- Author, शारदा उगरा
- पदनाम, वरिष्ठ खेल पत्रकार, बीबीसी हिंदी के लिए
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रोहित शर्मा सिडनी टेस्ट के दूसरे दिन की सुबह मेज़बान ब्रॉडकास्टर्स (प्रसारकों) से बात कर रहे थे.
उस दौरान रोहित यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि आख़िर बॉर्डर-गावसकर ट्रॉफ़ी के आखिरी दो टेस्ट मैचों के बीच तीन दिनों के दौरान क्या हुआ था.
रोहित शर्मा ने सिडनी टेस्ट से बाहर (ड्रॉप) किए जाने, आराम दिए जाने या ‘ऑप्टेड आउट’ यानी मैच का हिस्सा ना बनाए जाने की बात से इनकार किया.
रोहित ने इन सभी के बजाय अंग्रेज़ी के दूसरे शब्द का इस्तेमाल करते हुए कहा, ‘आई स्टुड डाउन’. हालांकि इस शब्द का मतलब भी ‘ऑप्टेड आउट’ ही है.
दरअसल रोहित का कहना था कि उन्होंने ख़ुद ही आख़िरी टेस्ट से बाहर रहना चुना.
हालांकि इंटरव्यू के आख़िर में उन्होंने यह भी कहा, “अरे भाई मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ.”
रोहित के फ़ैसले की चर्चा
भारतीय क्रिकेट टीम में इस समय दो कहानियां चल रही हैं. लेकिन शुरुआत भारतीय कप्तान रोहित शर्मा के उस फ़ैसले से जो इससे पहले किसी भी कप्तान ने नहीं लिया था.
यह फ़ैसला था, अपनी ख़राब फ़ॉर्म और टीम की ज़रूरत को स्वीकार करना और ख़ुद को प्लेइंग इलेवन से बाहर रखना.
इस पूरे मामले पर इंटरव्यू के दौरान रोहित शर्मा ने साफ़ तौर पर कहा, “मैंने कोच गौतम गंभीर और चयनकर्ताओं से कहा, मेरे बल्ले से रन नहीं बन रहे हैं, फॉर्म नहीं है और यह अहम मैच है.”
रोहित ने कहा, “आप फ़ॉर्म से बाहर चल रहे खिलाड़ियों को लेकर ज़्यादा तैयार नहीं हैं. ये सिंपल सी चीज़ मेरे दिमाग़ में चल रही थी. कोच और चयनकर्ताओं ने मेरे फ़ैसले का साथ दिया.”
रोहित ने कहा, “यह मेरे लिए एक कठिन फ़ैसला था. लेकिन सबकुछ सामने रखा जाए तो यह समझदारी थी. उस टाइम पर टीम को क्या चाहिए बस यही सोचा.”
ख़ुद को प्लेइंग इलेवन से बाहर रखना ऐसा क़दम था जो इससे पहले किसी भी भारतीय कप्तान ने नहीं उठाया था. रोहित ने जो भी किया है, वह भविष्य में फ़ॉर्म से जूझ रहे सभी भारतीय कप्तानों के लिए एक मिसाल बनेगा.
हालांकि इससे कप्तानों पर दबाव भी पड़ेगा क्योंकि इससे पहले फ़ॉर्म से जूझ रहे किसी भी कप्तान ने ख़ुद को टीम से बाहर करना तो दूर ऐसा प्रस्ताव रखा भी नहीं.
अपने यूट्यूब चैनल ‘आकाशवाणी’ पर भारत के पूर्व बल्लेबाज़ आकाश चोपड़ा ने इस बारे में बयान दिया.
उन्होंने कहा कि आम तौर पर फ़ॉर्म से जूझ रहे कप्तान अपनी टीम में कई दूसरे बदलाव करते हैं लेकिन वह हमेशा अपनी जगह को सुरक्षित रखते हैं. यह कप्तान का ‘वीटो पावर’ होता है.
दरअसल आम तौर पर बहुत कठोर चयनकर्ता ही बीच सिरीज़ में कप्तान को हटाते हैं. लेकिन भारतीय क्रिकेट में ऐसा नहीं होता है.
आकाश चोपड़ा ने कहा, “रोहित शर्मा के इस फ़ैसले की तारीफ़ की जानी चाहिए. साथ ही इसे स्वीकार किया जाना चाहिए क्योंकि यह एक बिना स्वार्थ के असाधारण फ़ैसला है.”
रोहित शर्मा से पहले किस कप्तान के ख़ुद को किया था बाहर?
