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- Author, अभिनव गोयल
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
रूस और अमेरिका, दोनों ही दशकों से भारत के लिए अहम रणनीतिक साझेदार रहे हैं.
मौजूदा वैश्विक हालात ने इस सवाल को और तीखा कर दिया है कि भारत के लिए किसके साथ रहना ज़्यादा फायदेमंद है?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने के चलते भारत पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत का टैरिफ़ लगा दिया है.
इस तरह यह नया टैरिफ़ पहले से लागू 25 प्रतिशत टैरिफ़ के साथ जुड़कर कुल 50 प्रतिशत हो जाएगा.
रूस के साथ भारत के रिश्ते पुराने और भरोसेमंद रहे हैं. रक्षा सौदों से लेकर ऊर्जा आपूर्ति तक रूस, भारत का अहम साझेदार रहा है.
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) के मुताबिक 2019 से 2023 के बीच रूस से होने वाला हथियार आयात 36 प्रतिशत का था.
वहींं हाल के सालों में रूस से आने वाले सस्ते कच्चे तेल ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ी राहत दी है.
दूसरी तरफ, अमेरिका भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है. साल 2024-25 में दोनों देशों के बीच 131.84 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ. वहीं, हाई-टेक डिफेंस इक्विपमेंट से लेकर क्लीन एनर्जी तक के क्षेत्र में अमेरिका पर भारत की निर्भरता बढ़ी है.
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि अमेरिका और रूस के बीच बढ़ते टकराव में भारत के लिए किसका साथ फ़ायदेमंद रहेगा?
आर्थिक नज़रिए से नफ़ा-नुकसान
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भारत अपनी कुल ज़रूरत का क़रीब 88 प्रतिशत तेल आयात करता है.
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़, वित्त वर्ष 2024-25 में भारत के कुल तेल आयात का लगभग 35 प्रतिशत हिस्सा रूस से आया, जबकि वित्त वर्ष 2018 में यह केवल 1.3 प्रतिशत ही था.
यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगाए. उसके बाद वह सस्ते दामों पर तेल बेच रहा है, जिससे भारत को बड़ा फ़ायदा पहुंच रहा है.
सर्च ग्रुप ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (जीटीआरआई) के फ़ाउंडर अजय श्रीवास्तव का मानना है कि रूस से सस्ता तेल खरीदकर भारत सालाना दस बिलियन डॉलर की बचत कर रहा है.
वे कहते हैं, “वहीं दूसरी तरफ भारत का अमेरिका के साथ करीब 41 बिलियन डॉलर का ट्रेड सरप्लस (निर्यात ज्यादा, आयात कम) है. हम करीब 87 बिलियन डॉलर का सामान अमेरिका को दे रहे हैं.”
अजय श्रीवास्तव कहते हैं, “अगर ट्रंप का 50 प्रतिशत टैरिफ़ बना रहता है तो भारत के निर्यात में 50 बिलियन डॉलर तक की गिरावट आ सकती है. रूस से तेल ना खरीदने की स्थिति में यह टैरिफ़ 25 प्रतिशत पर रहेगा और भारत का निर्यात 30 बिलियन तक गिरेगा.”
ऐसी ही बात ‘द इमेज इंडिया इंस्टीट्यूट’ के अध्यक्ष रॉबिंद्र सचदेव भी करते हैं. उनका मानना है, “अमेरिकी टैरिफ़ का एक प्रतिशत, करीब एक बिलियन के बराबर है. अगर 50 प्रतिशत टैरिफ ट्रंप लगाते हैं तो भारत को करीब 50 बिलियन डॉलर का नुकसान होगा.”
सचदेव कहते हैं, “ना सिर्फ पैसा बल्कि भारत में बड़े पैमाने पर नौकरियां भी जा सकती हैं. टैरिफ बढ़ने पर सामान अमेरिका कम जाएगा और भारत में व्यापार पर असर पड़ेगा और नौकरियां जाएंगी.”
