उत्तर प्रदेश में पुलिस पर कथित भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वाले बीजेपी नेताओं में अब पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान भी शामिल हो गए हैं.
संजीव बालियान ने आरोप लगाया है कि भूमि पर अवैध कब्ज़े के एक मामले में थाने में ग्रामीणों के समर्थन में पैरवी करने के बाद उनकी पुलिस सुरक्षा वापस ले ली गई.
संजीव बालियान ने इस संंबंध में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र भी लिखा है.
हालांकि, मुज़फ़्फ़रनगर पुलिस ने अवैध क़ब्ज़ा कराने और एकतरफ़ा कार्रवाई करने के संजीव बालियान के आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा है कि पुलिस ने अदालत के आदेश का पालन किया है.
खतौली के पुलिस क्षेत्राधिकारी (सर्किल ऑफ़िसर) राम आशीष यादव की तरफ़ से जारी एक बयान में मुज़फ़्फ़रनगर पुलिस ने कहा है कि पुलिस पर लगाए गए सभी आरोप निराधार हैं.
बयान में कहा गया है, “संबंधित भूमि के संबंध में सिविल अदालत में मुक़दमा चल रहा है. अदालत ने इस मामले में एक पक्ष में निर्णय दिया था और इसे लागू कराने के लिए पुलिस को निर्देशित किया था.”
उन्होंने कहा, “मौके पर शांति व्यवस्था बनाए रखने हेतु संबंधितों के ख़िलाफ़ आवश्यक निरोधात्मक कार्रवाई की गई है.”
क्या है पूरा मामला
पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान रविवार को मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के मंसूरपुर थाने में धरना दे रहे ग्रामीणों के समर्थन में पहुंचे थे.
किसानों का आरोप है कि एक डिस्टलरी ने गांव के मंदिर की ज़मीन पर पुलिस और प्रशासन के साथ मिलकर क़ब्ज़ा कर लिया है.
हालांकि, पुलिस का कहना है कि इस संबंध में स्थानीय अदालत ने डिस्टलरी के पक्ष में निर्णय दिया है.
संजीव बालियान ने बीबीसी से कहा, “ग्रामीणों का ये आरोप है कि पुलिस ने गांव की भूमि पर एक पक्ष का कब्ज़ा करा दिया. वो लोग इस मामले में हस्तक्षेप के लिए मेरे पास आए थे तो मैं उनके साथ थाने चला गया. मैं क़रीब एक घंटा थाने में रहा.”
स्थानीय पत्रकार अमित सैनी के मुताबिक़, थाना परिसर में संजीव बालियान और एसएचओ के बीच बहस हुई. बालियान ने आरोप लगाया कि पुलिस एक पक्ष के समर्थन में कार्रवाई कर रही है.
पुलिस का इस विवाद पर कहना है कि कार्रवाई अदालत के आदेश पर की गई है.
संजीव बालियान ने उनकी सुरक्षा हटाए जाने के बारे में बीबीसी से कहा, “थाने के बाद मुझे एक और कार्यक्रम में जाना था. इसी दौरान मेरी सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों के पास फ़ोन आया कि उन्हें पुलिस लाइन लौटना है और वो वापस चले गए. मुझे सुरक्षा हटाए जाने के बारे में कोई जानकारी भी नहीं दी गई.”
संजीव बालियान ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर स्थानीय पुलिस पर आरोप लगाए हैं कि भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाने की वजह से उनकी सुरक्षा वापस ली गई है.
बीबीसी से बात करते हुए भी संजीव बालियान ने कहा कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ बोलने की वजह से उनकी पुलिस सुरक्षा वापस ली गई है.
उन्होंने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा है, “यदि एक पूर्व केंद्रीय मंत्री के साथ इस तरह का व्यवहार किया जा रहा है तो एक आम बीजेपी कार्यकर्ता के क्या हालात होंगे.”
लेकिन संजीव बालियान की पुलिस सुरक्षा हटाने के संंबंध में मुज़फ़्फ़रनगर पुलिस ने कोई बयान नहीं दिया है.
बीबीसी ने इस संबंध में मुज़फ़्फ़रनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अभिषेक सिंह से बात करनी चाही, लेकिन कोई जवाब नहीं मिल सका.
‘आरोप कुछ भ्रष्ट अधिकारियों पर, सरकार पर नहीं’
बीबीसी से बात करते हुए संजीव बालियान ने कहा कि ये पहली बार नहीं है जब उन्होंने प्रशासनिक भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया है.
संजीव बालियान ने ये भी कहा कि उनके ये आरोप सरकार पर नहीं, बल्कि कुछ चुनिंदा अधिकारियों पर हैं.
बालियान ने कहा, “मैंने पहले भी पुलिस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं, पुलिस सरकार नहीं है. अगर कुछ अधिकारी गड़बड़ कर रहे हैं तो ये नहीं कह सकते कि पूरी सरकार गड़बड़ है. मैं पूर्व केंद्रीय मंत्री हूं, ये मेरी ज़िम्मेदारी है कि अगर जनता का कोई मुद्दा है तो मैं उसे उठाऊं. यदि पुलिस भ्रष्टाचार में लिप्त होगी तो उसके ख़िलाफ़ बोलना मेरी ज़िम्मेदारी है.”
बालियान ने कहा, “मेरी ये आवाज़ सरकार के ख़िलाफ़ नहीं है, बल्कि उन अधिकारियों के ख़िलाफ़ है, जो भ्रष्ट हैं.”
क्या ये सरकार के प्रति असंतोष है, इस सवाल पर बालियान ने कहा, “मैं इसे असंतोष नहीं कहूंगा, लेकिन जब-जब अधिकारियों को समझाने का प्रयास हुआ तो ऐसा लगा कि वो समझना नहीं चाहते हैं, वो अपने तरीक़े से ही काम करना चाहते हैं. प्रशासनिक अधिकारी अगर जनप्रतिनिधि की नहीं सुनेंगे तो हमें अपनी बात तो फिर भी कहनी पड़ेगी.”
पहले भी कई नेता लगा चुके हैं आरोप
संजीव बालियान से पहले हाल के दिनों में बीजेपी के कई नेता पुलिस अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा चुके हैं.
ग़ाज़ियाबाद के लोनी से विधायक नंद किशोर गुर्जर ने कई सार्वजनिक बयानों में कहा है कि पुलिस थाने भ्रष्टाचार के अड्डे बन गए हैं. ऐसे आरोप लगाते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री को एक पत्र भी लिखा है.
बीबीसी से बात करते हुए नंदकिशोर गुर्जर ने कहा था, “पुलिस थाने भ्रष्टाचार के अड्डे बन गए हैं, जन प्रतिनिधियों को इस बारे में खुलकर बोलना पड़ रहा है, बावजूद इसके सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही है.”
वहीं यूपी के भदोही से विधायक दीनानाथ भास्कर ने भी इसी तरह के आरोप लगाए थे.
इसके अलावा बीजेपी की गठबंधन सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) के मंत्री आशीष पटेल ने भी शीर्ष अधिकारियों पर साजिश रचने के आरोप लगाए थे.
बीबीसी की एक रिपोर्ट के लिए अपना नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बात करते हुए कुछ बीजेपी विधायकों ने दावा किया था कि “प्रशासनिक अधिकारी के सामने जन प्रतिनिधि बेबस हैं.”
एक विधायक ने बीबीसी से कहा था, “अधिकारियों के रवैये और हठधर्मिता से बीजेपी विधायकों में असंतोष बढ़ रहा है, लेकिन हम जैसे विधायक खुलकर बोल नहीं पा रहे हैं.”
बीबीसी हिंदी ने इस रिपोर्ट के लिए बीजेपी के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, कुछ प्रवक्ताओं, सरकार में शामिल मंत्रियों और अधिकारियों से उनका पक्ष जानने के लिए प्रयास किया था. लेकिन किसी से जवाब नहीं मिल सका था.
अब, संजीव बालियान के आरोपों पर भी बीजेपी में चुप्पी है.
क्यों मुखर हो रहे हैं नेता?
बीजेपी नेताओं के खुलकर अपनी ही सरकार के पुलिस-प्रशासन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने से ये सवाल भी उठा है कि अचानक नेता मुखर क्यों हो रहे हैं.
कुछ विश्लेषक इसे बीजेपी की अंदरूनी राजनीति से भी जोड़कर देख रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं, “इस तरह के बयानों से बीजेपी की अंदरूनी गुटबाज़ी बाहर आ रही है.”
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दावा है कि उनके शासन के दौरान क़ानून-व्यवस्था मज़बूत हुई है और भ्रष्टाचार कम हुआ है.
बीजेपी नेताओं के अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर विश्लेषकों की अलग-अलग राय है.
वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान का मानना है कि ‘अधिकारियों के बहाने बीजेपी नेता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साध रहे हैं. सीधे मुख्यमंत्री पर टिप्पणी करने की हिम्मत नेताओं में नहीं हैं, इसलिए वो अधिकारियों पर आरोप लगा रहे हैं.’
वहीं पूर्व बीबीसी संवाददाता और वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी का मानना है, “बीजेपी के पार्टी सर्किल में, विधायकों में ये आम राय है कि यूपी में नौकरशाही हावी है, जनप्रतिनिधि बेबस हैं. जन प्रतिनिधि मजबूर होकर ऐसे बयान दे रहे हैं.”
जनमोर्चा की संपादक सुमन गुप्ता की राय है, “इस असंतोष के मुखर होने की एक वजह ये भी हो सकती है कि दिल्ली से इन नेताओं को शह मिली हो.”