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श्याम बेनेगल, जिन्होंने सार्थक सिनेमा की शाम नहीं ढलने दी

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Dec 24, 2024


श्याम बेनेगल

इमेज स्रोत, Getty Images

इमेज कैप्शन, श्याम बेनेगल हिन्दी सिनेमा में सार्थक और समानांतर फ़िल्मों के अग्रदूत माने जाते थे

1970 का दशक था. हिंदी सिनेमा में गीत-संगीत और रोमांटिक कहानियों वाले सुपर स्टार राजेश खन्ना के दौर को चुनौती देने एंग्री यंग मैन आ चुका था.

मगर उसका ग़ुस्सा भी यथार्थ से ज़रा दूर, फ़िल्मी ही था. ये बात आज विचित्र लग सकती है कि विज्ञापन की दुनिया से आए एक फ़िल्मकार ने सिनेमा को केवल विशुद्ध मनोरंजन का साधन मानने से साफ़ इनकार कर दिया.

ये फ़िल्मकार थे श्याम बेनेगल, जिन्होंने फ़िल्मों को समाज को आईना दिखाने और बदलाव लाने के एक माध्यम के रूप में देखा. यही नज़र थी, जिसके साथ श्याम बेनेगल ने 1974 में अपनी पहली फ़िल्म ‘अंकुर’ के साथ मुख्यधारा की मसाला फ़िल्मों के समानांतर एक गाढ़ी लक़ीर खींच दी.

‘अंकुर’ की पटकथा को वो 13 वर्षों से बनाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन कोई उसमें दिलचस्पी नहीं दिखाता था. इसी अंकुर ने हिंदी फिल्मों में एक नई उम्मीद, एक क्रांतिकारी न्यू वेव का आगाज़ किया, जिसे भारतीय फ़िल्म इतिहास में इसे समानांतर सिनेमा कहा गया. इसके अग्रदूत श्याम बेनगल ही थे.

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