यूक्रेन पर रूस के हमले को ढाई साल से भी ज्यादा का वक़्त बीत चुका है.
रूस के साथ जंग लड़ रहे यूक्रेनी सैनिकों से जब हमने बात की, तो उन्होंने अपनी नाराज़गी भी ज़ाहिर की और साथ ही गुस्सा भी.
उनमें से कुछ ने कहा, ”जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं, हालात बुरे होते जा रहे हैं.”
वहीं कुछ का कहना था, ”हमें हमारी मंजिल नहीं दिखती. हमारी ज़मीन यहां नहीं है.”
रूसी क्षेत्र कुर्स्क में बड़ा हमला करने के लगभग चार महीने बाद जंग लड़ रहे यूक्रेनी सैनिकों की बातचीत निराशाजनक हालात बयां करती है.
वे इस जंग को ठीक तरह से समझ नहीं पा रहे हैं. उन्हें डर हैं कि वो हार सकते हैं. कुर्स्क में तैनात कई सैनिकों के साथ हम टेलीग्राम के जरिए संपर्क में हैं. उनमें से एक ने तो हाल में ही जंग का मैदान छोड़ दिया है.
उनकी पहचान ज़ाहिर न करने पर हमने सहमति दी है.
इस खबर में लोगों के नाम बदल दिए गए हैं.
यूक्रेनी सैनिकों को किस बात की चिंता?
यूक्रेनी सैनिक बताते हैं कि रूसी सेना की लगातार बमबारी और बेहद ख़राब मौसम की वजह से वो ठीक से सो भी नहीं पा रहे हैं.
उन्हें 3000 किलोग्राम के ख़ौफ़नाक “ग्लाइड बमों” का सामना करना पड़ रहा है.
साथ ही रूसी सेनाएं धीरे-धीरे उनकी जमीन पर कब्ज़ा करती जा रही हैं जिसके कारण वो पीछे हटते जा रहे हैं.
पाव्लो ने 26 नवंबर को लिखा, ”ये चलता ही रहेगा, ये सिर्फ़ कुछ समय की बात है.”
पाव्लो ने बहुत ज़्यादा थकान, रोटेशन की कमी और उन यूनिटों के आने के बारे में बात की जो बड़े पैमाने पर अधेड़ उम्र के सैनिकों से बनी थीं.
उन्हें दूसरे मोर्चों से सीधे वहीं लाया गया था और आराम करने के लिए बहुत कम या बिल्कुल भी समय नहीं मिला था.
सैनिकों को अपने कमांडिंग अफ़सरों, आदेशों और उपकरणों की कमी के बारे में शिकायत करते सुनना असामान्य है. आम तौर पर सैनिक ऐसा मुश्किल हालात में ही करते हैं.
वैसे भी दुश्मन से भारी दबाव और सर्दी के मौसम आ जाने के बाद मोर्चे से बहुत अच्छी ख़बरें सुनना हैरान करने वाला ही होगा.
लेकिन जो संदेश हमें मिले हैं वो लगभग सभी समान रूप से हताशा वाले हैं. उनसे पता चलता है कि मोटिवेशन की समस्या है.
कुछ लोगों का ये भी सवाल है कि ऑपरेशन के शुरुआती लक्ष्यों में से एक यानी रूस के सैनिकों को यूक्रेन के पूर्वी मोर्चे से हटाने का काम पूरा हो पाया है नहीं.
वो कहते हैं कि अब आदेश ये हैं कि आप तब तक उस रूसी क्षेत्र के कटे हुए हिस्से को अपने कब्ज़े में रखें जब तक जनवरी के आखिर में नई नीतियों के साथ एक नए अमेरिकी राष्ट्रपति का व्हाइट हाउस में आगमन नहीं हो जाता.
पाव्लो कहते हैं,” हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती उस क्षेत्र को तब तक अपने कब्ज़े में रखना है, जब तक डोनाल्ड ट्रंप अपना काम शुरू करने के बाद इस पर बातचीत की पहल नहीं करते.
क्या चाहते हैं पुतिन?
नवंबर के आखिर में यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने संकेत दिया था कि दोनों पक्षों ने अमेरिकी प्रशासन में बदलाव को ध्यान में रखा है.
उन्होंने कहा था, ” मुझे पक्के तौर पर पता है पुतिन क्या चाहते हैं. वो चाहते हैं कि हमें 20 जनवरी से पहले वहां से हटा दें.”
”यह उनके लिए बेहद ज़रूरी है कि वो दिखाएं कि स्थिति उनके काबू में है. लेकिन स्थिति को नियंत्रित करना उनके हाथ में नहीं है.”
कुर्स्क में रूसी जवाबी हमलों को नाकामयाब करने के लिए यूक्रेन की मदद करने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने यूक्रेन को रूस के अंदर लंबी दूरी तक मार करने के हथियारों के इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है.
लेकिन ऐसा नहीं लगता कि यह सैनिकों के मनोबल बढ़ाने में बहुत कारगर हुआ.
पाव्लो ने कहा, “कोई भी नहीं चाहता है कि इस ठंड में बैठकर मिसाइलों का इंतज़ार करे. हम अभी यहीं रहते हैं और लड़ते हैं. और मिसाइलें कहीं और उड़ती हैं.”
एटीएसीएमएस और स्टॉर्म शैडो मिसाइलों (लंबी दूरी वाली मिसाइलें) का इस्तेमाल दूर-दराज की कमान चौकियों और हथियारों के भंडार पर असरदार, यहां तक कि विनाशकारी हमले के लिए हो सकता है. लेकिन ऐसी सफलताएं अग्रिम मोर्चों पर लड़ रहे सैनिकों पर असर नहीं डालतीं.
मायरोस्लाव कहते हैं, ” हम मिसाइलों के बारे में बात नहीं करते, हम बंकरों में अपने परिवारों और सैनिकों के रोटेशन के बारे में बात करते हैं.”
रूस की पूर्वी यूक्रेन में धीमी और लगातार बढ़त की वजह से यूक्रेनी सेना के लिए कुर्स्क में मजबूती से टिके रहना ज़रूरी है.
सिर्फ अक्तूबर में रूस लगभग 500 वर्ग किलोमीटर यूक्रेनी क्षेत्र पर कब्ज़ा करने में कामयाब रहा.
ये 2022 में शुरू हुए युद्ध के दिन से अब तक का सबसे बड़ा कब्ज़ा है.
दूसरी ओर, यूक्रेन ने अगस्त में कुर्स्क में जितने बड़े क्षेत्र पर कब्जा किया था उसका 40 फीसदी हिस्सा खो चुका है.
वादिम कहते हैं, ” अहम मुद्दा इलाके पर कब्जा करना नहीं बल्कि अपनी पकड़ बनाए रखना है. हम लोग इस चीज़ को लेकर थोड़ा जूझ रहे हैं.”
उत्तर कोरियाई सैनिकों से सामना हुआ?
नुकसान के बावजूद वादिम को लगता है कि कुर्स्क अभियान अभी भी ज़रूरी है.
वो कहते हैं, ” ये अभियान कुछ रूसी सैनिकों को ज़ापोरीज़िया और खारकीएव क्षेत्रों से हटाने में कामयाब रहा.”
लेकिन कुछ सैनिकों से हमने बात की. उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसा लगता है कि वह ग़लत जगह जा रहे हैं, रूस के हिस्से पर कब्ज़ा करने के बजाय यूक्रेन के पूर्वी मोर्चे पर रहना ज़्यादा ज़रूरी था.
पाव्लो कहते हैं, “हमारी जगह वहां होनी चाहिए थी ना कि यहां दूसरे की ज़मीन पर. हमें कुर्स्क के इन जंगलों की ज़रूरत नहीं हैं, जिसमें हमने बहुत सारे साथियों को खो दिया.”
हालांकि कई हफ़्तों से ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि रूसी जवाबी हमले में शामिल होने के लिए लगभग 10,000 उत्तर कोरियाई सैनिकों को कुर्स्क भेजा गया है.
बावजूद इसके जिन सैनिकों से हमने बात की उनका उत्तर कोरियाई सैनिकों से सामना नहीं हुआ था.
हमने जब वादिम से इन रिपोर्टों के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, “हमने कोरियाई सैनिकों के बारे में न देखा और न सुना है, हमें नहीं पता कि वो ज़िंदा हैं या मर चुके हैं.”
