नए डेटा से पता चला है कि धरती 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा तापमान की तरफ एक और कदम बढ़ा चुकी है. जबकि दुनिया के नेताओं ने एक दशक पहले कसम खाई थी कि वो इसे रोकने की कोशिश करेंगे.
द यूरोपियन कॉपरनिकस क्लाइमेट सर्विस इस मामले में ग्लोबल डेटा उपलब्ध कराने वाली प्रमुख सेवाओं में से एक है. इसी ने शुक्रवार को बताया कि 2024 वो पहला कैलेंडर साल था, जिसने इस सीमा को पार किया. रिकॉर्ड पर यह दुनिया का सबसे गर्म साल था.
यह पहली बार है जब औसत वैश्विक तापमान पूरे कैलेंडर वर्ष में 1850- 1900 (औद्योगिकीकरण के पूर्व का समय) के औसत से 1.6 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा है
इसका मतलब यह नहीं है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस का टारगेट टूट गया है. मगर, यह जरूर है कि हम ऐसा करने के क़रीब जा रहे हैं, क्योंकि जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के कारण वातावरण गर्म होता जा रहा है.
पिछले सप्ताह ही संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने हाल ही के तापमान रिकॉर्ड का वर्णन ‘क्लाइमेट ब्रेकडाउन’ के रूप में किया था.
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उन्होंने अपने नए साल के संदेश में सभी देशों से प्लेनेट वॉर्मिंग गैसों के उत्सर्जन को कम करने की अपील की थी.
उन्होंने कहा था, “हमें बर्बादी के इस रास्ते से निकलना चाहिए. हमारे पास खोने के लिए समय नहीं है.”
डेटा क्या कहता है?
द यूरोपियन कॉपरनिकस क्लाइमेट सर्विस के डेटा के मुताबिक, साल 2024 में वैश्विक औसत तापमान पूर्व औद्योगिक काल से लगभग 1.6 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा था. यह वो समय था, जब इंसानों ने ज़्यादा मात्रा में पेट्रोल, डीज़ल और कोयला जैसे जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल शुरू कर दिया था.
यह साल 2023 के रिकॉर्ड से केवल 0.1 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा है. इसका मतलब है कि पिछले दस साल रिकॉर्ड पर सबसे ज़्यादा गर्म साल रहे हैं.
मौसम कार्यालय, नासा और और अन्य जलवायु समूह शुक्रवार को अपना डेटा जारी करेंगे. ऐसी उम्मीद है कि वो सभी इस पर सहमत होंगे कि साल 2024 रिकॉर्ड पर सबसे गर्म साल रहा है. हालांकि, सटीक आंकड़ों में कुछ अंतर होगा.
पिछले साल की गर्मी मनुष्यों द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड जैसी प्लेनेट वॉर्मिंग गैसों के उत्सर्जन के कारण थी, जो अभी भी रिकॉर्ड ऊंचाई पर है.
अल नीनो जैसे प्राकृतिक मौसम के प्रभाव में पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सतह पर मौजूद पानी असामान्य तौर पर गर्म हो जाता है. इसने भी इस मामले में छोटी सी भूमिका निभाई है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
द यूरोपियन कॉपरनिकस क्लाइमेट सर्विस की डिप्टी डायरेक्टर सामंथा बर्गेस ने बीबीसी को बताया, “हमारी जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों में सबसे ज़्यादा योगदान वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों की सघनता है.”
साल 2015 में पेरिस में हुए क्लाइमेट समझौते के बाद 1.5 डिग्री सेल्सियस का ये आंकड़ा जलवायु परिवर्तन से जुड़ी बातचीत के मंच का अहम हिस्सा बन गया है.
कई कमज़ोर देश इसे अपने अस्तित्व से जुड़ा मामला मानते हैं.
साल 2018 में आई यूएन की एक ऐतिहासिक रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन से होने वाले ख़तरों में तेज़ गर्म हवाएं, समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी, वन्य जीवन को नुक़सान जैसी बातें शामिल हैं.
माइल्स एलन यूएन रिपोर्ट के लेखक हैं. वो यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड के डिपार्टमेंट ऑफ़ फ़िजिक्स से हैं. वो कहते हैं, “वास्तव में हम लंबी अवधि की 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को कब तोड़ देंगे, इसकी भविष्यवाणी करना मुश्किल है. मगर, हम स्पष्ट तौर पर अब इसके बहुत क़रीब हैं.”
वर्तमान संकेत बताते हैं कि 2030 के दशक की शुरुआत तक दुनिया का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस की लंबी अवधि की सीमा को पार कर जाएगा. यह राजनीतिक तौर पर तो महत्वपूर्ण होगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जलवायु के लिए होने वाली कार्रवाई का खेल ख़त्म हो जाएगा.
अमेरिका में एक रिसर्च फर्म बर्कले अर्थ में जलवायु वैज्ञानिक हैं ज़ेक हॉसफ़ादर. वो कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि 1.49 डिग्री सेल्सियस ठीक है और 1.51 डिग्री सेल्सियस से दुनिया का अंत हो जाएगा. डिग्री का हर दसवां हिस्सा मायने रखता है. और जितनी ज़्यादा गर्मी होगी, जलवायु प्रभाव बदतर होते जाएंगे.”
दरअसल, ग्लोबल वॉर्मिंग की एक डिग्री का एक अंश भी लगातार और तीव्र कठोर मौसम ला सकता है. जैसे- गर्म हवाएं और भारी वर्षा.
साल 2024 में, दुनिया ने पश्चिमी अफ्रीका में तेज़ तापमान, दक्षिणी अमेरिका के कुछ हिस्सों में लंबे समय तक सूखा, सेंट्रल यूरोप में भारी वर्षा और उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी एशिया में उष्णकटिबंधीय तूफ़ान को देखा.
आख़िर ऐसा क्यों हुआ?
वर्ल्ड वेदर एट्रीब्यूशन ग्रुप के अनुसार, यह वो घटनाएं थीं, जो पिछले साल जलवायु परिवर्तन के कारण और तीव्र हो गई थीं.
इस सप्ताह, जब नए आंकड़े जारी किए गए हैं. लॉस एंजेलिस तेज़ हवाओं और बारिश की कमी के कारण विनाशकारी जंगल की आग से घिर गया है.
इस सप्ताह होने वाली घटनाओं में कई कारक शामिल हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि गर्म हो रही दुनिया में कैलिफ़ोर्निया में आग लगने की अनुकूल परिस्थितियाँ बनती जा रही है.
यह केवल हवा का तापमान नहीं था, जिसने साल 2024 में नए निशान छोड़े हैं. दुनिया में समुद्र की सतह भी नई ऊंचाई पर पहुंच गई है. और वातावरण में नमी की मात्रा भी रिकॉर्ड स्तर पर है.
यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि दुनिया नए रिकॉर्ड तोड़ रही है. साल 2024 के गर्म होने की उम्मीद हमेशा से थी. इसकी वजह अल नीनो इफ़ेक्ट था, जो पिछले साल अप्रैल के आसपास ख़त्म हुआ था. यह मनुष्यों द्वारा बढ़ रही वॉर्मिंग से ऊपर था.
हाल ही के वर्षों में कई रिकॉर्ड्स का मार्जिन उम्मीद से कम रहा है. मगर, कुछ वैज्ञानिकों को डर है कि यह वॉर्मिंग में तेज़ी का कारण बन सकती है.
डॉक्टर हॉसफ़ादर कहते हैं, “मुझे लगता है कि यह कहना सही है कि साल 2023 और साल 2024 दोनों के तापमान ने अधिकांश जलवायु वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया है. हमने कभी नहीं सोचा था कि हम इतनी जल्दी 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान देख पाएंगे.”
जर्मनी में अल्फ्रेड वेगेनर इंस्टीट्यूट के क्लाइमेट फिज़िसिस्ट हैं हेल्गे गोस्लिंग. वो भी इस बात से सहमत हैं. वो कहते हैं, “साल 2023 से हमारे पास क़रीब 0.2 डिग्री सेल्सियस की अतिरिक्त वॉर्मिंग है, जिसे हम पूरी तरह से समझा नहीं सकते हैं. दरअसल, हमने जलवायु परिवर्तन और अल नीनो इफेक्ट से जो अपेक्षा की थी, यह उसके अलावा है.”
इस ‘अतिरिक्त’ वॉर्मिंग को समझने के लिए कई सिद्धांत सुझाए गए हैं. जैसे- निचले स्तर के बादलों के आवरण में स्पष्ट कमी, जो ग्रह को ठंडा रखने में कारगर है. और अल नीनो के ख़त्म होने के बाद लंबे समय तक समुद्री गर्मी बने रहना.
डॉक्टर गोस्लिंग कहते हैं, “सवाल बस यह है कि क्या यह तेज़ी मनुष्यों की गतिविधियों से जुड़ी हुई है, क्योंकि इसका मतलब है कि भविष्य में हमारे पास और तेज़ गर्मी होगी या फिर यह प्राकृतिक परिवर्तनशीलता का एक हिस्सा है. फिलहाल यह कहना बहुत मुश्किल है.”
अब क्या विकल्प हैं?
इस अनिश्चितता के बावजूद, वैज्ञानिक इस बात पर ज़ोर देते हैं कि भविष्य की जलवायु पर मनुष्यों का अभी भी नियंत्रण है. और उत्सर्जन में कटौती करके वॉर्मिंग के परिणामों को कम किया जा सकता है.
डॉक्टर हॉसफ़ादर कहते हैं, “भले ही तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से आगे आ चुका हो, लेकिन हम अभी भी इस सदी में तापमान को 1.6 डिग्री सेल्सियस से 1.7 डिग्री सेल्सियस या 1.8 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर सकते हैं.”
उन्होंने कहा, “यदि हम कोयला, तेल और गैस को बिना किसी रोकटोक के यूंही जलाते रहे, तो हो सकता है कि आख़िर में हम 3 डिग्री सेल्सियस या 4 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाए. उस हिसाब से तो यह ज़्यादा (1.6 डिग्री सेल्सियस से 1.8 डिग्री सेल्सियस) बेहतर रहेगा, क्योंकि अभी भी यह मायने रखते हैं.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.