रोहित शर्मा से पहले क्रिकेट इतिहास में ऐसा केवल एक बार ही हुआ है. 50 साल पहले साल 1974-75 की ऑस्ट्रेलिया में खेली गई एशेज सिरीज़ में इंग्लैंड के कप्तान ने ख़ुद को टीम से बाहर किया था.
उस समय इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ सिरीज़ में 0-2 से पिछड़ गई थी. इसके बाद इंग्लैंड के कप्तान माइक डेनेस ने ख़ुद को और उपकप्तान जॉन एडरिक को पद से हटा दिया था.
उन्होंने कप्तानी टोनी ग्रेग को सौंप दी थी. हालांकि इसके बाद भी इंग्लैंड वह सिरीज़ हार गई थी. माइक डेनिस की तरह ही रोहित के टीम से बाहर जाने के बावजूद भारत भी बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफ़ी 3-1 से हार गया है.
अब हम शनिवार को हुए इंटरव्यू के दूसरे पहलू पर आते हैं. रोहित ने साफ़ कर दिया था कि सिडनी टेस्ट से बाहर रहने का उनका फ़ैसला मौजूदा स्थिति और एक टेस्ट मैच के लिए था.
लेकिन इसे आने वाले समय में संभावित रिटायरमेंट के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. इस बॉर्डर-गावसकर ट्रॉफ़ी में रोहित शर्मा और विराट कोहली के टेस्ट कैरियर का संकेत मिलने की उम्मीद की जा रही थी.
लेकिन इस सिरीज़ के आख़िर में नतीजा यह निकला कि दोनों ही बल्लेबाज़, ख़राब बैटिंग की वजह से सिरीज़ में कोई असर नहीं छोड़ सके.
रोहित शर्मा रन नहीं बना पाए और विराट कोहली पर्थ में शतक लगाने के बाद बाक़ी के चार मैचों में बस अपना विकेट गंवाते रहे.
बॉर्डर-गावसकर ट्रॉफ़ी हारने का मतलब है कि भारत पहली बार वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के फ़ाइनल में नहीं खेलेगा.
भारत की अब इंग्लैंड के ख़िलाफ़ जून में पांच टेस्ट मैचों की सिरीज़ खेलेगा. उस समय तक रोहित शर्मा 38 साल के हो जाएंगे. विराट कोहली भी 37 बरस पूरे करने से केवल पांच महीने ही दूर रहेंगे.
पिछले पांच सालों के दौरान रोहित शर्मा ने 35 टेस्ट मैचों में 36 की औसत से रन बनाए हैं. वहीं विराट कोहली ने भी 39 टेस्ट मैचों में 30.72 की औसत से रन बना पाए हैं.
इन दोनों ही बल्लेबाज़ों की ख़राब फ़ॉर्म भारतीय बल्लेबाज़ी की कमज़ोरी को ही उजागर कर रही है.
अपने भविष्य को लेकर अब भी आशावान हैं रोहित शर्मा
भारत जब घर में न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ 0-3 से सिरीज़ हारा था, उस समय भी कप्तानी या बैटिंग में कोई चौंकाने वाला बदलाव नहीं हुआ था. टीम में हो रहे बदलावों को ही हार की वजह बताया गया था.
सिरीज़ हारने की एक वजह यह भी मानी गई कि नए बल्लेबाज़ों के साथ रोहित और कोहली जैसे पुराने बल्लेबाज़ पारी संभालने में नक़ाम रहे.
सिडनी टेस्ट तक भारत के वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप फ़ाइनल में पहुंचने की उम्मीद ऋषभ पंत और निचले क्रम के बल्लेबाज़ों के अप्रत्याशित प्रदर्शन पर टिकी थी.
बाकी के टॉप क्रिकेटरों की तरह रोहित शर्मा भी अपने भविष्य को लेकर आशावान हैं.
वह कहते हैं, हमने क्रिकेट में बहुत देखा है. हर सेकेंड, हर मिनट, हर दिन जीवन बदलता है. मुझे अपने आप पर भरोसा है कि चीज़ें बदल जाएंगी.
अब हम उस अजीब स्थिति की बात करते हैं, जिसका सामना हम करने जा रहे हैं. इस बात की बहुत अच्छी संभावना है कि रोहित आगामी व्हाइट-बॉल सिरीज़ में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं. जैसे कि चैंपियंस ट्रॉफ़ी और आईपीएल. इससे उनका टेस्ट करियर भी आगे बढ़ सकता है, जिसके लिए फ़िलहाल वे इच्छुक नज़र आ रहे हैं.
एक और बात रोहित शर्मा वर्ड कप जीतने वाले (2024 का टी-20 वर्ल्ड कप) कप्तान हैं. पिछली बार जब किसी चयनकर्ता ने दो टेस्ट सिरीज़ की नक़ामी के बाद कप्तान को हटाने की बात कही थी, तो चयनकर्ता को ही हटा दिया गया था.
इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया से 0-4, 0-4 से सिरीज़ हारने के बाद मोहिंदर अमरनाथ ने उस समय के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को हटाने की बात कही थी. लेकिन बदले में उन्हें ही चयनकर्ता के पद से हटा दिया गया था.
रोहित शर्मा को हमेशा एक शांत व्यक्ति के तौर पर देखा जाता है. जिन्हें ईमानदारी और ‘टीम फ़र्स्ट’ यानी टीम को पहले रखने की भावना के लिए सराहा जाता है.
लेकिन यह जानते हुए कि उनका करियर अब अंत की तरफ़ बढ़ रहा है और रन ना बना पाना शायद उन पर दबाव बढ़ा रहा है.
इसका असर उनके फ़ैसलों पर भी पड़ा है. जैसे कि बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफ़ी के एडिलेड में गुलाबी गेंद से खेले गए टेस्ट में निचले क्रम में बल्लेबाज़ी करना. इसके बाद मेलबर्न में फ़िर से ओपनिंग करना. उनके इस फ़ैसले की वजह से मेलबर्न टेस्ट में शुभमन गिल को बाहर बैठना पड़ा था.
रोहित ने कप्तानी के सवाल पर क्या कहा
शनिवार को दिए गए इस इंटरव्यू में रोहित शर्मा से जसप्रीत बुमराह के अलावा कप्तान के किसी और उम्मीदवार के बारे में पूछा गया.
रोहित ने इसका जवाब दिया, “यह मुश्किल है, बहुत मुश्किल है. बहुत से लड़के हैं. लेकिन मैं चाहता हूं कि वो लड़के पहले क्रिकेट की अहमियत को समझें. अभी नए लड़के हैं, मैं जानता हूं कि उनको ज़िम्मेदारी देनी चाहिए. लेकिन उनको इसे कमाना होगा.”
रोहित ने कहा, “नए लड़कों को अगले कुछ सालों तक थोड़ा मुश्किल क्रिकेट खेलने देना चाहिए. मैं हूं अभी, बुमराह हैं. उसके पहले विराट कोहली थे, उसके पहले एम एस धोनी थे. सबने इसे हासिल किया है. किसी को प्लेट में सजा कर कुछ नहीं मिला है. तो ऐसे किसी को मिलना नहीं चाहिए.”
रोहित ने अपने बयान में कहा, “लड़कों को मेहनत करने दो. उनमें काफ़ी टैलेंट है, लेकिन साथ ही भारत का कप्तान बनना कोई मामूली बात नहीं. दबाव तो है लेकिन बहुत बड़ा सम्मान है. हमारा जो इतिहास रहा है और जिस तरह से हम क्रिकेट खेल रहे हैं कंधों पर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है.”
यह शब्द किसी टेस्ट कप्तान के नहीं है, जिसे अपनी टीम के युवा साथियों पर भरोसा है. बुमराह को छोड़ दें तो यह भी साफ़ है कि भारतीय टीम में पुराने से लेकर नए तक कप्तान के तौर पर कोई नहीं है.
भारत बदलाव से गुज़र रही टेस्ट टीम नहीं है. बल्कि यह एक दिशाहीन टेस्ट टीम है. लेकिन कम से कम उनके कप्तान ऐसा नहीं सोचते हैं- यह एक अच्छा संकेत नहीं है.
ज़्यादातर क्रिकेट में असफ़लता के बाद एक चक्र शुरू हो जाता है- पहले कोच जाता है, फिर कप्तान जाता है और फिर कोच जाता है.
सिवाय इसके कि आज भारतीय क्रिकेट टीम अजीब स्थिति में है. टीम का एक ऐसा कप्तान है जो फ़ॉर्म से जूझ रहा है और जिसे लगता है उसके पास अभी भी बहुत कुछ बचा है.
टीम में एक ऐसा कोच है जिसका साढ़े तीन साल का कार्यकाल दिसंबर 2027 तक है. टीम का बल्लेबाज़ी क्रम खोखला हो गया है. टीम की गेंदबाज़ी में भी बुमराह के बिना कोई धार नहीं रह गई है.
रोहित शर्मा और विराट कोहली अब अपने करियर के साथ क्या कर सकते हैं?
इसके लिए यह देखना होगा कि अजित आगरकर के नेतृत्व वाले चयनकर्ता क्या जल्द ही या अगली वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप तक उनका विकल्प खोज पाते हैं या नहीं.
(ये लेखक की निजी राय है)
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.