इमेज कैप्शन, मई 2025 में ली गई इस तस्वीर में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान….में
अमेरिका और सऊदी अरब के संबंधों में रक्षा सौदों और समझौतों से लेकर इसराइल के साथ रिश्ते स्थापित करने जैसे कई संवेदनशील मुद्दे बार-बार सामने आते रहे हैं.
अब सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान की अमेरिका यात्रा के दो सप्ताह पहले, सऊदी अरब के अमेरिका से एफ़-35 लड़ाकू जेट विमानों की खरीद का मुद्दा फिर से उठ रहा है.
इस संबंध में दो बातें सामने आई हैं. पहला ये कि अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने अरबों डॉलर के इस सौदे को मंज़ूरी दे दी है. वहीं ये भी घोषणा की गई है कि इस सौदे के तहत सऊदी अरब, अमेरिका से 48 विमान खरीदेगा.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने एफ़-35 सौदे के बारे में जानकारी रखने वाले अधिकारियों के हवाले से यह जानकारी दी है.
एफ़-35, अमेरिकी कांग्रेस और सऊदी अरब
लेकिन इस समझौते को लेकर रास्ता पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है, कम से कम अभी तक तो नहीं. इस सौदे को अंतिम रूप देने के लिए अमेरिकी सरकार, अमेरिकी राष्ट्रपति और कांग्रेस- तीनों की मंज़ूरी ज़रूरी है.
सऊदी लेखक मुबारक़ अल-अत्तियाह का कहना है कि सऊदी अरब समझता है कि ऐसे समझौतों के लिए कांग्रेस के साथ-साथ क़ानूनी तौर पर सरकार को इजाज़त लेनी होती है.
बीबीसी उर्दू से बात करते हुए उन्होंने कहा कि अगर इस मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कांग्रेस को मनाने में सफल हो जाते हैं, तभी वो इस समझौते पर आगे बढ़ सकते हैं.
मुबारक़ अल-अत्तियाह का कहना है कि इस समझौते को लेकर डेमोक्रेट्स और कांग्रेस के सदस्यों की ओर से सऊदी अरब और इसराइल के संबंधों को सामान्य बनाने के लिए दबाव आएगा.
उनका कहना है कि ट्रंप ने इस समझौते को मंजू़री देने के लिए विधायी प्रक्रिया अपनाई है, क्योंकि वह सऊदी अरब को एक रणनीतिक सहयोगी मानते हैं और इसलिए मानते हैं कि उसकी रक्षा ज़रूरतों को पूरा करना अमेरिकी विदेश नीति के तहत ज़रूरी है.
मुबारक़ अल-अत्तियाह कहते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई मौक़ों पर चिंता जता चुके हैं कि अगर अमेरिका, सऊदी अरब की रक्षा ज़रूरतों को पूरा करने से इनकार करता है, तो वो चीन और रूस जैसे अमेरिका के विरोधियों का रुख़ कर सकता है.
अल-अत्तियाह समझाते हैं कि सऊदी अरब बार-बार लड़ाकू विमानों के साथ-साथ अन्य तरह के सैन्य और रक्षा उपकरण खरीदने की बात करता रहा है.
इस सौदे को लेकर इसराइल की चिंता
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इमेज कैप्शन, सऊदी अरब अमेरिका से एफ़ 35 लड़ाकू विमान खरीदना चाहता है
अगर यह सौदा पूरा हो जाता है, तो यह अमेरिका की विदेश नीति में एक अहम बदलाव का संकेत होगा. इसका मतलब यह होगा कि मध्य पूर्व में इसराइल की सैन्य ताकत को चुनौती मिलने की संभावना पैदा हो सकती है.
हालांकि ये भी हो सकता है कि सऊदी अरब के साथ इस समझौते में ऐसी शर्तें और प्रतिबंध शामिल हों जिससे इस इलाक़े में इसराइल की सैन्य श्रेष्ठता कायम रहे.
