जनवरी में 9 कारोबारी सत्रों में से 6 सत्रों में बिकवाल रहे हावी
लगातार चौथे कारोबारी सत्र में गिरा बाज़ार
विदेशी संस्थागत निवेशक कर रहे हैं मुनाफ़ावसूली
कच्चे तेल में उबाल ने भी बिगाड़ा निवेशकों का मिज़ाज
भारतीय शेयर बाज़ार में बिकवाली लगातार जारी है. सोमवार को बीएसई सेंसेक्स इंडेक्स 1049 अंक लुढ़ककर 76,330 के निचले स्तर पर पहुंच गया.
इसी तरह, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी 345 अंक टूटकर 23,086 के निचले स्तर पर आ गया.
बिकवाली किसी ख़ास सेक्टर तक सीमित नहीं रही बल्कि ऑटो, बैंक, सीमेंट, स्टील, फार्मा और सभी दूसरे शेयरों में बिकवाली हावी रही.
आलम ये रहा कि सेंसेक्स के 30 शेयरों में से सिर्फ़ एक्सिस बैंक, टीसीएस, हिंदुस्तान यूनिलीवर और इंडसइंड बैंक के शेयर ही हरे निशान में बंद होने में कामयाब रहे.
आख़िर क्या हैं वो वजहें जिससे भारतीय शेयर बाज़ारों में गिरावट का रुख़ है.
अमेरिका ने बढ़ाई बेचैनी
शुक्रवार को अमेरिका में रोज़गार के आंकड़े जारी हुए. दिसंबर में वहां बेरोज़गारी घटी है. इससे दुनियाभर के बाज़ारों में बेचैनी बढ़ी है.
शेयर बाज़ार एक्सपर्ट आसिफ़ इक़बाल कहते हैं, “अमेरिका में बेरोज़गारी के आंकड़ों में कमी आई है यानी इसे वहाँ आर्थिक तरक़्क़ी की सही दिशा माना जाएगा, लिहाज़ा अमेरिका के केंद्रीय बैंक फ़ेडरल रिज़र्व से ब्याज दरों में कटौती की जो उम्मीदें दुनिया ने लगाई थी, वो फ़िलहाल पूरी होती नहीं दिखाई दे रही हैं. इसका असर दुनियाभर के बाज़ार और ख़ासकर भारत जैसे उभरते बाज़ारों पर दिख रहा है.”
इसके अलावा, अमेरिका में महंगाई को लेकर भी चिंताएं बरक़रार हैं.
आसिफ़ कहते हैं, “महंगाई का रुख़ ऐसा ही रहा तो ब्याज दरों में कटौती छोड़िए, कहीं फ़ेडरल रिज़र्व ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने का चौंकाने वाला फ़ैसला न कर दे.”
विदेशी निवेशकों की बिकवाली
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफ़पीआई) लगातार भारतीय बाज़ारों में बिकवाली कर रहे हैं.
दिसंबर 2024 में यूँ तो एफ़पीआई की कुल सौदेबाज़ी ने उन्हें ख़रीदार बनाए रखा, लेकिन दिसंबर के आख़िरी दो हफ्तों में बिकवाली में तेज़ी आई थी.
आसिफ़ बताते हैं, “यही वजह थी कि भारतीय बाज़ार 2 फ़ीसदी से अधिक टूट गए थे. यही नहीं, अक्टूबर और नवंबर में एफ़पीआई ने डेढ़ लाख करोड़ रुपये से के अधिक शेयर बेचे.”
जानकारों का कहना है कि विदेशी निवेशकों के इस मोहभंग की वजह भारतीय शेयर बाज़ारों की अधिक वैल्यूएशन, कंपनियों के उम्मीदों से कम नतीजे और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी शामिल है.
एफ़पीआई का दबाव भारतीय बाज़ारों पर दिख ही रहा था कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की प्रस्तावित टैरिफ़ पॉलिसी ने उभरते बाज़ारों का मूड बिगाड़ दिया.
डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह अमेरिकी व्यापार को दुनियाभर के देशों के लिए अधिक प्रतिस्पर्धी बनाएंगे.
ख़ासकर चीन को लेकर ट्रंप की बयानबाज़ी ने चिंता में डाला है. इससे महंगाई बढ़ने की आशंका है और फ़ेडरल रिज़र्व के सामने ब्याज दरों में कटौती का रास्ता मुश्किल हो जाएगा.
कच्चे तेल में उबाल
कच्चे तेल की क़ीमतों ने भी निवेशकों के सेंटिमेंट पर असर डाला है. ब्रेंट क्रूड 81 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर पहुँच गया. ये कीमत पिछले चार महीनों में सबसे अधिक है.
आसिफ़ बताते हैं, “माना जा रहा है कि रूस से कच्चे तेल के निर्यात के मुद्दे पर अमेरिका और सख्ती कर सकता है. इसका सबसे ज़्यादा असर चीन और भारत पर पड़ सकता है.”
भारतीय अर्थव्यवस्था कच्चे तेल के आयात पर बहुत ज़्यादा निर्भर है. भारत ने पिछले साल रूस से बड़े पैमाने पर कच्चे तेल का आयात किया था.
रुपये में कमज़ोरी
डॉलर के मुक़ाबले रुपया लगातार कमज़ोर हो रहा है. सोमवार को भी ये कमज़ोरी जारी रही.
रुपये ने 86 के स्तर को भी तोड़ दिया यानी एक डॉलर की कीमत 86 रुपये से अधिक हो गई.
रुपये में इस कमज़ोरी की वजह भी कच्चे तेल की कीमतों में उछाल, विदेशी निवेशकों का डॉलर समेट कर दूसरे देशों में चले जाना है.
आसिफ़ कहते हैं, “ऐसा लगता है कि भारतीय रिज़र्व बैंक रुपये की गिरावट में अभी दख़ल नहीं देना चाहता. मतलब ये है कि रुपये में गिरावट का दौर शायद कुछ और समय देखने को मिल सकता है.”
रुपये के कमज़ोर होने का मतलब है कि निर्यात की लागत बढ़ जाएगी. इससे ज़रूरी चीज़ों के दाम बढ़ जाएंगे. महंगाई बढ़ने की सूरत में रिज़र्व बैंक भी ब्याज दरों में कटौती का फैसला लंबे समय के लिए टाल सकता है.
कंपनियों के कमज़ोर नतीजे
कंपनियों के तीसरी तिमाही के नतीजे आने का सिलसिला शुरू हुआ है. दूसरी तिमाही में कई सेक्टर में कंपनियों का प्रदर्शन कमज़ोर रहा था और इसका सीधा असर मार्केट के सेंटिमेंट पर पड़ा था.
जानकारों का कहना है कि हालाँकि आईटी सेक्टर में डिमांड में रिकवरी देखने को मिल सकती है, लेकिन इसका असर तिमाही नतीजों में दिखने में समय लग सकता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित