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हिमालयी क्षेत्र लद्दाख की ऊँची पहाड़ियों की कई चोटियों पर अभी बर्फ़ जमी दिख रही है. हम लेह में जिस जगह रुके थे, वहाँ की खिड़कियों से ये बर्फ़ीली चोटियाँ साफ़ नज़र आ रही थीं.
लेह में पिछले कई दिनों से आम ज़िंदगी भी जम सी गई थी.
जिन सड़कों पर आम लोगों और पर्यटकों की चहल-पहल रहती थी, वहाँ 30 सितंबर तक सन्नाटा पसरा था. बाज़ार बंद थे. हालाँकि, अब बाज़ार खुल रहे हैं. ज़िंदगी धीरे-धीरे पटरी पर आने की कोशिश में है. मोबाइल इंटरनेट सेवाएँ अब भी बंद हैं.
लेह में चौबीस सितंबर को लोगों के हुजूम ने सड़कों पर प्रदर्शन किया. प्रदर्शन करने वालों में युवाओं की बड़ी तादाद थी. यह प्रदर्शन देखते-देखते हिंसक हो गया था.
सरकारी इमारतों को नुक़सान पहुँचाया गया. भारतीय जनता पार्टी के दफ़्तर में आग लगाने की कोशिश की गई. यहाँ तोड़फोड़ की गई.
लद्दाख के लोग आंदोलन क्यों कर रहे थे
साल 2019 में भारत सरकार ने जम्मू -कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा ख़त्म कर दिया था. साथ ही इसे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बाँट कर अलग -अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया था. लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने से वहाँ के लोग उस वक़्त बेहद ख़ुश थे.
हालाँकि, कुछ दिनों बाद ही लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची में शामिल करने की माँग उठने लगी.
इस सिलसिले में यहाँ के लोग कई बार अनशन पर बैठे. शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया. इस बार भी लेह में मशहूर पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक और एपेक्स बॉडी लेह का अनशन चल रहा था. यह अनशन 35 दिनों तक चलना था.
एपेक्स बॉडी लेह की युवा शाखाओं ने 24 सितंबर को लेह बंद करने का एलान किया था. बंद के दिन अनशन स्थल पर बड़ी तादाद में लोग जमा हो गए. बीते पाँच सालों में ऐसा पहली बार हुआ, जब प्रदर्शनकारी हिंसक हो गए.
इसके तुरंत बाद सोनम वांगचुक ने अनशन ख़त्म कर दिया. दो दिन बाद ही उन्हें नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (एनएसए) के तहत गिरफ़्तार कर जोधपुर जेल भेज दिया गया.
अनशन और हिंसा की जगह का हाल
अनशन लेह के एक पार्क में हो रहा था. हम 26 सितंबर0 को इस इलाक़े में थे. वहाँ कुर्सियाँ बिखरी पड़ी थीं. मोटरसाइकिलें और स्कूटी उलटी पड़ी दिखीं. बिस्तर और दूसरी चीज़ें तहस-नहस थीं. अनशन की जगह से कुछ ही दूरी पर वे इलाक़े हैं, जहाँ हिंसा हुई थी.
लेह-मनाली हाईवे पर दाईं और बाईं तरफ़ लेह हिल काउंसिल और बीजेपी का लेह दफ़्तर है. दोनों ही इमारतों को प्रदर्शनकारियों ने नुक़सान पहुँचाया है. बीजेपी दफ़्तर के कुछ हिस्सों में आग लगाई गई है. शीशे तोड़ दिए गए हैं. दोनों ही दफ़्तरों के बाहर और अंदर पुलिस और सुरक्षाबल तैनात हैं.
बीजेपी दफ्तर के पास केंद्रीय रिज़र्व सुरक्षा बल (सीआरपीएफ़) का एक जला हुआ ट्रक दिखा. दूसरी जली हुई चीज़ें राख बनकर सड़क पर बिखरी पड़ी थीं.
हिंसा के बाद लेह में सुरक्षा काफ़ी सख्त हैं. सड़कों और गली-कूचों को कँटीले तारों से बंद किया गया है. लोगों के चलने- फिरने पर पाबंदी लगाई गई है.
सुरक्षा के लिए लद्दाख पुलिस के अलावा सीआरपीएफ़ के जवानों को भी तैनात किया गया है.
पर्यटकों का क्या कहना है
लेह एक ख़ूबसूरत पर्यटक स्थल है. यहाँ देसी-विदेशी पर्यटकों की काफ़ी भीड़ रहती है. लेह शहर में हमें जर्मनी और इंग्लैंड के दो पर्यटक मिले. वे लेह के बदले हालात से चिंतित नज़र आए.
जर्मनी के पर्यटक ने बताया कि उन्हें वापस जाना था लेकिन सरकारी दफ़्तर बंद होने की वजह से वह अपने कागज़ी काम नहीं करवा पा रहे हैं.
वहीं, इंग्लैंड से आई पर्यटक ने बताया कि उन्हें लेह की इस हालत से काफ़ी तकलीफ़ हुई है.
एपेक्स बॉडी लेह का क्या कहना है
लोगों की माँगों के सिलसिले में केंद्र सरकार और एपेक्स बॉडी लेह के बीच बीते कई सालों से बातचीत का सिलसिला चल रहा है. कई बार ये बातचीत बंद भी हो चुकी है. इस बार अनशन शुरू होने के बाद केंद्र सरकार फिर से बातचीत शुरू करने के लिए तैयार हो गई थी.
केंद्र सरकार ने छह अक्तूबर को एपेक्स बॉडी लेह और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के साथ बातचीत की तारीख़ भी तय की थी. हालाँकि, अब एपेक्स बॉडी लेह ने फिलहाल बातचीत से दूर रहने का फ़ैसला किया है.
हम एपेक्स बॉडी लेह के को-चेयरपर्सन चेरिंग दोरजे लकरुक से उनके दफ़्तर में मिले. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने आंदोलन के हिंसक होने के सवाल पर अपनी राय दी.
वह बताते हैं, “सोनम वांगचुक के साथ सात या आठ लोगों ने अनशन शुरू किया था. उसके बाद बहुत सारे लोग जुड़ते गए. यह सिलसिला चल रहा था. हमारे युवा संगठनों ने 24 सितंबर को बंद का कॉल दिया था. ये हमारे साथ जुड़े हैं.”
”दूसरे दिन जब बंद होना था तो उम्मीद से बहुत ज़्यादा लोग हमारे अनशन स्थल पर आए. मेरे अंदाज़े के मुताबिक़ क़रीब साढ़े सात हज़ार लोग अनशन स्थल पर आए थे. वे इतनी बड़ी तादाद में थे कि बेक़ाबू हो गए और किसी की माने बगैर वह बाहर चले गए. शुरू में उन्होंने लेह काउंसिल के दफ़्तर पर पथराव करना शुरू किया. युवा काफी भड़क गए थे. वे गोली से डरने वाले नहीं थे.”
चेरिंग दोरजे लकरुक ने बीबीसी को बताया कि वह इस माहौल में बातचीत नहीं कर सकते हैं. उनका कहना था कि जब तक सभी गिरफ्तार लोगों को छोड़ा नहीं जाएगा तब तक वह बातचीत नहीं करेंगे.
क्या कहते हैं युवा
युवाओं से जब हमने बात की तो उनकी नाराज़गी साफ़ तौर पर ज़ाहिर थी.
जिस दिन मृतकों का अंतिम संस्कार होना था, हमें तीन लड़कियाँ मिलीं. वे सौ किलोमीटर दूर से इन्हें श्रद्धांजलि देने आई थीं. उनकी आँखें नम थीं.
इनमें से एक नोर्दोन शुनु, महिला कार्यकर्ता हैं. उन्होंने बीबीसी को बताया कि लेह में 24 सितंबर को जो कुछ भी हुआ, वह किसी के भड़कावे में आकर नहीं हुआ.
उनका कहना था, “ये सब अपने आप हुआ. जैसा कि सोनम वांगचुक बोल रहे थे, ये सब ख़ुद-ब-ख़ुद आ गए. इनको किसी ने भड़काया नहीं था. उन्हें यह लगा कि कुछ नहीं हो रहा है. हाथ से सब कुछ जा रहा है.”
