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- Author, अभिनव गोयल
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
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झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81 साल की उम्र में निधन हो गया है.
सोमवार सुबह झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पिता शिबू सोरेन के निधन की ख़बर दी.
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर उन्होंने लिखा, “आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं. आज मैं शून्य हो गया हूं.”
झारखंड के पूर्व मंत्री बादल पत्रलेखा ने बीबीसी संवाददाता चंदन जजवाड़े के साथ बातचीत में बताया कि शिबू सोरेन करीब दो महीने से बीमार थे.
उनके मुताबिक दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था.
शिबू सोरेन झारखंड की राजनीति का एक बड़ा नाम थे. उनका जन्म साल 1944 में अविभाजित बिहार के हजारीबाग में हुआ था.
कैसे बने दिशोम गुरु?
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पिता सोबरन सोरेन की हत्या के बाद शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी शुरू कर दी थी.
दो दशकों तक झारखंड में पत्रकारिता करने वालीं डॉ. वासवी किड़ो कहती हैं, “अविभाजित बिहार के आदिवासी इलाकों में महाजनों का आतंक था. आदिवासी सूदखोरी के चक्र में फंसे हुए थे. इसके ख़िलाफ़ लड़ते हुए गुरु शिबू सोरेन के पिता की हत्या हुई थी.”
वे कहती हैं, “इसी प्रथा को खत्म करने के लिए शिबू सोरेन जी ने धान कटनी आंदोलन चलाया. उन्होंने आदिवासियों को जागरूक किया कि धान लगाने वाला ही धान काटेगा और इस पर महाजनों का कोई अधिकार नहीं है.”
किड़ो बताती हैं, “70 से 80 के दशक में ये आंदोलन बहुत बड़ा हो गया. उन्होंने झारखंड के किसानों, कामगारों और काश्तकारों को एकजुट किया और आदिवासियों को शोषण से मुक्त करवाने में अहम भूमिका निभाई.”
वे कहती हैं, “यही वजह है कि शिबू सोरेन को झारखंड के लोगों ने दिशोम गुरु की उपाधि दी. दिशोम का मतलब देश को दिशा देने वाला होता है और यहां देश का मतलब आदिवासी क्षेत्र से है.”
‘दिशोम गुरु शिबू सोरेन’ किताब के लेखक अनुज सिन्हा भी ऐसी ही बात करते हैं. उनका भी मानना है कि आदिवासी, सोरेन को अपने गार्जियन के तौर पर देखते हैं, क्योंकि उन्होंने उस समाज को दिशा दिखाने का काम किया.
बीबीसी से बात करते हुए वे कहते हैं, “1970 से 1975 के बीच शिबू सोरेन रात्रि पाठशाला चलाते थे, ताकि दिन भर अपना-अपना काम निपटाने के बाद आदिवासी लोग पढ़ पाएं. उनका मानना था कि शादी और त्योहारों पर खर्च कम करना चाहिए और पैसा बचाकर उसे शिक्षा पर लगाना चाहिए.”
अनुज सिन्हा बताते हैं, “पहली बार सांसद बनने के बाद जब उन्होंने संसद में भाषण दिया तो शराब के ख़िलाफ़ बोले. उनका मानना था कि आदिवासियों का विकास तब तक नहीं होगा, जब तक वे इससे दूर नहीं होंगे.”
वे कहते हैं, “शिबू सोरेन ने आदिवासियों को मान-सम्मान के साथ जीना सिखाया. यही वजह है कि लोग उन्हें दिशोम गुरु कहते हैं.”
अलग राज्य झारखंड के लिए आंदोलन
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झारखंड राज्य की मांग काफी पुरानी थी, लेकिन राजनीति में सक्रिय होने के बाद शिबू सोरेन ने इसे लेकर दशकों तक आंदोलन किया.
वरिष्ठ पत्रकार और झारखंड में समाचार एजेंसी यूएनआई के ब्यूरो चीफ विनय कुमार बताते हैं, “सरकार और प्रशासन की प्रताड़ना के बावजूद चार दशकों तक शिबू सोरेन ने संघर्ष किया. उसका ही परिणाम था कि साल 2000 में झारखंड को राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ.”
वहीं, दूसरी तरफ डॉ. वासवी किड़ो कहती हैं कि झारखंड राज्य के आंदोलन को शिबू सोरेन ने एक नया तेवर देने का काम किया.
वे कहती हैं, “साल 1973 में उन्होंने विनोद महतो और कामरेड एके राय के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की. यह संगठन आदिवासियों की लड़ाई का प्रतीक बना और दशकों के संघर्ष के बाद झारखंड बना.”
किड़ो बताती हैं, “अविभाजित बिहार में दक्षिण के क्षेत्र में 26 जिलों को मिलाकर एक सांस्कृतिक इकाई के रूप में उन्होंने झारखंड राज्य की कल्पना की थी.”
आंदोलन के दिनों को याद करते हुए वे कहती हैं, “80 के दशक में शिबू सोरेन की रैलियों में जनसैलाब उमड़ता था. जब वे जेएमएम के पहले सांसद बने तो आदिवासियों की आवाज़ संसद तक सुनाई देने लगी.”
वहीं लेखक अनुज सिन्हा बताते हैं, “आदिवासियों की संस्कृति, भाषा और उनके अधिकारों की बात ने झारखंड राज्य के आंदोलन की आवाज़ को बुलंद किया.”
कभी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए
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शिबू सोरेन ने साल 1977 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन वे जीत नहीं पाए.
राजनीतिक जानकारों के अनुसार जेएमएम के संस्थापक और वर्तमान में राज्यसभा के सांसद शिबू सोरेन 1980 से 2019 तक दुमका से सांसद और विधायक चुने जाते रहे.
इस दौरान वे दुमका लोकसभा क्षेत्र से आठ बार सांसद और जामा और जामताड़ा से एक-एक बार विधायक चुने गए. वहीं दो बार राज्यसभा के सांसद भी रहे.
वरिष्ठ पत्रकार विनय कुमार कहते हैं कि वे कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.
वे बताते हैं, “झारखंड बनने के बाद साल 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में उन्हें केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री बनाया गया, लेकिन तीस साल पुराने जामताड़ा के एक मामले में गिरफ्तारी वारंट जारी किए जाने की वजह से 24 जुलाई 2004 को उन्हें पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा.”
विनय बताते हैं, “हालांकि इस मामले में करीब एक महीने तक जेल में बंद रहने के बाद वे जमानत पर रिहा हुए. इसके बाद नवंबर 2004 को उन्हें फिर से केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन मार्च 2005 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया.”
झारखंड विधानसभा चुनाव के बाद 2 मार्च 2005 को वे पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण महज 10 दिन के भीतर ही उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा.
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इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जनवरी 2006 में शिबू सोरेन को तीसरी बार केंद्रीय कोयला मंत्री बनाया.
विनय कुमार कहते हैं, “इस बार भी दुर्भाग्य ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. इस बीच दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने उनके निजी सचिव शशिनाथ झा की हत्या के मामले में उन्हें दोषी करार दे दिया. इस वजह से नवंबर 2006 को उन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा, लेकिन 2007 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने हत्या के इस मामले में उन्हें बरी कर दिया.”
साल 2008 में झारखंड की मधु कोड़ा सरकार गिर गई. कांग्रेस, राजद और अन्य विधायकों के समर्थन से शिबू सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री बने.
लेकिन इस पद पर बने रहने के लिए उन्हें विधायकी का चुनाव जीतना था, तमाड़ विधानसभा के उपचुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, जिसके कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा.
साल 2009 में झारखंड विधानसभा चुनावों में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से शिबू सोरेन तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने.
लोकसभा में यूपीए सरकार का समर्थन करने के चलते बीजेपी ने समर्थन वापस लिया और राज्य में तीसरी बार उनकी सरकार गिर गई.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित