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सर्दियों की अवधि घटना नितिन गोयल के व्यवसाय को ख़तरे में डाल रहा है.
बीते 50 वर्षों से उनका परिवार लुधियाना में कपड़ों का कारोबार कर रहा है. गोयल का परिवार जैकेट और स्वेटर जैसे सर्दियों के कपड़ों का व्यापार करता है.
लेकिन इस साल गर्मिया जल्दी आ गई हैं. इसकी वजह से उनकी कंपनी को नुक़सान उठाना पड़ रहा है.
अब उन्हें अपने व्यवसाय की रणनीति में भी बदलाव करना पड़ रहा है.
मौसम के कारण आ रही इन चुनौतियों के बारे में नितिन गोयल ने बीबीसी से बातचीत की.
उन्होंने कहा, “हर साल सर्दियों की अवधि घटती जा रही है. हमें स्वेटर के बजाए टी-शर्ट बनाना शुरू करना पड़ा है. हमारी बिक्री पिछले पांच वर्षों में आधी रह गई है. इस सीज़न में तो दस फ़ीसदी और कम हो गई है.”
देशभर में सर्दी के मौसम का जल्दी से ख़त्म हो जाना खेतों और कारखानों में चिंताएं बढ़ा रहा है. इससे फ़सलों का पैटर्न और व्यापार की योजनाएं उलट रही हैं.
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भारतीय मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि भारत में इस साल फ़रवरी का महीना, 125 वर्षों में सबसे ज़्यादा गर्म रहा.
देश के कई हिस्सों में सप्ताह का औसत न्यूनतम तापमान सामान्य से 1 से 3 डिग्री सेल्सियस तक अधिक रहा.
मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि मार्च और मई के बीच देश के कई हिस्सों में तापमान सामान्य से अधिक रह सकता है और गर्म हवाएं चल सकती हैं.
नितिन गोयल जैसे लोगों के लिए यह अनियमित मौसम केवल उत्पाद की बिक्री में कमी होने की वजह मात्र नहीं है, बल्कि इससे कुछ ज़्यादा है.
उन्होंने एक दशक से ज़्यादा समय देकर इस बिज़नेस मॉडल को तैयार किया था. मगर अनियमित मौसम के कारण उनको अपना पूरा बिज़नेस मॉडल बदलना पड़ रहा है.
गोयल की कंपनी देशभर में मल्टी ब्रांड आउटलेट्स को कपड़े सप्लाई करती है. उन्होंने बताया कि अब ये आउटलेट्स डिलीवरी पर भुगतान नहीं कर रहे हैं.
इसके बजाए वो ‘बिक्री या वापसी’ का पैटर्न अपना रहे हैं. इस पैटर्न में जो माल नहीं बिकता है, वो कंपनी को लौटा दिया जाता है. ऐसे में पूरा जोख़िम मैन्युफ़ैक्चरर पर आ जाता है.
यही वजह है कि इस साल उनको अपने ग्राहकों को बड़ा डिस्काउंट और इंसेंटिव देना पड़ा है.
गोयल ने कहा, “बड़े रिटेलर्स ने अपने ऑर्डर कन्फ़र्म होने के बाद भी माल नहीं उठाया.”
नतीजा ये कि लुधियाना के कुछ छोटे व्यापारियों को अपनी दुकानें बंद करना पड़ीं हैं.
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क़रीब 1200 मील दूर, भारत के पश्चिमी तट पर स्थित देवगढ़ कस्बे में गर्मी ने भारत में सबसे ज़्यादा पसंद किए जाने वाले अल्फ़ांसो आम के बागों को तहस-नहस करके रख दिया है.
किसान विद्याधर जोशी 1,500 पेड़ों के मालिक हैं.
उन्होंने बताया, “इस साल उत्पादन सामान्य उपज का 30 फ़ीसदी ही होगा.”
इस इलाके से निर्यात किया जाने वाला अल्फ़ांसो आम बेहद मीठा और सुगंधित फल है. इसकी किस्म मुख्य रूप से महाराष्ट्र के रायगढ़, सिंधुदुर्ग और रत्नागिरी ज़िलों में उगाई जाती है.
इस बार इसकी पैदावार कम हुई है.
जोशी ने बताया, “इस साल हमें घाटा हो सकता है. क्योंकि, फसल बचाने के लिए इस बार सिंचाई और खाद पर सामान्य से ज़्यादा ख़र्च करना पड़ा है.”
उन्होंने बताया कि इलाक़े के कई किसान तो आम के बागों में काम करने के लिए नेपाल से आए मजदूरों को वापस भेज रहे हैं, क्योंकि उनके पास करने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं है.
तेज़ी से आती गर्मी के कारण गेहूं और चने की फसलों पर भी ख़तरा मंडरा रहा है.
हालांकि, देश के कृषि मंत्री ने ख़राब पैदावार की चिंताओं को ख़ारिज कर दिया है और भविष्यवाणी की है कि भारत में इस बार गेहूं की बंपर फ़सल होगी.
लेकिन जानकारों को इसकी उम्मीद नहीं है.
काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर थिंक टैंक के अभिषेक जैन ने कहा, “साल 2022 में गर्म हवाओं के कारण पैदावार में 15-25 फ़ीसदी तक की कमी आई थी. इस साल भी ऐसा ही कुछ देखने को मिल सकता है.”
भारत दुनिया में गेहूं उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर है. मगर इन दिक्कतों के कारण भारत को महंगे आयात पर निर्भर रहना पड़ सकता है.
साल 2022 में इसके निर्यात पर प्रतिबंध घोषित किया गया था, वो लंबे समय तक जारी रह सकता है.
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अर्थशास्त्री भी खेती के लिए जल की उपलब्धता पर बढ़ते तापमान के प्रभाव को लेकर चिंतित हैं.
सीईईडब्ल्यू के मुताबिक, उत्तर भारत में जलाशयों का स्तर उनकी क्षमता के 28 फ़ीसदी तक गिर चुका है.
पिछले साल ये 37 फ़ीसदी था.
इसका असर फल-सब्ज़ियों और डेयरी सेक्टर पर पड़ सकता है. पहले ही देश के कुछ हिस्सों में दूध के उत्पादन में 15 फ़ीसदी की गिरावट देखी गई है.
बैंक ऑफ़ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस कहते हैं, “इन चीज़ों से महंगाई बढ़ने की आशंका है और आरबीआई ने जिस 4 फ़ीसदी लक्ष्य की बात की है वो भी खटाई में पड़ सकता है.”
भारत में खाद्य पदार्थों की कीमतें कई महीने तक ऊंची बनी रहने के बाद अब घटना शुरू हुई हैं. इसी का नतीजा है कि लंबे समय के बाद ब्याज़ दरों में कटौती की गई है.
सीईईडब्ल्यू जैसे थिंक टैंक का कहना है कि बार-बार आने वाली गर्म हवाओं के प्रभाव को कम करने के लिए तत्काल कई उपायों पर विचार करने की ज़रूरत है.
इनमें मौसम के पूर्वानुमान के लिए बेहतर इन्फ़्रास्ट्रक्चर, फ़सल बीमा के अलावा जोखिम कम करने और फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए क्लाइमेट मॉडल के साथ फसल कैलेंडर बनाने जैसे उपाय शामिल है.
मुख्य तौर पर कृषि प्रधान देश होने के नाते भारत जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर विशेष तौर पर संवेदनशील है.
सीईडब्ल्यू का अनुमान है कि भारत के हर चार ज़िलों में से तीन ऐसे हैं, जहां मौसम के स्तर पर ‘बड़ा बदलाव’ देखने को मिल रहा है.
इनमें से 40 फ़ीसदी इलाक़े ऐसे हैं, जहां मौसम में ‘स्वैपिंग पैटर्न’ देखने को मिल रहा है. मतलब, जहां पारंपरिक तौर पर बाढ़ आती थी, वहां ज़्यादा सूखा पड़ रहा है.
एक अनुमान के मुताबिक, साल 2030 तक गर्मी के कारण देश में क़रीब 5.8 फ़ीसदी डेली वर्किंग ऑवर्स का नुक़सान होगा.
अगर तत्काल कार्रवाई नहीं की गई, तो भारत के सामने एक ऐसे भविष्य का ख़तरा है, जहां गर्म हवाओं के कारण ज़िंदगी और आर्थिक स्थिरता दोनों का ख़तरा में पड़ जाएंगे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.