”मैं हमेशा बोलती हूँ कि हिंसा नहीं होनी चाहिए लेकिन बदक़िस्मती से यह हो गई. भीड़ बेक़ाबू हो गई और बच्चों ने अपनी जान दे दी. बच्चों के बीच में बेरोज़गारी बहुत ज़्यादा है.”
वह कहती हैं कि बेरोज़गारी की वजह से ही प्रदर्शन की यह शक्ल सामने आई.
लद्दाख रिसर्च फ़ोरम के सदस्य डॉक्टर मुतासिफ़ हुसैन लद्दाखी अभी अस्थाई तौर पर काम कर रहे हैं. वह बताते हैं कि क्यों युवा नाराज़ हैं.
उनका कहना था, “देखिए, छह साल से लोग शांति के साथ माँग कर रहे हैं. कितना शांति से माँगें. मैं नहीं कह रहा हूँ कि हिंसा होनी चाहिए. लेकिन भीड़ का मिजाज़ ही वैसा होता है. इसलिए भीड़ को संवेदनशील तरीक़े से हैंडल करना आना चाहिए.”
”इनके पास भीड़ को हैंडल करने का साधन भी था और उपाय भी. इंटेलिजेंस भी रहा ही होगा. तभी तो सीआरपीएफ़ की बटालियन मँगवाकर पहले ही रखी गई थी.”
उनका आरोप है, ”जो कुछ भी हुआ, वह सब सरासर प्रशासन की कोताही है.”
लद्दाख बौद्ध संघ महिला शाखा की जनरल सेक्रेटरी दिस्कित अंगमो ने बीबीसी को बताया कि जो कुछ हमें लेह की सड़कों पर देखने को मिला, वह सब कुछ पहले से पनप रहा था.
वह कहती हैं, “यह बताया जा रहा है और न्यूज़ में भी आ रहा है कि भीड़ को भाषणों से भड़काया गया. मैं पूछना चाहती हूँ कि एक दिन का भाषण कैसे किसी को भड़का सकता है. मेरे हिसाब से ऐसा भड़काने वाला भाषण किसी ने नहीं दिया जो इतना ताक़तवर हो कि एक दिन में सब कुछ बदल जाता.”
उनके मुताबिक़, ”यहाँ के बच्चे भड़कने वाले नहीं हैं. मुझे लगता है कि जितने साल सरकार ने देरी कर दी, उस देरी ने उनको भड़काया. वह लावा फट गया. अगर युवाओं को कोई देश सही दिशा में नहीं मोड़ सकता है तो ऐसा कभी न कभी होना ही है. इसमें हैरान होने की बात ही नहीं है.”
लेह में हमें ऐसे कई आम लोग भी मिले, जिन्होंने कैमरे के सामने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.
प्रशासन और पुलिस का क्या कहना है
लेह में हिंसा और मौतों के बाद लद्दाख के उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता ने आरोप लगाया था कि लोगों को भड़काया गया. उन्होंने इस हिंसा के पीछे साज़िश की बात भी की थी.
वहीं, पुलिस का कहना था कि भीड़ बेक़ाबू होकर सरकारी इमारतों पर एक के बाद एक हमले और आगज़नी करती रही. इसकी वजह से पूरे लेह शहर के लिए बड़ा ख़तरा हो गया था.
लेह के डीजीपी डॉ. एसडी सिंह जामवाल ने 27 सितंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस घटना के बारे में विस्तार से बताया. डीजीपी का कहना था कि सुरक्षाकर्मियों ने आत्मरक्षा में फ़ायरिंग की थीं.
दूसरी ओर, एपेक्स बॉडी लेह ने पुलिस के आरोपों को ख़ारिज किया है.
एपेक्स बॉडी लेह के चेरिंग दोरजे लकरुक ने बताया कि वह इस आंदोलन को और भी तेज़ करेंगे.
उनका यह भी कहना था कि उन्हें डराने और दबाने की कोशिश की जा रही है लेकिन वह डरने वालों में से नहीं हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.