उनका आकलन है कि अमेरिका अगर 50 प्रतिशत टैरिफ जारी रखता है तो भारत में 50 लाख नौकरियां तक जा सकती हैं.
भारत के साथ दोस्ती
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विदेश नीति के जानकारों का मानना है कि सिर्फ़ आर्थिक नज़रिए से दो देशों के बीच फैसले नहीं लिए जाते हैं, बल्कि जियो पॉलिटिक्स, कूटनीति और राष्ट्रीय हितों को भी तरजीह दी जाती है.
निकोर एसोसिएट्स की अर्थशास्त्री मिताली निकोर का मानना है कि भारत को ट्रंप के दबाव में आकर फ़ैसला नहीं लेना चाहिए.
वहीं अजय श्रीवास्तव का मानना है कि ट्रंप के दबाव में भारत, रूस से रिश्ते खराब नहीं कर सकता है.
वे कहते हैं, “इतिहास हमें बताता है कि संकट के समय में अमेरिका की बजाय रूस ने भारत की मदद की है.”
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में रूस ने भारत को सैन्य हथियार, डिप्लोमैटिक सपोर्ट के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष लिया था. वहीं अमेरिका ने खुले तौर पर पाकिस्तान का समर्थन किया और हिंद महासागर में भारत के ख़िलाफ़ अपना 7वां बेड़ा भेजा.
1998 में परमाणु परीक्षण के बाद रूस ने भारत को हथियार सप्लाई जारी रखी. ये ऐसा वक्त था जब पश्चिमी देश, भारत पर अलग-अलग पाबंदियां लग रहे थे.
अजय श्रीवास्तव कहते हैं, “भारत और अमेरिका के बीच में भरोसे का भी सवाल है. यह ज़रूरी नहीं है कि अगर भारत, रूस से तेल खरीदना बंद कर दे, तो अमेरिका अपने 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ़ को हटा देगा.”
वे कहते हैं, “साल 2024 में चीन ने रूस से 62.6 अरब डॉलर और भारत ने 52.7 अरब डॉलर का तेल खरीदा. बावजूद उसके चीन पर ऐसा टैरिफ़ नहीं लगाया गया, क्योंकि मुद्दा सिर्फ़ तेल का नहीं है.”
श्रीवास्तव कहते हैं, “ब्राजील पर लगे 50 प्रतिशत टैरिफ़ की एक वजह पूर्व राष्ट्रपति बोल्सोनारो के ख़िलाफ़ चल रहे मुकदमे हैं, तो दूसरी वजह एक्स (पूर्व में ट्विटर) भी है.”
वे कहते हैं, “ब्राजील एक्स को कंटेंट हटाने के लिए कहता है, जो अमेरिका को पसंद नहीं आता है. ट्रंप कोई भी शर्त लगा रहे हैं. इसलिए यह ज़रूरी नहीं है कि रूस से तेल ना खरीदने पर अमेरिका, भारत पर टैरिफ़ नहीं लगाएगा.”
मिताली निकोर का कहना है, “अभी रूसी तेल का मुद्दा है, कल को अमेरिका ब्रिक्स को लेकर भारत पर दबाव बना सकता है, परसों ट्रेड डील को शर्त बना सकता है. ऐसे में एकतरफा अमेरिका की शर्तें भारत नहीं मान सकता.”
‘संतुलन बनाने की ज़रूरत’
शुरू से भारत की विदेश नीति गुटनिरपेक्ष रही है. अंतरराष्ट्रीय राजनीति में दो या अधिक बड़े सैन्य या राजनीतिक गुटों में से भारत किसी एक का हिस्सा नहीं रहा है. भारत ने स्वतंत्र और निष्पक्ष रुख रखा है.
अजय श्रीवास्तव कहते हैं, “सवाल है कि रूस से कब तक भारत को सस्ता तेल मिलता रहेगा? तेल बहुत टेंपरेरी मामला है. डिफेंस के क्षेत्र में रूस और भारत पुराने दोस्त हैं. तेल ना खरीदने से ऐसा नहीं होगा कि हमारे रिश्ते बिगड़ जाएंगे. भारत को रूस और अमेरिका के बीच संतुलन बनाकर चलने की ज़रूरत है.”
ऐसी ही बात रॉबिंद्र सचदेव भी करते हैं. उनका मानना है कि ये टैरिफ़ युद्ध ज्यादा लंबा नहीं चलेगा.
सचदेव कहते हैं, “ना सिर्फ भारत के लिए अमेरिका ज़रूरी है, बल्कि अमेरिका भी भारत के बिना कुछ नहीं कर सकता. चीन उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती है, जिसके लिए भारत के साथ की ज़रूरत है.”
वे कहते हैं, “भारत का बाजार अमेरिका के लिए बहुत बड़ा है. 2030 में दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार को 500 बिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा हुआ है. अमेरिका की कॉर्पोरेट लॉबी भी टैरिफ़ के ख़िलाफ़ ट्रंप पर दबाव बना रही है.”
वहीं मिताली निकोर का कहना है, “ये मुश्किल समय है और इसमें भारत को मजबूत रहना होगा. अमेरिका में बहुत सारे रिपब्लिकन ट्रंप से सवाल कर रहे हैं कि वे क्या कर रहे हैं. वहां अंदरूनी तौर पर जो चल रहा है, वह भारत के लिए अच्छा है.”
वे कहती हैं, “अमेरिका में जो लोग भारत के पक्ष में बोल रहे हैं. उनके साथ हमें बैक चैनल बात करनी चाहिए, ताकि इस स्थिति को डिफ्यूज किया जा सके.”
भारत के लिए सीख
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भारत के कुल निर्यात में से करीब 18 प्रतिशत अमेरिका को जाता है.
मिताली निकोर कहती हैं, “भारत को डायवर्सिफिकेशन की रणनीति पर काम करना होगा. हम एक देश पर इतना भरोसा नहीं कर सकते. हमें निर्यात के लिए यूरोप, जापान, ऑस्ट्रेलिया और यूएई जैसे बड़े देशों के साथ व्यापारिक रिश्तों को मजबूत करना होगा.”
वे कहती हैं, “भारत सालाना करीब 40 प्रतिशत यानी 25 हजार करोड़ का झींगा, अमेरिका को भेजता है, लेकिन अब भारत ने यूके के साथ फ्री ट्रेड डील की है जिसके बाद भारत अपने झींगे यूके भेज पाएगा. वहां भी अच्छी खासी डिमांड है. इस तरह अपने सामान के लिए भारत दूसरे बाजार तलाश सकता है.”
उनका कहना है, “भारत को अपने ट्रेडर्स को मजबूत करने की ज़रूरत है, ताकि वे नए-नए बाजार खोज पाएं. सरकार को छोटे व्यापारियों का भी साथ देना चाहिए, ताकि वे मेक इन इंडिया को मजबूत कर पाएं, जिससे विदेशों पर हमारी निर्भरता कम होगी.”
हालांकि रॉबिंद्र सचदेव का मानना है कि अपने निर्यात बाजार को शिफ्ट करना आसान नहीं है.
वे कहते हैं, “भारत कुछ हद तक अपने निर्यात को डायवर्सिफाई कर सकता है, लेकिन वह इतना आसान नहीं है. अमेरिका एक बहुत बड़ा बाजार है, ऐसा बाजार दुनिया में खोजना मुश्किल काम है.”
उनका कहना है, “भारत को अंदरूनी तौर पर भी रिफॉर्म की ज़रूरत है. एक साल के लिए भारत को हफ्ते में छह दिन काम को जरूरी कर देना चाहिए. अगर हम ऐसा करते हैं तो हमारी जीडीपी में दो प्रतिशत तक का उछाल आ सकता है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित