साल 2024 ख़त्म होने वाला है. इस बीच गुरुवार को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मॉस्को में वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस की.
पुतिन ने अपने सालाना संवाददाता सम्मेलन में देश की अर्थव्यवस्था, जन्म दर में गिरावट, अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, रूस-यूक्रेन जंग और इसराइल-ग़ज़ा युद्ध को लेकर बात की.
लेकिन साढ़े चार घंटे तक चली इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में पुतिन का अधिकतर समय रूस-यूक्रेन के बीच चल रही लड़ाई के बारे में बात करने में गया.
रूस ने 24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर हमला किया था. अगर आने वाले दिनों में ये जंग न थमी, तो अगले साल फरवरी में इस लड़ाई को तीन साल हो जाएंगे. लेकिन पुतिन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि पिछले 12 महीने रूस के लिए किसी सफलता से कम नहीं हैं.
राष्ट्रपति पुतिन ने रूसी सैनिकों को ‘नायक’ करार देते हुए कहा कि उन्होंने देश की संप्रुभता की रक्षा की है. हालांकि उन्होंने कहा कि यूक्रेन के साथ जंग समाप्त करने के लिए वो समझौते के लिए तैयार हैं.
पुतिन ने कहा कि वो यूक्रेन के साथ बिना किसी शर्त के लिए बातचीत करने के लिए तैयार हैं, लेकिन फिर दोहराया कि यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की क़ानूनी तौर पर इसके लिए अभी सही शख्स नहीं हैं.
उन्होंने कहा कि अगर बातचीत के किसी समझौते पर हस्ताक्षर करने की बात हुई तो ज़ेलेन्स्की उस पर हस्ताक्षर नहीं कर सकेंगे, उन्हें फिर से चुनकर आना होगा.
हालांकि, पुतिन ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में पाँच महत्वपूर्ण मामलों की बात नहीं की. वो क्या मुद्दे थे, इस बारे में जानें.
1. एलेक्सी नवेलनी की मौत
इस साल 16 फरवरी को रूस के विपक्षी नेता और राष्ट्रपति पुतिन के घोर विरोधी माने जाने वाले एलेक्सी नवेलनी की उत्तरी रूस के तीन नंबर पीनल कॉलोनी (वो जगह जहां कैदियों को रखा जाता) में मौत हो गई थी.
नवेलनी के साथी उनकी मौत के कारणों की जांच कर रहे हैं, लेकिन रूस में कई लोगों को संदेह है कि उन्हें पुतिन के आदेश पर मारा गया है.
एलेक्सी नवेलनी को इससे पहले ज़हर देकर भी जान से मारने की कोशिश की गई थी. उन्हें घातक नर्व एजेंट नोविचोक दिया गया था, लेकिन वो बच गए थे.
ये ऐसे समय में हुआ था जब रूस और यूरोपीय देश कैदियों की अदला-बदली को लेकर बात कर रहे थे, जो आख़िरकार एक अगस्त को हुआ.
जब फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया, तो इस दौरान रूस के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ बोलने वालों को गिरफ़्तार किया जा रहा था.
नवेलनी को भी गिरफ्तार किया गया. नवेलनी लगातार रूस और यूक्रेन के बीच हुई जंग के ख़िलाफ़ बोल रहे थे. हालांकि जेल जाने के बाद वो खामोश हो गए ऐसा नहीं है, वो जेल से भी लगातार इसका विरोध करते रहे.
रूस में हज़ारों लोगों के लिए नवेलनी की मौत का दिन एक काला दिन था. जिस वक्त नवेलनी के मौत हुई, उस वक्त यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के युद्ध को दो साल पूरे होने जा रहे थे.
2. क्रोकस सिटी हॉल पर हमला
रूसी प्रशासन का सारा ध्यान यूक्रेन के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए सेना में पुरुषों की भर्ती और नए हथियार बनाने पर था, लेकिन रूस की नज़र मध्य एशिया और उत्तरी काकेशस के इलाक़े में कट्टरपंथी इस्लामिक भावनाओं के उभार पर नहीं गई.
अक्टूबर 2023 में मखाचकाला एयरपोर्ट पर भीड़ ने यहूदियों के ख़िलाफ़ नारे लगाए, जिसकी उम्मीद नहीं की गई थी. इसके बाद 22 मार्च, 2024 को रूस के मॉस्को में एक बड़ा आतंकी हमला हुआ.
क्रोकस सिटी हॉल पर हुए आतंकी हमले में 145 लोगों की हत्या कर दी गई और 551 लोग घायल हुए. ये दो दशक पहले बेसलान स्कूल बंधक कांड के बाद मॉस्को में पिछले 20 सालों में हुए सबसे घातक हमलों में से एक था.
इस हमले की ज़िम्मेदारी अफ़ग़ानिस्तान के विलायत खुरासन समूह ने ली, लेकिन पुतिन ने हमले के पीछे यूक्रेन का हाथ बताया.
रूस ने दावा किया कि हमलावर घटना को अंजाम देने के बाद यूक्रेन भागने की कोशिश में थे और उनके लिए सीमा पर कथित तौर पर रास्ता भी तैयार किया गया था.
लेकिन साल ख़त्म होने तक न तो रूसी सरकार इस बात का सबूत पेश कर पाई कि हमलावर सीमा पार कर जाने की कोशिश में थे और न ही इस बात का कि इस हमले में यूक्रेनी स्पेशल फोर्सेस का हाथ था.
इस बात की संभावना अधिक है कि इस हमले को अंजाम देने वाले बेलारूस जाने की कोशिश करते और फिर वहां से आगे जाते. लेकिन रूसी अधिकारी रूस के भीतर होने वाली घटनाओं के लिए यूक्रेन को दोषी बताते रहे.
पुतिन ने अपनी सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस घटना का जिक्र तक नहीं किया.
3. सीरिया में असद शासन का पतन
रूसी सेना की मदद से सीरिया में पूर्व राष्ट्रपति बशर अल-असद का शासन और अधिक नौ सालों के लिए कायम रहा. 2015 में जब सीरिया मुश्किल हालात से जूझ रहा था, रूस की सेना ने अल-असद की मदद की.
असद को सत्ता में बनाए रखने में मदद करने, रूस में बैन किए गए इस्लामिक स्टेट के ख़िलाफ़ जीत हासिल करने को रूस सालों से अपनी विदेश नीति की जीत के तौर पर दिखाता रहा है.
हालांकि, रूस ने यूक्रेन के साथ जारी जंग में अपने सभी संसाधन झोंक दिए हैं. इस कारण वो सीरिया या बशर अल-असद की मदद नहीं कर पाया.
इसका परिणाम ये हुआ है कि विद्रोही गुट हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) ने दस दिन में पूरे सीरिया पर कब्ज़ा कर लिया और बशर अल-असद को देश छोड़कर जाना पड़ा.
असद के परिवार को रूस ने शरण दी. अल-असद की सरकार का गिरना रूस के लिए अच्छी ख़बर नहीं है. उसके लिए ये इसलिए बुरा है क्योंकि उसे लताकिया के पास ह्मीमिम और टार्टस में रूसी सैन्य अड्डे को बंद करना पड़ सकता है.
अगर ऐसा होता है तो रूस को अफ्रीका से जुड़ी अपनी परियोजनाओं में कटौती करनी होगी और मध्य पूर्व में भी वो अब एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी नहीं रहेगा.
ये सैन्य अड्डे ख़ासकर अफ्रीका में मौजूद प्राइवेट आर्मी वैग्नर ग्रुप, और रूस की परियोजनाओं तक सामान लाने-ले जाने के लिए एक महत्वपूर्ण लॉजिस्टिक सेंटर की तरह काम करते थे.
व्लादिमीर पुतिन कई सालों से इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि वो रूस को फिर से “सुपरपावर” बनाने की कोशिश में हैं. लेकिन जो खूनी संघर्ष (यूक्रेन के साथ जंग) उन्होंने शुरू किया है, उसके बाद वो केवल क्षेत्रीय तौर पर एक महत्वपूर्ण मुल्क ही बन पाए हैं. रूस के पड़ोसियों तक ने उसके छेड़े युद्ध में ख़ास दिलचस्पी नहीं दिखाई.
लेकिन, अपनी सालाना प्रेंस कॉन्फ्रेंस में पुतिन ने इस बात को खारिज किया कि सीरिया में उसकी हार हुई है. उन्होंने कहा कि उनके मुताबिक़ रूस ने यहां अपना लक्ष्य हासिल किया है और यहां पर इस्लामिक स्टेट की सत्ता बनने से रोका है.
हालांकि, पुतिन ने ये माना सीरिया में हालात “पेचीदा” हैं. उन्होंने कहा कि बशर अल-असद से उनकी बात नहीं हुई है, लेकिन उनसे मिलने की उनकी योजना है.
पुतिन ने कहा कि सीरिया के नए शासकों से वो बात कर रहे हैं ताकि रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण उसके सैन्य बेस को भूमध्य सागर तट में रहने दिया जाए. उनका कहना है कि वो इसका इस्तेमाल मानवीय उद्देश्य के लिए करने के बारे में सोचेंगे.
4. ओरेश्निक मिसाइल
साल 2024 के ख़त्म होते-होते यूक्रेनी सेना और उसके सहयोगियों ने रूस की बनाई ‘लाल रेखा’ को क़रीब हर दिन पार करना शुरू दिया.
यूक्रेन युद्ध के शुरू होने के वक्त से रूस परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकी देता रहा था. लेकिन अब रूस ने अपने विरोधियों को धमकाने के लिए इसके अलावा कुछ और सोचा. उसने एक नए रूसी “सुपरवीपन” ओरेश्निक मिसाइल की बात की.
अब तक उसने केवल एक बार ओरेश्निक मिसाइल का इस्तेमाल किया है. इसी साल नवंबर में उसने एक यूक्रेनी शहर को इसका निशाना बनाया था. उसने दावा किया कि यूक्रेन के पश्चिमी मुल्कों की बनाई लंबी दूरी की मिसाइलों के इस्तेमाल के जवाब में उसने ओरेश्निक का इस्तेमाल किया.
इसके बाद से रूसी राष्ट्रपति पुतिन और रूसी प्रोपेगैंडा इस मिसाइल की तारीफ करते रहे हैं.
अपने हथियारों पर पुतिन का भरोसा इतना अधिक है कि उन्होंने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक ‘मुक़ाबले’ का भी सुझाव दिया. उन्होंने कहा कि रूस यूक्रेन पर ओरेश्निक मिसाइल दाग़े और यूक्रेनी उसे अमेरिका से लिए एयर डिफेन्स सिस्टम के ज़रिए रोक कर दिखाए.
ओरेश्निक के पहली बार इस्तेमाल के बाद से ही पुतिन अपनी हर प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसका ज़िक्र करते रहे हैं.
इसे पुतिन के थोड़े नरम तेवर के रूप में देखा जा सकता है. कहा जा सकता है कि रूस अब अपने दुश्मनों को परमाणु बम के अलावा किसी और चीज़ से भी धमका सकता है.
लेकिन दूसरी तरफ, जब ओरेश्निक से विरोधियों का डर ख़त्म हो जाए, तो पुतिन एक बार फिर परमाणु हथियारों से जुड़े बयानों पर लौट सकते हैं.
5. किम जोंग-उन से दोस्ती
2023 के आख़िर में रूस ने उत्तर कोरिया के साथ सैन्य सहयोग शुरू किया था. ये वही देश है जिस पर रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बाकी स्थायी सदस्यों के साथ मिलकर प्रतिबंध लगाए थे.
शुरुआत में, यूक्रेन के साथ युद्ध में गोला-बारूद और मिसाइलों की कमी की वजह से रूस ने इन्हें उत्तर कोरिया से लेना शुरू किया. इसके बदले रूस ने प्रतिबंधों को नज़रअंदाज़ करते हुए उत्तर कोरिया को तेल दिया.
2024 में पुतिन ने प्योंगयांग में उत्तर कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग-उन से मुलाकात की. इससे पहले, पुतिन 2000 में उत्तर कोरिया गए थे, तब वहां किम जोंग-उन के पिता किम जोंग-इल सत्ता में थे.
पश्चिमी मीडिया ने इस मुलाक़ात को “दो अलग-थलग पड़े देशों की मुलाक़ात” कहा.
दोनों देशों ने इस दौरान एक “रणनीतिक साझेदारी के” समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसमें ये कहा गया कि “अगर किसी देश पर युद्ध की स्थिति आई, तो दोनों एक-दूसरे को मदद करेंगे.” इसके कुछ महीनों बाद, उत्तर कोरिया के सैनिक रूस के लिए युद्ध के मोर्चे पर दिखने लगे.
नेटो ने अनुमान लगाया कि उनकी संख्या लगभग 12,000 के आसपास हो सकती है, और यूक्रेन के अधिकारियों ने भी इसी तरह का आकलन किया.
शुरुआत में रूस और उत्तर कोरिया ने ये मानने से इनकार किया कि उत्तर कोरियाई सैनिक यूक्रेन के ख़िलाफ़ लड़ाई में शामिल हैं. लेकिन अक्टूबर के अंत में पुतिन ने माना कि अब रूस को उत्तर कोरिया से गोला-बारूद के साथ-साथ सैनिक भी मिल रहे हैं. उन्होंने “रणनीतिक साझेदारी” पर हुए समझौते का जिक्र किया और कहा, “हम क्या और कैसे करते हैं, ये हमारा मामला है.”
उत्तर कोरियाई सैनिकों को कुर्स्क के उन इलाक़ों को वापस कब्ज़े में लेने की ज़िम्मेदारी दी गई, जिन पर अगस्त में यूक्रेनी सेना ने कब्ज़ा कर लिया था.
दिसंबर तक जो रिपोर्ट्स आईं उसके मुताबिक़, युद्ध में सैकड़ों उत्तर कोरियाई सैनिक मारे जा चुके हैं या घायल हो गए हैं. मारे गए इन सैनिकों को इस युद्ध के बारे में शायद कुछ महीने पहले तक पता भी नहीं था, क्योंकि उत्तर कोरिया के अख़बारों में इसके बारे में कुछ नहीं लिखा गया था.
नेटो मानता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में उत्तर कोरिया के शामिल होने से मामला और गंभीर हो गया है. रूस ने सीधे तौर पर तीसरे देश को इस लड़ाई में खींच लिया है.
बीबीसी के एक सूत्र का कहना है कि ये कदम सिर्फ युद्ध के मैदान में ही हालात को प्रभावित नहीं करेगा, बल्कि इसका असर रूस के रिश्तों पर भी पड़ सकता है.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय का मानना है कि रूस का एक और महत्वपूर्ण साझेदार, चीन, रूस और उत्तर कोरिया की बढ़ती नज़दीकियों से खुश नहीं है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित