बशर अल असद के सत्ता से हटने के बाद अरब जगत में सीरिया को लेकर गतिविधियां काफ़ी तेज़ हो गई हैं.
असद शासन में ईरान और रूस का बेहद क़रीबी रहा सीरिया अब सऊदी अरब और पश्चिमी जगत के नज़दीक जाता दिख रहा है और इसकी बड़ी वजह है सऊदी अरब की एक कोशिश.
सऊदी अरब ने राजधानी रियाद में रविवार को एक बड़े सम्मेलन का आयोजन किया.
सऊदी मीडिया के मुताबिक़- इसमें जॉर्डन, लेबनान, मिस्र, इराक़ और तुर्की के साथ-साथ अमेरिका, ब्रिटेन, स्पेन, इटली, जर्मनी, यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि शामिल हुए.
बशर अल-असद को कुर्सी से हटाने के बाद सीरिया को लेकर ये एक पहला बड़ा सम्मेलन था.
इस सम्मेलन में बैठकें दो भागों में हुईं. पहले भाग में अरब जगत के मुल्क शामिल हुए ,वहीं दूसरे में अमेरिका-ब्रिटेन समेत यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र शामिल हुए.
सऊदी अरब की क्या है मांग?
रियाद में हुए सम्मेलन में सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फ़ैसल बिन फ़रहान ने सीरिया पर से प्रतिबंध हटाने की मांग की है. उनका तर्क है कि सीरिया को दोबारा खड़ा करने और उसके विकास में ये प्रतिबंध आड़े आएंगे.
प्रिंस फ़ैसल ने कहा, “सीरिया पर लगाए गए एकतरफ़ा और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को हटाने के महत्व पर हमने ज़ोर दिया है. क्योंकि इनके जारी रहने से सीरियाई लोगों के विकास और पुनर्निर्माण की आकांक्षाओं में बाधा खड़ी हो रही है.”
इस बैठक में सीरिया के नए विदेश मंत्री ने भी भाग लिया. विदेश मंत्री असद हसन अल-शैबानी ने सीरिया के नेतृत्व का प्रतिनिधित्व किया.
प्रिंस फ़ैसल ने कहा कि नए सीरियाई प्रशासन के उठाए गए सकारात्मक क़दमों का सम्मेलन में शामिल देशों ने स्वागत किया है, इसमें ‘संयुक्त वार्ता और आतंकवाद से लड़ने के लिए प्रतिबद्धता’ अपनाना भी शामिल है.
सऊदी अरब के विदेश मंत्री ने ये भी कहा कि बैठक का मक़सद नए नेतृत्व को इस तरह से समर्थन और सलाह प्रदान करना था, जिससे उनकी स्वतंत्रता का सम्मान हो और यह भी ध्यान में रखा जाए कि देश का भविष्य सीरियाई लोगों के लिए है.
उन्होंने कहा, “सीरियाई राष्ट्र के क्षेत्र में मानवीय और आर्थिक मदद जारी रखने, स्थिरता हासिल करने, पुनर्निर्माण और सीरियाई शरणार्थियों की वापसी के लिए उपयुक्त माहौल तैयार करने के महत्व पर हमने ज़ोर दिया है.”
प्रिंस फ़ैसल ने ये भी कहा कि सऊदी किंगडम सीरिया और उसकी जनता के साथ खड़ा है और सहयोग जारी रखना चाहता है.
पश्चिम इस सम्मेलन पर क्या बोला
इस सम्मेलन में शामिल हुए पश्चिमी देशों और उसके संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी अपनी बात रखी है. अमेरिका और यूरोपीय संघ समेत कई देशों ने 2011 में सीरिया पर बड़े प्रतिबंध लगाए थे.
अब यूरोपीय संघ और जर्मनी के प्रतिनिधियों ने सीरिया पर लगे प्रतिबंधों पर सकारात्मक रुख़ दिखाया है.
यूरोपीय संघ के विदेश मामलों की कमिश्नर काया काल्लास ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि प्रतिबंधों में ढील के मुद्दे पर वो 27 जनवरी को होने वाली यूरोपीय देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में इसकी चर्चा करेंगी.
उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ आगे क़दम उठाने को तैयार है अगर प्रगति सकारात्मक होती है, वरना इसका उलटा भी हो सकता है.
काया काल्लास ने कहा कि यूरोपीय संघ तीन चीज़ों को नज़र में रखे हुए है. पहला है सरकार में विभिन्न समूहों की भागीदारी, कट्टरपंथ पर लगाम और प्रक्रिया में महिलाओं को शामिल करना.
जर्मनी की विदेश मंत्री अनालीना बेयरबॉक ने कहा है कि गृह युद्ध के दौरान गंभीर अपराध करने वाले असद के सहयोगियों पर प्रतिबंध जारी रहेगा.
उन्होंने ये भी कहा कि सीरिया की आंतरिक प्रक्रिया प्रभावित नहीं होनी चाहिए और ‘सभी पड़ोसी राष्ट्रों को सीरिया की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए.’
साथ ही जर्मनी ने घोषणा की है कि वो 5.13 करोड़ डॉलर की मानवीय सहायता सीरिया को देगा. इसके अलावा जर्मनी ने ये भी कहा है कि वो सीरिया और उसके लोगों के साथ खड़ा रहेगा.
सऊदी अरब क्यों है आगे?
बशर अल-असद के शासन तक सऊदी अरब और सीरिया के रिश्ते काफ़ी उतार-चढ़ाव भरे थे. असद शासन जहां ईरान और रूस के नज़दीक था, वहीं सऊदी अरब अमेरिका और पश्चिमी मुल्कों के अधिक नज़दीक है.
