इमेज स्रोत, Getty Images
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और देश के पूर्व गृह मंत्री शिवराज पाटिल अब इस दुनिया में नहीं रहे. वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे.
12 दिसंबर की सुबह छह बजे के क़रीब उन्होंने महाराष्ट्र के लातूर स्थित अपने घर में अंतिम सांस ली. वह 91 साल के थे.
सात बार के सांसद शिवराज पाटिल भारत सरकार में गृह मंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, पंजाब के राज्यपाल और कई दूसरे प्रतिष्ठित पदों पर रहे.
ज़्यादातर नेता और वरिष्ठ पत्रकार उन्हें एक मृदुभाषी, सौम्य और सम्मानजनक नेता के तौर पर देखते हैं.
बीबीसी मराठी के संपादक अभिजीत कांबले शिवराज पाटिल के बारे में बताते हैं कि उनके काम करने की शैली बिल्कुल नौकरशाहों की तरह थी. उनकी संवैधानिक मामलों को लेकर समझ बहुत अच्छी थी क्योंकि वह वकील भी थे.
उनकी मौत की ख़बर सामने आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कांग्रेस और दूसरे अन्य दलों के दिग्गज नेताओं की प्रतिक्रियाएं आज पूरे दिन सामने आती रहीं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर लिखा, ”वह एक अनुभवी नेता थे. अपने सार्वजनिक जीवन में उन्होंने एक विधायक, सांसद, केंद्रीय मंत्री, महाराष्ट्र विधानसभा के साथ ही साथ लोकसभा के भी स्पीकर के रूप में काम किया.”
“वह समाज के कल्याण की दिशा में काम करने के लिए तत्पर रहते थे. पिछले सालों में कई बार उनसे बातचीत होती रही, कुछ महीने पहले वह मेरे निवास पर आए थे. इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार के साथ हैं.”
वहीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने उनके देहांत को ‘कांग्रेस के लिए एक अपूरणीय क्षति’ बताया है.
उन्होंने लिखा, “पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता शिवराज पाटिल जी के निधन का समाचार अत्यंत दुखद है और पार्टी के लिए एक अपूरणीय क्षति है.”
“जनसेवा के प्रति उनका समर्पण, राष्ट्र के लिए उनके योगदान हमेशा याद किए जाएंगे. इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं पूरे पाटिल परिवार, उनके शुभचिंतकों और समर्थकों के साथ हैं.”
सोनिया गांधी गांधी के क़रीबी
इमेज स्रोत, Getty Images
पाटिल को सोनिया गांधी के सबसे क़रीबी लोगों में गिना जाता रहा.
दोनों के रिश्तों की बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई अपने एक लेख में लिखते हैं, ”साल 1981…उन दोनों के रिश्ते के लिए एक महत्वपूर्ण साल माना जा सकता है. उस वक़्त लगभग 50 सांसदों का एक समूह, जिसका नेतृत्व तब के युवा शिवराज पाटिल कर रहे थे, इंदिरा गांधी से मिलने गया था. सांसदों की मांग थी कि राजीव गांधी राजनीति में आएं. उस समय मेनका गांधी भी संजय गांधी की मौत के बाद राजनीति में आने की कोशिश कर रही थीं.”
”UPA के दौर में शिवराज पाटिल सोनिया गांधी के भरोसेमंद नेताओं में से एक रहे. वे लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी गृह मंत्री बनाए गए. उन्हें राष्ट्रपति बनाने की भी तैयारी थी, लेकिन कांग्रेस के सहयोगियों के विरोध के कारण सोनिया गांधी को एक दूसरे ‘पाटिल’ प्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपति पद के लिए चुनना पड़ा.”
बीबीसी को दिए पुराने इंटरव्यू में क्या कहा था
इमेज स्रोत, Getty Images
साल 2004 में जब देश में यूपीए की सरकार बनी और गृह मंत्री का पद संभाले हुए शिवराज पाटिल को ज़्यादा दिन नहीं हुए थे, तब वह बीबीसी न्यूज़ हिन्दी के एक ख़ास कार्यक्रम ‘आपकी बात, बीबीसी के साथ’ में शामिल हुए थे.
इस कार्यक्रम में उनसे एक श्रोता ने दो साल पहले (2002 में) हुए गुजरात दंगों पर सवाल किया. श्रोता ने पूछा, “गुजरात दंगे की जब बात आती है तो हमेशा मुस्लिम पीड़ितों की बात की जाती है. जबकि पीड़ित हिंदू भी थे…उनके बारे में कोई बात क्यों नहीं करता है?”
जवाब में पाटिल ने कहा था, ”हमने कई बार इस पर बात की है. मरने वाला या प्रभावित कोई भी हो…हिंदू हो या मुसलमान हो, सिख हो या ईसाई…वो सारा ख़ून हमारा है. वो सारे हमारे भाई-बहन हैं. उनके लिए हमारे मन में दर्द की भावना है. किसी जात, किसी धर्म का नाम लेकर न्याय नहीं किया जा सकता. इंसान के नाम पर न्याय किया जाता है. लेकिन सुनने वाले केवल एक पक्ष को सुनते हैं.”
एक और श्रोता ने पूछा, ”पिछली एनडीए सरकार ने अयोध्या मामले के निपटारे के लिए एक अयोध्या सेल का गठन किया था…क्या सरकार उसे जारी रखेगी?”
इस सवाल पर पाटिल ने कहा था, ”हमें देखना होगा कि ये सेल क्या है लेकिन इस मामले पर हमारा रवैया ये है कि धर्म को आदमियों को जोड़ना चाहिए, तोड़ना नहीं चाहिए. मंदिर हो, मस्जिद हो, गिरिजाघर हो, वो मनुष्य को ईश्वर के साथ जोड़ने की जगह है, उसे मनुष्य को मनुष्य से तोड़ने की जगह नहीं बनानी चाहिए. और अगर ऐसी कोई चीज़ सामने आई है…जिसके ज़रिए इसे तोड़ने की कोशिश हुई है, तो उसका निदान कोर्ट से ही आएगा.”
उस वक्त तक शिवराज पाटिल को शायद ही पता रहा होगा कि गृह मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल आसान नहीं रहने वाला और देश में एक के बाद एक चरमपंथी घटनाओं के बीच उन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ जाएगा.
गृह मंत्री पद से इस्तीफ़ा
लेखक और वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ने अपने लेख में इस इस्तीफ़े के पीछे की कहानी बताई है.
वह लिखते हैं, “30 नवंबर, 2008 कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक थी और उस वक़्त सोनिया गांधी एक साथ कई ज़िम्मेदारियां निभा रही थीं. वह यूपीए की चेयरपर्सन थीं, कांग्रेस की अध्यक्ष, नेशनल एडवाइज़री काउंसिल की चेयरपर्सन और संसद में कांग्रेस पार्टी की मुखिया भी.”
“उन्होंने मीटिंग की शुरुआत की और अपनी शुरुआती टिप्पणियों में कहा, ‘संवेदना या प्रस्ताव से काम नहीं चलेगा. अब कार्रवाई करने और कुछ कठिन निर्णय लेने का समय है.’ डॉ मनमोहन सिंह ने अपने इस्तीफ़े की पेशकश की. भारी आलोचनाओं के बीच रक्षा मंत्री एके एंटनी और विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने भी अपना पद छोड़ने की पेशकश की.”
“अंत में डॉ करण सिंह उठे, जो राहुल गांधी के ठीक बगल में बैठे थे. उन्होंने सीधा केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल की तरफ़ देखा और कहा, ‘मिस्टर शिवराज पाटिल, पार्टी को बचाने के लिए आपको जाना होगा. कोई दूसरा रास्ता नहीं है’.”
विवादों से नाता
इमेज स्रोत, Getty Images
बीबीसी मराठी के संपादक अभिजीत कांबले बताते हैं कि वैसे तो शिवराज पाटिल की छवि ‘नो नॉन्सेंस’ यानी विवादों से दूर रहने वाले नेता के रूप में थी. लेकिन कुछ ऐसे मौके आए, जब चाहकर भी वह विवाद से खुद को बचा न सके.
जैसे यूपीए-1 की सरकार में गृह मंत्रालय की कमान शिवराज पाटिल के हाथों में थी और नक्सल हिंसा और चरमपंथी घटनाएं बड़ी चुनौती बनी हुई थी. ऐसे में साल 2008 में, जब मुंबई का 26/11 हमला हुआ तो शिवराज पाटिल के दिए कुछ बयान और पोशाकों को लेकर काफ़ी विवाद खड़ा हो गया.
दरअसल, जिस दिन ये घटना हुई थी, उस दिन शिवराज पाटिल मीडिया के कैमरों में अलग-अलग पोशाकों में नज़र आए थे. इसके बाद हर जगह यह चर्चा का विषय बन गया कि जब देश में इतनी बड़ी घटना हुई है तब गृह मंत्री का ध्यान घटना की बजाय बार-बार कपड़े बदलने पर है. तो क्या उन्हें सच में इस घटना की गंभीरता समझ आती भी है या नहीं.
यही नहीं, साल 2022 में गीता और जिहाद पर दिए अपने एक बयान के कारण भी पाटिल को बीजेपी और हिंदूवादी संगठनों की नाराज़गी और आलोचना का सामना करना पड़ा था.
राजनीतिक करियर
इमेज स्रोत, Getty Images
शिवराज पाटिल ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत लातूर शहर के मेयर के रूप में की थी. वह 1 अगस्त, 1966 से 31 मार्च, 1970 तक यहां के मेयर रहे. फिर दो साल बाद लातूर से ही विधायक भी चुने गए.
अपने कार्यकाल के दौरान वह महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष और कुछ महीनों के लिए अध्यक्ष भी रहे.
1980 में पाटिल लातूर से लोकसभा सांसद चुने गए. अपने पहले संसदीय कार्यकाल में ही उन्हें केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री की ज़िम्मेदारी सौंपी गई. दो साल तक इस मंत्रालय को संभालने के बाद वह एक साल के लिए वाणिज्य मंत्री बनाए गए और फिर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री.
साल 1990 में पहले लोकसभा के उपसभापति और फिर अगले छह सालों के लिए लोकसभा के अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी संभाली.
पाटिल साल 1980 से 1999 तक लोकसभा चुनाव में लातूर से सासंद चुने जाते रहे. लेकिन 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
इसके बावजूद पार्टी ने उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाया और फिर इसी साल वह देश के गृह मंत्री भी बनाए गए.
22 जनवरी, 2010 में राज्यसभा का कार्यकाल ख़त्म होने के बाद उन्हें पंजाब का राज्यपाल बनाया गया. वह 2015 तक इस पद पर बने रहे और फिर धीरे-धीरे राजनीतिक जीवन से दूर होते चले गए.
वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई बताते हैं कि उनकी आस्था साईंबाबा में थी.
वह कहते थे, ”जब भी संसद में हंगामा होने लगता, मैं अपनी आंखें बंद करके बाबा में ध्यान करने लगता, खुद को शांत करता और फिर थोड़ी ही देर बाद संसद में चीज़ें सामान्य होने लगतीं.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.