्रतिष्ठा होती है. जैसे-जैसे रुपया गिरता है वैसे-वैसे देश की प्रतिष्ठा गिरती है. रुपया गिरने पर शोर मचाने वाले आज सारे के सारे बीजेपी वाले ख़ामोश हैं.”
तरुण नाम के यूजर ने रुपये की गिरती कीमत को पीएम मोदी की उम्र के साथ जोड़ा है. उन्होंने कहा, “2014 में रुपया 62 पर था और पीएम मोदी की उम्र 64 थी. 2025 में मोदी 74 साल के हैं और रुपया 86 पार हो गया है.”
कभी कमज़ोर रुपये पर मनमोहन को बनाया था निशाना
2014 में पीएम बनने से पहले नरेंद्र मोदी लगातार उस समय की कांग्रेस सरकार को रुपये की गिरती कीमत की वजह से निशाने पर लेते थे.
2013 में नरेंद्र मोदी ने एक भाषण में कहा था, “आज देखिए, रुपये की कीमत जिस तेज़ी से गिर रही है और कभी-कभी तो लगता है कि दिल्ली सरकार और रुपये के बीच में कंपीटीशन चल रहा है, किसकी आबरू तेज़ी से गिरेगी. देश जब आज़ाद हुआ तब एक रुपया एक डॉलर के बराबर था. जब अटलजी ने पहली बार सरकार बनाई, तब तक मामला पहुँच गया था 42 रुपये तक, जब अटलजी ने छोड़ा तो 44 रुपये पर पहुँच गया था, लेकिन इस सरकार में और अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) के कालखंड में ये 60 रुपये पर पहुँच गया है.”
डॉलर की मजबूती और ट्रंप फैक्टर
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के साथ डॉलर की धाक दुनियाभर की करेंसी पर और मजबूत हुई है.
ख़ासकर एशियाई देशों की करेंसी कई सालों के निचले स्तर पर पहुंच गई हैं. भारतीय रुपया ही नहीं, चीन की युआन, जापान की येन और दक्षिण कोरिया की मुद्रा वॉन में कमजोरी दर्ज की गई है.
करेंसी एक्सपर्ट का मानना है कि ट्रंप की कई देशों पर इंपोर्ट टैरिफ़ लगाने की मंशा को देखते हुए करेंसी बाज़ार सहमा हुआ है.
ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान के दौरान वादा किया था कि वह चीन समेत कई देशों पर टैरिफ़ लगा सकते हैं इसके अलावा टैक्स रेट में भी कटौती कर सकते हैं.
माना जा रहा है कि अगर ट्रंप अपने वादों पर अमल करते हैं तो अमेरिका में महंगाई बढ़ सकती है और लिहाजा फेडरल रिज़र्व ब्याज दरों को स्थिर रख सकता है या फिर इनमें बढ़ोतरी भी कर सकता है.
इसका मतलब ये हुआ है कि दुनियाभर के शेयर बाज़ारों में निवेश करने वाले अमेरिकी निवेशकों को अमेरीकी बाज़ार ज़्यादा सुरक्षित और आकर्षक बन जाएंगे.
रुपये की क्या है कहानी
एक जमाना था जब रुपया डॉलर को टक्कर दिया करता था. जब भारत 1947 में आज़ाद हुआ तो डॉलर और रुपये का दम बराबर का था. मतलब एक डॉलर बराबर एक रुपया. तब देश पर कोई कर्ज़ भी नहीं था. फिर जब 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना लागू हुई तो सरकार ने विदेशों से कर्ज लेना शुरू किया और फिर रुपये की साख भी लगातार कम होने लगी.
1975 तक आते-आते तो एक डॉलर की कीमत 8 रुपये हो गई और 1985 में डॉलर का भाव हो गया 12 रुपये.
1991 में नरसिम्हा राव के शासनकाल में भारत ने उदारीकरण की राह पकड़ी और रुपया भी धड़ाम गिरने लगा. दरअसल निर्यात को बढ़ावा देने के लिए रुपये का अवमूल्यन किया गया था.
अगले 10 साल में ही इसने 47-48 के भाव दिखा दिए और अब डॉलर की तुलना में ये गिरकर 86 के स्तर पर पहुंच चुका है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.