दूसरी ओर सीरिया सुन्नी मुस्लिम बहुल मुल्क है जिसका शासन हाल तक बशर अल-असद के हाथों में था जो कि अलावाइत समुदाय से आते हैं. ये समुदाय शिया इस्लाम को मानता है और सीरिया में सबसे पिछड़ा समुदाय था.
बशर अल-असद को सत्ता से उखाड़ने वाला संगठन हयात तहरीर अल-शाम एक सुन्नी मुस्लिम संगठन है और उसके नेता अहमद अल-शरा हैं.
सऊदी अधिकारियों ने समाचार एजेंसी एएफ़पी से सीरिया को लेकर हुए सम्मेलन पर कहा कि ये असद शासन के ख़ात्मे के बाद बीते महीने जॉर्डन के अक़ाबा में हुई बैठक का ही विस्तार है.
सऊदी अरब और दूसरे खाड़ी मुल्कों के सीरिया के साथ राजनयिक रिश्ते तब और ख़राब हो गए थे जब उन्होंने फ़रवरी 2012 में अपने दूतावासों को प्रदर्शनों को हिंसक तरीक़े से कुचलने के विरोध में बंद कर दिया था.
मार्च 2023 में रियाद ने दोनों देशों के बीच में कांसुलर सेवाओं को लेकर बातचीत बहाल की थी. इसके बाद सऊदी अरब की कोशिशों के बीच ही अरब लीग में सीरिया की वापसी हुई थी और बीते साल मई में जेद्दाह में हुए सम्मेलन में बशर अल-असद ने भाग लिया था.
वॉशिंगटन में अरब गल्फ़ स्टेट्स इंस्टिट्यूट की एना जैकब्स कहती हैं कि ये सम्मेलन संदेश देता है कि सऊदी अरब सीरिया को वापस खड़ा करने में क्षेत्रीय कोशिशों में सहयोग की दिशा में ख़ुद को आगे रखना चाहता है.
उन्होंने कहा, “ये सिर्फ़ सीरिया के पुनर्विकास और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार को दोबारा खोलने के लिए नहीं है. मैं यहां एक बहुत महत्वपूर्ण बिंदु पर ध्यान दिलाना चाहता हूं. सऊदी अरब के विदेश मंत्री ने अपने बयान में लोकतंत्र या चुनाव को लेकर नहीं, बल्कि स्थिरता और सुरक्षा पर बात की है. सऊदी अरब और तुर्की जैसे राष्ट्र स्थिरता, विकास और सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं.”
“यूरोप जैसी दूसरी ताक़तें इस चीज़ को लेकर चिंतित नहीं हैं. जर्मनी जैसे राष्ट्र ने महिलाओं की भागीदारी और चुनावों की बात की है.”
इस सम्मेलन में ईरान और रूस को नहीं बुलाया गया था. क्या इसकी वजह से कोई संकट पैदा हो सकता है?
इस सवाल पर अब्दुल रज़्ज़ाक़ ने कहा कि उन्हें लगता है कि इसके ज़रिए सऊदी अरब ने ईरान को एक संदेश भेजा है.
उन्होंने कहा, “हालिया सालों में सऊदी अरब और दूसरे अरब मुल्क ईरान के नज़दीक गए हैं लेकिन आमतौर पर सऊदी अरब का नज़रिया ये है कि वो ईरान से आगे रहना चाहता है. वो हमेशा मानता है कि ईरान की कार्रवाई से निपटने के लिए उसके पास कोई रास्ता नहीं है.”
“वहीं सऊदी अरब ने ईरान और सीरिया के साथ रिश्तों को ठीक किया था. असद शासन के जाने के बाद उसने नई सीरिया सरकार के पीछे अपनी पूरी ताक़त झोंक दी है. वो सीरिया में अरबों डॉलर निवेश करने को तैयार है. वो ईरान को संदेश दे रहे हैं कि अब आप सीरिया में अपनी ताक़त इस्तेमाल नहीं कर पाओगे. इसी की तरह रूस को भी एक संदेश गया है कि वो सीरिया में नाकाम रहा है और अब वो वापस कभी वहां नहीं जा पाएगा.”
सीरिया में क्या हो रहा है?
दूसरी ओर सीरिया भी अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को सामान्य करने में लगा हुआ है.
सीरिया के नए नेता अहमद अल-शरा भी चर्चाओं में हैं. उन्होंने रविवार को लेबनान के नए चुने गए राष्ट्रपति जोसेफ़ ओन को फ़ोन कर बधाई दी है. ये फ़ोन कॉल उस समय की गई जब लेबनान के प्रधानमंत्री नजीब मिकाती सीरिया की राजधानी के दौरे पर थे.
नजीब मिकाती ने दोनों पड़ोसी देशों के बीच संबंधों को बहाल करने की दिशा में दमिश्क का दौरा किया है. साल 2011 में सीरिया में गृह युद्ध छिड़ने के बाद से लेबनानी सरकार के किसी प्रमुख का ये पहला दौरा था.
चरमपंथी समूह हिज़बुल्लाह का असद शासन समर्थन करता था जिसकी वजह से पिछली लेबनानी सरकारें सीरिया का दौरा करने से बचती रही हैं.
लेबनान के प्रधानमंत्री से मुलाक़ात के बाद अहमद अल-शरा ने कहा कि बैठक में प्रवासन और स्मगलिंग जैसे मुद्दों को लेकर बात हुई है.
सीरिया की समाचार एजेंसी ने अल-शरा के हवाले से कहा कि अगर उनका बस चले तो वो लेबनान से लगी सीमा को पूरी तरह खोल दें.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित