- Author, दिलनवाज़ पाशा
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, संभल से
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल शहर के बीचों-बीच स्थित शाही जामा मस्जिद के बाहर भारी पुलिस बल तैनात है. जगह-जगह पत्थर पड़े हैं. जली हुई गाड़ियों को हटा दिया गया है लेकिन राख़ के निशान बाक़ी हैं.
रविवार सुबह अदालत के आदेश पर हो रहे जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान उत्तेजित भीड़ और पुलिस के बीच हुई हिंसा में अब तक कम से कम चार लोगों की गोली लगने से मौत की पुष्टि हुई है, जबकि बीस से अधिक पुलिसकर्मी घायल हैं.
पुलिस प्रशासन का कहना है कि हिंसा की घटना में चार लोगों की मौत हुई है. मारे गए लोगों के नाम बिलाल, नईम, कैफ़ और आयान (16 साल) हैं.
मृतकों के परिजनों का दावा है कि मौत पुलिस फ़ायरिंग में हुई है.
इस बीच, मुरादाबाद रेंज के पुलिस उपमहानिरीक्षक (डीआईजी) मुनिराज जी ने दावा किया है कि पुलिस ने गोली नहीं चलाई है.
बीबीसी संवाददाता सुमेधा पाल के साथ बातचीत में संभल के सांसद ज़िया उर रहमान बर्क़ ने इस घटना के लिए पुलिस प्रशासन को ज़िम्मेदार ठहराया है.
सुरक्षा के लिए आस-पास के ज़िलों से पुलिस बल बुलाए गए हैं. गलियां सूनी हैं और पुलिसकर्मियों के अलावा इक्का-दुक्का लोग ही आते-जाते दिखाई दे रहे हैं.
स्थानीय प्रशासन ने संभल में इंटरनेट बंद कर दिया है और एक दिसंबर तक बाहरी लोगों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनेताओं के संभल आने पर रोक लगा दी है. बारहवीं क्लास तक के स्कूलों को भी बंद कर दिया गया है.
पुलिस का दावा है कि हालात सामान्य हैं और स्थिति को नियंत्रित कर लिया गया है.
पुलिस का क्या दावा है?
मुरादाबाद रेंज के पुलिस उपमहानिरीक्षक (डीआईजी) मुनिराज जी ने सोमवार सुबह मीडिया को बताया, “स्थिति को नियंत्रित कर लिया गया है, पुलिस बल तैनात है.”
डीआईजी ने अब तक इस हिंसा में चार लोगों की मौत की पुष्टि की है. बीबीसी से बातचीत में मुनिराज ने ये भी दावा किया है कि पुलिस ने गोली नहीं चलाई है.
वहीं, संभल पुलिस ने सांसद ज़ियाउर्रहमान बर्क़ समेत 2700 से अधिक लोगों पर मुक़दमा दर्ज किया है. रविवार देर शाम तक 25 लोगों को गिरफ़्तार भी कर लिया गया था.
सांसद बर्क़ ने बीबीसी से कहा है कि जब रविवार को दूसरा सर्वे चल रहा था और हिंसा हुई उस समय वो ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ की बैठक में बेंगलुरु में थे.
उन्होंने कहा, “पहले सर्वे के दौरान मैं वहीं था तब ऐसी कोई घटना नहीं हुई बल्कि मेरी ग़ैर मौजूदगी में इस हिंसा की साज़िश रची गई.”
ज़िया उर रहमान बर्क़ ने बीबीसी को फ़्लाइट की टिकट भी दिखाई.
संभल के पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार ने एक बयान में कहा है कि उपद्रव में शामिल अभियुक्तों की पहचान ड्रोन फुटेज और घटना के वीडियो के आधार पर की जाएगी और हिंसा में शामिल हर व्यक्ति को गिरफ़्तार किया जाएगा.
मारे गए लोगों के परिजन क्या कह रहे हैं?
इस बीच हिंसा में मारे गए लोगों के शवों को दफ़ना दिया गया है. संभल के मोहल्ला तबेला कोट में एक दुकान के शटर से पार निकली गोली का निशान यहां हुई हिंसा की कहानी बयां कर रहा है.
इसी मोहल्ले के रहने वाले 34 वर्षीय नईम ग़ाज़ी की रविवार को हुई हिंसा में मौत हो गई. उन्हें गोलियां लगी थीं.
नईम की विधवा मां घर के बाहर एक युवक से लिपट कर रोते हुए बार-बार कह रही थीं, “मेरे शेर जैसे बेटे को जामा मस्जिद के पास घेर कर मार दिया.”
जब हम उनसे मिले, नईम का शव पोस्टमार्टम हाउस में था. उनकी मां इदरो ग़ाज़ी कहती हैं, “मेरा बेटा घर का अकेला कमाने वाला था, अब मैं अपने चार बच्चों का पेट कैसे भरूंगी. मैंने विधवा होते हुए अपने बच्चों को पाला, मेरा बुढ़ापे का सहारा छिन गया है.”
इदरो कहती हैं, “मेरा बेटा मिठाई का दुकान चलाता था, वो अपनी मोटरसाइकिल से तेल का पीपा ख़रीदने गया था. हमारे पास सुबह ग्यारह बजे फोन आया कि उसे गोली लग गई है. मैं बस ये चाहती हूं कि मेरे बच्चे की लाश हमें मिल जाए.”
नईम के चार बच्चे थे. उनकी पत्नी बिलकुल ख़ामोश हैं. वो सिर्फ़ इतना ही कहती हैं, “जो हो रहा है वो इंसाफ़ नहीं है, मुसलमानों को इकतरफ़ा निशाना बनाया जा रहा है, ये ज़ुल्म है.”
अपनी बहू को दिलासा देते हुए इदरो कहती हैं, “हम कोई मुक़दमा नहीं करेंगे, हम सब्र कर लेंगे, हम घर पर बैठ जाएंगे, पुलिस और सरकार से लड़ने की हिम्मत हम में नहीं है.”
‘मेरे बेटे के सीने पर पुलिस ने गोली मारी’
यहां से क़रीब दो किलोमीटर दूर बाग़ीचा सरायतरीन मोहल्ले में एक मस्जिद के बाहर लोगों की ख़ामोश भीड़ है. यहीं मस्जिद की सीढ़ियों पर नफ़ीस सिर झुकाए बैठे हैं. उनके बाइस साल के बेटे बिलाल की भी इस हिंसा में मौत हुई है.
बेटे का नाम लेते ही नफ़ीस फफक पड़ते हैं. उनका बेटा बिलाल कपड़ों का काम करता था.
नफ़ीस कहते हैं, “पुलिस ने मेरे बेटे के सीने पर गोली मारी है. मेरा बेटा बेग़ुनाह था, वो दुकान के लिए कपड़े लेने गया था. मेरे बेटे की मौत की ज़िम्मेदार पुलिस है.”
वो इसके लिए किसे ज़िम्मेदार मानते हैं, इस सवाल पर लंबी ख़ामोशी के बाद वो कहते हैं, “हम किसे ज़िम्मेदार बताएं, सभी को दिख रहा है कौन ज़िम्मेदार है. हमारा कोई नहीं है, हमारा बस अल्लाह है, मेरा जवान बेटा था, उसकी शादी की तैयारी करनी थी, वो चला गया. मैंने ठेला खींच-खींच कर उसे पाला. पुलिस की गोली ने उसे हमसे छीन लिया.”
17 साल के मोहम्मद क़ैफ़ की भी इस हिंसा में मौत हुई. तुर्तीपुरा मोहल्ले के रहने वाले मोहम्मद क़ैफ़ के घर में मातम है. महिलाओं के चीखने की आवाज़ यहां पसरे सन्नाटे को तोड़ती है.
क़ैफ़ के पिता लोगों को समझाते हुए कहते हैं, “मेरा बेटा चला गया है, अब वो लौट कर नहीं आएगा. हमें सब्र करना है. ख़ामोशी से उसे दफ़नाना है.”
जब हम क़ैफ़ के घर पहुंचे, उनका शव पोस्टमार्टम हाउस में ही था. कैफ़ की मां अनीसा रोते-रोते बदहवास हो गई थीं.
अनीसा कहती हैं, “मेरा बेटा फेरी लगाता था, बिसातखाना (कॉस्मेटिक सामान) बेचता था, हमें तो शाम तक पता भी नहीं था कि उसकी मौत हो गई है. हम दिन भर उसे खोज रहे थे.”
अनीसा आरोप लगाती हैं कि दोपहर के वक़्त पुलिस आई थी और घर का दरवाज़ा तोड़कर उनके बड़े बेटे को घर से खींचते हुए ले गई थी.
वहीं, क़ैफ़ के मामा मोहम्मद वसीम कहते हैं, “मेरे एक भांजे को पुलिस ने गोली मार दी, दूसरे को घर से खींच कर ले गए. हमारा बस इतना ग़ुनाह है कि हम मुसलमान हैं, हमें तो इंसान भी नहीं समझा जा रहा है.”
किसकी गोली से हुई मौत?
मारे गए लोगों के परिजनों का आरोप है कि पुलिस की गोली लगने से उनकी मौत हुई है. हालांकि पुलिस का कहना है कि भीड़ की तरफ़ से गोलीबारी हुई. पुलिस ने रविवार के घटनाक्रम में चार लोगों की मौत की पुष्टि की है. इनकी मौत किन परिस्थितियों में हुई ये जांच के बाद स्पष्ट होगा.
संभल के हयातनगर इलाक़े के पठानों वाले मोहल्ले के एक क़ब्रिस्तान में क़रीब चालीस साल के रोमान ख़ान को ख़ामोशी से दफ़नाया गया. उनकी क़ब्र के पास बिलखती उनकी बेटी को यहां आए लोगों ने चुप कराया.
मुरादाबाद के कमिश्नर आंजनेय कुमार ने रविवार को मीडिया से बात करते हुए संभल में मारे गए जिन लोगों का ज़िक्र किया था उनमें रोमान ख़ान का भी नाम था.
उनके जनाज़े में आए लोग दबी ज़बान में कह रहे थे कि पुलिस की गोली से उनकी मौत हुई.
लेकिन रोमान ख़ान के परिजन उनकी मौत के बारे में बात करने के लिए तैयार नहीं थे. रोमान ख़ान को बिना पोस्टमार्टम किए ही दफ़ना दिया गया.
उनके एक रिश्तेदार ने नाम न ज़ाहिर करते हुए कहा, “परिवार ना ये चाहता था कि उनका पोस्टमार्टम हो और ना ही ये चाहता था कि कोई मुक़दमा करे. हम सबने सब्र कर लिया है और ख़ामोशी से उनकी लाश को दफ़ना दिया है.”
दफ़न में शामिल लोगों को इस बात का भी डर था कि अगर वो कैमरे में दिखे तो पुलिस जांच के नाम पर उन्हें भी हिरासत में ले सकती है.
यहां मौजूद एक स्थानीय कांग्रेस नेता तौकीर अहमद ने कहा, “लोगों में ऐसा ख़ौफ़ है कि वो ये भी बोलने को तैयार नहीं हैं कि मरने वाला कैसे मरा.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित