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बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना पिछले साल 5 अगस्त को हुए तख़्तापलट के बाद भारत पहुंची थीं.
पिछले लगभग सवा साल में बांग्लादेश में बहुत कुछ बदल गया है. शेख़ हसीना की भारत में मौजूदगी ने बांग्लादेश और भारत के रिश्तों में भी जटिलताएं पैदा की हैं.
अब, 17 नवंबर को बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने उन्हें मानवाधिकारों के ख़िलाफ़ अपराधों के लिए मौत की सज़ा सुनाई है.
इस फ़ैसले से पहले बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में शेख़ हसीना ने कहा था, “मैं यह दावा करती हूं कि ट्रायल ‘पूर्वनिर्धारित फ़ैसले’ की ओर जा रहा है. यह एक ‘कंगारू कोर्ट’ का ‘नाटक’ है जो मेरे राजनीतिक विरोधियों द्वारा नियंत्रित है.”
शेख़ हसीना ने कहा था, “मैं सभी आरोपों को स्पष्टतः नकारती हूं. न तो मैंने और न ही अन्य राजनीतिक नेताओं ने निहत्थे नागरिकों पर गोली चलाने का आदेश दिया.”
विश्लेषक मानते हैं कि शेख़ हसीना को सुनाई गई सज़ा भारत के लिए गहरी राजनीतिक और कूटनीतिक चुनौतियां पैदा कर सकती हैं.
शेख़ हसीना इस समय भारत की राजधानी दिल्ली में निर्वासित जीवन बिता रही हैं. बांग्लादेश की सरकार ने औपचारिक रूप से भारत से उन्हें सौंपने यानी प्रत्यर्पित करने के लिए कहा है.
हालांकि, विश्लेषक यह भी मानते हैं कि प्रत्यर्पण को लेकर भारत का रुख़ स्पष्ट है और शायद ऐसी स्थिति ना आए कि भारत को शेख़ हसीना को बांग्लादेश को सौंपने पर मजबूर होना पड़े.
हालांकि भारत के सामने बांग्लादेश की अदालत का शेख़ हसीना को मौत की सज़ा देने का यह निर्णय क़ानूनी, राजनीतिक, सुरक्षात्मक और क्षेत्रीय हितों के संदर्भ में अहम सवाल खड़े करता है.
बांग्लादेश की अदालत के फ़ैसले पर सवाल
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बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) के फ़ैसले की वैधता को लेकर भी गंभीर क़ानूनी सवाल खड़े हो रहे हैं.
बांग्लादेश की अदालत के इस फ़ैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय और मानवाधिकार संगठनों ने स्पष्ट कहा है कि आईसीटी में चला मुक़दमा अंतरराष्ट्रीय न्याय के मानकों को पूरा नहीं करता है.
अपने एक बयान में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) की प्रवक्ता रवीना शामदासानी ने कहा कि बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण के पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना और पूर्व गृह मंत्री के ख़िलाफ़ दिए गए फ़ैसले “पिछले साल विरोध प्रदर्शन के दौरान हुए दमन और गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों के पीड़ितों के लिए एक अहम पल हैं.”
हालांकि संयुक्त राष्ट्र ने मौत की सज़ा का विरोध किया. संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर तुर्क ने कहा कि वह किसी भी परिस्थिति में मौत की सज़ा दिए जाने का विरोध करते हैं. संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने यह भी कहा है कि “हम किसी भी स्थिति में मौत की सज़ा के ख़िलाफ़ हैं.”
वहीं वोल्कर तुर्क ने कहा कि वो उम्मीद करते हैं कि बांग्लादेश “सत्य, मुआवज़ा और न्याय की व्यापक प्रक्रिया के साथ आगे बढ़ेगा.” उन्होंने कहा कि सुलह ही आगे का रास्ता है.
बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण को शेख़ हसीना की सरकार के दौरान ही साल 2010 में स्थापित किया गया था. इसका मक़सद बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध के दौरान किए गए अपराधों के लिए सज़ा देना था.
अब बांग्लादेश की मौजूदा अंतरिम सरकार ने इसी न्यायाधिकरण में शेख़ हसीना और उनके सहयोगियों के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाया है.
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि ये मुक़दमा ‘ना ही न्यायसंगत है और ना ही निष्पक्ष.’
विश्लेषक मान रहे हैं कि भारत इस मुक़दमे की कार्रवाई को राजनीति से प्रेरित बताकर शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार डॉक्टर संजय भारद्वाज कहते हैं, “भारत का रुख़ स्पष्ट है कि अगर ये मुक़दमा राजनीति से प्रेरित है तो भारत प्रत्यर्पण नहीं करेगा.”
भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि

भारत और बांग्लादेश ने साल 2013 में प्रत्यर्पण संधि की थी. अब शेख़ हसीना के मामले में यही संधि भारत और बांग्लादेश के बीच कूटनीतिक विवाद का केंद्र बन सकती है.
दरअसल, बांग्लादेश ने औपचारिक रूप से भारत से शेख़ हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज़्ज़मां ख़ान कमाल के प्रत्यर्पण की मांग की है. बांग्लादेश ने तर्क दिया है कि संधि के मुताबिक़ यह भारत की ज़िम्मेदारी है.
हालांकि इस संधि में एक अहम प्रावधान भी है जो प्रत्यर्पण की मांग को अस्वीकार करने की अनुमति देता है. संधि के अनुच्छेद 6(1) के तहत यदि आरोप ‘राजनीतिक चरित्र’ के हों तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और एशिया सोसायटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के शोधार्थी डॉक्टर ऋषि गुप्ता कहते हैं, “भारत आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताकर प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है और इसका प्रावधान दोनों देशों के बीच हुई प्रत्यर्पण संधि में भी है.”
हालांकि इसमें भी पेंच हैं. संधि का अनुच्छेद 6(2) हत्या, आतंकवाद, किडनैपिंग जैसे गंभीर अपराधों को राजनीतिक अपराध की श्रेणी से बाहर रखता है.
हालांकि भारत इस संधि के अनुच्छेद 8(3) के तहत भी प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है. इसके तहत अगर “आवेदन सद्भावना से न किया गया हो या न्याय के हितों में न हो तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है.”
विश्लेषक मानते हैं कि शेख़ हसीना का मामला राजनीति से प्रेरित है. शेख़ हसीना को अगस्त 2024 में एक जन आंदोलन के बाद सत्ता से हटाया गया था. विश्लेषक मानते हैं कि उन पर चला मुक़दमा इस संदर्भ में देखा जाएगा.
भारत ने क्या प्रतिक्रिया दी है?
भारत ने बांग्लादेश की शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है. भारत ने सिर्फ़ इतना कहा है कि उसने बांग्लादेश की अदालत के फ़ैसले को नोट किया है.
एक सधी हुई प्रतिक्रिया में भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा, “भारत ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को सुनाई गई सज़ा का संज्ञान लिया है.”
भारत ने कहा, “एक क़रीबी पड़ोसी के रूप में भारत बांग्लादेश के लोगों के हितों के लिए प्रतिबद्ध है. इनमें शांति, लोकतंत्र, समावेशिता और देश की स्थिरता शामिल है. हम हमेशा सभी हितधारकों के साथ सकारात्मक रूप से जुड़ेंगे.”
विश्लेषक मानते हैं कि भारत शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग को ख़ारिज कर सकता है.
डॉ. संजय भारद्वाज कहते हैं, “भारत के सामने कोई जटिल स्थिति इसलिए नहीं है कि 2013 की जो प्रत्यर्पण संधि है उसमें स्पष्ट है कि देश मामले की वैधता को देखेगा. अगर मुक़दमा राजनीति से प्रेरित है तो भारत निश्चित रूप से देखेगा कि मुक़दमा कितना वैध है.”
डॉ. संजय भारद्वाज कहते हैं, “डॉ. मोहम्मद यूनुस अंतरिम राष्ट्राध्यक्ष हैं और उनके पास संवैधानिक मैंडेट नहीं है, ऐसे में भारत निश्चित रूप से मामले को मेरिट पर देखेगा. जब ये कथित अपराध हुए तो शेख़ हसीना वहां राष्ट्राध्यक्ष थीं, राष्ट्राध्यक्ष सीधे ऐसे अपराधों में शामिल नहीं होते हैं. ऐसे में इस मुक़दमे को भारत राजनीति से प्रेरित ही देखेगा. भारत इसको मेरिट देखेगा, इसका एथिकल और मोरल असेसमेंट करके ही फिर इस पर फ़ैसला लेगा.”
डॉ. ऋषि गुप्ता का नज़रिया भी ऐसा ही है. डॉ. ऋषि कहते हैं, “यह फ़ैसला भारत के मुक़ाबले बांग्लादेश पर ज़्यादा असर डालेगा क्योंकि भारत के पास प्रत्यर्पण का अपना एक नज़रिया है कि अगर मामला राजनीति से प्रेरित है तो भारत प्रत्यर्पण नहीं करेगा.”
यही नहीं, बांग्लादेश के न्यायाधिकरण की वैधता पर भी गंभीर सवाल हैं. डॉ. संजय भारद्वाज कहते हैं, “अंतरिम राष्ट्राध्यक्ष मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के पास कोई संवैधानिक जनादेश नहीं है, और इस प्रशासन की क़ानूनी स्थिति भी विवादास्पद है.”
शेख़ हसीना को मौत की सज़ा दी गई है. यह भी एक मुद्दा बन सकता है. संयुक्त राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकर संगठन और बहुत हद तक भारत, ये सभी मौत की सज़ा का विरोध करते हैं.
ऐसे में अगर भारत किसी ऐसे व्यक्ति को प्रत्यर्पित करता है जिसे मौत की सज़ा दी गई हो तो भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना का सामना करना पड़ सकता है.
