• Sat. May 31st, 2025

24×7 Live News

Apdin News

लेख: बांग्लादेश में क्यों भिड़े मोहम्मद यूनुस और आर्मी? उलझा विवाद, खुलकर सामने आ रहे मतभेद – tension between army and government over humanitarian corridor amid rohingya crisis in bangladesh

Byadmin

May 30, 2025


शान्तेष कुमार सिंह, नई दिल्ली: बांग्लादेश और म्यांमार के बीच सीमा विवाद का असर पूरे दक्षिण एशिया में देखा जा सकता है। म्यांमार के रखाइन प्रांत में चल रहे गृहयुद्ध, अराकान आर्मी के बढ़ते प्रभाव और रोहिंग्या शरणार्थी संकट ने बांग्लादेश को ऐसे हालात में धकेल दिया है, जहां सरकार, सेना और जनता के बीच मतभेद सामने आ रहे हैं। बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के गठन के बाद यह विवाद और भी उलझ गया है। सरकार और सेना के बीच तनाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है, खासकर म्यांमार सीमा पर एक मानवीय गलियारा बनाने के प्रस्ताव को लेकर।

UN का प्रस्ताव: यह प्रस्ताव अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के दबाव में आगे बढ़ाया जा रहा है। UN प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने मार्च 2025 में ढाका की यात्रा के दौरान रोहिंग्याओं की वापसी के लिए इस गलियारे का प्रस्ताव रखा था। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार इसी योजना को आगे बढ़ा रही है। बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार मोहम्मद तौहीद हुसैन ने कहा है कि इस गलियारे का इस्तेमाल रखाइन में मानवीय सहायता भेजने के साथ-साथ बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में बड़े पैमाने पर बसे रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने के लिए भी किया जाएगा। हालांकि, 13 लाख रोहिंग्याओं ने 2017 से लगातार रखाइन लौटने से इनकार किया है।

बांग्लादेशी सेना का रुख: सेना प्रमुख जनरल वकार उज-जमान ने प्रस्तावित कॉरिडोर खूनी बताया है। उन्होंने कहा है कि इससे देश की सुरक्षा और सीमांत इलाकों में अस्थिरता पैदा हो सकती है। सेना ऐसे किसी कदम का हिस्सा नहीं बनेगी, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता के लिए खतरा हो।

अपर्याप्त सहायता: म्यांमार में हिंसा और अत्याचार के बाद रोहिंग्या मुसलमानों ने बांग्लादेश में शरण ली है। उनकी आबादी बांग्लादेश के संसाधनों और सामाजिक संतुलन पर भारी दबाव डाल रही है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, इन शरणार्थियों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से पर्याप्त सहायता नहीं मिल रही। पिछले साल सबसे ज्यादा सहायता अमेरिका ने की थी, 301 मिलियन डॉलर, पर ट्रंप इसमें कटौती की बात कह रहे हैं।

सीमा पर टकराव: स्थानीय समुदाय और शरणार्थियों के बीच संसाधनों को लेकर तनाव बढ़ रहा है। म्यांमार बांग्लादेश सीमा पर हिंसा के बाद हजारों नए शरणार्थियों ने बांग्लादेश में प्रवेश किया है, जिससे स्थिति विस्फोटक हो गई है। अराकान आर्मी और म्यांमार सेना के बीच चल रहा संघर्ष बांग्लादेश की सुरक्षा के लिए खतरा बन गया है। कॉरिडोर बनने से रोहिंग्याओं का आना और आसान हो जाएगा।

भारत पर असर: म्यांमार और बांग्लादेश के साथ सीमा साझा करने वाले भारत पर भी इस विवाद का असर पड़ रहा। पूर्वोत्तर सीमा पर अवैध घुसपैठ, हथियार और ड्रग तस्करी का खतरा बढ़ गया है। भारत के लिए सित्तवे बंदरगाह का बहुत महत्व है। म्यांमार में भारत की प्रमुख कनेक्टिविटी पहल, कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रॉजेक्ट (KMTTP) का उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ सड़क और समुद्री संपर्क को बढ़ाना है।

घुसपैठियों की समस्या: भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों की घुसपैठ भी आंतरिक सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है। हैरत की बात है कि बांग्लादेश की सरकार और सेना, दोनों ही अवैध बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं को वापस भेजे जाने पर आपत्ति जता रहे हैं। नई दिल्ली का स्पष्ट कहना है कि सभी घुसपैठिये देश की सुरक्षा और जनसांख्यिकीय संतुलन के लिए खतरा हैं और इन्हें इनके मूल देश में भेजा ही जाएगा।

संदेह की वजह: चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश की तिकड़ी भारत को घेरने की तैयारी में लगी है। बांग्लादेश का पाकिस्तान के साथ रिश्ते आगे बढ़ाना और चीन को इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए आमंत्रित करना भारत के लिए चिंता की बात है। दूसरे मुद्दों पर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और वहां की सेना में भले मतभेद हों, पर भारत को लेकर उनकी रणनीति एक है। ऐसे में अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र का रोहिंग्याओं के लिए कॉरिडोर बनाने का मुद्दा उठाना संदेह पैदा करता है।

नीतियों में बदलाव: रोहिंग्या शरणार्थी संकट से दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग की जरूरत और भी बढ़ गई है। SAARC और BIMSTEC जैसे संगठनों को म्यांमार संकट पर संयुक्त रणनीति बनानी चाहिए। रोहिंग्याओं की सुरक्षित वापसी के लिए म्यांमार में मानवाधिकार सुनिश्चित करना अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्राथमिकता हो। आतंकवाद निरोधक उपायों को भी बढ़ाना होगा। इस संकट का समाधान केवल सैन्य बल या एकतरफा नीतियों से नहीं निकल सकता। म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली, रोहिंग्याओं के अधिकारों की रक्षा और क्षेत्रीय सहयोग को प्राथमिकता देनी होगी। बांग्लादेश को भी अपनी विदेश नीति में संतुलन लाने की जरूरत है। वरना, यह विवाद दक्षिण एशिया को एक लंबे अराजकतावादी दौर में धकेल देगा।
(लेखक JNU के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में प्रोफेसर हैं)

By admin