दक्षिण एशिया में सार्क को लेकर गतिविधियां बढ़ गई हैं। बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री यूनुस ने सार्क को पुनर्जीवित करने के लिए अमेरिका के राजदूत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से बात की है। उन्होंने भारत पर सार्क में प्रगति न होने देने का आरोप लगाया है जबकि भारत का कहना है कि सार्क की निष्क्रियता के लिए एक देश जिम्मेदार है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। दक्षिण एशिया की कूटनीति में सार्क यानी दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन को लेकर भारत के पड़ोसी देशों की तरफ से हाल के दिनों में सक्रियता बढ़ा दी गई है। इसमें सबसे आगे बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस हैं जिन्होंने एक दिन पहले भारत के लिए नामित अमेरिका के नए राजदूत सर्गियो गोर से सार्क को फिर से शुरू करने पर बात की है। बाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से जब उनकी मुलाकात हुई, तब उसमें भी दोनों के बीच सार्क की गतिविधियों को शुरू करने पर सहमति बनी।
युनूस ने एक सार्वजनिक मंच से भारत पर सीधे तौर पर आरोप लगाया है कि उसकी वजह से ही सार्क को लेकर कोई प्रगति नहीं हो रही है। दूसरी तरफ, भारत का रुख सार्क को लेकर बिल्कुल भी नहीं बदला है। बांग्लादेश और पाकिस्तान की तरफ से सार्क को लेकर दिए जा रहे बयानों पर भारत ने कोई प्रतिक्रिया भी नहीं दी है, लेकिन विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है, ‘सार्क क्यों असफल हुआ या निष्क्रिय हुआ है, यह कोई छिपी हुई बात नही है। सिर्फ एक देश की वजह से सार्क की यह स्थिति हुई है और सभी जानते हैं कि वह देश कौन है।’
सार्क के मुद्दे को पहले भी उठा चुके हैं यूनुस
सार्क को लेकर बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री यूनुस की सोच कोई नई नहीं है। वह कई बार इस मुद्दे को उठाते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका गए यूनुस ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में सार्क की निष्क्रियता के लिए भारत को परोक्ष तौर पर दोषी ठहराया।
उन्होंने कहा, ‘हमारा एक पड़ोसी देश सार्क को पसंद नहीं करता, जिसकी वजह से यह मृत संगठन बन चुका है। हमें पूछना चाहिए कि यह ऐसा क्यों हो गया है। हमें एक दूसरे से सहयोग करना चाहिए जैसा यूरोपीय संघ में हो रहा है।’
सार्क का मुद्दा यूनुस ने एक दिन पहले सर्गियो गोर के साथ बैठक में भी उठाया था। गोर को अगर सीनेट की मंजूरी मिल जाती है तो वह न सिर्फ भारत में अमेरिका के राजदूत होंगे, बल्कि मध्य व दक्षिण एशिया के लिए भी विशेष प्रतिनिधि के तौर पर काम करेंगे।
2014 के बाद से नहीं हुई सार्क की कोई बैठक
सार्क की शिखर बैठक हर दो वर्षों पर होने की परंपरा रही है, लेकिन 2014 के बाद इसकी कोई बैठक नहीं हुई है। 2016 में सार्क शिखर सम्मेलन इस्लामाबाद में होने वाला था, लेकिन इसके कुछ महीने पहले पाक समर्थित आतंकियों के हमला किए जाने के बाद भारत का रुख बदल गया।
भारत ही नहीं, बल्कि सार्क के अन्य सभी सदस्यों ने ऐसे माहौल में शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने में असहमति जता दी थी। लेकिन तब बांग्लादेश में शेख हसीना, अफगानिस्तान में अशरफ गनी और श्रीलंका में मैत्रीपाल सिरीसेन की सरकार थी जिन्होंने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के विरुद्ध भारत का साथ दिया था। उसके बाद से सार्क की कोई मंत्रिस्तरीय या सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों की कोई बैठक नहीं हुई है।
इस दौरान सार्क की विशेष समिति स्तर की बैठकें जरूर हुई हैं, लेकिन ये मुख्य तौर पर कला, संस्कृति, शिल्प आदि के क्षेत्र में हुई हैं। जैसे 30 सितंबर से कोलंबो में सार्क सांस्कृतिक केंद्र की बैठक होने वाली है।