विश्लेषक ये भी मानते हैं कि बांग्लादेश के साथ जुड़ी भारत की चिंताओं की वजह से भी शेख़ हसीना को लेकर भारत को नाज़ुक स्थिति का सामना करना पड़ सकता है.
डॉ. ऋषि गुप्ता कहते हैं, “भारत के लिए यह नाज़ुक स्थिति है क्योंकि अगर प्रत्यर्पण को लेकर बांग्लादेश की मांग बढ़ी तो भारत को क़नूनी और मानवीय नज़रिए से सोच समझकर कदम उठाना होगा.”
भारत के सामने बांग्लादेश के नए प्रशासन को साधने की चुनौती
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बांग्लादेश की अदालत का यह फ़ैसला और शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में पहले से तनाव की स्थिति को और जटिल या ख़राब कर सकता है.
बांग्लादेश में शेख़ हसीना को पद से हटाए जाने और उनके बाद मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के आने के बाद से दोनों देशों के संबंध गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं. बांग्लादेश की सरकार ने भारत की शेख़ हसीना को शरण देने के लिए आलोचना की है, जबकि भारत ने बांग्लादेश में सांप्रदायिक हिंसा पर चिंता व्यक्त की है और धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठाए हैं.
बांग्लादेश के साथ भारत की लंबी सीमा है और भारत के सामरिक और सुरक्षा हित बांग्लादेश के साथ जुड़े हैं. ऐसे में विश्लेषक मानते हैं कि भारत को बांग्लादेश के नए प्रशासन को भी साधना होगा.
डॉ. संजय भारद्वाज कहते हैं, “मुझे लगता है कि भारत और बांग्लादेश पिछले डेढ़ साल से भरोसे की स्थिति में हैं, और यह स्थिति आगे और ख़राब नहीं होगी क्योंकि दोनों देशों के बीच कॉम्प्लेक्स इंटरडिपेंडेंसी (एक दूसरे पर निर्भरता) है, और दोनों ही देश एक-दूसरे को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते. दोनों देशों के बीच जो स्थिति है वो बनी रहेगी और राजनीतिक और कूटनीतिक रूप से बात आगे बढ़ती रहेगी.”
लेकिन हाल के समय में बांग्लादेश पाकिस्तान और चीन के अधिक क़रीब जाता दिखा है. ये स्थिति भारत के लिए जटिलताएं पैदा कर सकती है. हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि भारत ऐसी स्थितियों से निबटने में सक्षम है.
डॉ. भारद्वाज कहते हैं, “भारत बहुत सावधानी से और साधकर बांग्लादेश के साथ अपने संबंध बढ़ा रहा है. जब शेख़ हसीना सत्ता में थी तो भारत ने बांग्लादेश को बहुत प्राथमिकता दी थी, अब वैसी बात नहीं है. अगर बांग्लादेश के स्टेट हेड दबाव की कूटनीति करते हैं, चीन जाकर कहते हैं कि भारत का पूर्वोत्तर हिस्सा बांग्लादेश से घिरा है और चीन यहां कारोबार कर सकता है तो यह मानकर चला जाना चाहिए कि दबाव देकर, कट्टरता को बढ़ाकर, क्षेत्रीय शक्तियों को बीच में लाकर, आप भारत को दबाव में नहीं ला सकते, क्योंकि जितना भारत को बांग्लादेश की ज़रूरत है उतनी ही बांग्लादेश को भी भारत की ज़रूरत है.”
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विश्लेषक यह भी मानते हैं कि भारत को समझना होगा कि अब बांग्लादेश में नया नेतृत्व है और भारत को उसे भी साधकर रखना होगा.
डॉ. ऋषि गुप्ता कहते हैं, “यह एक नया बांग्लादेश उभर रहा है जिसमें नए-नए स्टेकहोल्डर्स हैं, इसलिए भारत को बांग्लादेश के साथ अपने रिश्तों को सकारात्मक और उत्पादक बनाए रखना होगा. भारत को यह स्वीकार करना होगा कि पिछले 50 साल का इतिहास अब उतना प्रासंगिक नहीं है और नए राजनीतिक दलों एवं युवा वर्ग के साथ संवाद करना ज़रूरी है.”
किसी भी क्षेत्रीय अस्थिरता का असर पड़ोसी देशों पर होता है. भारत के सुरक्षा हित बांग्लादेश से जुड़े हैं. ऐसे में विश्लेषक मानते हैं कि बांग्लादेश को साधकर रखना भी भारत की ज़रूरत है.
डॉ. ऋषि गुप्ता कहते हैं, “चीन का बंगाल की खाड़ी में नेवल एक्सपेंशन भारत के लिए एक सुरक्षा चिंता है, इसलिए भारत को बांग्लादेश के नए स्टेकहोल्डर्स के साथ सहयोग बढ़ाना होगा.”
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