यूक्रेनी सेना ने कुछ रिकॉर्डिंग्स जारी की हैं,और दावा किया है कि ये उत्तर कोरियाई रेडियो संचार के संदेश हैं.
सैनिकों का कहना है कि उनसे कहा गया था कि वो कम से कम एक उत्तर कोरियाई कैदी को पकड़ें, अच्छा होगा कि दस्तावेजों के साथ.
उन्होंने उत्तर कोरियाई सैनिक को पकड़ने के लिए ऑफर का जिक्र किया. कहा गया है जो भी इसमें कामयाब होगा उसे पुरस्कार या अतिरिक्त छुट्टी दी जाएगी.
पाव्लो ने हंसी मजाक के अंदाज में कहा, ” कुर्स्क के अंधेरे जंगल में कोरियाई सैनिक को ढूंढना बहुत मुश्किल भरा काम है, खासतौर पर जब वो वहां हैं ही नहीं.”
पिछले विनाशकारी अभियानों में भाग लेने वाले सैनिक भी कुर्स्क में भी वही नाकामयाबी दोहराया जाता देख रहे हैं.
अकतूबर 2023 से लेकर इस साल के जुलाई तक यूक्रेनी सेना ने खेरसॉन से लगभग 40 किमी ऊपर की ओर क्रिन्की में एक छोटे से पुल पर कब्ज़ा करने की कोशिश की थी.
पुल के जिस हिस्से के बारे में ये माना गया था कि ये रूसी कब्ज़े वाले दक्षिणी क्षेत्र में जाने का प्रवेश द्वार बनेगा, आखिरकार वो भी हाथ से चला गया.
इस ऑपरेशन के लिए बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी. माना जाता है कि क़रीब 1000 यूक्रेनी सैनिकों की इसमें मौत हो गई या वो लापता हो गए,
कुछ ने इसे एक स्टंट माना, जो किसी और मोर्चे से ध्यान हटाने के लिए किया गया था.
यूक्रेनी सैनिकों को डर है कि कुर्स्क में भी वैसा ही कुछ ना हो जाए.
मायरोस्लाव नेवी अधिकारी हैं. वो क्रिन्की में तैनात थे और अब कुर्स्क में हैं. वो कहते हैं, ” यह अच्छा विचार है लेकिन इसको लागू करने का तरीक़ा खराब है.”
”मीडिया पर असर पड़ता है लेकिन लड़ाई में इसका कोई फायदा नहीं दिखता.”
सैन्य विश्लेषक इस बात पर जोर देते हैं कि सभी मुश्किलों के बाद भी कुर्स्क में जारी अभियान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.
यूक्रेनी सुरक्षा और सहयोग केंद्र के शेरी कुज़ान ने मुझे बताया, “यह एकमात्र क्षेत्र है जहां हम बढ़त बनाए हुए हैं.”
उन्होंने माना कि यूक्रेनी सेना कुर्स्क में बेहद ही मुश्किल परिस्थितियों का सामना कर रही थी. लेकिन ये भी कहा कि रूस उन्हें वहां से हटाने के लिए भारी संसाधन खर्च कर रहा है. इन संसाधनों का वो कहीं और इस्तेमाल करना चाहेगा.”
वो कहते हैं,” हम कुर्स्क मोर्चे को जितना बचाए रखेंगे कि उतना ही अच्छा होगा. ये काम सही उपकरण, तोपें, हिमर्स और लंबी दूरी की मिसाइलों के साथ करना होगा, जो उनकी पीछे की तरफ़ वार कर सकें.”
कीएव में, वरिष्ठ कमांडर कुर्स्क ऑपरेशन के पक्ष में हैं, उनका कहना है कि इसे अभी भी सैन्य और राजनीतिक लाभ मिल रहा है.
उनमें से एक ने हाल में ही कहा था कि यह ऐसी स्थिति है जो पुतिन को परेशान कर रही है, वह वहां भारी नुकसान से जूझ रहे हैं.
सवाल ये है कि यूक्रेनी सेना कुर्स्क में कितने समय तक टिक पाएगी. इसका उत्तर सीधा है, ” जब तक यह सैन्य नज़रिए से संभव हो.”
अनास्तासिया लेवचेंको की अतिरिक्त रिपोर्टिंग