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उत्तर प्रदेश सरकार दिल्ली से क़रीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर स्थित वृंदावन में श्री बांके बिहारी मंदिर के इर्द-गिर्द एक भव्य कॉरिडोर बनाना चाहती है. जबकि इस मंदिर से जुड़ा सेवायत गोस्वामी समुदाय कॉरिडोर निर्माण का विरोध कर रहा है.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल सरकार की इस योजना को क़ानूनी विवाद का समाधान होने तक स्थगित कर दिया है.
लेकिन कॉरिडोर को लेकर चल रहे विवाद ने मथुरा में भगवान श्री कृष्ण के जन्मस्थल से क़रीब दस किलोमीटर दूर स्थित इस प्राचीन आध्यात्मिक और धार्मिक शहर को सुर्ख़ियों में ला दिया.
संकरी गलियों के बीच बना प्राचीन मंदिर
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वृंदावन में यमुना तट पर बने घाटों और परिक्रमा मार्ग से निकलती कई गलियां प्राचीन श्री बांके बिहारी मंदिर तक पहुंचती हैं. मान्यताओं के मुताबिक़ ये कुंज गलियां हैं जहां भगवान श्रीकृष्ण लीलाएं करते थे.
इन्हीं संकरी गलियों से रोज़ाना हज़ारों भक्त श्री बांके बिहारी मंदिर तक पहुंचते हैं. यहां कई छोटे-छोटे मंदिर और पुराने घर भी हैं. स्थानीय लोगों के मुताबिक़, ये इस शहर की सिर्फ़ पहचान नहीं हैं, बल्कि सदियों से चली आ रही सांस्कृतिक विरासत भी है.
स्थानीय लोगों की चिंता है कि यदि प्रस्तावित कॉरिडोर बनता है तो वृंदावन का ऐतिहासिक स्वरूप बदल जाएगा.
इसके चलते स्थानीय लोगों की दुकानें और मकान तक टूट जाएंगे और यही वजह है कि मंदिर के आसपास रहने वाले लोग इस कॉरिडोर का विरोध कर रहे हैं.
मंदिर से क़रीब डेढ़ सौ मीटर दूर सौ साल से अधिक पुराने एक घर में रहने वाली 70 वर्षीय निम्मी गोस्वामी कहती हैं, “कृष्ण ने यहीं रास लीलाएं की हैं. इस ब्रज को हम भूल नहीं सकते हैं.”
निम्मी गोस्वामी के पति रुकमणि गोस्वामी कहते हैं, “ये कोई साधारण स्थान नहीं हैं, ये कुंज गलियां हैं, जो अब ख़त्म होती जा रही हैं.”
भीड़ संभालने के लिए कॉरिडोर की ज़रूरतः सरकार
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हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार का तर्क है कि कॉरिडोर बनने से यहां व्यवस्था बेहतर होगी और श्रद्धालुओं को सुविधाएं मिलेंगी.
उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद के सीईओ श्याम बहादुर सिंह कहते हैं, “श्री बांके बिहारी मंदिर तक जाने वाले पहुंच मार्ग बहुत संकरे हैं. रोज़ाना तीस से पचास हज़ार, सप्ताहांत में क़रीब डेढ़ लाख और त्योहार के मौके पर तीन लाख से अधिक लोग श्री बांके बिहारी मंदिर पहुंचते हैं.”
श्याम बहादुर सिंह के मुताबिक प्रस्तावित कॉरिडोर से भगदड़ जैसी स्थितियां भी रुकेंगी. वे कहते हैं, “अभी जो रास्ते हैं वो भारी भीड़ को संभालने में अक्षम है, कई बार भगदड़ की स्थिति हो जाती है. ऐसे में यहां कॉरिडोर बनाने की परिकल्पना की गई है. इसमें पंद्रह हज़ार तक लोगों का वहां खड़े होने की जगह मिलेगी. दुकानें और अन्य सुविधाएं भी इसमें होंगी.”
विरासत और संस्कृति को बचाने का सवाल
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स्थानीय लोगों को आशंका है कि यदि ये कॉरिडोर अस्तित्व में आया तो वृंदावन की पुरानी पहचान और विरासत मिट जाएगी.
मंदिर से क़रीब दो सौ मीटर दूर एक गली में स्थित सौ साल से अधिक पुराने एक घर में रहने वाली दीपशिखा गोस्वामी अपने प्राचीन घर को दिखाते हुए कहती हैं, “बिहारी जी मंदिर के पास हमारा ये प्राचीन घर है. सरकार पुरानी चीज़ों को संरक्षित करती है. हम तो यही चाहते हैं कि सरकार इसकी देखभाल करे, लेकिन हमें तो यहां से हटाया जा रहा है.”
इसी गली में रहने वाले नीरज गोस्वामी कहते हैं, “मैं घर से निकलता हूं तो राधे-राधे बोलता हूं, कुंज गली में राधे-राधे. मुझे अपनी इस ब्रज की मिट्टी से प्यार है, स्नेह है, हम इसे कैसे छोड़ दें.”
‘निजी मंदिर का अधिग्रहण करना चाहती है सरकार’
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मान्यताओं के मुताबिक़ श्री बांके बिहारी की प्रतिमा पहले वृंदावन के ही निधि वन में थी. 1864 में इस मूर्ति को मौजूदा श्री बांके बिहारी मंदिर स्थापित किया गया था.
इस विवाद का एक पहलू, 160 साल से अधिक पुराने इस मंदिर के प्रबंधन और मालिकाना हक़ से जुड़ा सवाल भी है.
सदियों से इस मंदिर में सेवा करते आए और यहां की व्यवस्था संभाल रहे सेवायत गोस्वामी परिवारों का दावा है कि ये मंदिर उनके पूर्वजों ने बनाया.
गोस्वामी समुदाय की तरफ़ से इस विवाद में पैरवी कर रहे रजत गोस्वामी कहते हैं, “कॉरिडोर की आड़ में सरकार इस निजी मंदिर का अधिग्रहण करना चाहती है. धर्म और व्यवस्था की आड़ लेकर सरकार मंदिरों पर क़ब्ज़ा करना चाहती है और प्राचीन काल से चली आ रही परंपराओं और प्रथाओं में दख़ल देना चाहती है.”
रजत गोस्वामी कहते हैं, “स्वामी हरिदास जी ने श्री बांके बिहारी की सेवा शुरू की. हम उनके वंशज है जो पिछले पांच सौ सालों से पीढ़ी दर पीढ़ी ठाकुर महाराज (भगवान श्री कृष्ण) की सेवा करते आ रहे हैं. ये हमारे घर के ठाकुर हैं, इन पर अधिकार हमारा है.”
श्री बांके बिहारी मंदिर की सेवा में लगे गोस्वामी समुदाय में अभी चार सौ से अधिक लोग सक्रिय हैं और ये स्वामी हरिदास की 21वीं पीढ़ी से जुड़े हैं.
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वंशावली में अपना स्थान दिखाते हुए गोस्वामी समुदाय से जुड़े एक युवा सोमनाथ गोस्वामी कहते हैं, “हमारी पीढ़ियां इस मंदिर की सेवा करती रहीं, श्री बांके बिहारी का वैभव बढ़ाती रहीं और अब हमें ही यहां से हटाया जा रहा है.”
हालांकि उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद का कहना है कि भगवान श्रीकृष्ण का ये मंदिर किसी की निजी संपत्ति नहीं हैं.
सीईओ श्याम बहादुर सिंह कहते हैं, “ये स्थापित हो गया है कि ये मंदिर देवता यानी श्री बांके बिहारी का है. वहीं इसके स्वामी है. जिस मंदिर में दर्शन के लिए रोज़ाना पचास हज़ार से ज़्यादा लोग आ रहे हैं, उसे निजी मंदिर बताना तर्कहीन है. बांके बिहारी किसी एक व्यक्ति या समूह के नहीं है, समूचे भारत के हैं, वो जनआस्था का केंद्र बन चुके हैं, शुरू से ही जनआस्था का केंद्र हैं.”
उत्तर प्रदेश सरकार ने मंदिर के प्रबंधन के लिए एक ट्रस्ट के गठन के लिए मई 2025 में एक अध्यादेश पारित किया था. इस अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने फ़िलहाल इस विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का फ़ैसला आने तक इस अध्यादेश को स्थगित कर दिया है और मंदिर के प्रबंधन के लिए एक चौदह सदस्यीय अंतरिम समिति गठित कर दी है जिसकी अध्यक्षता रिटायर्ड जस्टिस अशोक कुमार कर रहे हैं. इस अंतरिम समिति में प्रशासन और गोस्वामी समुदाय के प्रतिनिधि भी शामिल हैं.
ज़मीन और जड़ों से बेदख़ल किए जाने का डर
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प्रस्तावित कॉरिडोर में श्री बांके बिहारी मंदिर से लेकर यमुना तट तक पांच एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण किया जाना है. प्रशासन का कहना है कि जिन लोगों के घर और दुकानें कॉरिडोर के लिए अधिग्रहित किए जाएंगे उन्हें उचित मुआवज़ा दिया जाएगा.
श्याम बहादुर सिंह कहते हैं, “लगभग 187 संरचनाएं हैं जिनके लोगों को शिफ्ट किया जाएगा. इनमें दुकानदार, मकान मालिक और किरायेदार शामिल हैं. जिन भी लोगों को शिफ्ट किया जाएगा उन्हें मंदिर फंड से समुचित मुआवज़ा दिया जाएगा. जिन लोगों की दुकानें जा रही हैं उन्हें दुकानें दी जाएंगी. जिन लोगों के पास रहने का घर नहीं होगा उन्हें प्राधिकरण बिना नफ़ा नुक़सान के आधार पर घर की व्यवस्था भी करके देगा.”
हालांकि, जिन लोगों के घर और दुकानें तोड़ दी जाएंगी उनका कहना है कि कोई भी मुआवज़ा उनके नुक़सान की भरपाई नहीं कर सकता है.
मंदिर के पास ही रहने वाली संतोष शर्मा कहती हैं, “अगर हमें सौ गुना मुआवज़ा भी दिया जाए तो हमारे नुक़सान की भरपाई नहीं हो पाएगी. हम भगवान श्री कृष्ण के सामने रहते हैं. जब मन करता है, भगवान के दर्शन करते हैं. हमारे लिए ये ब्रज भूमि पवित्र भूमि हैं. हम रोज़ भगवान की आरती करते हैं, यहां घर-घर में मंदिर हैं. लोग दूर-दूर से ब्रज में बसने आ रहे हैं और हमें अपनी भूमि को छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है.”
अस्सी साल से अधिक उम्र की उषा गोस्वामी कहती हैं, “हमारे पूर्वज यहीं से विदा हुए, हमारी भी यही इच्छा है कि यहीं से जाएं, अब हमें इन कुंज गलियों से हटाया जा रहा है. सरकार अगर कॉरिडोर बनाना ही चाहती है तो सरकारी ज़मीन पर बनाएं, हमें क्यों हटाया जा रहा है?”
वहीं स्थानीय दुकानदार मुन्ना लाल मिश्रा दावा करते हैं कि सरकार की तरफ़ से उन्हें ये नहीं बताया गया है कि कहां दुकान दी जाएगी या कितना मुआवज़ा दिया जाएगा. मुन्ना लाल मिश्रा कहते हैं, “सिर्फ़ कॉरिडोर का हल्ला मच रहा है. कुछ बताया नहीं जा रहा है, हम जैसे दुकानदारों के पेट पर लात मारी जा रही है.”
श्री बांके बिहारी के बैंक खाते में तीन सौ करोड़ से अधिक
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श्री बांके बिहारी मंदिर के बैंक खातों में सैकड़ों करोड़ रुपए हैं. मंदिर के प्रबंधन से जुड़े रजत गोस्वामी के मुताबिक़ श्री बांके बिहारी के बैंक खाते में तीन सौ करोड़ से अधिक रुपए हैं.
सरकार इसी फंड का इस्तेमाल ज़मीन अधिग्रहण और कॉरिडोर के निर्माण में करना चाहती है. सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल मई में यूपी सरकार को ज़मीन ख़रीदने और कॉरिडोर का निर्माण करने के लिए मंदिर फंड के पांच सौ करोड़ रुपए के इस्तेमाल की अनुमति दी थी. फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस आदेश को स्थगित कर दिया है.
सेवायत गोस्वामियों का आरोप है कि सरकार की नज़र मंदिर के फंड और यहां आने वाली दक्षिणा पर है.
रजत गोस्वामी कहते हैं, “आज श्री बांके बिहारी मंदिर का वैभव बढ़ गया है तो सरकार यहां अनियमितता दिखाकर इसका अधिग्रहण करना चाहती है. वृंदावन में छह हज़ार से अधिक मंदिर है. बहुत से ऐसे मंदिर है जहां दीपक जलाने की भी व्यवस्था नहीं है. क्या सरकार ने उन मंदिरों का अधिग्रहण किया. क्या सरकार की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ उन्हीं मंदिरों के लिए हैं जहां बड़ी तादाद में लोग आते हैं, जिनके अकाउंट में तीन सौ करोड़ रुपए हैं. क्या सरकार की नज़र इन तीन सौ करोड़ रुपयों पर है?”
जनहित याचिका और कई क़ानूनी विवाद
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श्री बांके बिहारी मंदिर में साल 2022 में कृष्ण जन्माष्टमी के मौक़े पर भगदड़ हुई थी जिसमें दो लोगों की मौत हुई थी और कई घायल हुए थे. इसके बाद मंदिर की व्यवस्था को लेकर सवाल उठे थे और सरकार ने यहां कॉरिडोर बनाने की मंशा ज़ाहिर की थी.
इसे लेकर जनहित याचिका भी विचाराधीन है. इसके अलावा मंदिर के प्रबंधन को लेकर लाए गए यूपी सरकार के अध्यादेश से जुड़ा मुक़दमा भी अदालत में है. ज़मीन अधिग्रहण से प्रभावित कई लोगों की याचिकाएं भी लंबित हैं.
लेकिन वृंदावन में कई लोग, इन क़ानूनों विवादों से इतर कॉरिडोर के प्रस्ताव को ख़ुद को अपनी ज़मीन और जड़ों से बेदख़ल किए जाने के रूप में देख रहे हैं.
दीपशिखा गोस्वामी कहती हैं, “ब्रज का ये स्वरूप है, ये कुंज गलियां हैं, ये विरासत है, तब ही तो इतने लोग यहां आते हैं, अगर ये विरासत नहीं रहेगी, ये संस्कृति नहीं रहेगी तो लोग यहां क्या देखने आएंगे?”
विरासत और विकास के बीच संतुलन का सवाल
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एक तरफ वृंदावन की सांस्कृतिक पहचान और पुराना स्वरूप है तो दूसरी तरफ़ लगातार यहां आने वाले श्रद्धालुओं की बढ़ती तादाद और उन्हें सुविधाएं मुहैया कराने का दबाव है.
मंदिर में भगवान के दर्शन खुलने से पहले ही बाहर भारी भीड़ लग जाती है. कई भक्त बमुश्किल मंदिर में दाख़िल हो पाते हैं. दर्शन के बाद मंदिर से बाहर निकल रहे कई श्रद्धालुओं की राय एक जैसी नज़र आती है.
कई बार वृंदावन आ चुके हरियाणा से आए एक श्रद्धालु कहते हैं, “भीड़ को नियंत्रित करने की व्यवस्था होनी चाहिए.”
पंजाब से आईं एक महिला श्रद्धालु कहती हैं, “भगवान के दर्शन का अपना अलग आनंद है, बस भीड़ को व्यवस्थित किया जाना चाहिए.”
कोलकाता से आए एक श्रद्धालु ऐसी ही राय ज़ाहिर करते हुए कहते हैं, “भक्तों के लिए सुविधाएं और बेहतर होनी चाहिए.”
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लेकिन सभी की राय ऐसी नहीं हैं. माथे पर चंदन लगाए एक श्रद्धालु मंदिर की दीवार को छूते हुए कहते हैं, “यहां असली रस भगवान कृष्ण की लीलाओं को महसूस करने में हैं. इन्हीं कुंज गलियों में ठाकुर जी ने हाथ लगाया. कॉरिडोर बनेगा तो ये रस ख़त्म हो जाएगा, ये आनंद नहीं आएगा.”
वृंदावन की गलियों में इन दिनों सबसे बड़ा सवाल यही है कि विकास और विरासत के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए.
मथुरा में रहने वाले और कॉरिडोर का समर्थन करने वाले बिहारीलाल शर्मा कहते हैं, “सरकार हिंदू स्थलों का गौरव बढ़ा रही है, विकास कर रही है. लेकिन विरासत भी संरक्षित की जानी चाहिए. सरकार यहां गुणात्मक परिवर्तन चाहती है, गोस्वामियों और सरकार के बीच सामंजस्य से ही यहां व्यवस्था बेहतर हो सकती है.”
लेकिन फ़िलहाल सरकार और सेवायत गोस्वामियों के बीच ना सामंजस्य नज़र आता है और ना ही संवाद. वृंदावन में अब आगे क्या होगा, ये बहुत कुछ अदालतों के निर्णय पर निर्भर करेगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित