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हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) ने पाकिस्तान को 1.2 अरब डॉलर की एक किस्त जारी की. लेकिन अपने सुधार कार्यक्रम के तहत लगाई गई ग्यारह शर्तों में उसने पाकिस्तान को अपनी रेमिटेंस पॉलिसी की समीक्षा करने के लिए भी कहा है.
आईएमएफ़ का कहना है कि पाकिस्तान ने विभिन्न योजनाओं के ज़रिए कानूनी तरीकों से देश में आने वाली धनराशि में उल्लेखनीय बढ़ोतरी की है.
आईएमएफ़ ने कहा कि स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान को मई 2026 तक रेमिटेंस की लागत पर एक समीक्षा रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए.
आईएमएफ़ का कहना है कि इसके अलावा सरकार को विदेशी मुद्रा बाज़ार को स्थिर करने के लिए भी कदम उठाने की ज़रूरत है.
पाकिस्तान ने पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान विदेशों में वाणिज्यिक बैंकों और मनी ट्रांसफर कंपनियों को रेमिटेंस हासिल करने के लिए भुगतानों पर कमीशन के रूप में 100 अरब पाकिस्तानी रुपये का भुगतान किया है. इसे पाकिस्तान में रेमिटेंस कॉस्ट कहा जाता है. लेकिन सरकार ने बजट में इस राशि का आवंटन नहीं किया था.
आख़िर दूसरे देशों से पाकिस्तान में आने वाले धन (रेमिटेंस) के संबंध में पाकिस्तान की योजना क्या है और आईएमएफ़ ने इस पर क्यों चिंता जताई है? इससे पहले, यह समझना अहम है कि रेमिटेंस क्या है और पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में उनकी क्या भूमिका है?
पाकिस्तान जैसी अर्थव्यवस्था में स्थिर डॉलर या विदेशी मुद्रा भंडार देश में वित्तीय स्थिरता की गारंटी है.
किसी भी देश के लिए विदेशी निवेश, निर्यात और विदेश में रहने वाले उसके नागरिक जो पैसे भेजते हैं, वह विदेशी मुद्रा हासिल करने का एक साधन है.
पाकिस्तान की रेमिटेंस पर निर्भरता
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मौजूदा हालात और कई दूसरी वजहों से विदेशी निवेशक पाकिस्तान में निवेश नहीं करना चाहते. देश में पिछले कई साल से निर्यात में वृद्धि नहीं हुई है. पाकिस्तान को गेहूं और चीनी जैसी बुनियादी खाद्य सामग्रियों के लिए दूसरे देशों को डॉलर में भुगतान करना पड़ता है.
इन परिस्थितियों में रेमिटेंस पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा अर्जित करने का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है और सरकार इसे अपनी सफलता मानती है. वित्त वर्ष 2024-25 में पाकिस्तान को दूसरे देशों में रहने वाले पाकिस्तानियों से 38.3 अरब डॉलर भेजे. इसके अलावा निर्यात के ज़रिए भी पाकिस्तान ने 32 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा कमाई.
आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ साल में घरेलू हालात के कारण बड़ी संख्या में पाकिस्तानी हुनरमंद लोगों ने देश छोड़ दिया है. कानूनी तरीके से धन भेजने के लिए उठाए गए कदम और पाकिस्तानी रुपये का स्थिर पड़ा मूल्य ऐसे कारण हैं, जिन्होंने रेमिटेंस को पाकिस्तान के लिए विदेशी मुद्रा का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत बना दिया है.
पाकिस्तान ने चालू वित्त वर्ष में जून के अंत तक 40 अरब डॉलर की रेमिटेंस राशि का लक्ष्य रखा था, और एक जुलाई से 30 नवंबर तक के पहले पांच महीनों में, पाकिस्तान को 3.2 अरब डॉलर की रेमिटेंस राशि प्राप्त हुई.
पाकिस्तान को सबसे अधिक रकम कौन भेजता है
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पाकिस्तान की जीडीपी में रेमिटेंस का अनुपात नौ प्रतिशत से अधिक है. बड़ी संख्या में पाकिस्तानी रोज़गार के लिए सऊदी अरब सहित खाड़ी देशों में जाते हैं.
इसी वजह से पाकिस्तान को सऊदी अरब से सबसे अधिक धन मिलता है. स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के अनुसार, सऊदी अरब में रहने वाले पाकिस्तानियों ने वित्त वर्ष 2024-2025 में पाकिस्तान को 9.3 अरब डॉलर की सबसे अधिक राशि भेजी.
पाकिस्तान को संयुक्त अरब अमीरात से 7.8 अरब डॉलर और ब्रिटेन से 5.9 अरब डॉलर की धन राशि मिली.
स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के आंकड़ों के अनुसार, इस अवधि के दौरान अन्य यूरोपीय देशों से 4.5 अरब डॉलर की रकम प्राप्त हुई.
भारत, मैक्सिको, चीन और बांग्लादेश के साथ-साथ पाकिस्तान भी दुनिया के उन पांच देशों में शामिल है जिन्हें सबसे अधिक रेमिटेंस प्राप्त होता है.
आईएमएफ़ को रेमिटेंस से क्या आपत्ति है?
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आईएमएफ़ ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर अपनी समीक्षा रिपोर्ट में पाकिस्तान के रेमिटेंस कार्यक्रम पर आपत्ति जताई है. आईएमएफ़ का कहना है कि पाकिस्तान को रेमिटेंस पर ख़र्च और विभिन्न देशों को किए गए भुगतानों की गहन समीक्षा करने की ज़रूरत है.
आईएमएफ़ ने कहा कि पाकिस्तान को मई 2026 तक स्थिर विदेशी मुद्रा भंडार के लिए एक व्यापक कार्य योजना विकसित करनी चाहिए.
पाकिस्तानी सीनेट की फ़ाइनेंस कमेटी ने भी कुछ महीने पहले रेमिटेंस की लागत को लेकर चिंता जताई थी. कमेटी के अध्यक्ष सलीम मांडवीवाला ने बीबीसी को बताया कि देश में धन लाने वाली कंपनियों और बैंकों को वर्तमान में हर लेनदेन पर कमीशन दिया जा रहा है.
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सलीम मांडवीवाला ने कहा कि रेमिटेंस से बैंकों और कंपनियों को ख़ासा मुनाफ़ा होता है. उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर सीनेट की फ़ाइनेंस कमेटी में चर्चा हुई थी और स्टेट बैंक ने कहा था कि वह आयोग गठित करने के मुद्दे की समीक्षा करेगा.
वरिष्ठ पत्रकार महताब हैदर के अनुसार, वित्त मंत्रालय इस कार्यक्रम के तहत हर लेनदेन पर कमीशन का भुगतान करता है, जो स्टेट बैंक के माध्यम से अन्य वाणिज्यिक बैंकों और विदेशी एजेंटों को दिया जाता है.
बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि पाकिस्तान विदेशों में एजेंटों को जो कमीशन देता था, वो एक प्रकार की सब्सिडी है और इसके लिए बजट में कोई धनराशि आवंटित नहीं की गई थी.
महताब हैदर का कहना है कि इस कार्यक्रम को लेकर आईएमएफ़ की आपत्ति यह है कि इसके लिए बजट में धनराशि आवंटित नहीं की गई थी, बल्कि बाद में जारी की गई. उनके अनुसार इस कार्यक्रम की वित्तीय लागत आईएमएफ की जिम्मेदारी है.
दूसरी ओर महताब हैदर के अनुसार कई लोग रेमिटेंस पर दी गई कर छूट का दुरुपयोग करते हैं.
पाकिस्तान में रेमिटेंस की प्रक्रिया क्या है?
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पाकिस्तान ने हाल के वर्षों में रेमिटेंस से आय बढ़ाने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं. साल 2023 में शुरू की गई इस योजना का मक़सद विदेशों में रहने वाले पाकिस्तानी नागरिकों को कानूनी तरीकों से धन भेजने के लिए प्रोत्साहित करना था.
इसके लिए उन्हें डिजिटल अकाउंट खोलने की सुविधा उपलब्ध कराई गई थी. इस योजना के तहत विदेश में रहने वाले लोगों के लिए अपने पाकिस्तानी बैंक खातों के माध्यम से पैसे भेजने के लिए जल्दी और आसान डिजिटल ट्रांसफ़र सिस्टम शुरू की गई.
इसमें पैसे भेजने के शुल्क समाप्त कर दिए गए और बार-बार बड़ी रकम भेजने वालों को इनाम या अंक देने की व्यवस्था भी शुरू की गई. इसके अलावा, विदेशों में स्थित मनी ट्रांसफर कंपनियों और वाणिज्यिक बैंकों को भी हर लेनदेन के लिए भुगतान किया जाता है. एक अनुमान के अनुसार विदेशी मुद्रा में हासिल करने वाले हर एक डॉलर के लिए पाकिस्तान सरकार 20 से 25 रुपये का भुगतान (कमीशन) करती है.
यह राशि स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के ज़रिए से वाणिज्यिक बैंकों को दी जाती है, जिसका भुगतान वित्त मंत्रालय करता है. इस भुगतान को ‘रेमिटेंस कॉस्ट’ कहा जाता है.
एक अनुमान के अनुसार, पाकिस्तान ने पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान वाणिज्यिक बैंकों को रेमिटेंस कॉस्ट के रूप में 100 अरब पाकिस्तानी रुपये का भुगतान किया.
विदेशी मुद्रा और एक्सचेंज व्यवसाय से जुड़े जफर पारचा का कहना है कि विदेशी बैंक और मनी ट्रांसफर कंपनियां इस विशेषाधिकार का ग़लत और अनुचित तरीके से उपयोग कर रही हैं.
उन्होंने कहा, “अगर कोई अमेरिका से पाकिस्तान में एक हज़ार डॉलर भेजना चाहता है, तो वह बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के एक हज़ार डॉलर पाकिस्तान भेज सकता है, लेकिन मनी ट्रांसफर कंपनियां आम उपयोगकर्ता के लिए रुपये का मूल्य कम करके आंकती हैं और फिर उसी एक हज़ार डॉलर को पांच से दस बार में भेजने के लिए बांट देती है.”
जफर पारचा कहते हैं कि इस तरह से मनी ट्रांसफर कंपनियां हर लेनदेन पर सरकार से 20 से 25 डॉलर का कमीशन वसूलती हैं. उनके अनुसार इसी वजह से सरकार हर साल भारी सब्सिडी देती है, जिस पर आईएमएफ ने आपत्ति जताई है.
आईएमएफ की शिकायत का क्या है हल?
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जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान को आईएमएफ को रेमिटेंस के बारे में स्पष्ट रूप से बताना होगा.
आईएमएफ चाहता है कि पाकिस्तान में रेमिटेंस लाने के लिए वाणिज्यिक बैंकों को दी जाने वाली सब्सिडी को या तो समाप्त कर दिया जाए या सरकार के अलावा कोई अन्य इसका भुगतान करे.
बीबीसी ने इस संबंध में पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय का रुख़ जानने की कोशिश की, लेकिन वित्त मंत्री के सहायक खुर्रम शहजाद ने कहा कि मंत्रालय आईएमएफ की शर्तों पर अपना बयान जारी करेगा.
इस ख़बर के प्रकाशन के समय तक यह बयान जारी नहीं किया गया था.
पत्रकार महताब हैदर का कहना है कि रेमिटेंस की लागत के संबंध में आईएमएफ की आपत्तियों को दूर करने के लिए, सरकार इनके भुगतान की जिम्मेदारी बैंकों पर डाल सकती है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.