मुबारक़ अल-अत्तियाह का कहना है कि ट्रंप इस समझौते को अंतिम रूप देना चाहते हैं, क्योंकि सऊदी नेतृत्व का इरादा वह समझते हैं. ट्रंप मानते हैं कि सऊदी अरब की महत्वाकांक्षा उनकी सीमाओं की सुरक्षा से परे नहीं है.
अल-अत्तियाह कहते हैं कि इलाक़े में अपने कुछ पड़ोसियों से अलग, सऊदी अरब विस्तारवादी महत्वाकांक्षा नहीं रखता और राष्ट्रपति ट्रंप यह जानते हैं.
हालांकि इस समझौते को लेकर बातचीत ट्रंप के कार्यकाल से पहले, उनके पूर्ववर्ती जो बाइडन के कार्यकाल में शुरू हुई थी. लेकिन ट्रंप प्रशासन ने इसे एक व्यापक समझौते से जोड़ दिया था जिसमें सऊदी अरब का इसराइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाना भी शामिल था. लेकिन 7 अक्तूबर, 2023 को इसराइल पर हुए हमास के हमले के बाद इन कोशिशों में एक तरह से रुकावट आ गई थी.
जानकारों के अनुसार, इसराइल को ये पसंद नहीं कि अमेरिका एफ़-35 लड़ाकू विमान सऊदी अरब को बेचे.
इसराइली मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, इस तरह का समझौता भविष्य में इसराइल की सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा पैदा कर सकता है, ख़ासकर अगर मध्य पूर्व के दूसरे मुल्कों के साथ उसके रिश्ते सामान्य न हों.
लेकिन मुबारक़ अल-अत्तियाह मानते हैं कि सऊदी अरब के लिए अब मामला अरब को लेकर उसके सिद्धांतों और प्रतिबद्धताओं का है और वो इसे छोड़ना नहीं चाहता.
इनमें एक अहम मुद्दा फ़लस्तीन का है. सऊदी अरब मानता है कि संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के तहत 1967 की सीमाओं के आधार पर एक स्वतंत्र फ़लस्तीनी राष्ट्र का गठन किया जाना चाहिए. मध्य पूर्व के भविष्य पर असर डालने वाली किसी भी वार्ता के लिए ये बुनियादी शर्त है.
अल-अत्तियाह के अनुसार, इसराइल को डर है कि सऊदी अरब रूस, चीन या ईरान के साथ एफ़-35 लड़ाकू जेट तकनीक साझा कर सकता है. ऐसा हुआ तो ईरान डिफेंस के मामले में उससे एक कदम आगे बढ़ जाएगा और उसके मुक़ाबले इसराइल की बढ़त कम हो जाएगी.
इससे पहले, साल 2020 में भी इस तरह की चिंता उठी थी जब अमेरिका अब्राहम अकॉर्ड्स के तहत संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को एफ़-35 विमान बेचने वाला था. हालांकि उस वक्त समझौते पर बात आगे नहीं बढ़ सकी थी.
समझौता शर्तों में अमेरिका ने विमानों के ऑपरेशन को लेकर कई प्रतिबंध भी लगाए थे, इनमें विमानों के इस्तेमाल पर शर्तें भी शामिल थीं. अमेरिका को चिंता थी कि चीन के साथ यूएई के गहरे संबंधों के कारण कहीं तकनीकी हस्तांतरण न हो जाए.
क्या बदलेगी सऊदी-अमेरिका संबंधों की दिशा?
अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप ने सऊदी अरब के लिए हथियार सौदों को लेकर अपने दरवाज़े खोले.
इस साल मई में अमेरिका और सऊदी अरब ने एक प्रमुख रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसे अमेरिकी इतिहास में सबसे बड़ा रक्षा सहयोग समझौता बताया गया.
ये सौदा ट्रंप के सऊदी दौरे के वक्त हुआ. ट्रंप तीन देशों- सऊदी अरब, क़तर और यूएई की यात्रा पर थे.
