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साइबर फ्रॉड कर अपात्रों को दिलवाता था सरकारी योजनाओं का लाभ, पुलिस ने दबोचा; 52.69 लाख रुपये नकद बरामद

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Oct 24, 2025


जागरण संवाददाता, जयपुर। राजस्थान में झालावाड़ प़ुलिस ने अंतरराज्यीय साइबर धोखाधड़ी करने वाले एक गिरोह का राजफाश किया है। पुलिस ने गिरोह के 30 सदस्यों को गिरफ्तार किया है। प्रारंभिक पूछताछ में केंद्र एवं राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं में तीन करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी की बात सामने आई है। पुलिस अधीक्षक अमित कुमार ने बताया कि गिरोह ने अपात्र लोगों के बैंक खाते खरीदकर धोखाधड़ी की है।

इसके लिए उसने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और केंद्र व राज्य सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की विभिन्न योजनाओं का पैसा इन खातों में स्थानांतरित करवाया। बाद में गिरोह ने यह धन निजी खातों में स्थानांतरित करवा लिया। इस फर्जीवाड़े में कुछ सरकारी कर्मियों की मिलीभगत की भी सूचना है, हालांकि इस बारे में अधिकारिक जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है।

साइबर फ्रॉड गैंग के 30 सदस्य गिरफ्तार

पुलिस अधीक्षक ने बताया कि आठ सितंबर को इस संबंध में शिकायत मिली थी। जांच में पता चला कि झालावाड़ के मनोहरथाना और दागीपुरा क्षेत्रों में साइबर अपराधियों ने अपात्र लोगों के बैंक खातों और पहचान पत्रों को खरीदकर सरकारी योजनाओं का फर्जी लाभ उठाया। एक ही मोबाइल नंबर से दर्जन बैंक खाते जुड़े थे। गिरोह के सदस्य सरकारी डिजिटल प्रक्रिया का दुरुपयोग कर ओटीपी लेकर करोड़ों रुपये की ठगी करते थे। गिरोह का मुखिया दौसा जिले के बांदीकुई निवासी रामवतार सैनी है।

दौसा एवं झालावाड़ जिले के 28 लोग गिरोह से जुड़े हैं। एक व्यक्ति मध्य प्रदेश का निवासी है। गिरोह के सदस्यों के पास 52 लाख 69 हजार रुपये नकद, 14 लग्जरी कारों समेत 30 वाहन, नोट गिनने की मशीन,11 हजार से अधिक संदिग्ध बैंक खातों की पास बुक व चेक बुक, एटीएम कार्ड, 35 लैपटाप व कंप्यूटर, 70 मोबाइल फोन और कई महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद किए गए। पुलिस ने आरोपितों की तीन करोड़ रुपये की संपत्ति भी जब्त की है।.

गिरोह के सदस्य रख लेते थे 75 प्रतिशत तक रकम

झालावाड़ जिला प्रशासन के अनुसार गिरोह सरकारी पोर्टल की तकनीकी जानकारी का फायदा उठाकर अपात्र लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाता था। वह सामान्य लोगों के बैंक खाते और पहचान दस्तावेज खरीदरकर सरकारी कोष से सहायता राशि उनके बैंक खातों में स्थानांतरित करवाता था। इसमें से 50 से 75 प्रतिशत तक रकम गिरोह के सदस्य रखते थे। शेष रकम उन लोगों को दी जाती थी, जिनके नाम से फर्जीवाड़ा किया गया था।

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