राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद वक्फ संशोधन विधेयक 2025 अब कानून बन चुका है। इसमें वक्फ संपत्तियों की पारदर्शिता सर्वेक्षण और दुरुपयोग रोकने समेत कई अहम अहम बदलाव किए गए हैं। संशोधित कानून को लागू करने की अहम जिम्मेदारी राज्यों की है क्योंकि जमीन राज्यों का विषय है। राज्य सरकारें कानून की मूल भावना के साथ इसके प्रावधानों को कितने प्रभावी तरीके से लागू कर पाएंगी?
जागरण टीम, नई दिल्ली। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 अब कानून बन गया है। वक्फ के वास्तविक उद्देश्य और जमीनी हकीकत को लेकर वक्फ बोर्ड पर लंबे समय से सवाल उठ रहे थे। वक्फ कानून के तहत बोर्ड को मिले असीमित अधिकारों का नतीजा था कि वक्फ को लेकर ऐसे दावे भी सामने आए, जहां पूरे गांव और सैकड़ों वर्ष पुराने मंदिर को वक्फ संपत्ति बता दिया गया।
वक्फ कानून की खामियों को दूर करने के बाद सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती होगी कि नए प्रावधान को प्रभावी तरीके से लागू किया जाए, जिससे वक्फ संपत्तियों से उसकी वर्तमान कीमतों के हिसाब से आय सुनिश्चित हो सके और राशि गरीब मुसलमानों,विधवा महिलाओं और अनाथ बच्चों के कल्याण पर खर्च हो।
संशोधित कानून को लागू करने की अहम जिम्मेदारी राज्यों की है क्योंकि जमीन राज्यों का विषय है। राज्य सरकारें कानून की मूल भावना के साथ इसके प्रावधानों को कितने प्रभावी तरीके से लागू कर पाएंगी, इसकी पड़ताल अहम मुद्दा है।
क्या है वक्फ?
वक्फ कानून 1995 के मुताबिक, वक्फ का अर्थ है किसी चल-अचल संपत्ति को स्थायी तौर पर उन कार्यों के लिए दान करना, जिन्हें इस्लाम में पवित्र और धार्मिक माना जाता है।
वक्फ का उपयोग क्या है?
वक्फ संपत्तियों या इससे होने वाली आय का उपयोग मस्जिद और कब्रिस्तान के रख-रखाव, शिक्षण संस्थाओं और स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं का प्रबंधन करने और और गरीबों व विकलांगों की मदद करने के लिए की जानी चाहिए, ऐसी उम्मीद की जाती है।

वक्फ कानून में संशोधन क्यों किया गया?
1. वक्फ संपत्तियों की अपरिवर्तनीयता
‘एक बार वक्फ, हमेशा वक्फ’ के सिद्धांत ने विवादों को जन्म दिया है। जैसे बेट द्वारका में द्वीपों पर दावे, जिन्हें अदालतों ने भी उलझन भरा माना है।
2. कानूनी विवाद और कुप्रबंधन
वक्फ अधिनियम, 1995 और इसका 2013 का संशोधन खास कारगर नहीं रहा है। इससे कई तरह की समस्याएं पैदा हुई हैं।
- वक्फ भूमि पर अवैध कब्जा
- कुप्रबंधन और स्वामित्व विवाद
- संपत्ति पंजीकरण और सर्वेक्षण में देरी
- -बड़े पैमाने पर मुकदमे और मंत्रालय को शिकायतें
3. कोई न्यायिक निगरानी नहीं
- वक्फ न्यायाधिकरण के निर्णयों को उच्च न्यायालयों में चुनौती नहीं दी जा सकती।
- वक्फ प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी।
4. वक्फ संपत्तियों का अधूरा सर्वेक्षण
- सर्वेक्षण आयुक्त का काम खराब रहा है, जिससे सर्वेक्षण में देरी हुई है।
- गुजरात और उत्तराखंड जैसे राज्यों में अभी तक सर्वेक्षण शुरू नहीं हुआ है।
- उत्तर प्रदेश में 2014 में शुरू हुआ सर्वेक्षण का काम अभी भी लंबित है।
- विशेषज्ञता की कमी और राजस्व विभाग के साथ खराब समन्वय ने पंजीकरण प्रक्रिया को धीमा किया।
5. वक्फ कानूनों का दुरुपयोग
कुछ राज्य वक्फ बोर्डों ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है, जिसकी वजह से सामुदायिक तनाव पैदा हुआ है। निजी संपत्तियों को वक्फ संपत्ति घोषित करने के लिए वक्फ अधिनियम की धारा 40 का व्यापक रूप से दुरुपयोग किया गया है, जिससे कानूनी लड़ाई और अशांति पैदा हुई है।
6. वक्फ अधिनियम की संवैधानिक वैधता
वक्फ अधिनियम केवल एक धर्म पर लागू होता है, जबकि अन्य के लिए कोई समान कानून मौजूद नहीं है। दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है, जिसमें सवाल उठाया गया है कि क्या वक्फ अधिनियम संवैधानिक है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।यह भी पढ़ें- Waqf Bill: SC से खारिज नहीं होगा वक्फ संशोधन कानून, लेकिन पास करनी होगी ये तीन परीक्षा
वक्फ अधिनियम 1995 और वक्फ अधिनियम 2025 में प्रमुख अंतर
श्रेणी | वक्फ: अधिनियम 1995 | वक्फ अधिनियम, 2025 |
वक्फ का गठन | घोषणा, उपयोगकर्ता या बंदोबस्ती द्वारा। | उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को हटा दिया गया है; केवल घोषणा या बंदोबस्ती की अनुमति है। दानकर्ता को पांच वर्षों से मुस्लिम होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति पत्नी के हिस्से की संपत्ति दान नहीं कर सकता है। |
वक्फ के रूप में सरकारी संपत्ति | कोई स्पष्ट प्रविधान नहीं। | वक्फ के रूप में पहचानी गई सरकारी संपत्तियां वक्फ नहीं रह जाती हैं। विवादों का समाधान कलेक्टर द्वारा किया जाता है। |
वक्फ निर्धारण की शक्ति | वक्फ बोर्ड के पास अधिकार था। | प्रविधान हटा दिया गया। |
वक्फ का सर्वेक्षण | सर्वेक्षण आयुक्तों और अपर आयुक्त द्वारा संचालित। | कलेक्टरों को संबंधित राज्यों के राजस्व कानूनों के अनुसार सर्वेक्षण करने का अधिकार दिया गया है। |
केंद्रीय वक्फ परिषद | सभी सदस्यों को मुस्लिम होना चाहिए। | जिसमें दो महिलाएं शामिल हैं, इसमें दो गैर-मुस्लिम शामिल हैं। सांसदों, पूर्व न्यायाधीशों और प्रतिष्ठित व्यक्तियों का मुस्लिम होना जरूरी नहीं है। मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि, इस्लामी कानून के विद्वान, वक्फ बोर्डों के अध्यक्ष का मुस्लिम होना जरूरी है। मुस्लिम सदस्यों में से दो सदस्य महिलाएं होनी चाहिए। |
राज्य वक्फ बोर्ड | दो निर्वाचित मुस्लिम सांसद/विधायक/बार काउंसिल सदस्य, कम से कम दो महिलाएं। | राज्य सरकार दो गैर-मुस्लिमों, शिया, सुन्नी, पिछड़े वर्ग के मुसलमानों, बोहरा और आगाखानी समुदाय से एक-एक सदस्य को मनोनीत करती है। कम से कम दो मुस्लिम महिलाओं का होना ज़रूरी है। |
न्यायाधिकरण की संरचना | न्यायाधीश के नेतृत्व में, जिसमें अपर जिला मजिस्ट्रेट और मुस्लिम कानून विशेषज्ञ शामिल हैं। | मुस्लिम कानून विशेषज्ञ को हटाया गया है, इसमें जिला न्यायालय के न्यायाधीश (अध्यक्ष) और एक संयुक्त सचिव (राज्य सरकार) शामिल हैं। |
न्यायाधिकरण के आदेशों पर अपील | केवल विशेष परिस्थितियों में उच्च न्यायालय का हस्तक्षेप। | उच्च न्यायालय में 90 दिनों के भीतर अपील की अनुमति। |
केंद्र सरकार की शक्तियां | राज्य सरकारें कभी भी वक्फ खातों का आडिट कर सकती हैं। | केंद्र सरकार को वक्फ पंजीकरण, खातों और लेखा परीक्षा (सीएजी/नामित अधिकारी) पर नियम बनाने का अधिकार दिया गया है। |
संप्रदायों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड | शिया और सुन्नी के लिए अलग-अलग बोर्ड (यदि शिया वक्फ 15 प्रतिशत से अधिक है)। | बोहरा और अगाखानी वक्फ बोर्ड को भी अनुमति दी गई है। |
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