व्हाइट हाउस द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार अमेरिका ने सऊदी अरब के 600 अरब डॉलर का व्यापक समझौता किया. 142 अरब डॉलर का रक्षा सौदा इस व्यापक समझौते का हिस्सा था. इसके तहत वो अमेरिका से एफ़-35 लड़ाकू विमान खरीदेगा.
हालांकि एफ़-35 लड़ाकू विमान सौदे की असली परीक्षा अमेरिकी कांग्रेस के गलियारों में होनी है.
मुबारक़ अल-अत्तियाह कहते हैं कि सऊदी क्राउन प्रिंस के नेतृत्व और ट्रंप प्रशासन के दौरान सऊदी-अमेरिकी संबंधों में जो ख़ास बात है वह ये कि दोनों के बीच सभी फ़ाइलों पर चर्चा की जाती है और मतभेदों को रिश्तों में रुकावट नहीं बनने दिया जाता.
उनका कहना है कि सऊदी क्राउन प्रिंस के अमेरिकी दौरे का उद्देश्य हथियार के सौदे को अंतिम रूप देना नहीं है बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य दोनों के बीच राजनीतिक और आर्थिक साझेदारी को गहरा करना है. ज़ाहिर है कि इस दौरान रक्षा सौदों पर चर्चा भी होगी.
सऊदी अरब के बारे में मुबारक़ अल-अत्तियाह कहते हैं कि वो एफ़-35 लड़ाकू विमानों के साथ-साथ अन्य विकल्पों पर आधारित रक्षा नीति अपनाता है.
वो कहते हैं कि क्राउन प्रिंस इन लड़ाकू विमानों को हासिल करने की कोशिश करेंगे लेकिन अगर ये सौदा पूरा न हो सका तो इसकी विफलता से यात्रा की सफलता के आकलन पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
वो कहते हैं कि उनके अमेरिका दौरे में एफ़-35 पर चर्चा महत्वपूर्ण तो है लेकिन यह संबंधों का मुख्य निर्धारक नहीं है.
लड़ाकू जेट या सुरक्षा गारंटी?
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इमेज कैप्शन, सऊदी अरब को एफ़-35 लड़ाकू विमान बेचने को लेकर ट्रंप प्रशासन को अमेरिकी कांग्रेस की अनुमति लेनी होगी
इसमें कोई शक़ नहीं कि सऊदी अरब अमेरिका से एफ़-35 लड़ाकू विमान खरीदने के लिए प्रतिबद्ध है.
लेकिन उसकी कोशिश अमेरिका के साथ एक व्यापक रक्षा समझौते पर केंद्रित हैं, जिसके तहत किसी भी हमले की सूरत में अमेरिका उसकी रक्षा करे.
29 सितंबर को अमेरिका ने अमेरिका-क़तर रक्षा समझौते की घोषणा की. इसके तहत क़तर पर किसी भी हमले को अमेरिका की “शांति और सुरक्षा” के लिए ख़तरा मानने की बात की गई.
यह समझौता राष्ट्रपति के एक ‘कार्यकारी आदेश’ के रूप में जारी किया गया, जिसका अर्थ है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के बदलने पर इसमें संशोधन किया जा सकता है या फिर इसे निरस्त किया जा सकता है.
क़तर के साथ यह समझौता न तो कोई बाध्यकारी रक्षा समझौता है और न ही कोई ऐसा समझौता जिसे कांग्रेस की मंज़ूरी चाहिए हो.
सऊदी अरब के लिए सबसे बड़ी चुनौती फिलहाल ये है कि क्या वो क़तर के साथ हुए इस तरह के किसी समझौते को स्वीकार करेगा, जो उसकी सुरक्षा की प्रतिबद्धता को भविष्य में अमेरिकी प्रशासन में होने वाले बदलाव से जोड़ता है.
या फिर वो अमेरिका पर एक बाध्यकारी रक्षा समझौते के लिए दबाव बनाएगा, ताकि अमेरिका में राष्ट्रपति बदलने का असर उसकी सुरक्षा की प्रतिबद्धता पर न पड़े.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित