सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म मामले पर सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी की है। 40 साल पुराने दुष्कर्म मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि दोष सिद्ध करने के लिए प्राइवेट पार्ट्स पर चोट के निशानों का होना जरूरी नहीं है। अन्य सबूतों को भी आधार बनाया जा सकता है। जस्टिस संदीप मेहता और प्रसन्ना बी वराले की पीठ इस मामले पर सुनवाई कर रहे थे।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 40 साल पुराने दुष्कर्म मामले पर सुनवाई करते हुए एक अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि दोष सिद्ध करने के लिए प्राइवेट पार्ट्स पर चोट के निशानों का होना जरूरी नहीं है। अन्य सबूतों को भी आधार बनाया जा सकता है।
कोर्ट ने 1984 में बीए की छात्रा से बलात्कार के लिए एक व्यक्ति की दोषसिद्धि को बरकरार रखा। व्यक्ति को पांच साल की सजा हुई है। एक ट्यूशन टीचर पर अपनी ही छात्रा के साथ दुष्कर्म करने का आरोप था। टीचर की ओर से दलील दी गई थी कि पीड़िता के प्राइवेट पार्ट्स पर कोई भी निशान नहीं था इसलिए दुष्कर्म साबित नहीं किया जा सकता है। उसका कहना था कि पीड़िता की मां ने उसपर गलत आरोप लगाए हैं।
कोर्ट ने आरोपी की दलीलों को किया खारिज
हालांकि, कोर्ट ने आरोपी की ओर से दी गई दलीलों को खारिज कर दिया। जस्टिस संदीप मेहता और प्रसन्ना बी वराले की पीठ इस मामले पर सुनवाई कर रहे थे। जस्टिस वराले ने कहा कि जरूरी नहीं है कि रेप के हर मामले में पीड़िता के शरीर परव चोट के निशान ही पाए जाएं। कोई भी केस परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इसलिए दुष्कर्म साबित करने के लिए पीड़िता के शरीर पर चोट के निशानों को जरूरी नहीं
न्यायालय ने यह भी कहा कि अभियोक्ता के बयान के अनुसार, आरोपी ने उसे जबरन बिस्तर पर धकेल दिया और उसके प्रतिरोध के बावजूद कपड़े के टुकड़े से उसका मुंह बंद कर दिया। इस प्रकार, इस पहलू पर विचार करते हुए, यह संभव है कि कोई बड़ी चोट के निशान नहीं थे।
क्या है पूरा मामला?
अपीलकर्ता लोक मल उर्फ लोकू ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के 22 जुलाई, 2010 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें आईपीसी की धारा 376 और 323 के तहत उसे दोषी ठहराने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा गया था। ट्रायल कोर्ट ने उसे बलात्कार के लिए पांच साल और चोट पहुंचाने के लिए छह महीने की अतिरिक्त सजा सुनाई थी।
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